Friday, 20 December 2013

नजर 17 जनवरी, 2014 पर


हाल ही में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने जैसे ही कहा कि लोकसभा चुनाव से पूर्व पार्टी अपना चेहरा जाहिर कर सकती है, मीडिया में कयासों का दौर शुरू हो गया। उसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने कार्यसमिति की बैठक 17 जनवरी को होने की बात कही और साथ ही कहा कि उसमें कई अहम फैसले लिए जा सकते हैं। बस, क्या था? कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी को लेकर हर तरफ कयास लगाए जाने लगे।
यकीन मानिए, जैसे पार्टी की ओर से कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी को आगे के लिए प्रोजेक्ट किया जाता है, हर कांग्रेसी का उत्साह दोगुना हो जाएगा। याद कीजिए, बीते जयपुर में पार्टी का चिंतन शिविर का दृश्य। चिंतन शिविर के नतीजों से पार्टी के तमाम नेता, कार्यकर्ता, प्रशंसक और समर्थक खासे उत्साहित दिखे थे। दरअसल, उत्साहित होने की वजह भी थी। वजह यह कि चिंतन शिविर के समापन के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को पदोन्नत कर एक अहम जिम्मेदारी का पद (पार्टी उपाध्यक्ष) सौंपने का फैसला लिया गया। उसके बाद श्री राहुल गांधी पार्टी महासचिव नहीं, बल्कि पार्टी उपाध्यक्ष की हैसियत से कामकाज देखने के लिए अधिकृत हुए थे।
अब सबकी नजर 17 जनवरी, 2014 पर है। कांग्रेस नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में पहुंचने वाले पार्टी के ‘यूथ आइकन’ एवं भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में देखे जा रहे राहुल गांधी के नाम का ऐलान हो सकता है। इसके साथ ही उनके समक्ष पार्टी का जनाधार बढ़ाने और युवा मतदाताओं की बढ़ती संख्या को पार्टी के पक्ष में करने का चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। हमें जेहन में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का वह वक्तव्य भी याद रखना होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश बदल रहा है और इस बदलाव में युवाओं की आवाज की अनदेखी कर हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। युवा बढ़ रहे हैं। भारत बदल रहा है। हमें भी खुद को बदलना होगा। यह पीढ़ी चाहती है कि उसकी आवाज सुनी जाए।
निश्चित रूप से हाल के दिनों में 128 साल पुरानी और देश की सबसे बड़ी व ऐतिहासिक कांग्रेस पार्टी में इस पदोन्नति के साथ राहुल गांधी की जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों में इजाफा होगा। कांग्रेस उपाध्यक्ष बनाए जाने से पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव राहुल गांधी ने वर्ष 2009 में संप्रग को सत्ता में लाने और उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुनरुत्थान में मदद करने लिए अपने अभिभावक नेताओं की छत्रछाया से उबरते हुए खुद के राजनीतिक कद में बढ़ोतरी की थी। उन्होंने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्याशित खुशी दिलाई और अब पार्टी केंद्र में तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए उनकी ओर देखने की जुगत भिड़ा रही है। कहते हैं कि बड़े ओहदे के साथ बड़ी जिम्मेदारियां भी आती हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी पहले दागी नेताओं को बचाने के लिए ऑर्डिनेंस को नॉनसेंस बताकर सरकार को झुकने को मजबूर किया, तो अब लोकपाल को संसद में पास कराने में अपनी सक्रियता दिखाई। इतना ही नहीं, करप्शन के तमाम लंबित बिल को पास कराने की मांग को लेकर संसद का सत्र बढ़ाने तक का आग्रह किया। 

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