Wednesday, 18 December 2013

जनता को मिला नया हथियार

 सड़क से संसद तक चली लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार लोकपाल विधेयक पास हो गया। बिल पास होने के बाद गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ दिया। इससे पहले 17 दिसंबर को राज्यसभा से लोकपाल विधेयक पास होने पर इस आंदोलन की अगुवाई करते रहे अन्ना हजारे ने सांसदों और सरकार का शुक्रिया अदा किया, तो वहीं डॉ. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे एक ऐतिहासिक कदम करार दिया। आठ दिन से उपवास पर बैठे अन्ना हजारे ने राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पारित कराने में मदद करने के लिए विभिन्न दलों को धन्यवाद दिया और लोकसभा के सदस्यों से कल वहां भी इस विधेयक को पारित कराने की अपील की, जिसके बाद वह अपना उपवास खत्म कर लेंगे। कमजोर पर उत्साह से लबरेज दिख रहे हजारे ने विधेयक पारित होने पर तिरंगा लहराकर और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाकर अपनी खुशी प्रकट की। राज्यसभा में विधेयक पारित होने के बाद हजारे ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि यह एक क्रांतिकारी कदम है। पिछले 40 साल में विधेयक आठ बार पेश किया गया, लेकिन कभी पारित नहीं हुआ। मैं सभी दलों को, उस हर (दल) को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने राज्यसभा में इस विधेयक का समर्थन किया, समाजवादी पार्टी उसका अपवाद रही है। यह विधेयक केवल अन्ना की मांग नहीं है, बल्कि देश यही चाहता है। अन्ना हजारे का कहना था कि हमारे नेता यह अहसास करने लगे हैं कि जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून चाहती है। मैं यह नहीं कहता कि इससे शत-प्रतिशत भ्रष्टाचार का नष्ट हो जाएगा, लेकिन इससे निश्चित तौर पर इसमें 40-50 फीसदी कमी आएगी।
इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक विधेयक के पारित होने के एक साल के भीतर सभी राज्यों के इस कानून के आधार पर अपने यहां लोकायुक्त की नियुक्ति करना अनिवार्य होगा। लोकपाल से जुड़े मामले में सीबीआई लोकपाल के अधीन काम करेगी। सरकार लोकपाल की जांच से जुड़े सीबीआई अधिकारियों का ट्रांसफर नहीं कर सकेगी। राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का अधिकार राज्य विधानसभा के पास होगा। हालांकि, उनके लिए एक साल के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति करना अनिवार्य है. इसके लिए केंद्रीय लोकपाल कानून को मॉडल कानून माना जाएगा। लोकपाल की नियुक्ति करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में नेता विपक्ष, मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे। धार्मिक संस्थाओं को छोड़कर अन्य सभी ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं लोकपाल के दायरे में आएंगी, जिन्हें सरकारी मदद मिलती है। लोकपाल को हटाने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास होगा। समिति में 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला वर्ग से होंगे। प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में हैं, हालांकि उनको लेकर शिकायतों के निपटान के लिए विशेष प्रक्रिया है। सभी श्रेणियों के सरकारी अधिकारी लोकपाल के दायरे में शामिल और साथ ही तय समयसीमा के भीतर जांच का प्रावधान।
हालांकि, यूपीए सरकार के लिए विधेयक पास करवाने की यह कवायद आसान नहीं रही, क्योंकि समाजवादी पार्टी विधेयक का पुरजोर विरोध कर रही थी। संसद शुरू होने से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और पी. नारायणसामी को अपने घर तलब कर सरकार की रणनीति की जानकारी ली। इसके बाद मुलायम सिंह और रामगोपाल यादव की प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में समाजवादी पार्टी को विरोध जताने के लिए हंगामा करने के जगह सदन से ‘वॉक आउट’ करने पर मना लिया गया और लोकपाल विधेयक शांति से पास होने का रास्ता साफ हो गया। वैसे, लेफ्ट समेत कुछ पार्टियों ने विधेयक के कुछ संशोधनों पर मत विभाजन भी करवाया, लेकिन भाजपा की रजामंदी के चलते वोटिंग भी विधेयक के पक्ष में ही रही।
