Saturday, 28 December 2013

सामना में छपा लेख

वर्ष 2010 की बात है। 19 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम लोगों की ऐसी पार्टी है जिसका गरिमापूर्ण भूतकाल है। हमारी पार्टी भविष्य की पार्टी है, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह हरेक भारतीय के बीच उम्मीद जगाए रखे। यह हमारी पुकार है और हमारा दायित्व भी है। इस महाधिवेशन से यह संदेश लोगों के बीच जाना चाहिए कि कांग्रेस को अपनी शक्ति, अपनी जिम्मेवारी का बोध है। हम सब मिलकर ही अपनी शक्ति बढ़ा सकेंगे। हम सब एकजुट होकर ही अपना दायित्व निभा सकेंगे। हम सब मिलकर ही आम लोगों द्वारा अपने प्रति कायम आस्था एवं विश्वास के अनुरूप अपने को साबित कर सकते हैं।’
मौका था कांग्रेस अधिवेशन का। इसी अधिवेशन में कांग्रेस के उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने कहा, ‘ भारत में ‘आम आदमी’ वह है, जो देश की प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं है। चाहे वह गरीब हो अथवा धनी, हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई हो, शिक्षित हो अथवा अशिक्षित, यदि वह देश की प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं है तो वह एक आम आदमी है। हम उन्हें आम आदमी कह सकते हैं, परन्तु वास्तव में वह अनोखा है। उनमें पर्याप्त क्षमता, बुद्धि एवं शक्ति है। वह अपने जीवन के हर दिन इस देश के निर्माण में लगा रहता है, परन्तु हमारी प्रणाली हर कदम पर उन्हें कुचलती रहती है....हम लोग तब तक किसी राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते जब तक कि हम एक ऐसी प्रणाली का निर्माण नहीं कर लेते, जिसमें किसी व्यक्ति की प्रगति इस बात पर निर्भर नहीं करेगी कि वह किस-किस को जानता है, बल्कि वह क्या जानता है। यह हमारी पीढ़ी के सामने एक चुनौती है।’
दरअसल, कांग्रस के दो वरिष्ठ नेताओं का वक्तव्य यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस ने हमेशा ही आम आदमी और जन सरोकार से जुड़े मुद्दों को ही उठाया है। राजनीति पार्टी के लिए सेवा का सबसे सशक्त माध्यम रही है। ......


Friday, 27 December 2013

सामाजिक सरोकार से सरोबार रही कांग्रेस


कांग्रेस के स्थापना दिवस 28 दिवस पर विशेष 



वर्ष 2010 की बात है। 19 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम लोगों की ऐसी पार्टी है जिसका गरिमापूर्ण भूतकाल है। हमारी पार्टी भविष्य की पार्टी है, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह हरेक भारतीय के बीच उम्मीद जगाए रखे। यह हमारी पुकार है और हमारा दायित्व भी है। इस महाधिवेशन से यह संदेश लोगों के बीच जाना चाहिए कि कांग्रेस को अपनी शक्ति, अपनी जिम्मेवारी का बोध है। हम सब मिलकर ही अपनी शक्ति बढ़ा सकेंगे। हम सब एकजुट होकर ही अपना दायित्व निभा सकेंगे। हम सब मिलकर ही आम लोगों द्वारा अपने प्रति कायम आस्था एवं विश्वास के अनुरूप अपने को साबित कर सकते हैं।’
मौका था कांग्रेस अधिवेशन का। इसी अधिवेशन में कांग्रेस के उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने कहा, ‘ भारत में ‘आम आदमी’ वह है, जो देश की प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं है। चाहे वह गरीब हो अथवा धनी, हिन्दू, मुसलमान, सिख या ईसाई हो, शिक्षित हो अथवा अशिक्षित, यदि वह देश की प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं है तो वह एक आम आदमी है। हम उन्हें आम आदमी कह सकते हैं, परन्तु वास्तव में वह अनोखा है। उनमें पर्याप्त क्षमता, बुद्धि एवं शक्ति है। वह अपने जीवन के हर दिन इस देश के निर्माण में लगा रहता है, परन्तु हमारी प्रणाली हर कदम पर उन्हें कुचलती रहती है....हम लोग तब तक किसी राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते जब तक कि हम एक ऐसी प्रणाली का निर्माण नहीं कर लेते, जिसमें किसी व्यक्ति की प्रगति इस बात पर निर्भर नहीं करेगी कि वह किस-किस को जानता है, बल्कि वह क्या जानता है। यह हमारी पीढ़ी के सामने एक चुनौती है।’
दरअसल, कांग्रस के दो वरिष्ठ नेताओं का वक्तव्य यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस ने हमेशा ही आम आदमी और जन सरोकार से जुड़े मुद्दों को ही उठाया है। राजनीति पार्टी के लिए सेवा का सबसे सशक्त माध्यम रही है। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना, 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके प्रथम महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे एवं कोलकता के वोमेश चंद्र बैनर्जी प्रथम पार्टी अध्यक्ष थे। अपने शुरूवाती दिनों में कॉंग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्गीय संस्था का था। इसके शुरूवाती सदस्य मुख्य रूप से बॉम्बे और मद्रास प्रैजिÞडेंसी से थे। स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था। 1907 में काँग्रेस में दो दल बन चुके थे, गरम दल एवं नरम दल। गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल(जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे। नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी कर रहे थे। गरम दल पूर्ण स्वराज की मांग कर रहा था परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था। प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गए और होम रूल आंदोलन की शुरूआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिए अधिराज्य अवस्था(डॉमिनियन स्टेटस) की माँग की जा रही थी। परन्तु 1916 में गांधी जी के भारत आगमन के साथ काँग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया। चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलता मिली। 1919 में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गांधी जी कॉंग्रेस के महासचिव बने। गांधीजी के मार्गदर्शन में कॉंग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदाय संस्था बन गयी। तद्पश्चात राष्ट्रीय नेताओं की एक नयी पीढ़ी आई जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरु, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई एवं सुभाष चंद्र बोस शामिल थे। गांधीजी के नेतृत्व में प्रदेश काँग्रेस कमेटियों का निर्माण हुआ, काँग्रेस में सभी पदों के लिए चुनाव की शुरूआत हुई, सभी भेद-भाव हटाए गए एवं कार्यवाहियों के लिए भारतीय भाषाओं का प्रयोग शुरू हुआ। काँग्रेस ने कई प्रान्तों में सामाजिक समस्याओं को हटाने के प्रयत्न किये जिसमें छुआछूत, पर्दाप्रथा एवं मद्यपान शामिल थे। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत के मुख्य राजनैतिक दलों में से एक रही है। इस दल के कई प्रमुख नेता भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी इसी दल से थे। कांग्रेस भारत की वर्तमान गठबंधन सरकार का मुख्य दल है, एवं वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी इसी दल से हैं।
कांग्रेस का जन्म सिर्फ आर्थिक शोषण और राजनीतिक दासता के कारण ही नहीं हुआ। इसमें संदेह नहीं की कि कांग्रेस के राजनीतिक लक्ष्य भी थे, लेकिन वह राष्ट्रीय पुनर्जागरण आंदोलन का अंग और अभिव्यक्ति मंच भी बन गयी थी। कांग्रेस के जन्म से पचास साल से भी पहले से राष्ट्रीय पुनर्जागरण की शक्तियां काम कर रही थीं। वास्तव में राजा राम मोहन राय के समय से ही राजनीतिक जीवन में सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी। एक तरह से राममोहन राय को भारतीय राष्ट्रवाद का मसीहा और आधुनिक भारत का जनक माना जाता है। उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था और वे सच्चे अर्थों में युगद्रष्टा थे। यह सही है कि अपनी सुधारवादी गतिविधियों में उन्होंने सबसे अधिक ध्यान अपने समय की सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों पर दिया। लेकिन उन्हें अपने समय में देश पर हो रही भयंकर राजनीतिक ज्यादतियों का पूरा एहसास था और उन्होंने इन ज्यादतियों से जल्दी से जल्दी मुक्ति पाने के लिए अथक संषर्घ किया। १७७६ में जन्मे राममोहन राय का निधन  1833 में ब्रिस्टल में हुआ। उनका नाम भारत के दो प्रमुख सामाजिक सुधारों से जुड़ा हुआ है। यह है सतीप्रथा का अन्त, और देश में पश्चिमी शिक्षा की शुरूआत। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे इंग्लैंड गये। आजादी के लिए उनकी तड़प इनती अधिक थी कि उत्तमाशा अन्तरीप पहुंचाने पर उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें फ्रांस के उस जहाज पर ले जाया जाए जिस पर उन्होंने आजादी का ध्वज फहराता देखा था ताकि वे उस ध्वज के प्रति सम्मान व्यक्त कर सकें। ध्वज को देखते ही वे चिल्ला पड़े, ''ध्वज ही जय हो'', ''जय हो'' यद्यपि वे इंग्लैंड मूल रूप से मुगल सम्राट के दूत के रूप में लंदन में उसके हितों की वकालत करने गये थे लेकिन हाउस आफ कामन्स की समिति के समक्ष भारतीयों की कुछ ज्वलंत समस्याओं का उल्लेख करने से नहीं चुके। उन्होंने भारत की राजस्व व्यवस्था, भारत की न्यायिक व्यवस्था और भारतीय माल की स्थिति के बारे में तीन पत्र समिति में पेश किए। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उनके सम्मान में सार्वजनिक रूप से रात्रिभोज का आयोजन किया। 1832 में जब ब्रिटिश संसद में चार्टर कानून पर विचार हो रहा था तो उन्होंने कसम खाई कि यदि यह विधेयक पास न हुआ तो वे ब्रिटिश उपनिवेश छोड़कर अमरीका में रहने लगेंगे। 1858 में भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी तथा 1861 और 1863 के बीच उच्च न्यायालय और विधान परिषदें कायम की गयीं। सैनिक क्रांति से कुछ ही दिन पहले 'विधवा पुनर्विवाह कानून' और ईसाई धर्म स्वीकार करने से सम्बद्ध कानून पास किए गए। 1860 के दशक में पश्चिमी शिक्षा और साहित्य में निकट सम्पर्क कायम हुआ। पश्चिमी कानूनी और संसदीय प्रक्रियाएं अपनाये जाने से कानून और विधान के क्षेत्र में नए युग का सूत्रापात हुआ। पूर्व पर पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव ने भारतीय जनता के विश्वासों और भावनाओं पर गहरा असर डाला।
केवल बंगाल, बम्बई और मद्रास प्रांतों में ही आधुनिक पद्धति पर थोड़ी बहुत शिक्षा उपलब्ध हुई। इस प्रांतों में भी शिक्षित लोगों की संख्या बहुत कम थी। सैनिक क्रांति के बाद की परिस्थितियों में इन शिक्षित लोगों को अपनी महत्वकाक्षाएं पूरी करने का काफी अवसर मिला। इन लोगों ने अपने अँग्रेज आकाओं की तरह सोचना शुरू कर दिया और पश्चिमी से आने वाली हर चीज का समर्थन और अनुसरण किया। अँग्रेजों के अंधानुकरण का यह दौर बंगाल में विशेष रूप से मुखर था। लेकिन जल्दी ही इस प्रक्रिया का विरोध होने लगा और यह विरोध कई रूपों में सामने आया। कभी पश्चिमी और पूर्व के समन्वय के रूप में और कभी अतीत को वापस लौटते पुनर्जागरण के रूप में। राममोहन राय के जीवन काल में बोए गए धार्मिक सुधारकों के बीज फलित होने लगे। राममोहन राय के उत्तराधिकारी केशव चन्द्र सेन ने ब्रह्म समाज का दूर-दूर तक प्रचार किया और उसके सिद्धांतों को नई समाजोपयोगी दिशा दी। उन्होंने आत्म संयम आंदोलन पर ध्यान केंद्रित किया और इंग्लैंड के सुधारकों का समर्थन किया। 1872 में कानूनी विवाह अधिनियम-३ पास कराने में उनका काफी बड़ा हाथ था। बंगाल में ब्रह्?म समाज के प्रसार का पूरे देश पर असर पड़ा। पूना में इस आंदोलन में एम.जी. रानाडे के नेतृत्व में प्रार्थना समाज बना। एम.जी. रानाडे को समाज सुधार आंदोलन के प्रणेता के रूप में याद किया जाता रहेगा। यह आंदोलन लम्बे समय तक कांग्रेस से जुड़ा रहा। इस सुधारवादी आंदोलन की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि यह अतीत की परंपराओं और देश में सदियों से चले आ रहे विश्वासों और मान्यताओं का विरोधी था। विरोध की यह भावना पश्चिमी संस्थाओं की अनावश्यक चकाचौंध से जन्मी थी और इससे जुड़ी हुई राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने इसे और प्रखर बना दिया। राष्ट्र की पारम्परिक मान्यताओं की विरोध की इस प्रवृत्ति का सुधारवादी आंदोलनों द्वारा विरोध होना स्वाभाविक ही था।
उत्तर पश्चिम में स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज और दक्षिण में थियोसोफिकल आंदोलन ने पश्चिमी शिक्षा और आचार के साथ आयी पाखंड और धर्मान्धता की भावना को पनपने से रोकने के लिए दीवार का काम किया। यह दोनों ही आंदोलन घोर राष्ट्रवादी थे। केवल दयानन्द सरस्वती की प्रेरणा से जन्में आर्य समाज का राष्ट्रवाद कुछ अधिक प्रखर था। आर्य समाज ने वेदों और वैदिक संस्कृति की श्रेष्ठता और आमोघता का प्रचार तो किया लेकिन साथ ही वह व्यापक सामाजिक सुधारकों का हिमायती नहीं था। इस प्रकार उसने राष्ट्र में एक प्रबल पौरुष की भावना पैदा की जो उसकी विरासत और वातावरण के सर्वोत्तम समन्वय का प्रतीक थी। उसने हिन्दू धर्म के धार्मिक अंधविश्वासों और उस समय की सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उसी तरह से संघर्ष किया जैसे ब्रह्?म समाज ने बहुदेववाद, मूर्तिपूजा और बहुपत्नी प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया था। थियोसोफिकल आंदोलन ने अपने अध्ययन और सहानुभूति का क्षेत्र तो विश्व व्यापी रखा लेकिन पूर्व की संस्कृति की शानदार और महान परम्पराओं की पुनर्स्थापना पर विशेष जोर दिया। इसी भावना से प्रेरित होकर श्रीमती एनीबेसेंट ने भारत के तीर्थ स्थल बनारस में एक कालेज की स्थापना की। थियोसोफिकल आंदोलन की गतिविधियों ने अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे की भावना को बलवती करने के साथ-साथ पश्चिम की तार्किक श्रेष्ठता पर अंकुश लगाने में भी मदद की और भारत में एक नया सांस्कृतिक केंद्र विकसित किया जिसने पश्चिम के विद्वानों और पंडितों को एक बार फिर इस प्राचीन देश की ओर आकृष्ट किया।
भारत में कांग्रेस के जन्म से पहले राष्ट्रीय पुनर्जागरण का ताजा चरण महान्? संत रामकृष्ण परमहंस के नेतृत्व में बंगाल में शुरू हुआ। स्वामी रामकृष्ण ने बाद में स्वामी विवेकानन्द के माध्यम से पूर्व और पश्चिम तक अपना संदेश पहुंचाया। रामकृष्ण मिशन केवल एक ओर तंत्र मंत्र और दूसरी ओर यथार्थवाद से जुड़ा संगठन नहीं है, बल्कि यह गहन अतर्ज्ञानवाद से जुड़ा था जो लोक संघर्ष या समाजसेवा के सर्वोच्च कर्तव्य से कभी विमुख नहीं हुआ। अमरीका में 'तूफानी हिन्दू' के नाम से मशहूर स्वामी विवेकानन्द ने अमरीका, यूरोप, मिस्र, चीन और जापान में केवल भारत का संदेश ही नहीं पहुंचाया बल्कि वे स्वयं भी पश्चिम की संस्कृति से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने भारत में हिमालय से कन्याकुमारी तक पुनरुद्धार का नया संदेश दिया। उन्होंने मुक्ति और समानता के साथ-साथ जन-जागरण का विशेष जोर दिया। वे पश्चिमी की प्रगति और भारत के आध्यात्म का समन्वय चाहते थे। उनके भाषणों और लेखों का एक ही मूल मंत्र था ''निडर और मजबूत बनो क्योंकि कमजोरी पाप है। मृत्यु का द्वार है।'' विवेकानन्द के समकालीन लेकिन उनसे बहुत बाद की पीढ़ी के प्रतिनिधि थे रवीन्द्र नाथ टैगोर। टैगोर परिवार ने 19वीं वीं सदी में बंगाल में अनेक सुधारवादी आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाई। इस परिवार ने देश को अनेक आध्यात्मिक नेता और कलाकार दिए। भारत के मानस पर टैगोर का प्रभाव और उसके साहित्य, कविता, नाटक, संगीत, सामाजिक और शैक्षिक पुनर्निर्माण तथा राजनीतिक विचारधारा पर टैगोर की छाप का सौंदर्य और गहनता अभूतपूर्व है। यह छाप मानव के व्यक्तित्व और मस्तिष्क का ऐसा अद्भुत उदाहरण है जो भावी पीढ़ियों को प्रभावित करता रहेगा और नए रंग देगा। वास्तव में टैगोर का योगदान पूर्व और पश्चिम, आधुनिक और प्राचीन तथा देश में उभरते राष्ट्रवाद तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच का अद्भुत समन्वय है। ये धाराएं और आंदोलन वास्तव में नई राष्ट्रीय चेतना और उमंग के प्राण थे और यही धीरे-धीरे कदम-दर-कदम आगे चलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रूप में साकार हुए।


