दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव सरफराज अहमद सिद्दीकी तेज तर्रार अधिवक्ता हैं। साथ ही दिल्ली की राजनीति पर गहरी पकड़ रखते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम और उसके बाद की स्थिति सहित कई अहम मुद्दों पर उन्होंने बेबाक राय रखी। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :
0 दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम को किस रूप में देखते हैं?
जनता ने जो जनादेश दिया है, हम उसका सम्मान करते हैं। आखिर, हमारी पार्टी के हार के कौन-कौन से कारण रहे, इस पर विचार-विमर्श हो रहा है।
0 ‘आप’ ने जिस प्रकार का प्रदर्शन किया है, उसकी उम्मीद थी आपको?
राजनीति में कई बातें अनायास ही होती हैं। लेकिन यह सार्वभौमिक सत्य है कि लोकतंत्र में जनादेश सबसे अहम होता है। हमारी पार्टी ने 15 वर्षों तक दिल्ली की जनता का सेवा किया है। दिल्ली की जनता ने जो जनादेश दिया है, हम उसका सम्मान करते हैं।
0 कहा जा रहा है कि 1998 में प्याज के मुद्दे पर सुषमा स्वराज की सरकार चली गई थी। 2013 में शीला दीक्षित का हाल भी उसी तर्ज पर हुआ?
देखिए, प्याज और महंगाई एक मुद्दा जरूर था। लेकिन इसके साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिन्होंने प्याज स्टोर कर रखे थे, वे भारतीय जनता पार्टी के ही लोग थे। सुषमा स्वराज के हारने के कई और कारण थे। आपको याद होगा, उस समय भाजपा ने तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले थे। इस बार भी कांग्रेस केवल महंगाई और प्याज के मुद्दे पर नहीं हारी है। चुनाव के दौरान प्याज आदि के दाम कुछ ताकतों ने जानबूझकर बढ़ाए। कुछ तो ऐसा था, नहीं तो चुनाव के एक दिन बाद ही प्याज कैसे सस्ता हो गया? जो चुनाव से पहले 100 रुपये किलो तक पहुंच गया था।
0 तो आपकी नजर में कौन-कौन से कारण थे?
वर्तमान में फौरी तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। पार्टी के भीतर मंथन जारी है। तमाम बातें आपके सामने होगी।
0 क्या ‘आप’ सरकार बनाएगी या भाजपा?
आखिर इस बारे में हम कैसे तय कर सकते हैं? सच तो यही है कि किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। यह तय दोनों पार्टियों को तय करना होगा।
0 आपकी पार्टी के कई नेता आप के साथ सरकार बनाने की बात कह रहे हैं?
हमन जनसरोकार की राजनीति करते आ रहे हैं। दिल्ली की जनता के हित में जो भी फैसला होगा, उसके लिए कांग्रेस पार्टी विचार कर रही है।
0 कांग्रेस की दिल्ली में आगे की रणनीति क्या होगी?
आज की तारीख में बात करूं तो पार्टी रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएगी और फिर से जनता का विश्वास हासिल करने के लिए काम करेगी। कांग्रेस हमेशा आम जनता से जुड़ी रही है। कांग्रेस ने आम आदमी के लिए काम किया है। पार्टी द्वारा जनता की भावनाओं को समझने में अगर कोई कसर रह गई होगी, तो उसका आंकलन किया जाएगा। इस बात का भी पता लगाया जाएगा कि पार्टी कहीं विरोधियों की चुनावी तकनीकों का शिकार तो नहीं हुई है।
0 दिल्ली को लोग बीते कुछ अरसे से ‘रेप कैपिटल’ भी कहने लगे हैं, आप इससे सहमत हैं?
यह राजधानी के साथ अन्याय है। हम इससे सहमत नहीं हैं।
0 चूंकि आप अधिवक्ता भी हैं, इसलिए आपसे एक सवाल यह कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जो धारा 377 को लेकर आदेश दिया है, उसे किस रूप में देखते हैं?
देखिए, दिल्ली उच्च न्यायालय के 2009 में दिए गए फैसले के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को बदलने के लिए कोई संवैधानिक गुंजाइश नहीं है। धारा 377 के तहत दो व्यस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध माना गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 377 के तहत समलैगिक रिश्ते को गैरआपराधिक कृत्य करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सरकार धारा 377 में बदलाव को लेकर गंभीर है। केंद्र सरकार इस मामले को गैर आपराधिक बनाने पर विचार कर रही है। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने भी इस मामले को संसद में उठाने की बात कही है। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने भी कहा है कि अब संसद में धारा 377 में बदलाव करना ही एकमात्र उपाय है। सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने भी कहा कि जरूरत पड़ने पर संसद में इस पर चर्चा की जाएगी।
0 आप दो दशक से अधिक समय से राजधानी दिल्ली में निवास कर रहे हैं। शहर में अक्सर जाम की स्थिति भी तो बनी रहती है?
देखिए, जिस हिसाब से दिल्ली की आबादी बढ़ रही है और राजनीतिक दलों की वजह से रोज-रोज होने वाले धरने प्रदर्शन भी टैÑफिक जाम के महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं।
0 आगामी चुनाव में आपकी लड़ाई सीधे-सीधे भाजपा से है या आम आादमी पार्टी से?
हमारी लड़ाई सीधे-सीधे राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ से है। भाजपा से अपनी कोई लड़ाई नहीं है। 2014 में न कहीं मोदी हैं और न ही कहीं भाजपा है। अगर है तो सिर्फ और सिर्फ आर एस एस।
0 लेकिन नरेंद्र मोदी की जनसभाओं में उमड़ रही भीड़ को आप लोग नजर अंदाज कैसे कर सकते हैं?
वह भीड़ सुनियोजित और प्रायोजित होती है, उसका वोटों से कोई लेना-देना नहीं होता।
0 क्या चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भी नरेंद्र मोदी को आप लोग हलके में क्यों ले रहे हैं?
नरेंद्र मोदी की और उनके गुजरात मॉडल की पोल खुल चुकी है। वास्तविकता के धरातल जिन राज्यों में भाजपा ने सत्ता हासिल की है, वहां सच्चाई कुछ और है।
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