Wednesday, 6 November 2013

अंतरिक्ष में हमारे मजबूत कदम, सोनिया गांधी ने दी बधाई



मंगल ग्रह पर भारत का मिशन मंगल सफलतापूर्वक शुरू हो गया है। करीब 10 महीने बाद भारत का ये बेहद खास मिशन मंगल ग्रह पर पहुंचकर वहां जीवन की तलाश करेगा। मंगल मिशन की सफल शुरुआत पर इसरो को पूरे देश के साथ-साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और तमाम दलों ने बधाई दी है। दरअसल दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर जैसे ही काउंटडाउन खत्म हुआ तो पीछे आग छोड़ता पीएसएलवी रॉकेट भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन पर असीम अंतरिक्ष के लंबे सफर पर चल पड़ा। एक ऐसी मंगल यात्रा पर जो अगर कामयाब हो गई तो लाल ग्रह के रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा और अंतरिक्ष में छुपे तमाम संसाधनों के लिए मची होड़ में भारत अहम शक्ति साबित होगा। शुरुआती 5 मिनट ना सिर्फ इसरो स्पेस सेंटर में बरसों से काम कर रहे तमाम वैज्ञानिकों के लिए तनाव भरे थे, बल्कि पूरा देश इस ऐतिहासिक लम्हे के हर पल पर नजर रखे हुए था। 2 बजकर 47 मिनट पर इसरो से खबर आई कि सारे सिस्टम ठीक काम कर रहे हैं। रॉकेट सही दिशा में है। और फिर अपने तय समय 3 बजकर 20 मिनट पर मंगलयान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया। खुद इसरो के मुखिया सामने आए और उन्होंने ये खुशखबरी देश और दुनिया को दी।

देश के प्रथम मंगल यान को लेकर एक प्रक्षेपण यान के प्रस्थान करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों को बधाई दी। प्रक्षेपण यान आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से मंगलवार को छोड़ा गया। सोनिया गांधी ने एक बयान में कहा, हमारे महान वैज्ञानिकों के इस विशिष्ट प्रयास पर हर भारतीय को गर्व है। गौरतलब है कि अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत ने आज इतिहास रच दिया है हिंदुस्तान का मंगलयान लाल ग्रह के लिए उड़ान भर चुका है।
आइआरएनएसएस- 1ए के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत भी उन चंद देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके नेविगेशन उपग्रह अंतरिक्ष में मौजूद हैं. सात उपग्रहों पर आधारित यह नेविगेशन प्रणाली 2015 तक पूरी तरह अंतरिक्ष में स्थापित हो जायेगी. इसका उपयोग जमीन, समुद्र और अंतरिक्ष में नेविगेशन और आपदा प्रबंधन और वाहन की स्थिति का पता लगाने, मोबाइल फोनों के एकीकरण, सही वक्त बताने, नक्शा बनाने, यात्रियों द्वारा नेविगेशन में मदद लेने और ड्राइवरों द्वारा विजुअल तथा वायस नेविगेशन के लिए किया जा सकेगा.
इसके जरिये किसी वाहन पर जा रहे लोगों पर नजर रखी जा सकती है, जो उत्तराखंड जैसी आपदा की स्थिति में उपयोगी सिद्ध होगा. इससे अमेरिकी नेविगेशन जीपीएस पर हमारी निर्भरता धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी. कम पूंजी के बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों ने सूझ-बूझ से दुनिया के सबसे सस्ते अंतरिक्ष कार्यक्र म को सफल बनाया है. यह न केवल अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारी बेमिसाल उपलिब्ध है, बल्कि इससे अंतरिक्ष तकनीक के मामले में हमारी साख भी बढ़ी है.
‘मंगलयान’ के लिए अंतरिक्ष में 25 करोड़ किलोमीटर का सफर आसान नहीं है। इस दौरान ‘मंगलयान’ को सौर विकिरण का खतरा होगा। इसे बेहद कम और बेहद ज्यादा तापमान से गुजरते हुए अपने उपकरणों को बचाना होगा। इतना ही नहीं डीप स्पेस में जरा सी चूक अंतकाल तक के लिए किसी भी यान को भटका सकती है। इससे बचने के लिए भारत के काबिल वैज्ञानिकों ने कई इंतजाम किए हैं। पूरे मंगलयान को सुनहरे रंग के कवर से लपेटा गया है। ये कवर खास कंबल का काम करेगा जो उसे गर्मी और सर्दी दोनों से बचाएगा।
मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को ही छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया था। मंगल की अपनी असली यात्रा मंगल यान एक दिसंबर को शुरू करेगा और अगले साल 24 सितंबर तक मंगल की कक्षा में पहुंचकर वहां से डाटा भेजना शुरू करेगा। मगर इस राह में चुनौतियां हजार हैं क्योंकि साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं जिनमें से एक तिहाई नाकाम रहे हैं। और तो और अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है।
फिर वो चाहे अंतरिक्ष में मानवयुक्त यान भेजने वाला चीन हो या फिर जापान। भारत से उम्मीदें बहुत हैं क्योंकि चंद्रयान और कई सैटेलाइट्स की कामयाबी से दुनिया की नजर भारत की ओर है। अगर भारत को कामयाबी मिलती है तो वो अमेरिका, रूस और यूरोपियन यूनियन के बाद चौथा ऐसा देश होगा।
फिलहाल अमेरिका का क्यूरोसिटी मंगल की जमीन पर काम कर रहा है और वहां से तमाम जानकारियां भेज रहा है। क्यूरोसिटी से मिली तस्वीरों से ये तो साफ है कि मंगल के दो ध्रुवों में बर्फ के रूप में पानी है लेकिन मंगल पर मीथेन गैस या फिर यूं कहें कि जीवन के सबूत खोजने का ये मिशन भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है। मंगलयान को सफलतापूर्वक लॉन्च कर और उसे पृथ्वी की कक्षा में कामयाबी से स्थापित कर इसरो ने पहली जंग जीत ली है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, नेता विपक्ष और बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी समेत पूरे देश ने इस कामयाबी पर वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
इंसान के मंगलकारी भविष्य के लिए 25 करोड़ किलोमीटर लांघने निकल चुका है हिंदुस्तान का मंगलयान। उसे जाना है अंतरिक्ष में पृथ्वी के पड़ोस तक, यानि मंगल या मार्स तक, वो ग्रह जिसका नाम ग्रीक युद्ध के देवता के नाम पर पड़ा। पृथ्वी का सबसे करीबी भाई, वो भाई जो बुरी तरह जंग खाया हुआ है और इसी व्रुाह से लाल या गाढ़ा भूरा दिखता है। जो रहस्य और रोमांच से भरपूर है। मंगल मित्रवत नहीं है, इसका पारा कभी बेहद गर्म तो कभी बेहद ठंडा पड़ता रहता है। जहां हैं तो सिर्फ रेगिस्तान और शायद ठंडे सोते ज्वालामुखी, जहां शायद कहीं छिपा है पानी और कहीं गहरे दबे हैं जीवन के अवशेष।

1 comment:

  1. kafi achhi jankari di hai aapne... keep it up sir jee

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