Tuesday, 12 November 2013

युगद्रष्टा थे पंडित नेहरु

जवाहर लाल नेहरू हमारी पीढ़ी के एक महानतम व्यक्ति थे। वह एक ऐसे अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे, जिनकी मानव-मुक्ति के प्रति सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी। स्वाधीनता-संग्राम के योद्धा के रूप में वह यशस्वी थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनका अंशदान अभूतपूर्व था।


आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के बाद कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ऐसी नींव रखी जिस पर भारत का भविष्य निर्मित हुआ। आजादी के बाद अपने विचारों और नीतियों की वजह से वह भारत के युगद्रष्टा बन गए। भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में नेहरू का महत्त्व उनके द्वारा आधुनिक जीवन मूल्यों और भारतीय परिस्थतियों के लिए अनुकूलित विचारधाराओं के आयात और प्रसार के कारण है। धर्मनिरपेक्षता और भारत की जातीय तथा धार्मिक विभिन्नताओं के बावजूद देश की मौलिक एकता पर जोर देने के अलावा नेहरू भारत को वैज्ञानिक खोजों और तकनीकी विकास के आधुनिक युग में ले जाने के प्रति भी सचेत थे। अपने देशवासियों में निर्धनों तथा अछूतों के प्रति सामाजिक चेतना की जरूरत के प्रति जागरुकता पैदा करने और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान पैदा करने का भी कार्य उन्होंने किया। उन्हें अपनी एक उपलब्धि पर विशेष गर्व था कि उन्होंने प्राचीन हिंदू सिविल कोड में सुधार कर अंतत: उत्तराधिकार तथा संपत्ति के मामले में विधवाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्रदान करवाया।
नेहरू का जन्म कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह परिवार 18वीं शताब्दी के आरंभ में इलाहाबाद आ गया था। इलाहाबाद में बसे इसी परिवार में उनका जन्म 14 नवंबर 1889 को हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित मोतीलाल नेहरू और माता का नाम श्रीमती स्वरूप रानी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। 15 वर्ष की उम्र में 1905 में नेहरू इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भेजे गए। हैरो में दो वर्ष तक रहने के बाद नेहरू केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज पहुंचे जहां उन्होंने तीन वर्ष तक अध्ययन कर विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की। कैम्ब्रिज छोड़ने के बाद लंदन के इनर टेंपल में दो वर्ष बिताकर उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। भारत लौटने के चार वर्ष बाद मार्च 1916 में नेहरू का विवाह कमला कौल के साथ हुआ। कमला दिल्ली में बसे कश्मीरी परिवार की थीं। दोनों की अकेली संतान इंदिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 1917 में हुआ। दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें ह्यपूर्ण स्वराज्यह्ण की मांग की गई। 26 जनवरी, 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। जवाहर लाल नेहरु 1930 और 1940 के दशक में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। 1947 में भारत को आजादी मिलने पर वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में ह्यगुटनिरपेक्षह्ण नीतियों की शुरूवात जवाहरलाल नेहरु द्वारा हई। पंचायती राज के हिमायती नेहरु जी का कहना था कि:-
अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से, आज का बड़ा सवाल विश्वशान्ति का है। आज हमारे लिए यही विकल्प है कि हम दुनिया को उसके अपने रूप में ही स्वीकार करें। हम देश को इस बात की स्वतन्त्रता देते रहे कि वह अपने ढंग से अपना विकास करे और दूसरों से सीखे, लेकिन दूसरे उस पर अपनी कोई चीज नहीं थोपें। निश्चय ही इसके लिए एक नई मानसिक विधा चाहिए। पंचशील या पाँच सिद्धान्त यही विधा बताते हैं।ह्ल 27 मई 1964 की सुबह जवाहर लाल नेहरु जी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, डॉक्टरों के अनुसार उन्हे दिल का दौरा पङा था। दोपहर दो बजे नेहरु जी इह लोक छोङकर परलोक सिधार गये।
हमारी विदेश नीति का मूलाधार आज भी नेहरू का दिया हुआ ही है। समय के साथ विदेश नीति में बदलाव तो होता रहता है लेकिन बुनियादी अवधारणा में आज भी कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। भारत के आजाद होने से पहले ही कांग्रेस पार्टी ने 1925 में विदेशी मामलों की एक इकाई बनायी जिसके अध्यक्ष पंडित नेहरू थे। उसी समय उन्होंने औपनिवेशिक देशों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास शुरू कर दिया जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहे। आजादी से पहले ही नेहरू ने यूरोप और कई देशों की यात्रा की थी। उन्होंने कई औपनिवेशिक देशों के नेताओं से संपर्क स्थापित किया. यहां तक की औपनिवेशिक देशों की एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस भी आयोजित की गयी थी। यही वजह है कि आजादी के बाद हमें कई सारे राष्ट्रों से संबंध स्थापित करने में किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
आजादी के समय की तत्कालीन परिस्थितियों को भांपते हुए नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। दो ध्रुवीय शक्तिशाली गुटों के बीच संतुलन बनाने की उसी नीति पर भारत आज भी खड़ा है हालांकि आज दुनिया में एकमात्र महाशक्ति बची हुई है। गुटनिरपेक्षता का यह मतलब नहीं है कि भारत किसी खास देश से संबंध रखेगा या अमुक देश से नहीं रखेगा। गुटनिरपेक्षता का मतलब यह है कि भारत किसी भी गुट की नीतियों का समर्थन नहीं करेगा और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बरकरार रखेगा। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू एक ऐसे युगद्रष्टा थे जिन्होंने आने वाले समय की पदचाप को सुना और शायद यही वजह है कि उन्होंने न केवल आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की बल्कि देश में उद्योग धंधों की भी शुरूआत की। नेहरू इन उद्योगों को देश के आधुनिक मंदिर मानते थे और वे बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थे। बच्चों में ह्यचाचा नेहरूह्ण के नाम से मशहूर पंडित नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। बच्चों के बीच चाचा नेहरू के नाम से मशहूर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत का जो स्वरूप आज हमारे सामने मौजूद है, उसकी आधारशिला रखी थी। आधुनिक भारत के निर्माण की राह बनाने के साथ ही उन्होंने देश के भावी सामाजिक स्वरूप का खाका भी खींचा था। दुनिया के पटल पर भारत आज अपने जिन मूल्यों आदर्शो के लिए जाना पहचाना जाता है, उसे स्वरूप प्रदान करने का श्रेय एक हद तक नेहरू को दिया जा सकता है। उनके बारे में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ''जवाहर लाल नेहरू हमारी पीढ़ी के एक महानतम व्यक्ति थे। वह एक ऐसे अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे, जिनकी मानव-मुक्ति के प्रति सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी। स्वाधीनता संग्राम के योद्धा के रूप में वह यशस्वी थे और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए उनका अंशदान अभूतपूर्व था।''


(लेखक अधिवक्ता हैं)

1 comment:

  1. ज्ञानवर्धक लेख है। काफी विस्तृत जानकारी दी है आपने। इसे बरक़रार रखें।

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