Thursday, 26 December 2013

1947 और 2014 का एक जैसा कलेंडर



वर्ष 2014 कई मायनों में खास होगा। दिल्ली में देश की नई सरकार शपथ लेगी तो बड़ी खासियत यह कि आजादी का साल खुद को 2014 में दोहराएगा। दरअसल, 1947 और 2014 का कैलेडर एक समान है। तारीख के साथ दिन, वार और जयंतियां सब एक ही तारीख में एक समान पड़ रहे हैं। यानी 67 साल पहले और नए साल के कैलेंडर में जरा भी फर्क नहीं है। 1947 में देश आजाद हुआ और देश में नई सरकार बनी। २०14 में देशभर में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं, जिसकी तैयारियां चल पड़ी हैं। नई सरकार इसी साल शपथ लेगी। इस लिहाज से एक बड़ी समानता यह भी है।
हालांकि त्यौहार अलग तारीखों पर पड़ रहे हैं, क्योंकि इनका निर्धारण हिंदू पंचांग और ग्रहों की गति के आधार पर होता है। साल 1947 की तरह 2014 में भी नया साल बुधवार को पड़ रहा है और 15 अगस्त शुक्रवार को पड़ रहा है। लेकिन दोनों सालों में पड़ने वाले त्योहारों की तारीख और दिन अलग-अलग है। साल 1947 में होली 6 मार्च, रक्षाबंधन 31 अगस्त, दशहरा 24 अक्टूबर को और दीपावली 12 नवंबर को थी। जबकि नए साल में होली 17मार्च, रक्षाबंधन 10 अगस्त, दशहरा 4 अक्टूबर और दीपावली 24 अक्टूबर को पड़ रही है।
समाज विज्ञानी राजनीतिक परिदृश्य में भी दोनों सालों में समानता देखने की कोशिश कर रहे हैं। वे लोकपाल विधेयक को संसद में पारित होने को देश को फिरंगियों की गिरफत से मुक्त कराने की तरह भ्रष्टाचार से मुक्त कराने की दिशा में पहले कदम की तरह देख रहे हैं।
दोनों वर्षों में ये समानताएं
बुधवार 1 जनवरी:  नया साल
मंगलवार 7 जनवरी:  गुरुगोविंद सिंह जयंती
रविवार 26 जनवरी:  गणतंत्र दिवस
बुधवार 19 फरवरी: शिवाजी जयंती
रविवार 13 अप्रैल:  महावीर जयंती
सोमवार 14 अप्रैल:  अंबेडकर जयंती
शुक्रवार 15 अगस्त:  स्वतंत्रता दिवस
गुरुवार 2 अक्टूबर:  गांधी जयंती
गुरुवार 6 नवंबर:  गुरुनानक जयंती
गुरुवार 25 दिसंबर:  क्रिसमस
बुधवार 31 दिसंबर:  साल का आखिरी दिन

Monday, 23 December 2013

लोकायत में मेरा इंटरव्यू

लोकायत में मेरा इंटरव्यू



काम करने में विश्वास : सरफराज सिद्दीकी



पेशे से अधिवक्ता और साथ में समाज सेवा। राजनीति को समाज सेवा का बेहतर जरिया मानते हैं दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव सरफराज अहमद सिद्दीकी। दिल्ली सहित देश के वर्तमान मुद्दों पर उन्होंने बेबाक राय रखी। सरफराज सिद्दीकी से बात की सुभाष चंद्र ने। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश : 

0 ‘आप’ ने जिस प्रकार का प्रदर्शन किया है, उसकी उम्मीद थी आपको? 
राजनीति में कई बातें अनायास ही होती हैं। लेकिन यह सार्वभौमिक सत्य है कि लोकतंत्र में जनादेश सबसे अहम होता है। हमारी पार्टी ने 15 वर्षों तक दिल्ली की जनता का सेवा किया है। दिल्ली की जनता ने जो जनादेश दिया है, हम उसका सम्मान करते हैं।
0 कहा जा रहा है कि 1998 में प्याज के मुद्दे पर सुषमा स्वराज की सरकार चली गई थी। 2013 में शीला दीक्षित का हाल भी उसी तर्ज पर हुआ? 
देखिए, प्याज और महंगाई एक मुद्दा जरूर था। लेकिन इसके साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिन्होंने प्याज स्टोर कर रखे थे, वे भारतीय जनता पार्टी के ही लोग थे। सुषमा स्वराज के हारने के कई और कारण थे। आपको याद होगा, उस समय भाजपा ने तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले थे। इस बार भी कांग्रेस केवल महंगाई और प्याज के मुद्दे पर नहीं हारी है। चुनाव के दौरान प्याज आदि के दाम कुछ ताकतों ने जानबूझकर बढ़ाए। कुछ तो ऐसा था, नहीं तो चुनाव के एक दिन बाद ही प्याज कैसे सस्ता हो गया? जो चुनाव से पहले 100 रुपये किलो तक पहुंच गया था।
0 कांग्रेस की दिल्ली में आगे की रणनीति क्या होगी? 
पार्टी रचनात्मक भूमिका निभाएगी और फिर से जनता का विश्वास हासिल करने के लिए काम करेगी। कांग्रेस हमेशा आम जनता से जुड़ी रही है। कांग्रेस ने आम आदमी के लिए काम किया है। पार्टी द्वारा जनता की भावनाओं को समझने में अगर कोई कसर रह गई होगी, तो उसका आंकलन किया जाएगा।
0 दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी अरविंदर सिंह लवली को सौंपी गई है। किस रूप में देखते हैं इस बदलाव को? 
मुझे पूरी उम्मीद है कि जिस प्रकार से बीते दशक से उन्होंने जनसेवा और जनसरोकार से जुड़े कार्यों में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है, आने वाले समय में वह प्रदेश कांग्रेस को और भी सशक्त बनाएंगे। लोकतांत्रिक प्रणाली में चुनाव के दौरान हार-जीत का सिलसिला जारी रहता है। इससे जन सरोकार से जुड़े कार्यों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रदेश संगठन के तमाम कार्यकर्ता पार्टी हाईकमान की ईच्छा और अरविंदर सिंह लवली के नेतृत्व में प्रदेश संगठन को और अधिक मजबूत करेंगे।
0 आगामी चुनाव में आपकी लड़ाई सीधे-सीधे भाजपा से है या आम आादमी पार्टी से?
हमारी लड़ाई सीधे-सीधे राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ से है। भाजपा से अपनी कोई लड़ाई नहीं है। 2014 में न कहीं मोदी हैं और न ही कहीं भाजपा है। अगर है तो सिर्फ और सिर्फ आरएसएस।
0 लेकिन नरेंद्र मोदी की जनसभाओं में उमड़ रही भीड़ को आप लोग नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं?
वह भीड़ सुनियोजित और प्रायोजित होती है, उसका वोटों से कोई लेना-देना नहीं होता।
0 22 दिसंबर को राहुल गांधी फिर मुजफ्फरनगर गए पीड़ितों से मिलने। इस पर बयानबाजी हो रही है, क्या कहेंगे?
देखिए, कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी हमेशा गरीबों-वंचितों को प्राथमिकता में रखते हैं। राहुल गांधी ने तो साफतौर पर पीड़ितों से मुखातिब होते हुए कहा, ‘जो लोग दंगे कराते हैं, वे चाहते हैं कि आप वापस नहीं लौटें। इससे उन्हें लाभ पहुंचता है। वे आपको आपके गांवों से दूर रखना चाहते हैं। मैं जानता हूं कि यह मुश्किल है और वहां डर भी है, लेकिन हमें इससे परे होकर सोचना चाहिए। यह लंबे समय तक के लिए ठीक नहीं रहेगा।’ क्या राहुल जी के इस वक्तव्य के बाद भी कुछ कहने को बचता है?
0 राहुल गांधी की पूरी राजनीति को किस रूप में देखते हैं?
देश का असली नायक वही होता है, जो बोले कम और काम करे अधिक। कांग्रेस कहने में नहीं, कार्य करने में सदा विश्वास रखती आई है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी देश के असली नायक है और वह लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनेंगे।

Friday, 20 December 2013

नजर 17 जनवरी, 2014 पर


हाल ही में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने जैसे ही कहा कि लोकसभा चुनाव से पूर्व पार्टी अपना चेहरा जाहिर कर सकती है, मीडिया में कयासों का दौर शुरू हो गया। उसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने कार्यसमिति की बैठक 17 जनवरी को होने की बात कही और साथ ही कहा कि उसमें कई अहम फैसले लिए जा सकते हैं। बस, क्या था? कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी को लेकर हर तरफ कयास लगाए जाने लगे।
यकीन मानिए, जैसे पार्टी की ओर से कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी को आगे के लिए प्रोजेक्ट किया जाता है, हर कांग्रेसी का उत्साह दोगुना हो जाएगा। याद कीजिए, बीते जयपुर में पार्टी का चिंतन शिविर का दृश्य। चिंतन शिविर के नतीजों से पार्टी के तमाम नेता, कार्यकर्ता, प्रशंसक और समर्थक खासे उत्साहित दिखे थे। दरअसल, उत्साहित होने की वजह भी थी। वजह यह कि चिंतन शिविर के समापन के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को पदोन्नत कर एक अहम जिम्मेदारी का पद (पार्टी उपाध्यक्ष) सौंपने का फैसला लिया गया। उसके बाद श्री राहुल गांधी पार्टी महासचिव नहीं, बल्कि पार्टी उपाध्यक्ष की हैसियत से कामकाज देखने के लिए अधिकृत हुए थे।
अब सबकी नजर 17 जनवरी, 2014 पर है। कांग्रेस नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में पहुंचने वाले पार्टी के ‘यूथ आइकन’ एवं भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में देखे जा रहे राहुल गांधी के नाम का ऐलान हो सकता है। इसके साथ ही उनके समक्ष पार्टी का जनाधार बढ़ाने और युवा मतदाताओं की बढ़ती संख्या को पार्टी के पक्ष में करने का चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। हमें जेहन में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का वह वक्तव्य भी याद रखना होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश बदल रहा है और इस बदलाव में युवाओं की आवाज की अनदेखी कर हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। युवा बढ़ रहे हैं। भारत बदल रहा है। हमें भी खुद को बदलना होगा। यह पीढ़ी चाहती है कि उसकी आवाज सुनी जाए।
निश्चित रूप से हाल के दिनों में 128 साल पुरानी और देश की सबसे बड़ी व ऐतिहासिक कांग्रेस पार्टी में इस पदोन्नति के साथ राहुल गांधी की जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों में इजाफा होगा। कांग्रेस उपाध्यक्ष बनाए जाने से पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव राहुल गांधी ने वर्ष 2009 में संप्रग को सत्ता में लाने और उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुनरुत्थान में मदद करने लिए अपने अभिभावक नेताओं की छत्रछाया से उबरते हुए खुद के राजनीतिक कद में बढ़ोतरी की थी। उन्होंने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्याशित खुशी दिलाई और अब पार्टी केंद्र में तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए उनकी ओर देखने की जुगत भिड़ा रही है। कहते हैं कि बड़े ओहदे के साथ बड़ी जिम्मेदारियां भी आती हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी पहले दागी नेताओं को बचाने के लिए ऑर्डिनेंस को नॉनसेंस बताकर सरकार को झुकने को मजबूर किया, तो अब लोकपाल को संसद में पास कराने में अपनी सक्रियता दिखाई। इतना ही नहीं, करप्शन के तमाम लंबित बिल को पास कराने की मांग को लेकर संसद का सत्र बढ़ाने तक का आग्रह किया। 

