सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व बड़ी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। स्वर्ण मंदिर समेत आज देशभर के गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन का दौर जारी है। गुरुनानक देव जी के पावन प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों रौशनी से सराबोर है। रात से ही स्वर्ण मंदिर समेत सभी गुरुद्वारों में श्रद्दालुओं का तांता लगना शुरू हो गया। सिखों के पहले गुरु, नानक देव जी के प्रकाश पर्व को समर्पित एक विशाल आलौकिक नगर कीर्तन श्री अकाल तख्त साहिब से पांच प्यारों के नेतृत्व में शुरू हुआ। जो शहर के विभिन्न हिस्सों से होता हुआ वापस श्री हरमंदिर साहिब में सपन्न हुआ। रास्ते में नगर कीर्तन का समूह संगत ने उत्साह के साथ स्वागत किया और पुष्पवर्षा की।
गुरुनानक देवजी सिख धर्म के संस्थापक ही नहीं, अपितु मानव धर्म के उत्थापक थे। वे केवल किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि के जगद्गुरु थे। 'नानक शाह फकीर। हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर। उनका जन्म पूर्व भारत की पावन धरती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 को लाहौर से करीब 40 मील दूर स्थित तलवंडी नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम कल्याणराय मेहता तथा माता का नाम तृपताजी था। भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस संसार के प्राणियों की त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर गुरुनानक को पहुँचाया, 'सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग महि पठाइया।' उनके इस धरती पर आने पर 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधू जगि चानणु होआ' सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था। उनके मस्तक के पास तेज आभा फैली हुई थी। पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वर ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। बचपन से ही गुरु नानक का मन आध्यात्मिक ज्ञान एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता। बैठे-बैठे ध्यान मग्न हो जाते और कभी तो यह अवस्था समाधि तक भी पहुँच जाती।
गुरुनानक देवजी का जीवन एवं धर्म दर्शन युगांतकारी लोकचिंतन दर्शन था। उन्होंने सांसारिक यथार्थ से नाता नहीं तोड़ा। वे संसार के त्याग संन्यास लेने के खिलाफ थे, क्योंकि वे सहज योग के हामी थे। उनका मत था कि मनुष्य संन्यास लेकर स्वयं का अथवा लोक कल्याण नहीं कर सकता, जितना कि स्वाभाविक एवं सहज जीवन में। इसलिए उन्होंने गृहस्थ त्याग गुफाओं, जंगलों में बैठने से प्रभु प्राप्ति नहीं अपितु गृहस्थ में रहकर मानव सेवा करना श्रेष्ठ धर्म बताया। 'नाम जपना, किरत करना, वंड छकना' सफल गृहस्थ जीवन का मंत्र दिया। यही गुरु मंत्र सिख धर्म की मुख्य आधारशिला है। यानी अंतर आत्मा से ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी एवं परिश्रम से कर्म करो तथा अर्जित धन से असहाय, दुःखी पीड़ित, जरूरततमंद इंसानों की सेवा करो। गुरु उपदेश है, 'घाल खाये किछ हत्थो देह। नानक राह पछाने से।' इस प्रकार श्री गुरुनानक देवजी ने अन्न की शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता पर जोर दिया। गुरुजी एक मर्तबा एक गाँव में पहुँचे तो उनके लिए दो घरों से भोजन का निमंत्रण आया। एक निमंत्रण गाँव के धनाढ्य मुखिया का था, दूसरा निर्धन बढ़ई का था।
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