Thursday, 24 October 2013

नहीं रहे मन्ना डे


महान पार्श्‍व गायक लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह गए हैं। दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले मन्ना डे 94 वर्ष के थे। वह काफी समय से बीमार थे। फेफड़े में सक्रमण से जूझ रहे थे। आयु के साथ आने वाली बीमारियों से अधिक कष्ट उन्हें इस बात का हुआ हो सकता है कि उनकी बेटी और दामाद ने उनके रिश्तेदार पर आरोप लगाया है कि इलाज के नाम पर उसने बैंक से पैसा निकालकर अपनी पत्नी के नाम कर दिया है। मन्ना डे कोलकाता में कुछ जमीन भर छोड़ गए हैं और कुछ महीने पहले तक मात्र बारह लाख रुपए उनके बैंक में जमा थे। इस तरह के विवाद प्राय: मृत्यु के बाद होते हैं। दुर्भाग्यवश यह उन्‍हें जीते जी झेलना पड़ा। मन्ना डे समझते रहे कि ‘ऐ भाई जरा देखके चलो, ये सर्कस है शो तीन घंटे का'। मन्ना डे कभी दुनियादार नहीं रहे, इसीलिए इतने गुणवान होकर भी उन्होंने बहुत धन जमा नहीं किया और कर लेते तो शायद और कलह होता। धन का अपना महत्व है, परंतु उसके पीछे पागलों की तरह दौड़कर उसका संचय करना कभी जीवन का ध्येय नहीं हो सकता।
ऐ मेरे प्यारे वतन, लागा चुनरी में दाग और पूछो न कैसे जैसे सदाबहार गीतों के जरिए पांच दशकों से भी अधिक समय तक अपने संगीत का जादू बिखेरने वाले प्रख्यात पार्श्व गायक मन्ना डे का लंबी बीमारी के बाद अस्पताल में निधन हो गया।नारायण हृदयालय अस्पताल प्रवक्ता वासुकी ने बताया कि 94 वर्षीय मन्ना डे का तड़के तीन बजकर 50 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उनका पिछले पांच महीने से सांस और गुर्दे संबंधी समस्याओं के कारण अस्पताल में उपचार चल रहा था। भारतीय शास्त्रीय संगीत में पॉप का जुझारुपन घोलने वाले सुरों के सरताज मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उस स्वर्ण युग के प्रतीक थे जहां उन्होंने अपनी अनोखी शैली और अंदाज से पूछो ना कैसे मैंने, ए मेरी जोहराजबीं और लागा चुनरी में दाग जैसे अमर गीत गाकर खुद को अमर कर दिया था।
मोहम्मद रफी , मुकेश और किशोर कुमार की तिकड़ी का चौथा हिस्सा बनकर उभरे मन्ना डे ने 1950 से 1970 के बीच हिंदी संगीत उद्योग पर राज किया। पांच दशकों तक फैले अपने करियर में डे ने हिंदी, बंगाली, गुजराती , मराठी, मलयालम , कन्नड और असमी में 3500 से अधिक गीत गाये और 90 के दशक में संगीत जगत को अलविदा कह दिया। 1991 में आयी फिल्म प्रहार में गाया गीत हमारी ही मुट्ठी में  उनका अंतिम गीत था।
महान गायक आज बेंगलूर में 94 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हो गये।  यह संगीत की दुनिया का वह दौर था , जब रफी, मुकेश और किशोर फिल्मों के नायकों की आवाज हुआ करते थे लेकिन मन्ना डे अपनी अनोखी शैली के लिए एक खास स्थान रखते थे। रवींद्र संगीत में भी माहिर बहुमुखी प्रतिभा मन्नाडे ने पश्चिमी संगीत के साथ भी कई प्रयोग किए और कई यादगार गीतों की धरोहर संगीत जगत को दी।
पिछले कुछ सालों से बेंगलूर को अपना ठिकाना बनाने वाले मन्ना डे ने 1943 में तमन्ना फिल्म के साथ पार्श्व गायन में अपने करियर की शुरुआत की थी। संगीत की धुनें उनके चाचा कृष्ण चंद्र डे ने तैयार की थीं और उन्हें सुरैया के साथ गीत गाना था। और सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं रातों रात हिट हो गया जिसकी ताजगी आज भी कायम है।
1950 में मशाल उनकी दूसरी फिल्म थी जिसमें मन्ना डे को एकल गीत ऊपर गगन विशाल गाने का मौका मिला जिसे संगीत से सजाया था सचिन देव बर्मन ने।  1952 में डे ने एक ही नाम और कहानी वाली बंगाली तथा मराठी फिल्म अमर भुपाली  के लिए गीत गाए और खुद को एक उभरते बंगाली पार्श्वगायक के रूप में स्थापित कर लिया। डे साहब की मांग दुरुह राग आधारित गीतों के लिए अधिक होने लगी और एक बार तो उन्हें 1956 में बसंत बहार फिल्म में उनके अपने आदर्श भीमसेन जोशी के मुकाबले में गाना पड़ा। केतकी, गुलाब , जूही  बोल वाले इस गीत को शुरू में उन्होंने गाने से मना कर दिया था।
शास्त्रीय संगीत में उनकी पारंगता के साथ ही उनकी आवाज में एक ऐसी अनोखी कशिश थी कि आज तक उनकी आवाज को कोई कापी करने का साहस नहीं जुटा सका।
यह मन्ना डे की विनम्रता ही थी कि उन्होंने बतौर गायक उनकी प्रतिभा को पहचानने का श्रेय संगीतकार शंकर जयकिशन की जोड़ी को दिया। डे ने शोमैन राजकपूर की आवारा, श्री 420 और चोरी चोरी फिल्मों के लिए गाया। उन्होंने अपनी आत्मकथा  मैमोयर्स कम अलाइव में लिखा है ,  मैं शंकरजी का खास तौर से ऋणी हूं। यदि उनकी सरपरस्ती नहीं होती तो जाहिर सी बात है कि मैं उन ऊचाइयों पर कभी नहीं पहुंच पाता जहां आज पहुंचा हूं। वह एक ऐसे शख्स थे जो जानते थे कि मुझसे कैसे अच्छा काम कराना है।
वास्तव में , वह पहले संगीत निदेशक थे जिन्होंने मेरी आवाज के साथ प्रयोग करने का साहस किया और मुझसे रोमांटिक गीत गवाये।  मन्ना डे के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में दिल का हाल सुने दिलवाला, प्यार हुआ इकरार हुआ , आजा सनम , ये रात भीगी भीगी , ऐ भाई जरा देख के चलो , कसमे वादे प्यार वफा और यारी है ईमान मेरा शामिल है।
मन्ना डे ने कुछ धार्मिक फिल्मों में गाने क्या गाएं उन पर धार्मिक गीतों के गायक का ठप्पा लगा दिया गया। ‘प्रभु का घर’, ‘श्रवण कुमार’, ‘जय हनुमान’, ‘राम विवाह’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने गीत गाए। इसके अलावा बी-सी ग्रेड फिल्मों में भी वो अपनी आवाज देते रहें। भजन के अलावा कव्वाली और मुश्किल गीतों के लिए मन्ना डे को याद किया जाता था। इसके अलावा मन्ना डे से उन गीतों को गंवाया जाता था, जिन्हें कोई गायक गाने को तैयार नहीं होता था। धार्मिक फिल्मों के गायक की इमेज तोड़ने में मन्ना डे को लगभग सात सात लगे।

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