Thursday, 19 December 2013

अरविंदर सिंह लवली को कमान

दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया है। पार्टी हाईकमान ने उनकी जीवटता और कर्तव्यनिष्ठ को देखते हुए यह जिम्मेदारी सौंपी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि जिस प्रकार से बीते दशक से उन्होंने जनसेवा और जनसरोकार से जुड़े कार्यों में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है, आने वाले समय में वह प्रदेश कांग्रेस को और भी सशक्त बनाए।
दरअसल, अरविंदर सिंह लवली को दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष जे.पी.अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यह जिम्मेदारी दी गई है। इसके साथ ही पार्टी हाइकमान ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में पराजय के बाद चरणदास महंत की जगह भूपेश बघेल को कमान सौंपी है।
अरविंदर सिंह लवली 1990 में वह दिल्ली प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। बाद में उन्हें एनएसयूआई का महासचिव बना दिया। 1996 तक वह इस पद पर रहे। 1998 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर वह सबसे कम उम्र के विधायक बने। सन 2000 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया गया। 2003 में वह मंत्री बने। वह गांधीनगर विधानसभा से जीतते रहे हैं।

Wednesday, 18 December 2013

जनता को मिला नया हथियार

 सड़क से संसद तक चली लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार लोकपाल विधेयक पास हो गया। बिल पास होने के बाद गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ दिया। इससे पहले 17 दिसंबर को राज्यसभा से लोकपाल विधेयक पास होने पर इस आंदोलन की अगुवाई करते रहे अन्ना हजारे ने सांसदों और सरकार का शुक्रिया अदा किया, तो वहीं डॉ. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे एक ऐतिहासिक कदम करार दिया। आठ दिन से उपवास पर बैठे अन्ना हजारे ने राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पारित कराने में मदद करने के लिए विभिन्न दलों को धन्यवाद दिया और लोकसभा के सदस्यों से कल वहां भी इस विधेयक को पारित कराने की अपील की, जिसके बाद वह अपना उपवास खत्म कर लेंगे। कमजोर पर उत्साह से लबरेज दिख रहे हजारे ने विधेयक पारित होने पर तिरंगा लहराकर और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाकर अपनी खुशी प्रकट की। राज्यसभा में विधेयक पारित होने के बाद हजारे ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि यह एक क्रांतिकारी कदम है। पिछले 40 साल में विधेयक आठ बार पेश किया गया, लेकिन कभी पारित नहीं हुआ। मैं सभी दलों को, उस हर (दल) को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने राज्यसभा में इस विधेयक का समर्थन किया, समाजवादी पार्टी उसका अपवाद रही है। यह विधेयक केवल अन्ना की मांग नहीं है, बल्कि देश यही चाहता है। अन्ना हजारे का कहना था कि हमारे नेता यह अहसास करने लगे हैं कि जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून चाहती है। मैं यह नहीं कहता कि इससे शत-प्रतिशत भ्रष्टाचार का नष्ट हो जाएगा, लेकिन इससे निश्चित तौर पर इसमें 40-50 फीसदी कमी आएगी।
इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक विधेयक के पारित होने के एक साल के भीतर सभी राज्यों के इस कानून के आधार पर अपने यहां लोकायुक्त की नियुक्ति करना अनिवार्य होगा। लोकपाल से जुड़े मामले में सीबीआई लोकपाल के अधीन काम करेगी। सरकार लोकपाल की जांच से जुड़े सीबीआई अधिकारियों का ट्रांसफर नहीं कर सकेगी। राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का अधिकार राज्य विधानसभा के पास होगा। हालांकि, उनके लिए एक साल के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति करना अनिवार्य है. इसके लिए केंद्रीय लोकपाल कानून को मॉडल कानून माना जाएगा। लोकपाल की नियुक्ति करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में नेता विपक्ष, मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे। धार्मिक संस्थाओं को छोड़कर अन्य सभी ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं लोकपाल के दायरे में आएंगी, जिन्हें सरकारी मदद मिलती है। लोकपाल को हटाने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास होगा। समिति में 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला वर्ग से होंगे। प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में हैं, हालांकि उनको लेकर शिकायतों के निपटान के लिए विशेष प्रक्रिया है। सभी श्रेणियों के सरकारी अधिकारी लोकपाल के दायरे में शामिल और साथ ही तय समयसीमा के भीतर जांच का प्रावधान।
हालांकि, यूपीए सरकार के लिए विधेयक पास करवाने की यह कवायद आसान नहीं रही, क्योंकि समाजवादी पार्टी विधेयक का पुरजोर विरोध कर रही थी। संसद शुरू होने से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और पी. नारायणसामी को अपने घर तलब कर सरकार की रणनीति की जानकारी ली। इसके बाद मुलायम सिंह और रामगोपाल यादव की प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में समाजवादी पार्टी को विरोध जताने के लिए हंगामा करने के जगह सदन से ‘वॉक आउट’ करने पर मना लिया गया और लोकपाल विधेयक शांति से पास होने का रास्ता साफ हो गया। वैसे, लेफ्ट समेत कुछ पार्टियों ने विधेयक के कुछ संशोधनों पर मत विभाजन भी करवाया, लेकिन भाजपा की रजामंदी के चलते वोटिंग भी विधेयक के पक्ष में ही रही।
अब बिल हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा उसके पश्चात यह कानून का रूप ले लेगा। हालांकि यह बिल लोकसभा से पहले ही पारित किया जा चुका है, लेकिन संशोधन बिल राज्यसभा में पेश किए जाने के चलते इसे दोबारा लोकसभा पारित किया गया है। इससे पहले, कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने लोकसभा में जैसे ही लोकपाल बिल पेश किया सपा के सदस्य हंगामा करने लगे। हंगामा के बीच चर्चा की शुरुआत में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि सत्ता पक्ष के लोग हंगामा कर रहे हैं, हम पहले से ही इस बिल के पक्ष में हैं। उन्होंने सशक्त लोकपाल के लिए सरकार का समर्थन किया है। सुषमा ने कहा कि लोकपाल के लिए श्रेय लेने की होड़ न लगे। इस बीच, राहुल गांधी ने कहा कि इस मौके का पिछले 45 साल से इंतजार था, इसका पूरा श्रेय वयोवृद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे को जाता है।
दूसरी ओर, सच यह भी है कि यदि कांग्रेस इस विधेयक को लेकर पूरा जोर नहीं लगाती, तो शायद इस बार भी लोकपाल सदन में पास नहीं होता। हां, इसके साथ मुख्य विपक्षी दल भाजपा के रचनात्मक सहयोग को भी नहीं भुलाया जा सकता है, जिसने जनहित में कांग्रेस का साथ दिया है। सही मायने में यह कहा जाए कि यह राहुल गांधी के कारण संभव हुआ है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्हीं की मेहनत के कारण सभी दलों के बीच समन्वय बन सका है और यह विधेयक पारित हुआ है। सच तो यह है कि लोकपाल बिल संसद में तीन साल पहले लाया गया था, इन तीन सालों में जितना गंगा में पानी नहीं बहा, उतनी इस बिल को लेकर देश में राजनीति हुई। राजनीति इस बिल को लेकर चरम पर तब पहुंची, जब अन्ना के शिष्य और लोकपाल के आंदोलन से निकले अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना से अलग होकर अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन किया और दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा। इस बिल के स्वरूप को लेकर अन्ना और उनके प्रिय शिष्य के बीच बीते नौ दिनों से बयानबाजियों का लंबा दौर भी चला। अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने जहां बिल में खामियां बताई, वहीं अन्ना हजारे और उनके साथियों ने संसद में रखे गए बिल को उसी स्वरूप में स्वीकार किया। केंद्र सरकार ने सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई लेकिन इस बैठक में केंद्र सरकार को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी नहीं आई और उसने लोकपाल और लोकायुक्त बिल 2011 के स्वरूप पर आपत्ति उठा दिया। कांग्रेस ने इस बिल को पास कराने के लिए कमर कस ली थी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस लोकपाल बिल को देश की जरूरत बताया। दो दिनों तक राज्यसभा और लोकसभा में इस बिल को लेकर बहस चली, लेकिन कांग्रेस ने सबकुछ पहले से तय कर रखा था। राज्यसभा में 17 दिसंबर को देर शाम बिल पास होते ही देश में भ्रष्टाचार खत्म करने वाले इस बिल के कानून बनने कि सबसे बड़ी बाधा पार हो चुकी थी। वजह साफ थी बिल को लोकसभा में रोड़ा अटकाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही साफ कर दिया था कि अगर राज्यसभा से बिल पास हो गया तो वह लोकसभा में इस बिल के पास होने पर रोड़ा नहीं अटकाएंगे। करीब 32 महीने बाद आज समाजवादी पार्टी के लोकसभा से बहिर्गमन के बाद देश को वो बहुप्रतीक्षित बिल मिल गया, जिसे हथियार बनाकर अब देश का कोई भी नागरिक बड़े से बड़े अधिकारी, नेता, और मंत्रियों के खिलाफ भी आवाज बुलंद कर सकेगा।



10 साल के काम की हो तारीफ



बेशक यह कहा जाए कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए कमर कसते हुए पिछले दस सालों में अपनी सरकार के काम का बखान किया है। लेकिन सच तो यह है कि कांग्रेस हमेशा से आम आदमी और देशहित के लिए काम किया है। कांग्रेस ने संसदीय दल की बैठक में एक बुकलेट जारी की है। इस बुकलेट में कांग्रेस सरकार के कामकाज का ब्यौरा है। इस मौके पर सोनिया गांधी ने कहा कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव नतीजों से निराश होने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस को विधानसभा के चुनाव में सामने आए इन नतीजों से उबरना होगा। यह भी चिंता का विषय है कि संसद में महिला आरक्षण बिल पास नहीं हो सका, लेकिन लोकपाल बिल पास होने पर हमें खुशी है।
अपने दस साल के रिपोर्ट कार्ड में कांग्रेस ने कहा कि पिछले 10 साल में सरकार के काम की तारीफ करनी चाहिए। कांग्रेस के शासन में मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसी योजनाएं लागू हुईं। कांग्रेस के शासन में गरीबी घटी है। सरकार ने किसानों के हित में काम किया। शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार पर सरकार ने जोर दिया। कांग्रेस कार्यकाल में साक्षरता दर बढ़कर 74% हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक में कहा कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय के लिए अनेक कारण हैं। यह जाहिर है कि हम जनता को अपनी नीतियों कार्यक्रमों और उपलब्धियों के बारे में बताने में सफल नहीं हो पाए। ऐसा लगता है कि हम उनकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि हमें मायूस नहीं होना चाहिए, हमारे सामने एक और संग्राम है, मई 2014 में, जिसके लिए हमें अपने आप को तैयार करना होगा। कांग्रेस पार्टी ने अनेक चुनाव जीते हैं और हारे हैं। जीत हो या हार, हमें यह याद रखना चाहिए कि जनता की सेवा करना हमारा सर्वोपरि दायित्व है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा हमें उन लोगों के खिलाफ बोलते समय डरना नहीं चाहिए जो केवल संकीर्ण एवं विनाशकारी विकल्प पेश करते हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री सहित कांग्रेस और सरकार पर निंदात्मक और पूरी तरह से निराधार व्यक्तिगत हमले करने के लिए अपना ज्यादातर समय और उर्जा का इस्तेमाल किया। इस मौके पर पार्टी ने अपने सांसदों को एक पुस्तिका भी वितरित की, जिनमें संप्रग सरकार की उपलब्धियां गिनाई गयी हैं तथा सांसदों से इन उपलब्धियों का और ज्यादा कारगर तरीके से मतदाताओं के बीच प्रचार करने को कहा गया है।
इस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंहगाई नहीं रोक पाने को अपनी सरकार की एक कमजोरी माना है। उन्होंने कहा कि कि मुद्रास्फीति नियंत्रित रखने में राज्यों की भी अहम भूमिका है और उनका अधिक से अधिक सहयोग लेने की जरुरत है। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि मुद्रास्फीति हमारी एक कमजोरी रही है और इसके लिए हमारी आलोचना भी हुई है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा बहुत जटिल है जिस पर सरकार की आलोचना करना तो आसान है, लेकिन उसे समझना और उससे निपटना बहुत कठिन है। मनमोहन सिंह ने महंगाई से जुड़े विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए कहा कि इसे लेकर चिंतित होना लाजिमी है, लेकिन इस बात पर भी गौर करना होगा कि लोगों की आमदनी मुद्रास्फीति की दर से अधिक तेजी से बढ़ी है। इसी वजह से प्रति व्यक्ति खपत और वास्तविक वेतन में बढोतरी हुई है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि हाल के विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद निराशाजनक हैं, लेकिन हमें वर्ष 2014 में होने जा रहे आम चुनाव को लेकर हताश नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन ने यह भी कहा कि कांग्रेस ऐसे वायदे नहीं करती जो पूरे ना हो सके। हमने अगले 20 साल का एजेंडा सेट किया है। हमने अपने कार्यकाल में गंभीर समस्याओं को सुलझाया है। हम अब भी कई गंभीर समस्याएं झेल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के परिणाम निश्चितरूप से इस बात के संकेत नहीं हैं कि कुछ महीनों के बाद हो होने जा रहे आम चुनावों में क्या होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि अगले साल होने वाले आम चुनाव राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर लड़े जायेंगे। इनमें से कुछ मुद्दे विधानसभा चुनावों में भी रहे होंगे, लेकिन मई में होने वाले चुनावों में इस बात को लेकर हमारा आकलन होगा कि राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारी कैसी प्रतिक्रिया रही है।

