Wednesday, 30 October 2013

राजनीति में दुर्गा थीं इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में अजीब-सा जादू था। लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। वह एक प्रभावी वक्ता भी थीं, जो अपने भाषणों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कि कितने विशेषण दिए गए थे।


भारतीय राजनीति के फलक पर श्रीमती इंदिरा गांधी का उभार ऐसे समय में हुआ था, जब देश नेतृत्व के संकट से जूझ रहा था। शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ कहलाने वाली इंदिरा ने अपने चमत्कारिक नेतृत्व से न केवल देश को कुशल नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि विश्व मंच पर भी भारत की धाक जम दी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह के अनुसार, इंदिरा एक कुशल प्रशासक थीं। उनके सक्रिय सहयोग से बांग्लादेश अस्तित्व में आया। जिससे इतिहास और भूगोल दोनों बदल गए। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि बचपन से ही इंदिरा में नेतृत्व के गुण मौजूद थे। भारत की आजादी के आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए इंदिरा ने बचपन में ही ‘वानर सेना’ का गठन किया था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर कलीम बहादुर के अनुसार, इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्रित्व काल बहुत अच्छा था। उन्होंने बहुत से ऐसे काम किए, जिससे विश्व में भारत का सम्मान बढ़ा। उन्होंने भारत की विदेश नीति को नए तेवर दिए, बांग्लादेश का बनना उनमें से एक उदाहरण है। इससे उन्होंने विश्व मानचित्र पर देश का दबदबा कायम किया। जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के घर इंदिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ओर से स्थापित शांति निकेतन में पढ़ाई करने वाली इंदिरा बचपन में काफी संकोची स्वभाव की थीं। इनका जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के आनंद भवन में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम है- श्इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधीश्। इनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरु और दादा का नाम मोतीलाल नेहरु था। पिता एवं दादा दोनों वकालत के पेशे से संबंधित थे और देश की स्वाधीनता में इनका प्रबल योगदान था। इनकी माता का नाम कमला नेहरु था जो दिल्ली के प्रतिष्ठित कौल परिवार की पुत्री थीं। इंदिराजी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफी संपन्न था। अतरू इन्हें आनंद भवन के रूप में महलनुमा आवास प्राप्त हुआ। इंदिरा जी का नाम इनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरु ने रखा था। यह संस्कृतनिष्ठ शब्द है जिसका आशय है कांति, लक्ष्मी, एवं शोभा। इनके दादाजी को लगता था कि पौत्री के रूप में उन्हें मां लक्ष्मी और दुर्गा की प्राप्ति हुई है। पंडित नेहरु ने अत्यंत प्रिय देखने के कारण अपनी पुत्री को प्रियदर्शिनी के नाम से संबोधित किया जाता था। चूंकि जवाहरलाल नेहरु और कमला नेहरु स्वयं बेहद सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, इस कारण सुंदरता के मामले में यह गुणसूत्र उन्हें अपने माता-पिता से प्राप्त हुए थे। इन्हें एक घरेलू नाम भी मिला जो इंदिरा का संक्षिप्त रूप श्इंदुश् था।
इंदिरा गांधी कभी भी अमेरिका जैसे राष्ट्रों के सामने झुकी नहीं। विकीलिक्स की ओर से किए गए खुलासों में यह बात सामने आई है कि निक्सन जैसे शक्तिशाली राष्ट्रपति भी उनसे काफी नाराज थे। लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की। अपनी राजनीतिक पारी के शुरुआती दिनों में ‘गूंगी गुड़िया’ के नाम से जानी जाने वाली इंदिरा बाद के दिनों में बहुत बड़ी ‘जननायक’ बन कर उभरीं। उनके व्यक्तित्व में अजीब सा जादू था, जिससे लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। वह एक प्रभावी वक्ता भी थीं, जो अपने भाषणों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती थीं।
रूसी क्रांति के साल 1917 में 19 नवंबर को पैदा हुईं इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया। दृढ़ निश्चयी और किसी भी परिस्थिति से जूझने और जीतने की क्षमता रखने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल इतिहास, बल्कि पाकिस्तान को विभाजित कर दक्षिण एशिया के भूगोल को ही बदल डाला और 1962 के भारत चीन युद्ध की अपमानजनक पराजय की कड़वाहट धूमिल कर भारतीयों में जोश का संचार किया।