अब बिल हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा उसके पश्चात यह कानून का रूप ले लेगा। हालांकि यह बिल लोकसभा से पहले ही पारित किया जा चुका है, लेकिन संशोधन बिल राज्यसभा में पेश किए जाने के चलते इसे दोबारा लोकसभा पारित किया गया है। इससे पहले, कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने लोकसभा में जैसे ही लोकपाल बिल पेश किया सपा के सदस्य हंगामा करने लगे। हंगामा के बीच चर्चा की शुरुआत में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि सत्ता पक्ष के लोग हंगामा कर रहे हैं, हम पहले से ही इस बिल के पक्ष में हैं। उन्होंने सशक्त लोकपाल के लिए सरकार का समर्थन किया है। सुषमा ने कहा कि लोकपाल के लिए श्रेय लेने की होड़ न लगे। इस बीच, राहुल गांधी ने कहा कि इस मौके का पिछले 45 साल से इंतजार था, इसका पूरा श्रेय वयोवृद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे को जाता है।
दूसरी ओर, सच यह भी है कि यदि कांग्रेस इस विधेयक को लेकर पूरा जोर नहीं लगाती, तो शायद इस बार भी लोकपाल सदन में पास नहीं होता। हां, इसके साथ मुख्य विपक्षी दल भाजपा के रचनात्मक सहयोग को भी नहीं भुलाया जा सकता है, जिसने जनहित में कांग्रेस का साथ दिया है। सही मायने में यह कहा जाए कि यह राहुल गांधी के कारण संभव हुआ है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्हीं की मेहनत के कारण सभी दलों के बीच समन्वय बन सका है और यह विधेयक पारित हुआ है। सच तो यह है कि लोकपाल बिल संसद में तीन साल पहले लाया गया था, इन तीन सालों में जितना गंगा में पानी नहीं बहा, उतनी इस बिल को लेकर देश में राजनीति हुई। राजनीति इस बिल को लेकर चरम पर तब पहुंची, जब अन्ना के शिष्य और लोकपाल के आंदोलन से निकले अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना से अलग होकर अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन किया और दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा। इस बिल के स्वरूप को लेकर अन्ना और उनके प्रिय शिष्य के बीच बीते नौ दिनों से बयानबाजियों का लंबा दौर भी चला। अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने जहां बिल में खामियां बताई, वहीं अन्ना हजारे और उनके साथियों ने संसद में रखे गए बिल को उसी स्वरूप में स्वीकार किया। केंद्र सरकार ने सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई लेकिन इस बैठक में केंद्र सरकार को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी नहीं आई और उसने लोकपाल और लोकायुक्त बिल 2011 के स्वरूप पर आपत्ति उठा दिया। कांग्रेस ने इस बिल को पास कराने के लिए कमर कस ली थी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस लोकपाल बिल को देश की जरूरत बताया। दो दिनों तक राज्यसभा और लोकसभा में इस बिल को लेकर बहस चली, लेकिन कांग्रेस ने सबकुछ पहले से तय कर रखा था। राज्यसभा में 17 दिसंबर को देर शाम बिल पास होते ही देश में भ्रष्टाचार खत्म करने वाले इस बिल के कानून बनने कि सबसे बड़ी बाधा पार हो चुकी थी। वजह साफ थी बिल को लोकसभा में रोड़ा अटकाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही साफ कर दिया था कि अगर राज्यसभा से बिल पास हो गया तो वह लोकसभा में इस बिल के पास होने पर रोड़ा नहीं अटकाएंगे। करीब 32 महीने बाद आज समाजवादी पार्टी के लोकसभा से बहिर्गमन के बाद देश को वो बहुप्रतीक्षित बिल मिल गया, जिसे हथियार बनाकर अब देश का कोई भी नागरिक बड़े से बड़े अधिकारी, नेता, और मंत्रियों के खिलाफ भी आवाज बुलंद कर सकेगा।



No comments:

Post a Comment