Monday, 16 December 2013

नहीं करें कन्फ्यूजन की राजनीति




क्या दिल्ली में दुबारा चुनाव होंगे? क्या दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगेगा या फिर अभी भी यहां सरकार बनने की कोई संभावना जीवित है? ऐसे कई सवाल हैं जिसने दिल्ली की सियासत को कन्फ्यूज कर रखा है। कैपिटल दिल्ली कन्फ्यूज है। कन्फ्यूजन में जनादेश का भी कबाड़ा हो गया। आम आदमी पार्टी के कमाल का ख्याल 28 के अंकों में उलझ गया। सत्ता के लिए ह्यआपह्ण का दरवाजा खोलने या बंद रखने पर खूब माथापच्ची हुई। आंकड़ों के अंकगणित की ये उलझन नेताओं को रात में भी कन्फ्यूज कर रही है। कोई कन्फ्यूज हो न हो कम से कम कांग्रेस कतई कन्फ्यूज नहीं। कन्फ्यूजन की इस किचकिच में कमल भी कन्फ्यूज है। विजय गोयल और नितीन गडकरी के बयानों के विरोधाभास ने तो कन्फ्यूजन और भी गहरा कर दिया। विजय गोयल ने ‘आप’ के समर्थन पर सोचने का इशारा किया तो नितिन गडकरी ने फौरन उनकी दुकान ही बंद करा दी।
राजनीति से परे रह कर आंदोलन तो हो सकता है, लेकिन उससे व्यवस्था नहीं बदल सकती। यही अब आम आदमी पार्टी के लिए भविष्य की चुनौती भी है। केजरीवाल की पार्टी दिल्ली विधानसभा की 28 सीटें जीतने में सफल रही है, लेकिन इस पार्टी का कोई राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक कार्यक्रम अब तक नहीं बन पाया है। आम जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है, केजरीवाल ने उनमें एक उम्मीद जगाई है। लेकिन यदि वे सत्ता में आ भी गए, तो उन्हें संवैधानिक दायरे में रह कर ही काम करना पड़ेगा। उन्हें संविधान के अनुरूप कार्यनीति और योजनाएं तैयार करनी होगी। भारतीय राजनीति, समाज, अर्थशास्त्र और विकास की पेचीदगियों को भली प्रकार से समझना पड़ेगा और पार्टी की एक वैचारिक दिशा तय करनी होगी। यह भी देखना होगा कि आम आदमी को सहूलियतें देनेवाली सरकार चलाने के लिए साधन कहां से आये, इसका बोझ किन पर पड़े। इस संबंध में आम आदमी पार्टी की वैचारिक दिशा, नीति और कार्यक्रम अभी स्पष्ट नहीं है। आर्थिक असमानता और बेरोजगारी की समाप्ति के साथ-साथ भ्रष्टाचार से लड़ने और सूचना के अधिकार को बेहतर रूप प्रदान करने के लिए उन्हें नीतियां बनानी ही पड़ेंगी। यही उनके नेताओं और पार्टी का चरित्र भी निर्धारित करेगा और इसी से लोग जान पायेंगे कि केजरीवाल के वादों और दावों में कितना दम है। दिल्ली पहले केंद्रशासित प्रदेश था। वहां विधानसभा बन गयी,  मुख्यमंत्री का पद भी सृजित हो गया, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था अब भी राज्य सरकार के पास नहीं है, जबकि संविधान में अधिकारों का जो विभाजन किया गया है, उसमें कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है। इस संबंध में ‘आप’ का दृष्टिकोण क्या होगा, इसकी घोषणा अभी नहीं हुई है। आंध्र प्रदेश में तेलुगूदेशम पार्टी के संस्थापक अभिनेता नंदमूरि तारक रामाराव गैर-कांग्रेसवाद के नायक रहे हैं। उन्होंने तेलुगू अस्मिता की आवाज बुलंद की। लेकिन राज्य की जनता ने उनकी पार्टी को तीन बार इसलिए मौका दिया, क्योंकि उन्होंने राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास की नीतियां बनायीं और उन पर अमल भी किया। वे देश की वृहत्तर राजनीति से अलग नहीं थे। इसलिए उन्होंने चुनाव की राजनीति में दोस्त और दुश्मन की पहचान भी की। गंठबंधन की राजनीति के दौर में यह तय करना जरूरी माना जाता है।
गांधीजी को लोग संत मानते हैं, लेकिन वे भी राजनीतिक संत थे। उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह तय कर रखा था। उनका अपना राजनीतिक और आर्थिक दर्शन था। उन्हें राजनीति से परहेज नहीं था। उन्होंने देश-विदेश में जो आंदोलन किये, वह भी राजनीति थी। जाहिर है, आंदोलन कोई भी हो, उसे जीवन और समाज के सभी पहलुओं को समेटना पड़ेगा, उससे भाग कर कोई हल नहीं हो सकता। आंदोलन के जरिये केवल भीड़ बटोर कर ही निर्णय होंगे, तो उससे व्यवस्था नहीं, बल्कि भीड़तंत्र ही पनपेगा और यह भीड़तंत्र व्यवस्था का संचालक नहीं हो सकता। इसलिए यदि केजरीवाल भी अन्ना के दलविहीन राजनीति की कल्पना पर आधारित विचार और कार्यक्रमविहीन दल की ओर बढ़ेंगे, तो उनकी कठिनाइयां ही बढ़ेंगी।



Thursday, 12 December 2013

जनादेश सबसे अहम : सरफराज सिद्दीकी


दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव सरफराज अहमद सिद्दीकी तेज तर्रार अधिवक्ता हैं। साथ ही दिल्ली की राजनीति पर गहरी पकड़ रखते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के  परिणाम और उसके बाद की स्थिति सहित कई अहम मुद्दों पर उन्होंने बेबाक राय रखी। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :


0 दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम को किस रूप में देखते हैं?
जनता ने जो जनादेश दिया है, हम उसका सम्मान करते हैं। आखिर, हमारी पार्टी के हार के कौन-कौन से कारण रहे, इस पर विचार-विमर्श हो रहा है।

0 ‘आप’ ने जिस प्रकार का प्रदर्शन किया है, उसकी उम्मीद थी आपको?
राजनीति में कई बातें अनायास ही होती हैं। लेकिन यह सार्वभौमिक सत्य है कि लोकतंत्र में जनादेश सबसे अहम होता है। हमारी पार्टी ने 15 वर्षों तक दिल्ली की जनता का सेवा किया है। दिल्ली की जनता ने जो जनादेश दिया है, हम उसका सम्मान करते हैं।

0 कहा जा रहा है कि 1998 में प्याज के मुद्दे पर सुषमा स्वराज की सरकार चली गई थी। 2013 में शीला दीक्षित का हाल भी उसी तर्ज पर हुआ?
देखिए, प्याज और महंगाई एक मुद्दा जरूर था। लेकिन इसके साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिन्होंने प्याज स्टोर कर रखे थे, वे भारतीय जनता पार्टी के ही लोग थे। सुषमा स्वराज के हारने के कई और कारण थे। आपको याद होगा, उस समय भाजपा ने तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले थे। इस बार भी कांग्रेस केवल महंगाई और प्याज के मुद्दे पर नहीं हारी है। चुनाव के दौरान प्याज आदि के दाम कुछ ताकतों ने जानबूझकर बढ़ाए। कुछ तो ऐसा था, नहीं तो चुनाव के एक दिन बाद ही प्याज कैसे सस्ता हो गया? जो चुनाव से पहले 100 रुपये किलो तक पहुंच गया था।

0 तो आपकी नजर में कौन-कौन से कारण थे?
वर्तमान में फौरी तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। पार्टी के भीतर मंथन जारी है। तमाम बातें आपके सामने होगी।

0 क्या ‘आप’ सरकार बनाएगी या भाजपा?
आखिर इस बारे में हम कैसे तय कर सकते हैं? सच तो यही है कि किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। यह तय दोनों पार्टियों को तय करना होगा।

0 आपकी पार्टी के कई नेता आप के साथ सरकार बनाने की बात कह रहे हैं?
हमन जनसरोकार की राजनीति करते आ रहे हैं। दिल्ली की जनता के हित में जो भी फैसला होगा, उसके लिए कांग्रेस पार्टी विचार कर रही है।

0 कांग्रेस की दिल्ली में आगे की रणनीति क्या होगी?
आज की तारीख में बात करूं तो पार्टी रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएगी और फिर से जनता का विश्वास हासिल करने के लिए काम करेगी। कांग्रेस हमेशा आम जनता से जुड़ी रही है। कांग्रेस ने आम आदमी के लिए काम किया है।  पार्टी द्वारा जनता की भावनाओं को समझने में अगर कोई कसर रह गई होगी, तो उसका आंकलन किया जाएगा। इस बात का भी पता लगाया जाएगा कि पार्टी कहीं विरोधियों की चुनावी तकनीकों का शिकार तो नहीं हुई है।

0 दिल्ली को लोग बीते कुछ अरसे से ‘रेप कैपिटल’ भी कहने लगे हैं, आप इससे सहमत हैं?
यह राजधानी के साथ अन्याय है। हम इससे सहमत नहीं हैं।

0 चूंकि आप अधिवक्ता भी हैं, इसलिए आपसे एक सवाल यह कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जो धारा 377 को लेकर आदेश दिया है, उसे किस रूप में देखते हैं?
देखिए, दिल्ली उच्च न्यायालय के 2009 में दिए गए फैसले के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को बदलने के लिए कोई संवैधानिक गुंजाइश नहीं है। धारा 377 के तहत दो व्यस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध माना गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 377 के तहत समलैगिक रिश्ते को गैरआपराधिक कृत्य करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सरकार धारा 377 में बदलाव को लेकर गंभीर है। केंद्र सरकार इस मामले को गैर आपराधिक बनाने पर विचार कर रही है। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने भी इस मामले को संसद में उठाने की बात कही है। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने भी कहा है कि अब संसद में धारा 377 में बदलाव करना ही एकमात्र उपाय है। सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने भी कहा कि जरूरत पड़ने पर संसद में इस पर चर्चा की जाएगी।

0 आप दो दशक से अधिक समय से राजधानी दिल्ली में निवास कर रहे हैं। शहर में अक्सर जाम की स्थिति भी तो बनी रहती है?
देखिए, जिस हिसाब से दिल्ली की आबादी बढ़ रही है और राजनीतिक दलों की वजह से रोज-रोज होने वाले धरने प्रदर्शन भी टैÑफिक जाम के महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं।

0 आगामी चुनाव में आपकी लड़ाई सीधे-सीधे भाजपा से है या आम आादमी पार्टी से?
हमारी लड़ाई सीधे-सीधे राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ से है। भाजपा से अपनी कोई लड़ाई नहीं है। 2014 में न कहीं मोदी हैं और न ही कहीं भाजपा है। अगर है तो सिर्फ और सिर्फ आर एस एस।

0 लेकिन नरेंद्र मोदी की जनसभाओं में उमड़ रही भीड़ को आप लोग नजर अंदाज कैसे कर सकते हैं?
वह भीड़ सुनियोजित और प्रायोजित होती है, उसका वोटों से कोई लेना-देना नहीं होता।

0 क्या चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भी नरेंद्र मोदी को आप लोग हलके में क्यों ले रहे हैं?
नरेंद्र मोदी की और उनके गुजरात मॉडल की पोल खुल चुकी है। वास्तविकता के धरातल जिन राज्यों में भाजपा ने सत्ता हासिल की है, वहां सच्चाई कुछ और है।

Wednesday, 11 December 2013

समलैंगिक संबंध अपराध

समलिंगी सेक्स को उच्चतम न्यायालय द्वारा अवैध करार दिये जाने के बीच सरकार ने आज संकेत दिया कि वह इस मुद्दे से निपटने के लिए विधायी रास्ता अपनाएगी। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद अब समलिंगी सेक्स को लेकर गेंद संसद के पाले में आ गयी है और वही तय करेगी कि भारतीय दंड संहिता से कौन सी धाराएं हटाने की आवश्यकता है। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के तहत किसी कानून की संवैधानिकता परखना उच्चतम न्यायालय का विशेषाधिकार है। शीर्ष अदालत उसी विशेषाधिकार का उपयोग कर रही है। कानून बनाना हमारा विशेषाधिकार है और हम उस विशेषाधिकार का इस्तेमाल करेंगे।
सर्वोच्च न्यायालय ने दो वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक रिश्ते को अपराध करार दिया है। न्यायालय द्वारा बुधवार को सुनाए गए फैसले से समलैंगिक, उभयलिंगी और किन्नर समुदाय को बड़ा झटका लगा है। दिल्ली उच्च न्यायालय के 2009 में दिए गए फैसले के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को बदलने के लिए कोई संवैधानिक गुंजाइश नहीं है। धारा 377 के तहत दो व्यस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध माना गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 377 के तहत समलैगिक रिश्ते को गैरआपराधिक कृत्य करार दिया था।
समलैंगिकता को अपराध ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गे एक्टिविस्ट खासे नाराज दिखे। गे एक्टविस्ट ने इसे काला दिन बताते हुए कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है जब हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बदला है। वहीं समलैंगिकों की आवाज उठाने वाली संस्था नाज फाउंडेशन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डालने का फैसला किया है। गे राइट्स एक्टिविस्ट्स ने दिल्ली के पालिका बाजार में गे मार्च का आयोजन भी किया है। पीठ ने कहा कि भादंसं की धारा 377 को हटाने के लिए संसद अधिकृत है, लेकिन जब तक यह प्रावधान मौजूद है, तब तक न्यायालय इस तरह के यौन संबंधों को वैध नहीं ठहरा सकता। फैसले की घोषणा होने के बाद समलैंगिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा की मांग करेंगे। न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ समलैंगिकता विरोधी कार्यकर्ताओं और सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर आदेश पारित किया। पीठ ने 15 फरवरी 2012 से हर रोज सुनवाई करने के बाद पिछले साल मार्च में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अपील पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के मुद्दे पर ढुलमुल रवैये के लिए केंद्र की खिंचाई की और इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद द्वारा चर्चा नहीं किए जाने तथा बजाय इसके न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने का आरोप लगाये जाने पर चिंता जताई। समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किये जाने की वकालत करते हुए केंद्र ने बाद में न्यायालय से कहा था कि देश में समलैंगिकता विरोधी कानून ब्रिटिश उपनिवेशवाद का नतीजा था और भारतीय समाज समलैंगिकता के प्रति काफी सहिष्णु था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2 जुलाई 2009 को समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और कहा था कि दो वयस्कों के बीच निजी स्थान पर आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे। भादंसं की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) समलैंगिक संबंधों को आपराधिक जुर्म बनाती है जिसमें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।
केंद्र ने पूर्व में उच्चतम न्यायालय को सूचित किया था कि देश में करीब 25 लाख समलैंगिक लोग हैं और उनमें से लगभग सात प्रतिशत (1.75 लाख) एचआईवी संक्रमित हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह अत्यंत जोखिम वाले चार लाख पुरुषों जिनके पुरुषों के साथ समलैंगिक संबंध (एमएसएम) हैं, को अपने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत लाने की योजना बना रहा है और उनमें से करीब दो लाख को पहले ही इसमें लाया जा चुका है। समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की कानूनी लड़ाई ने अदालतों में बहुत से मोड़ और उतार चढ़ाव देखे। जब मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में था तब गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय ने भादंस की धारा 377 को लेकर विरोधाभासी रुख अपनाया था. गृह मंत्रालय ने दंड प्रावधान को जारी रखने का पक्ष लिया था तथा स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रावधान को खत्म किये जाने का समर्थन किया था।