यदि यह कहा जाए कि हमारे देश में इंदिरा गांधी आखिरी जन नायक थीं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनके बाद कभी उन जैसे राजनेता नहीं हुआ। आपातकाल लगाने के बाद उन्हें चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर से चुनाव में वह विजयी होकर लौटीं और अकेले अपने दम पर सरकार का गठन किया। आज गठबंधन की सरकारें बन रही हंै। आज के किसी भी राजनेता में इंदिरा गांधी की तरह वह जादुई ताकत नहीं है कि अपने अकेले दल के दम पर सरकार बना सके। पंजाब में आतंकवाद का सामना करते हुए अपने प्राणों की आहूति देने वाली इंदिरा गांधी को अपने छोटे बेटे संजय गांधी के आकस्मिक निधन से काफी दुख पहुंचा था। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में लगभग 10 सालों तक शामिल रहे कर्ण सिंह ने कहा कि संजय के निधन से उन्हें काफी दुख पहुंचा था, लेकिन राजीव गांधी से उन्हें काफी संबल मिला।
1957 के आम चुनाव के समय पंडित नेहरू ने जहाँ श्री लालबहादुर शास्त्री को कांग्रेसी उम्मीदवारों के चयन की जिम्मेदारी दी थी, वहीं इंदिरा गाँधी का साथ शास्त्रीजी को प्राप्त हुआ था। शास्त्रीजी ने इंदिरा गाँधी के परामर्श का ध्यान रखते हुए प्रत्याशी तय किए थे। लोकसभा और विधानसभा के लिए जो उम्मीदवार इंदिरा गाँधी ने चुने थे, उनमें से लगभग सभी विजयी हुए और अच्छे राजनीतिज्ञ भी साबित हुए। इस कारण पार्टी में इंदिरा गाँधी का कद काफी बढ़ गया था। लेकिन इसकी वजह इंदिरा गाँधी के पिता पंडित नेहरू का प्रधानमंत्री होना ही नहीं था इंदिरा में व्यक्तिगत योग्यताएं भी थीं। इंदिरा गाँधी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के आरोप उस समय पंडित नेहरू पर लगे। 1959 में जब इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। लेकिन वे आलोचना इतने मुखर नहीं थे कि उनकी बातों पर तवज्जो दी जाती। वस्तुतः इंदिरा गाँधी ने समाज, पार्टी और देश के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त थी। विदेशी राजनयिक भी उनकी प्रशंसा करते थे। इस कारण आलोचना दूध में उठे झाग की तरह बैठ गई। कांग्रेस अध्यक्षा के रूप में इंदिरा गाँधी ने अपने कौशल से कई समस्याओं का निदान किया। उन्होंने नारी शाक्ति को महत्त्व देते हुए उन्हें कांग्रेस पार्टी में महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किए। युवा शक्ति को लेकर भी उन्होंने अभूतपूर्व निर्णय लिए। इंदिरा गाँधी 42 वर्ष की उम्र में कांग्रेस अध्यक्षा बनी थीं।
भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुकघबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की गलतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर कघयम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नजदीकी सम्बन्ध कघयम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।


पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कि कितने विशेषण दिए गए थे जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे, जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के जोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी। मौजूदा जटिल दौर में देश के कई कोनों से नेतृत्व संकट की आवाज उठ रही है। कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें मजबूती से कुछ चीजों के, कुछ मूल्यों के पक्ष में खड़ा होना होता है और कुछ की उतनी ही तीव्रता से मुखालफत करनी होती है। आज भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी की छवि कुछ ऐसे ही संकल्पशील नेता की है। इंदिरा गांधी 16 वर्ष देश की प्रधानमंत्री रहीं और उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए। अंतरिक्ष, परमाणु विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान में भारत की आज जैसी स्थिति की कल्पना इंदिरा गांधी के बगैर नहीं की जा सकती थी। हर राजनेता की तरह इंदिरा गांधी की भी कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में भारत को यूटोपिया से निकालकर यथार्थ के धरातल पर उतारने का श्रेय उन्हें ही जाता है। आॅपरेशन ब्लू स्टार के बाद उपजे तनाव के बीच उनके निजी अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर 1984 को गोली मार कर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।




1 comment:

  1. achhe lekh hai par thoda sa congress ke paksh me hai.agar har dal ke sahi nishkash nikalenge to jyada behar ho sakta hai.

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