Thursday, 21 November 2013

दिल्ली नहीं रूकेगी



दिल्ली की सत्ता पर चौथी बार कब्जा कायम रखने के लिए मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पार्टी का घोषणापत्र जारी कर दिया। कांग्रेस का घोषणा-पत्र सामने आने के बाद पार्टी की नीति और नियत का आकलन करने के लिए मतदाताओं को ठोस आधार मिल गया है. शीला दीक्षित ने कहा कि हम प्रवासियों का दिल्ली में बेहतर जिंदगी जीने के लिए स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि घोषणापत्र में सभी के लिए घर का हमने वादा किया है। शीला दीक्षित ने कहा कि 'दिल्ली नहीं रूकेगी' हमारा स्लोगन है। हम शहर में डबल डेकर फ्लाईओवर की योजना बना रहे हैं। दिल्ली की जीडीपी देश में सबसे अधिक है और इसे हम दोगुना करने की सोच रखते हैं। आप पार्टी के चुनौतियों को देखते हुए कहा कि मुझे उम्मीद है कि लोग उस पार्टी को वोट देंगे जिसके पास अनुभव है और जिसने पिछले एक दशक से ज्यादा विकास का काम शहर के लिए किया है।
कांग्रेस ने सत्ता में वापसी पर कॉलेजों  में सीटों में 3० प्रतिशत बढोत्तरी, पांच मेडिकल कॉलेजों वाला स्वास्थ्य शिक्षा विश्वविद्यालय स्थापित करने और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा बुधवार को अपने चुनावी घोषणापत्र में किया। घोषणापत्र में दिल्ली को देश की ज्ञान राजधानी बनाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि सांध्यकालीन कॉलेजों की संख्या में 3० प्रतिशत सीटों की वृद्धि के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय से सिफारिश की जायेगी। उच्च शिक्षा के लिए देश भर में पढ़ रहे राजधानी के छात्रों को बैंकों के शैक्षिक ऋण पर ब्याज में छूट तथा अन्य आर्थिक सहायता मुहैया कराने के लिए एक उच्चतर शिक्षा न्यास की स्थापना की जायेगी। रोजगार सुनिश्चित करने के लिए हर वर्ष करीब 2० हजार लोगों के प्रशिक्षण देने के वास्ते सिंगापुर के सहयोग से अनुकूल, सुविधाजनक वातावरण में विश्व स्तरीय कौशल केंद्र का गठन किया जायेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में बहुनिकाय व्यवस्था की वजह से आर ही दिक्कतों को देखते हुए अन्य राज्य सरकारों द्वारा प्रयोग में लाये जा रहे सभी अधिकार दिल्ली सरकार को भी देने की मांग की जायेगी।
भागीदारी पहल का विस्तार कर उसे मजबूत बनाया जायेगा। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद परिवार के आधार पर अंत्योदय और प्राथमिकता सूची के परिवारों को सस्ती दालें और खाद्य तेल मुहैया कराये जायेंगे। पीडीएस की सभी ढाई हजार दुकानों में आधुनिक बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण प्रणाली लागू की जायेगी। स्मार्ट कार्डों के जरिये परिचालन के लिए मदर डेयरी के ढांचे पर राशन की दुकानों में बिक्री मशीन लगाई जायेगी। लाडली योजना का लाभ कॉलेज जाने वाली छात्रों को देने जिसके तहत पेशेवर स्नातक स्तरीय कालेजों और विशेष प्रशिक्ष में पंजीकरण एवं प्रशिक्षण पूरा करने के लिए 5० हजार रुपए की अतिरिक्त आर्थिक सहायता दी जायेगी। कामकाजी महिलाओं के बच्चों की देखभाल के लिए पालनाघरों की स्थापना, बच्चों के खिलाफ अपराधों के निपटारे के लिए विशेष बाल अनुकूल न्यायालय योजना, कामकाजी महिलाओं के लिए अधिक से अधिक आवासों, हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 2० महिला शौचालय बनाने का वादा किया गया है।  कांग्रेस ने कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने का भरोसा देते हुए महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए पुलिस बल को विशेष प्रशिक्षण, सरकारी कर्मचारियों के अलावा आटो रिकशा चालकों जैसे उन लोगों को भी महिलाओं की सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया जायेगा जिनका आम जनता से आये दिन वास्ता पडता है। पुलिस व्यवस्था में सुधार पर जोर के साथ ही महिला बल की संख्या बढाई जायेगी। सत्ता में आने पर कांग्रेस ने वरिष्ठ नागरिकों की आंखों की जांच, चश्मा, घूमने के लिए छडी, वाकर और बैसाखियों आदि जैसे सहायक उपकरणों की खरीद पर छूट देने का वादा किया है । दस से अधिक वृद्धाश्रमों, दृष्टिहीन कॉलेज छात्राओं के लिए तिमारपुर में और छात्रों के वास्ते किंग्सवे कैंप में विशेष छात्रावासों का निर्माण, मानसिक स्तर पर निशक्त व्यकि्तयों के लिए नरेला में 1००० लोगों के रहने के लिए भवन बनाया जायेगा । विकलांग छात्रों की छात्रवृत्ति में वृद्धि तथा दुखी और असहाय व्यक्तियों की समस्याओं को सुलझाने के लिए नीति बनाई जायेगी। घोषणापत्र में अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश और पढाई जारी रखने को प्रोत्साहित करने के लिए 18०० रुपए सालाना छात्रवृत्ति दी जायेगी। पेशेवर, तकनीकी, वोकेशनल, कौशल विकास पाठय़क्रमों के लिए पर्याप्त छात्रवृत्ति, स्वरोजगार योजनाओं के लिए आसान किस्तों पर ऋण और द्वारका में हज भवन खोलने का वादा भी किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार पर जोर देते हुए घोषणापत्र में सभी निजी स्कूलों को दूसरी पाली चलाने के विकल्प की अनुमति दी जायेगी। उसी के अनुसार पहले तीन वषरे में कम से कम 25 प्रतिशत अधिक सीट उपलव्ध होंगी । डेढ सौ नये सरकारी स्कूल खोलने के साथ-साथ निकट भविष्य में शिक्षकों के 1० हजार नये पदों का सृजन किया जायेगा। हर स्कूल में योग शिक्षा, खेल सुविधाओं का विस्तार किया जायेगा। खिलाडियों की पुरस्कार राशि में बढोतरी का वादा भी किया गया है।

Wednesday, 20 November 2013

कांग्रेस चाहती है गरीब बैठे हवाई जहाज पर




कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बोले कि ऐसा हिंदुस्तान हमें नहीं चाहिए. इसलिए हमने अधिकार की बात शुरू की. इसका क्या मतलब है. जो भी इस देश में रहता है. उसे कम से कम मदद मिलेगी.कम से कम भोजन और रोजगार मिलेगा. इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम हम करते हैं, मगर हम गरीबों का भी काम करते हैं. यही गेहलोत जी ने राजस्थान में किया. आप किसी भी मजदूर से पूछ लीजिए.’इसके अलावा राहुल गांधी ने अपनी स्पीच में पापा राजीव गांधी को याद किया और बताया कि कैसे उनके लाए कंप्यूटर और मोबाइल से किसानों और गरीबों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ. उन्होंने दोहराया कि बीजेपी वाले तब इसका विरोध कर रहे थे.फिर उन्होंने बीजेपी को इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात पर घेरते हुए कहा कि भइया आप तो सड़क, रेलवे लाइन और एयरपोर्ट बनाकर देश बदलने की बात करते हो. कांग्रेस कहती है कि जो हमारे गरीब लोग हैं, उनकी भी मदद करो कि एक दिन वे भी इस पर चल पाएं. गरीबों से सीधे संवाद की कोशिश में राहुल बोले कि किसान ऊपर उड़ता जहाज देखता है और अपने आप से पूछता कि कभी मेरा बेटा, उसका पोता या उसका बेटा, इस पर जा पाएगा या नहीं. इस दौरान राहुल गांधी ने एक दीवार का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ‘मेरी दूसरी राजनीतिक पार्टियों के लोगों से संसद में बात होती है. वे हमसे कहते हैं कि जब आप किसी को मुफ्त में भोजन और दवाई देते हो, तो वह बिगड़ जाता है. हम कहते हैं कि जो गरीबी में फंसा है, उसकी गलती नहीं, उसकी सोच में कमजोरी नहीं.उसके सामने एक दीवार है. उसे हटाने के लिए उसे मदद करने की जरूरत है. वो कहते हैं कि नहीं, ये जो गरीब के सामने दीवार है, इसको गरीब अपने आप तोड़े, सिर से जाकर ठोकर मारे और गिराए. हम कहते हैं कि हम गरीब का हाथ पकड़ेंगे और एक साथ दीवार को तोड़ेंगे.
उन्‍होने कांग्रेस की तारीफ करते हुए कहा कि कांग्रेस युवाओं की पार्टी है, महिलाओं की पार्टी है और हम आम आदमी का विकास करना चाहते हैं और गरीब को मजबूत बनाना चाहते हैं। जबकि भाजपा अमीरों की पार्टी है, उद्योगपतियों की पार्टी है। अगर विकास की बात करें तो भाजपा ने जितनी सड़कें बनाई उससे तीन गुना ज्‍यादा सड़कें हमने बनाई। हमने गरीबों को रोजगार‍ दिया और अब खाद्य सुरक्षा बिल लेकर आये हैं, जिसमें हर व्‍यक्ति को एक रूपये किलो अनाज मिलेगा। हमने भूमि अधिग्रहण बिल को लाने में संघर्ष किया जिससे कि किसानों से जमीन ली जानें पर उन्‍हें इसका चार गुना मुआवजा मिले।










Tuesday, 19 November 2013

सपना बेचिए, करोड़ों कमाइए

अपने अस्तित्व काल से ही झारखंड आर्थिक विकास के लिए केंद्र के लिए मुंह ताकता रहा है। विकास की धारा यहां नहीं बहती। हर चुनाव में स्थानीय विकास मुद्दा बनता है, और चुनाव बाद सरकार गठन के बाद गौण हेा जाता है। लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं कि यहां किसी का भी विकास नहीं हो रहा है। राजधानी रांची में तो केवल सपना बेचने का कारोबार 70 करोड़ रुपए से अधिक का बन चुका है। तो विकास की बात बेमानी कैसे हो सकती है।
दरअसल, रांची में प्रमुख व बड़े 40 कोचिंग संस्थान हैं, वहीं, छोटे व मध्यम स्तर के संस्थानों की संख्या करीब 300 होगी। इनमें वैसे शिक्षकों के घर या यहीं स्थित संस्थान भी शामिल हैं, जो अकेले या कुछ अन्य शिक्षकों का सहयोग लेकर कोचिंग क्लासेस संचालित कर रहे हैं। इन सभी संस्थानों का सम्मिलित कारोबार लगभग 70 करोड़ रुपये सालाना है। इनमें बड़े संस्थानों का हिस्सा 50 करोड़ है। छोटे व मध्यम संस्थानों का सालाना कारोबार करीब 20 करोड़। इनमें इंजीनियपरंग, मेडिकल, बैंपकंग, रेलवे, चार्टर्ड एकाउंटेंट, एमबीए, मैनेजमेंट, फ़ैशन डिजाइनिंग, विभिन्न लोक सेवा आयोग, पायलट व एयर होस्टेस सहित विभिन्न व्यावसायिक, तकनीकी व पेशेवर शिक्षा के संस्थानों में नामांकन के लिए कोचिंग करायी जाती है। शहर के कुल आठ संस्थानों का सालाना टर्न-ओवर एक-एक करोड़ से अधिक है। सरकुलर रोड स्थित एक कोचिंग संस्थान की कमाई तो 10 करोड़ प्रति वर्ष है। इंजीनियपरंग की तैयारी करानेवाले शहर के एक प्रतिष्ठित टय़ूटर अकेले सालाना तीन करोड़ कमाते हैं।
इन कोचिंग संस्थानों के लिए विद्यार्थियों के रुझान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रांची विवि केविभिन्न कॉलेजों में जहां लगभग 75 हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं, वहीं इनमें विभिन्न पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों की संख्या करीब 38 हजार है। ऐसा भी नहीं है कि कोई कोचिंग खोल कर बैठ जाए और विद्यार्थी अपने आप चला आएगा। इसके पीछे भी बाजारवाद है। बाजार के छल-छद्म यहां भी चलते हैं। लिहाजा, कोचिंग संस्थान विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए हर तरीका अपनाते हैं। लगभग सभी संस्थान अपने सफल विद्यार्थियों की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। नाम, पता कम ही लोगों का बताया जाता है, लेकिन आंकड़ों में सफल विद्यार्थी कई होते हैं। बैंकिंग की तैयारी करानेवाले संस्थानों में इन दिनों कार्यक्रम में बैंक के वर्तमान व पूर्व दोनों अधिकापरयों की शिरकत से उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है।
जानकार बताते हैं कि दिल्ली में ऐसे कई गिरोह हैं, जो विभिन्न राज्यों के कोचिंग व शिक्षण संस्थान के गुमनाम मालिकों को बेस्ट टीचर, बेस्ट एजुकेशनिस्ट जैसे कई पुरस्कार देते हैं। बाद में इस सम्मान का इस्तेमाल अपना कारोबार बढ़ाने के लिए होता है। बताया जाता है कि 10-15 हजार खर्च कर ऐसा पुरस्कार बजाप्ता खरीदा जाता है... और छात्रों को लुभाने के लिए बाकायदा एजेंट की भी नियुक्ति की जाती है। कोचिंग आइआइटी, मेडिकल, बैंकिंग, सिविल सर्विस से लेकर मैट्रिक व इंटर की परीक्षाओं की तैयापरयां कराई जाती है। कोचिंग संस्थान के अलावा हिडेन कोचिंग परंपरा भी तेजी से पनप रही है। इसमें वैसे लोग हैं जो विश्वविद्यालयों के सेवानिवृत्त शिक्षक व इंजीनियर्स यहां तक कि वर्तमान में विश्वविद्यालयों से जुड़े शिक्षक अपने घरों मेंोत्रों को कोचिंग देते हैं। कोचिंग संचालक प्रत्येक वर्ष विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफ लता का दावा करते हैं। ऐसा नहीं है कि रांची में यह सिलसिला एकबारगी चल पड़ा। अपने पड़ोसी प्रदेश बिहार की राजधानी पटना से रांची वालों ने सीख ली है। बाजार के तौर-तरीकों को भी सीखा और आज कारोबार है करोड़ो में।
काबिलेगौर है कि पिछले वर्ष ही आईआईटी परीक्षा परिणाम के बाद पटना के विभिन्न कोचिंग संचालकों ने 2,500 छोत्रों के सफल होने का दावा किया था। जबकि आईआईटी में सीटों की संख्या करीब नौ हजार है। यहां भी गौर करना होगा कि बिहार में नीतिश सरकार कोचिंग संस्थानों को सरकारी पकड़ में रखना चाहती है। बिहार सरकार अब कोचिंग संस्थानों पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है। इसके लिए वह एक नया विधेयक भी लेकर आने वाली है। इससे कई कोचिंग संस्थान मालिकों की नींद उड़ गई है। उनके मुताबिक इस कानून का इस्तेमाल अधिकारी उन्हें परेशान करने के लिए कर सकते हैं। वैसे, सरकार अपने फैसले पर अडिग है। अधिकतर कोचिंग संस्थानों के मालिक इस मुद्दे पर खुले रूप से कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं हैं। एक कोचिंग संस्थान के मालिक ने अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया, 'कई कोचिंग संस्थान सचमुच इस तरह का गोरखधंधा चला रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग तो सही तरीके से काम कर रहे हैं। इस कानून के कारण उन पर सरकार कई तरह की बातों को जबरदस्ती थोप देगी। इससे हमें संचालन में काफी दिक्कत होगीं।Ó वहीं कुछेक कोचिंग संस्थान मालिक का कहना है कि अब हमें लाइसेंस लेने के लिए और उसके नवीनीकरण के वास्ते सरकारी अफसरों के आगे-पीछे घूमना पड़ेगा। दूसरी तरफ सिविल सेवा की तैयारी के लिए पटना में कोचिंग संस्थान चलाने वाले संचालक मानते हैं कि नियंत्रण काफी जरूरी है। हालांकि, हर फैसले के कुछ अच्छे नतीजे भी होते हैं और बुरे भी। अच्छा यह है कि इससे कोचिंग संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ेगी। वहीं, इससे सरकारी दखलअंदाजी भी बढ़ेगी। वैसे, नफा-नुकसान के मामले में देखें, तो मुझे तो नफा ज्यादा दिखाई दे रहा है।
पटना का कोचिंग व्यवसाय इस वक्त करीब 400-500 करोड़ रुपये का है। साथ ही, इस पर अब तक सरकार का कोई नियंत्रण भी नहीं था। हालांकि, बीते दिनों कोचिंग संस्थानों पर छात्रों का गुस्सा फूटने के बाद अब सरकार ने भी इन पर नकेल कसने की कवायद तेज कर दी है। बिहार मुल्क का पहला ऐसा राज्य होगा, जहां इस बाबत कानून बनेगा। तो क्या यह माना जाए कि प्रदेश में नवनिर्वाचित सोरेन सरकार भी इसी प्रकार का कोई विधेयक लाएगी और छात्रों को सहूलियत प्रदान करेगी।

Saturday, 16 November 2013

गुरुनानक जयंती की धूम


सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व बड़ी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। स्वर्ण मंदिर समेत आज देशभर के गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन का दौर जारी है। गुरुनानक देव जी के पावन प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों रौशनी से सराबोर है। रात से ही स्वर्ण मंदिर समेत सभी गुरुद्वारों में श्रद्दालुओं का तांता लगना शुरू हो गया। सिखों के पहले गुरु, नानक देव जी के प्रकाश पर्व को समर्पित एक विशाल आलौकिक नगर कीर्तन श्री अकाल तख्त साहिब से पांच प्यारों के नेतृत्व में शुरू हुआ। जो शहर के विभिन्न हिस्सों से होता हुआ वापस श्री हरमंदिर साहिब में सपन्न हुआ। रास्ते में नगर कीर्तन का समूह संगत ने उत्साह के साथ स्वागत किया और पुष्पवर्षा की।
गुरुनानक देवजी सिख धर्म के संस्थापक ही नहीं, अपितु मानव धर्म के उत्थापक थे। वे केवल किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि के जगद्गुरु थे। 'नानक शाह फकीर। हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर। उनका जन्म पूर्व भारत की पावन धरती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 को लाहौर से करीब 40 मील दूर स्थित तलवंडी नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम कल्याणराय मेहता तथा माता का नाम तृपताजी था। भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस संसार के प्राणियों की त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर गुरुनानक को पहुँचाया, 'सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग महि पठाइया।' उनके इस धरती पर आने पर 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधू जगि चानणु होआ' सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था। उनके मस्तक के पास तेज आभा फैली हुई थी। पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वर ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। बचपन से ही गुरु नानक का मन आध्यात्मिक ज्ञान एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता। बैठे-बैठे ध्यान मग्न हो जाते और कभी तो यह अवस्था समाधि तक भी पहुँच जाती।
गुरुनानक देवजी का जीवन एवं धर्म दर्शन युगांतकारी लोकचिंतन दर्शन था। उन्होंने सांसारिक यथार्थ से नाता नहीं तोड़ा। वे संसार के त्याग संन्यास लेने के खिलाफ थे, क्योंकि वे सहज योग के हामी थे। उनका मत था कि मनुष्य संन्यास लेकर स्वयं का अथवा लोक कल्याण नहीं कर सकता, जितना कि स्वाभाविक एवं सहज जीवन में। इसलिए उन्होंने गृहस्थ त्याग गुफाओं, जंगलों में बैठने से प्रभु प्राप्ति नहीं अपितु गृहस्थ में रहकर मानव सेवा करना श्रेष्ठ धर्म बताया। 'नाम जपना, किरत करना, वंड छकना' सफल गृहस्थ जीवन का मंत्र दिया। यही गुरु मंत्र सिख धर्म की मुख्य आधारशिला है। यानी अंतर आत्मा से ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी एवं परिश्रम से कर्म करो तथा अर्जित धन से असहाय, दुःखी पीड़ित, जरूरततमंद इंसानों की सेवा करो। गुरु उपदेश है, 'घाल खाये किछ हत्थो देह। नानक राह पछाने से।' इस प्रकार श्री गुरुनानक देवजी ने अन्न की शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता पर जोर दिया। गुरुजी एक मर्तबा एक गाँव में पहुँचे तो उनके लिए दो घरों से भोजन का निमंत्रण आया। एक निमंत्रण गाँव के धनाढ्य मुखिया का था, दूसरा निर्धन बढ़ई का था।

Tuesday, 12 November 2013

युगद्रष्टा थे पंडित नेहरु

जवाहर लाल नेहरू हमारी पीढ़ी के एक महानतम व्यक्ति थे। वह एक ऐसे अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे, जिनकी मानव-मुक्ति के प्रति सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी। स्वाधीनता-संग्राम के योद्धा के रूप में वह यशस्वी थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनका अंशदान अभूतपूर्व था।


आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के बाद कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ऐसी नींव रखी जिस पर भारत का भविष्य निर्मित हुआ। आजादी के बाद अपने विचारों और नीतियों की वजह से वह भारत के युगद्रष्टा बन गए। भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में नेहरू का महत्त्व उनके द्वारा आधुनिक जीवन मूल्यों और भारतीय परिस्थतियों के लिए अनुकूलित विचारधाराओं के आयात और प्रसार के कारण है। धर्मनिरपेक्षता और भारत की जातीय तथा धार्मिक विभिन्नताओं के बावजूद देश की मौलिक एकता पर जोर देने के अलावा नेहरू भारत को वैज्ञानिक खोजों और तकनीकी विकास के आधुनिक युग में ले जाने के प्रति भी सचेत थे। अपने देशवासियों में निर्धनों तथा अछूतों के प्रति सामाजिक चेतना की जरूरत के प्रति जागरुकता पैदा करने और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान पैदा करने का भी कार्य उन्होंने किया। उन्हें अपनी एक उपलब्धि पर विशेष गर्व था कि उन्होंने प्राचीन हिंदू सिविल कोड में सुधार कर अंतत: उत्तराधिकार तथा संपत्ति के मामले में विधवाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्रदान करवाया।
नेहरू का जन्म कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह परिवार 18वीं शताब्दी के आरंभ में इलाहाबाद आ गया था। इलाहाबाद में बसे इसी परिवार में उनका जन्म 14 नवंबर 1889 को हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित मोतीलाल नेहरू और माता का नाम श्रीमती स्वरूप रानी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। 15 वर्ष की उम्र में 1905 में नेहरू इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भेजे गए। हैरो में दो वर्ष तक रहने के बाद नेहरू केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज पहुंचे जहां उन्होंने तीन वर्ष तक अध्ययन कर विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की। कैम्ब्रिज छोड़ने के बाद लंदन के इनर टेंपल में दो वर्ष बिताकर उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। भारत लौटने के चार वर्ष बाद मार्च 1916 में नेहरू का विवाह कमला कौल के साथ हुआ। कमला दिल्ली में बसे कश्मीरी परिवार की थीं। दोनों की अकेली संतान इंदिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 1917 में हुआ। दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें ह्यपूर्ण स्वराज्यह्ण की मांग की गई। 26 जनवरी, 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। जवाहर लाल नेहरु 1930 और 1940 के दशक में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। 1947 में भारत को आजादी मिलने पर वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में ह्यगुटनिरपेक्षह्ण नीतियों की शुरूवात जवाहरलाल नेहरु द्वारा हई। पंचायती राज के हिमायती नेहरु जी का कहना था कि:-
अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से, आज का बड़ा सवाल विश्वशान्ति का है। आज हमारे लिए यही विकल्प है कि हम दुनिया को उसके अपने रूप में ही स्वीकार करें। हम देश को इस बात की स्वतन्त्रता देते रहे कि वह अपने ढंग से अपना विकास करे और दूसरों से सीखे, लेकिन दूसरे उस पर अपनी कोई चीज नहीं थोपें। निश्चय ही इसके लिए एक नई मानसिक विधा चाहिए। पंचशील या पाँच सिद्धान्त यही विधा बताते हैं।ह्ल 27 मई 1964 की सुबह जवाहर लाल नेहरु जी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, डॉक्टरों के अनुसार उन्हे दिल का दौरा पङा था। दोपहर दो बजे नेहरु जी इह लोक छोङकर परलोक सिधार गये।
हमारी विदेश नीति का मूलाधार आज भी नेहरू का दिया हुआ ही है। समय के साथ विदेश नीति में बदलाव तो होता रहता है लेकिन बुनियादी अवधारणा में आज भी कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। भारत के आजाद होने से पहले ही कांग्रेस पार्टी ने 1925 में विदेशी मामलों की एक इकाई बनायी जिसके अध्यक्ष पंडित नेहरू थे। उसी समय उन्होंने औपनिवेशिक देशों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास शुरू कर दिया जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहे। आजादी से पहले ही नेहरू ने यूरोप और कई देशों की यात्रा की थी। उन्होंने कई औपनिवेशिक देशों के नेताओं से संपर्क स्थापित किया. यहां तक की औपनिवेशिक देशों की एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस भी आयोजित की गयी थी। यही वजह है कि आजादी के बाद हमें कई सारे राष्ट्रों से संबंध स्थापित करने में किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
आजादी के समय की तत्कालीन परिस्थितियों को भांपते हुए नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। दो ध्रुवीय शक्तिशाली गुटों के बीच संतुलन बनाने की उसी नीति पर भारत आज भी खड़ा है हालांकि आज दुनिया में एकमात्र महाशक्ति बची हुई है। गुटनिरपेक्षता का यह मतलब नहीं है कि भारत किसी खास देश से संबंध रखेगा या अमुक देश से नहीं रखेगा। गुटनिरपेक्षता का मतलब यह है कि भारत किसी भी गुट की नीतियों का समर्थन नहीं करेगा और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बरकरार रखेगा। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू एक ऐसे युगद्रष्टा थे जिन्होंने आने वाले समय की पदचाप को सुना और शायद यही वजह है कि उन्होंने न केवल आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की बल्कि देश में उद्योग धंधों की भी शुरूआत की। नेहरू इन उद्योगों को देश के आधुनिक मंदिर मानते थे और वे बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थे। बच्चों में ह्यचाचा नेहरूह्ण के नाम से मशहूर पंडित नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। बच्चों के बीच चाचा नेहरू के नाम से मशहूर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत का जो स्वरूप आज हमारे सामने मौजूद है, उसकी आधारशिला रखी थी। आधुनिक भारत के निर्माण की राह बनाने के साथ ही उन्होंने देश के भावी सामाजिक स्वरूप का खाका भी खींचा था। दुनिया के पटल पर भारत आज अपने जिन मूल्यों आदर्शो के लिए जाना पहचाना जाता है, उसे स्वरूप प्रदान करने का श्रेय एक हद तक नेहरू को दिया जा सकता है। उनके बारे में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ''जवाहर लाल नेहरू हमारी पीढ़ी के एक महानतम व्यक्ति थे। वह एक ऐसे अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे, जिनकी मानव-मुक्ति के प्रति सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी। स्वाधीनता संग्राम के योद्धा के रूप में वह यशस्वी थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनका अंशदान अभूतपूर्व था।''


(लेखक अधिवक्ता हैं)

Wednesday, 6 November 2013

अंतरिक्ष में हमारे मजबूत कदम, सोनिया गांधी ने दी बधाई



मंगल ग्रह पर भारत का मिशन मंगल सफलतापूर्वक शुरू हो गया है। करीब 10 महीने बाद भारत का ये बेहद खास मिशन मंगल ग्रह पर पहुंचकर वहां जीवन की तलाश करेगा। मंगल मिशन की सफल शुरुआत पर इसरो को पूरे देश के साथ-साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और तमाम दलों ने बधाई दी है। दरअसल दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर जैसे ही काउंटडाउन खत्म हुआ तो पीछे आग छोड़ता पीएसएलवी रॉकेट भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन पर असीम अंतरिक्ष के लंबे सफर पर चल पड़ा। एक ऐसी मंगल यात्रा पर जो अगर कामयाब हो गई तो लाल ग्रह के रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा और अंतरिक्ष में छुपे तमाम संसाधनों के लिए मची होड़ में भारत अहम शक्ति साबित होगा। शुरुआती 5 मिनट ना सिर्फ इसरो स्पेस सेंटर में बरसों से काम कर रहे तमाम वैज्ञानिकों के लिए तनाव भरे थे, बल्कि पूरा देश इस ऐतिहासिक लम्हे के हर पल पर नजर रखे हुए था। 2 बजकर 47 मिनट पर इसरो से खबर आई कि सारे सिस्टम ठीक काम कर रहे हैं। रॉकेट सही दिशा में है। और फिर अपने तय समय 3 बजकर 20 मिनट पर मंगलयान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया। खुद इसरो के मुखिया सामने आए और उन्होंने ये खुशखबरी देश और दुनिया को दी।

देश के प्रथम मंगल यान को लेकर एक प्रक्षेपण यान के प्रस्थान करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों को बधाई दी। प्रक्षेपण यान आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से मंगलवार को छोड़ा गया। सोनिया गांधी ने एक बयान में कहा, हमारे महान वैज्ञानिकों के इस विशिष्ट प्रयास पर हर भारतीय को गर्व है। गौरतलब है कि अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत ने आज इतिहास रच दिया है हिंदुस्तान का मंगलयान लाल ग्रह के लिए उड़ान भर चुका है।
आइआरएनएसएस- 1ए के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत भी उन चंद देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके नेविगेशन उपग्रह अंतरिक्ष में मौजूद हैं. सात उपग्रहों पर आधारित यह नेविगेशन प्रणाली 2015 तक पूरी तरह अंतरिक्ष में स्थापित हो जायेगी. इसका उपयोग जमीन, समुद्र और अंतरिक्ष में नेविगेशन और आपदा प्रबंधन और वाहन की स्थिति का पता लगाने, मोबाइल फोनों के एकीकरण, सही वक्त बताने, नक्शा बनाने, यात्रियों द्वारा नेविगेशन में मदद लेने और ड्राइवरों द्वारा विजुअल तथा वायस नेविगेशन के लिए किया जा सकेगा.
इसके जरिये किसी वाहन पर जा रहे लोगों पर नजर रखी जा सकती है, जो उत्तराखंड जैसी आपदा की स्थिति में उपयोगी सिद्ध होगा. इससे अमेरिकी नेविगेशन जीपीएस पर हमारी निर्भरता धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी. कम पूंजी के बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों ने सूझ-बूझ से दुनिया के सबसे सस्ते अंतरिक्ष कार्यक्र म को सफल बनाया है. यह न केवल अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारी बेमिसाल उपलिब्ध है, बल्कि इससे अंतरिक्ष तकनीक के मामले में हमारी साख भी बढ़ी है.
‘मंगलयान’ के लिए अंतरिक्ष में 25 करोड़ किलोमीटर का सफर आसान नहीं है। इस दौरान ‘मंगलयान’ को सौर विकिरण का खतरा होगा। इसे बेहद कम और बेहद ज्यादा तापमान से गुजरते हुए अपने उपकरणों को बचाना होगा। इतना ही नहीं डीप स्पेस में जरा सी चूक अंतकाल तक के लिए किसी भी यान को भटका सकती है। इससे बचने के लिए भारत के काबिल वैज्ञानिकों ने कई इंतजाम किए हैं। पूरे मंगलयान को सुनहरे रंग के कवर से लपेटा गया है। ये कवर खास कंबल का काम करेगा जो उसे गर्मी और सर्दी दोनों से बचाएगा।
मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को ही छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया था। मंगल की अपनी असली यात्रा मंगल यान एक दिसंबर को शुरू करेगा और अगले साल 24 सितंबर तक मंगल की कक्षा में पहुंचकर वहां से डाटा भेजना शुरू करेगा। मगर इस राह में चुनौतियां हजार हैं क्योंकि साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं जिनमें से एक तिहाई नाकाम रहे हैं। और तो और अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है।
फिर वो चाहे अंतरिक्ष में मानवयुक्त यान भेजने वाला चीन हो या फिर जापान। भारत से उम्मीदें बहुत हैं क्योंकि चंद्रयान और कई सैटेलाइट्स की कामयाबी से दुनिया की नजर भारत की ओर है। अगर भारत को कामयाबी मिलती है तो वो अमेरिका, रूस और यूरोपियन यूनियन के बाद चौथा ऐसा देश होगा।
फिलहाल अमेरिका का क्यूरोसिटी मंगल की जमीन पर काम कर रहा है और वहां से तमाम जानकारियां भेज रहा है। क्यूरोसिटी से मिली तस्वीरों से ये तो साफ है कि मंगल के दो ध्रुवों में बर्फ के रूप में पानी है लेकिन मंगल पर मीथेन गैस या फिर यूं कहें कि जीवन के सबूत खोजने का ये मिशन भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है। मंगलयान को सफलतापूर्वक लॉन्च कर और उसे पृथ्वी की कक्षा में कामयाबी से स्थापित कर इसरो ने पहली जंग जीत ली है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, नेता विपक्ष और बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी समेत पूरे देश ने इस कामयाबी पर वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
इंसान के मंगलकारी भविष्य के लिए 25 करोड़ किलोमीटर लांघने निकल चुका है हिंदुस्तान का मंगलयान। उसे जाना है अंतरिक्ष में पृथ्वी के पड़ोस तक, यानि मंगल या मार्स तक, वो ग्रह जिसका नाम ग्रीक युद्ध के देवता के नाम पर पड़ा। पृथ्वी का सबसे करीबी भाई, वो भाई जो बुरी तरह जंग खाया हुआ है और इसी व्रुाह से लाल या गाढ़ा भूरा दिखता है। जो रहस्य और रोमांच से भरपूर है। मंगल मित्रवत नहीं है, इसका पारा कभी बेहद गर्म तो कभी बेहद ठंडा पड़ता रहता है। जहां हैं तो सिर्फ रेगिस्तान और शायद ठंडे सोते ज्वालामुखी, जहां शायद कहीं छिपा है पानी और कहीं गहरे दबे हैं जीवन के अवशेष।

Saturday, 2 November 2013

शुभ दीपावली



दीपावली पर्व है खुशियों का, उजालों का । इस दीपावली आपका जीवन खुशियों से भरा हो, दुनिया उजालों से रोशन हो, घर पर माँ लक्ष्मी का आगमन हो । दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।[1] माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।[2] अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।

Wednesday, 30 October 2013

राजनीति में दुर्गा थीं इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में अजीब-सा जादू था। लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। वह एक प्रभावी वक्ता भी थीं, जो अपने भाषणों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कि कितने विशेषण दिए गए थे।


भारतीय राजनीति के फलक पर श्रीमती इंदिरा गांधी का उभार ऐसे समय में हुआ था, जब देश नेतृत्व के संकट से जूझ रहा था। शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ कहलाने वाली इंदिरा ने अपने चमत्कारिक नेतृत्व से न केवल देश को कुशल नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि विश्व मंच पर भी भारत की धाक जम दी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह के अनुसार, इंदिरा एक कुशल प्रशासक थीं। उनके सक्रिय सहयोग से बांग्लादेश अस्तित्व में आया। जिससे इतिहास और भूगोल दोनों बदल गए। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि बचपन से ही इंदिरा में नेतृत्व के गुण मौजूद थे। भारत की आजादी के आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए इंदिरा ने बचपन में ही ‘वानर सेना’ का गठन किया था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर कलीम बहादुर के अनुसार, इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्रित्व काल बहुत अच्छा था। उन्होंने बहुत से ऐसे काम किए, जिससे विश्व में भारत का सम्मान बढ़ा। उन्होंने भारत की विदेश नीति को नए तेवर दिए, बांग्लादेश का बनना उनमें से एक उदाहरण है। इससे उन्होंने विश्व मानचित्र पर देश का दबदबा कायम किया। जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के घर इंदिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ओर से स्थापित शांति निकेतन में पढ़ाई करने वाली इंदिरा बचपन में काफी संकोची स्वभाव की थीं। इनका जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के आनंद भवन में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम है- श्इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधीश्। इनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरु और दादा का नाम मोतीलाल नेहरु था। पिता एवं दादा दोनों वकालत के पेशे से संबंधित थे और देश की स्वाधीनता में इनका प्रबल योगदान था। इनकी माता का नाम कमला नेहरु था जो दिल्ली के प्रतिष्ठित कौल परिवार की पुत्री थीं। इंदिराजी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफी संपन्न था। अतरू इन्हें आनंद भवन के रूप में महलनुमा आवास प्राप्त हुआ। इंदिरा जी का नाम इनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरु ने रखा था। यह संस्कृतनिष्ठ शब्द है जिसका आशय है कांति, लक्ष्मी, एवं शोभा। इनके दादाजी को लगता था कि पौत्री के रूप में उन्हें मां लक्ष्मी और दुर्गा की प्राप्ति हुई है। पंडित नेहरु ने अत्यंत प्रिय देखने के कारण अपनी पुत्री को प्रियदर्शिनी के नाम से संबोधित किया जाता था। चूंकि जवाहरलाल नेहरु और कमला नेहरु स्वयं बेहद सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, इस कारण सुंदरता के मामले में यह गुणसूत्र उन्हें अपने माता-पिता से प्राप्त हुए थे। इन्हें एक घरेलू नाम भी मिला जो इंदिरा का संक्षिप्त रूप श्इंदुश् था।
इंदिरा गांधी कभी भी अमेरिका जैसे राष्ट्रों के सामने झुकी नहीं। विकीलिक्स की ओर से किए गए खुलासों में यह बात सामने आई है कि निक्सन जैसे शक्तिशाली राष्ट्रपति भी उनसे काफी नाराज थे। लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की। अपनी राजनीतिक पारी के शुरुआती दिनों में ‘गूंगी गुड़िया’ के नाम से जानी जाने वाली इंदिरा बाद के दिनों में बहुत बड़ी ‘जननायक’ बन कर उभरीं। उनके व्यक्तित्व में अजीब सा जादू था, जिससे लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। वह एक प्रभावी वक्ता भी थीं, जो अपने भाषणों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं।
रूसी क्रांति के साल 1917 में 19 नवंबर को पैदा हुईं इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया। दृढ़ निश्चयी और किसी भी परिस्थिति से जूझने और जीतने की क्षमता रखने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल इतिहास, बल्कि पाकिस्तान को विभाजित कर दक्षिण एशिया के भूगोल को ही बदल डाला और 1962 के भारत चीन युद्ध की अपमानजनक पराजय की कड़वाहट धूमिल कर भारतीयों में जोश का संचार किया।
यदि यह कहा जाए कि हमारे देश में इंदिरा गांधी आखिरी जन नायक थीं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनके बाद कभी उन जैसे राजनेता नहीं हुआ। आपातकाल लगाने के बाद उन्हें चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर से चुनाव में वह विजयी होकर लौटीं और अकेले अपने दम पर सरकार का गठन किया। आज गठबंधन की सरकारें बन रही हंै। आज के किसी भी राजनेता में इंदिरा गांधी की तरह वह जादुई ताकत नहीं है कि अपने अकेले दल के दम पर सरकार बना सके। पंजाब में आतंकवाद का सामना करते हुए अपने प्राणों की आहूति देने वाली इंदिरा गांधी को अपने छोटे बेटे संजय गांधी के आकस्मिक निधन से काफी दुख पहुंचा था। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में लगभग 10 सालों तक शामिल रहे कर्ण सिंह ने कहा कि संजय के निधन से उन्हें काफी दुख पहुंचा था, लेकिन राजीव गांधी से उन्हें काफी संबल मिला।
1957 के आम चुनाव के समय पंडित नेहरू ने जहाँ श्री लालबहादुर शास्त्री को कांग्रेसी उम्मीदवारों के चयन की जिम्मेदारी दी थी, वहीं इंदिरा गाँधी का साथ शास्त्रीजी को प्राप्त हुआ था। शास्त्रीजी ने इंदिरा गाँधी के परामर्श का ध्यान रखते हुए प्रत्याशी तय किए थे। लोकसभा और विधानसभा के लिए जो उम्मीदवार इंदिरा गाँधी ने चुने थे, उनमें से लगभग सभी विजयी हुए और अच्छे राजनीतिज्ञ भी साबित हुए। इस कारण पार्टी में इंदिरा गाँधी का कद काफी बढ़ गया था। लेकिन इसकी वजह इंदिरा गाँधी के पिता पंडित नेहरू का प्रधानमंत्री होना ही नहीं था इंदिरा में व्यक्तिगत योग्यताएं भी थीं। इंदिरा गाँधी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के आरोप उस समय पंडित नेहरू पर लगे। 1959 में जब इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। लेकिन वे आलोचना इतने मुखर नहीं थे कि उनकी बातों पर तवज्जो दी जाती। वस्तुतः इंदिरा गाँधी ने समाज, पार्टी और देश के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त थी। विदेशी राजनयिक भी उनकी प्रशंसा करते थे। इस कारण आलोचना दूध में उठे झाग की तरह बैठ गई। कांग्रेस अध्यक्षा के रूप में इंदिरा गाँधी ने अपने कौशल से कई समस्याओं का निदान किया। उन्होंने नारी शाक्ति को महत्त्व देते हुए उन्हें कांग्रेस पार्टी में महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किए। युवा शक्ति को लेकर भी उन्होंने अभूतपूर्व निर्णय लिए। इंदिरा गाँधी 42 वर्ष की उम्र में कांग्रेस अध्यक्षा बनी थीं।
भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुकघबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की गलतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर कघयम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नजदीकी सम्बन्ध कघयम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।


पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कि कितने विशेषण दिए गए थे जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे, जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के जोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी। मौजूदा जटिल दौर में देश के कई कोनों से नेतृत्व संकट की आवाज उठ रही है। कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें मजबूती से कुछ चीजों के, कुछ मूल्यों के पक्ष में खड़ा होना होता है और कुछ की उतनी ही तीव्रता से मुखालफत करनी होती है। आज भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी की छवि कुछ ऐसे ही संकल्पशील नेता की है। इंदिरा गांधी 16 वर्ष देश की प्रधानमंत्री रहीं और उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए। अंतरिक्ष, परमाणु विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान में भारत की आज जैसी स्थिति की कल्पना इंदिरा गांधी के बगैर नहीं की जा सकती थी। हर राजनेता की तरह इंदिरा गांधी की भी कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में भारत को यूटोपिया से निकालकर यथार्थ के धरातल पर उतारने का श्रेय उन्हें ही जाता है। आॅपरेशन ब्लू स्टार के बाद उपजे तनाव के बीच उनके निजी अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर 1984 को गोली मार कर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।




Tuesday, 29 October 2013

राहुल के कार्यक्रमों से विपक्ष में हड़कंप


कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में पिछले 15 साल में हुए विकास कार्यों और यूपीए सरकार के महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक के तौर पर कांग्रेस की उपलब्धियां गिनाते हुए प्रवासी मतदाताओं तक पहुंच बनाने का प्रयास किया, जो दिल्ली की जनसंख्या के करीब एक-तिहाई हैं। प्रदेश में विकास कार्यों के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तारीफ करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विकास के मुद्दों की अनदेखी के लिए विपक्ष की निंदा की। रैली में राहुल गांधी ने कहा कि पिछले 15 सालों में शीला दीक्षित ने दिल्ली को बदल दिया है। दिल्ली को शीला जी ने हाईटेक बनाया। दिल्ली में 130 फ्लाईओर और ओवरब्रिज बनाए गए। दिल्ली के मुद्दों पर केंद्रित रहे राहुल ने कहा कि दिल्ली के मेट्रो के मॉडल को इंडोनेशिया जैसे दूसरे देशों में भी अपनाया जा रहा है। यूपीए सरकार ने दिल्लीवासियों को एक चमकता हुआ विश्वस्तरीय हवाई अड्डा दिया है। काम और रोजगार की तलाश में खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से दिल्ली आकर बस गए लोगों को दिए संदेश में राहुल ने कहा, जो लोग बाहर से आते हैं, हम उनके हाथों में हाथ डालकर उनके साथ आगे बढ़ते हैं।
दरअसल,  कांग्रेस पार्टी ने विभिन्न विषय-विशेषज्ञों के परामर्श, सहयोग और मार्गदर्शन से सामाजिक उत्थान के लिए कई कार्यक्रम बनाए तथा नीतियों और योजनाओं को जमीनी स्वरूप देने के प्रयास शुरू किए। केंद्र भी अपने-अपने क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से उनके कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का व्यापक स्वरूप से निर्धारण किया गया। प्रजातांत्रिक प्रणाली लागू होते ही प्रारंभिक दौर में समाज में व्याप्त पिछड़ापन, असमानता, अज्ञानता, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा जैसे अभिशापों से मुक्ति दिलाने का मुद्दा प्राथमिकता में था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच खाइयों को पाटने के उद्देश्य से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कुशल और सक्षम नेतृत्व में आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्यों की शुरुआत हुई। उस दौर में जन-जन के आत्म सम्मान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गरीबों, असहायों और कमजोर तबके के समस्त लोगों के प्रति हमदर्दी का रुख अख्तियार कर तत्कालीन कांग्रेस सत्ता में उदारतापूर्वक अभियान शुरू हुए। इसके तहत गरीबों के बीच जाकर नेताओं ने उनके दु:ख दर्द जानकार उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीवनयापन के अवसर उपलब्ध कराने की योजनाओं पर मैदानी काम शुरू कर दिए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री जैसे महान नेताओं ने समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता, जातिगत वैमनस्यता, साम्प्रदायिक कटुता और धार्मिक कट्टरता जैसी बुराइयों से भारत को मुक्त रखने में जनसामान्य का विश्वास और समर्थन प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की कसर नहीं छोड़ी थी। स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने तो गरीब से गरीब परिवार के जीवन में खुशहाली लाने के उद्देश्य से गरीबी हटाओ जैसे अभियान को जन्म दिया। उनके समय में 20 सूत्रीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के जरिए भी देश के चहुंमुखी विकास के साथ ही समाज के निरीह, असहाय और अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति तथा जनजातियों के लोगों को समाज में इात और सम्मान के साथ जीने का अवसर उपलब्ध कराने के लिए भी एक नया वातावरण तैयार किया। पंडित नेहरू और इंदिराजी जब-जब भी दूरस्थ अंचलों, विशेषकर आदिवासियों और अनुसूचित जातियों के लोगों की बसाहट के बीच जाते थे, तब-तब वे गरीब परिवारों की कुटिया में पहुंचकर उनमें व्याप्त हीनभावनाओं को दूर कर उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने की प्रेरणा, प्रोत्साहन और सहयोग दिया करते थे। स्व. राजीव गांधी भी दलितों और गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों के बीच पहुंचकर, विशेषकर वनग्रामों की यात्रा के दौरान लोगों की झोपड़ियों में पहुंचकर उनके पारिवारिक स्तर और जीवन की कठिनाइयों से अवगत होने में पीछे नहीं रहते थे। कांग्रेस की सत्ता की नीतियों के अनुरूप गरीबों के उत्थान के प्रति चिंता जताना और उनकी समस्याओं का निदान निकालने की परंपरा का आज भी राहुल गांधी पालन कर रहे हैं। अपने पिता स्व. राजीव गांधी के आकलन के अनुसार राहुल भी मानते हैं कि गरीबों के हित में कार्यक्रम की योजनाएं तो खूब संचालित हैं किंतु उन तक उसका बहुत ही कम प्रतिशत में लाभ पहुंच पाता है। राहुल गांधी ने भी नेहरू, इंदिरा गांधी , राजीव गांधी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी यात्रा में गरीबों के घर पहुंचने का उद्देश्यपूर्ण अभियान बड़े जोरों से शुरू कर दिया है। राहुल गरीबों के घरों में पहुंचने के कार्यक्रमों से विपक्ष के दलों में हड़कंप मच गया है। गरीबों के प्रति हमदर्दी की परंपरा रखने वाली कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को तो गरीब की कुटिया में पहुंचने की नीति विरासत में मिली है, जिससे यह पार्टी जन विश्वसनीयता भी हासिल करती रही है, किंतु अब विपक्षी पार्टियों द्वारा भी गरीबों के कल्याण के प्रति हमदर्दी दिखाने की जो शुरुआत देखी जा रही है, उसका क्या नतीजा निकलेगा और जनता में विश्वसनीयता का कितना ग्राफ ऊंचा उठ सकेगा यह आने वाले निर्वाचनों के समय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ही बता पाएगी। सोनियाजी गरीबों की नेता हैं। गरीबों का ध्यान रखने वाली नेता हैं। गरीबों की चिंता करने वाली नेता हैं। 

Thursday, 24 October 2013

नहीं रहे मन्ना डे


महान पार्श्‍व गायक लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह गए हैं। दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले मन्ना डे 94 वर्ष के थे। वह काफी समय से बीमार थे। फेफड़े में सक्रमण से जूझ रहे थे। आयु के साथ आने वाली बीमारियों से अधिक कष्ट उन्हें इस बात का हुआ हो सकता है कि उनकी बेटी और दामाद ने उनके रिश्तेदार पर आरोप लगाया है कि इलाज के नाम पर उसने बैंक से पैसा निकालकर अपनी पत्नी के नाम कर दिया है। मन्ना डे कोलकाता में कुछ जमीन भर छोड़ गए हैं और कुछ महीने पहले तक मात्र बारह लाख रुपए उनके बैंक में जमा थे। इस तरह के विवाद प्राय: मृत्यु के बाद होते हैं। दुर्भाग्यवश यह उन्‍हें जीते जी झेलना पड़ा। मन्ना डे समझते रहे कि ‘ऐ भाई जरा देखके चलो, ये सर्कस है शो तीन घंटे का'। मन्ना डे कभी दुनियादार नहीं रहे, इसीलिए इतने गुणवान होकर भी उन्होंने बहुत धन जमा नहीं किया और कर लेते तो शायद और कलह होता। धन का अपना महत्व है, परंतु उसके पीछे पागलों की तरह दौड़कर उसका संचय करना कभी जीवन का ध्येय नहीं हो सकता।
ऐ मेरे प्यारे वतन, लागा चुनरी में दाग और पूछो न कैसे जैसे सदाबहार गीतों के जरिए पांच दशकों से भी अधिक समय तक अपने संगीत का जादू बिखेरने वाले प्रख्यात पार्श्व गायक मन्ना डे का लंबी बीमारी के बाद अस्पताल में निधन हो गया।नारायण हृदयालय अस्पताल प्रवक्ता वासुकी ने बताया कि 94 वर्षीय मन्ना डे का तड़के तीन बजकर 50 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उनका पिछले पांच महीने से सांस और गुर्दे संबंधी समस्याओं के कारण अस्पताल में उपचार चल रहा था। भारतीय शास्त्रीय संगीत में पॉप का जुझारुपन घोलने वाले सुरों के सरताज मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उस स्वर्ण युग के प्रतीक थे जहां उन्होंने अपनी अनोखी शैली और अंदाज से पूछो ना कैसे मैंने, ए मेरी जोहराजबीं और लागा चुनरी में दाग जैसे अमर गीत गाकर खुद को अमर कर दिया था।
मोहम्मद रफी , मुकेश और किशोर कुमार की तिकड़ी का चौथा हिस्सा बनकर उभरे मन्ना डे ने 1950 से 1970 के बीच हिंदी संगीत उद्योग पर राज किया। पांच दशकों तक फैले अपने करियर में डे ने हिंदी, बंगाली, गुजराती , मराठी, मलयालम , कन्नड और असमी में 3500 से अधिक गीत गाये और 90 के दशक में संगीत जगत को अलविदा कह दिया। 1991 में आयी फिल्म प्रहार में गाया गीत हमारी ही मुट्ठी में  उनका अंतिम गीत था।
महान गायक आज बेंगलूर में 94 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हो गये।  यह संगीत की दुनिया का वह दौर था , जब रफी, मुकेश और किशोर फिल्मों के नायकों की आवाज हुआ करते थे लेकिन मन्ना डे अपनी अनोखी शैली के लिए एक खास स्थान रखते थे। रवींद्र संगीत में भी माहिर बहुमुखी प्रतिभा मन्नाडे ने पश्चिमी संगीत के साथ भी कई प्रयोग किए और कई यादगार गीतों की धरोहर संगीत जगत को दी।
पिछले कुछ सालों से बेंगलूर को अपना ठिकाना बनाने वाले मन्ना डे ने 1943 में तमन्ना फिल्म के साथ पार्श्व गायन में अपने करियर की शुरुआत की थी। संगीत की धुनें उनके चाचा कृष्ण चंद्र डे ने तैयार की थीं और उन्हें सुरैया के साथ गीत गाना था। और सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं रातों रात हिट हो गया जिसकी ताजगी आज भी कायम है।
1950 में मशाल उनकी दूसरी फिल्म थी जिसमें मन्ना डे को एकल गीत ऊपर गगन विशाल गाने का मौका मिला जिसे संगीत से सजाया था सचिन देव बर्मन ने।  1952 में डे ने एक ही नाम और कहानी वाली बंगाली तथा मराठी फिल्म अमर भुपाली  के लिए गीत गाए और खुद को एक उभरते बंगाली पार्श्वगायक के रूप में स्थापित कर लिया। डे साहब की मांग दुरुह राग आधारित गीतों के लिए अधिक होने लगी और एक बार तो उन्हें 1956 में बसंत बहार फिल्म में उनके अपने आदर्श भीमसेन जोशी के मुकाबले में गाना पड़ा। केतकी, गुलाब , जूही  बोल वाले इस गीत को शुरू में उन्होंने गाने से मना कर दिया था।
शास्त्रीय संगीत में उनकी पारंगता के साथ ही उनकी आवाज में एक ऐसी अनोखी कशिश थी कि आज तक उनकी आवाज को कोई कापी करने का साहस नहीं जुटा सका।
यह मन्ना डे की विनम्रता ही थी कि उन्होंने बतौर गायक उनकी प्रतिभा को पहचानने का श्रेय संगीतकार शंकर जयकिशन की जोड़ी को दिया। डे ने शोमैन राजकपूर की आवारा, श्री 420 और चोरी चोरी फिल्मों के लिए गाया। उन्होंने अपनी आत्मकथा  मैमोयर्स कम अलाइव में लिखा है ,  मैं शंकरजी का खास तौर से ऋणी हूं। यदि उनकी सरपरस्ती नहीं होती तो जाहिर सी बात है कि मैं उन ऊचाइयों पर कभी नहीं पहुंच पाता जहां आज पहुंचा हूं। वह एक ऐसे शख्स थे जो जानते थे कि मुझसे कैसे अच्छा काम कराना है।
वास्तव में , वह पहले संगीत निदेशक थे जिन्होंने मेरी आवाज के साथ प्रयोग करने का साहस किया और मुझसे रोमांटिक गीत गवाये।  मन्ना डे के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में दिल का हाल सुने दिलवाला, प्यार हुआ इकरार हुआ , आजा सनम , ये रात भीगी भीगी , ऐ भाई जरा देख के चलो , कसमे वादे प्यार वफा और यारी है ईमान मेरा शामिल है।
मन्ना डे ने कुछ धार्मिक फिल्मों में गाने क्या गाएं उन पर धार्मिक गीतों के गायक का ठप्पा लगा दिया गया। ‘प्रभु का घर’, ‘श्रवण कुमार’, ‘जय हनुमान’, ‘राम विवाह’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने गीत गाए। इसके अलावा बी-सी ग्रेड फिल्मों में भी वो अपनी आवाज देते रहें। भजन के अलावा कव्वाली और मुश्किल गीतों के लिए मन्ना डे को याद किया जाता था। इसके अलावा मन्ना डे से उन गीतों को गंवाया जाता था, जिन्हें कोई गायक गाने को तैयार नहीं होता था। धार्मिक फिल्मों के गायक की इमेज तोड़ने में मन्ना डे को लगभग सात सात लगे।