आंध्र-प्रदेश के एक कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीवा रेड्डी एक अनुभवी राजनेता ही नहीं बल्कि एक अच्छे कवि और कुशल प्रशासक भी थे. वह विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रवादी व्यक्तित्व के इंसान थे. एक सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से संबंधित होने के कारण उनका स्वभाव बेहद सामान्य था. वह एक पक्के राष्ट्रवादी व्यक्ति थे.नीलम संजीवा रेड्डी भारत के छठें और अब तक के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार असफल हुए थे, जबकि दूसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने पर राष्ट्रपति पद के लिए इनका चुनाव निर्विरोध हुआ था. नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई, 1913 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के एक कृषक परिवार में हुआ था. इनका परिवार एक संभ्रांत और भगवान में आस्थावान था. नीलम संजीवा रेड्डी के पिता नीलम चिनप्पा रेड्डी कॉग्रेस के पुराने कार्यकर्ता और प्रसिद्ध नेता टी. प्रकाशम के साथी थे. नीलम संजीवा रेड्डी की प्रारंभिक शिक्षा थियोसोफिकल हाई स्कूल अडयार, मद्रास में सम्पन्न हुई थी. आगे की पढ़ाई उन्होंने आर्ट्स कॉलेज अनंतपुर से प्राप्त की. महात्मा गांधी से प्रभावित होकर जब लाखों युवा पढ़ाई-लिखाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद रहे थे तो नीलम संजीवा रेड्डी भी मात्र अठारह वर्ष की आयु में स्वतंत्रता आंदोलनों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने लगे थे. इस दौरान उन्हें कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी.
मात्र अठारह वर्ष की आयु में नीलम संजीवा रेड्डी स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे. इतना ही नहीं, महात्मा गांधी से प्रभावित होकर विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने पहला सत्याग्रह भी किया. उन्होंने युवा कॉग्रेस के सदस्य के रूप में अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की. बीस वर्ष की उम्र में ही नीलम संजीवा रेड्डी काफी सक्रिय हो चुके थे. सन 1936 में नीलम संजीवा रेड्डी आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के सामान्य सचिव निर्वाचित हुए. उन्होंने इस पद पर लगभग 10 वर्षों तक कार्य किया. नीलम संजीव रेड्डी संयुक्त मद्रास राज्य में आवासीय वन एवं मद्य निषेध मंत्रालय के कार्यों का भी सम्पादन करते थे. 1951 में इन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, ताकि आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग ले सकें. इस चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी प्रोफेसर एन.जी. रंगा को हराकर अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. इसी वर्ष यह अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति और केन्द्रीय संसदीय मंडल के भी निर्वाचित सदस्य बन गए. नीलम संजीवा रेड्डी ने कांग्रेस पार्टी के तीन सत्रों की अध्यक्षता की. 10 मार्च, 1962 को इन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और यह 12 मार्च, 1962 को पुन: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वह इस पद पर दो वर्ष तक रहे. उन्होंने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दिया था. 1964 में नीलम संजीवा रेड्डी राष्ट्रीय राजनीति में आए और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इन्हें केन्द्र में स्टील एवं खान मंत्रालय का भार सौंप दिया. इसी वर्ष वह राज्यसभा के लिए भी मनोनीत हुए और 1977 तक इसके सदस्य रहे. 1971 में जब लोक सभा के चुनाव आए तो नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस-ओ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन इन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस हार से श्री रेड्डी को गहरा धक्का लगा. वह अनंतपुर लौट गए और अपना अधिकांश समय कृषि कार्यों में ही गुजारने लगे. एक लम्बे अंतराल के बाद 1 मई, 1975 को श्री नीलम संजीव रेड्डी पुन: सक्रिय राजनीति में उतरे. जनवरी 1977 में यह जनता पार्टी की कार्य समिति के सदस्य बनाए गए और छठवीं लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की ओर से आंध्र प्रदेश की नंड्याल सीट से उन्होंने अपना नामांकन पत्र भरा. जब चुनाव के नतीजे आए तो वह आंध्र प्रदेश से अकेले गैर कांग्रेसी उम्मीदवार थे, जो विजयी हुए थे. 26 मार्च, 1977 को श्री नीलम संजीव रेड्डी को सर्वसम्मति से लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया. लेकिन 13 जुलाई, 1977 को उन्होने यह पद छोड़ दिया क्योंकि इन्हें राष्ट्रपति पद हेतु नामांकित किया जा रहा था, जिसमें नीलम संजीव रेड्डी सर्वसम्मति से निर्विरोध आठवें राष्ट्रपति चुन लिए गए. नीलम संजीवा रेड्डी को श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, त्रिमूर्ति द्वारा 1958 में सम्मानार्थ डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई.
राष्ट्रपति पद का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के चौदह वर्ष बाद नीलम संजीवा रेड्डी का निधन हो गया. नीलम संजीवा रेड्डी के जीवन वृत्तांत पर नजर डालें तो यह स्वीकार करना होगा कि उन्होंने राजनीति में रहते हुए उसकी गरिमा का सदैव पालन किया. राष्ट्रवादी सोच और राजनीतिज्ञ के रूप में इनका अनुशासन भाव निश्चय ही प्रंशसनीय रहा है. नीलम संजीवा रेड्डी ने एक राष्ट्रपति के रूप में भी संवैधानिक मर्यादाओं का सफलतापूर्वक निर्वहन किया था.
मात्र अठारह वर्ष की आयु में नीलम संजीवा रेड्डी स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे. इतना ही नहीं, महात्मा गांधी से प्रभावित होकर विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने पहला सत्याग्रह भी किया. उन्होंने युवा कॉग्रेस के सदस्य के रूप में अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की. बीस वर्ष की उम्र में ही नीलम संजीवा रेड्डी काफी सक्रिय हो चुके थे. सन 1936 में नीलम संजीवा रेड्डी आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के सामान्य सचिव निर्वाचित हुए. उन्होंने इस पद पर लगभग 10 वर्षों तक कार्य किया. नीलम संजीव रेड्डी संयुक्त मद्रास राज्य में आवासीय वन एवं मद्य निषेध मंत्रालय के कार्यों का भी सम्पादन करते थे. 1951 में इन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, ताकि आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग ले सकें. इस चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी प्रोफेसर एन.जी. रंगा को हराकर अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. इसी वर्ष यह अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति और केन्द्रीय संसदीय मंडल के भी निर्वाचित सदस्य बन गए. नीलम संजीवा रेड्डी ने कांग्रेस पार्टी के तीन सत्रों की अध्यक्षता की. 10 मार्च, 1962 को इन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और यह 12 मार्च, 1962 को पुन: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वह इस पद पर दो वर्ष तक रहे. उन्होंने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दिया था. 1964 में नीलम संजीवा रेड्डी राष्ट्रीय राजनीति में आए और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इन्हें केन्द्र में स्टील एवं खान मंत्रालय का भार सौंप दिया. इसी वर्ष वह राज्यसभा के लिए भी मनोनीत हुए और 1977 तक इसके सदस्य रहे. 1971 में जब लोक सभा के चुनाव आए तो नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस-ओ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन इन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस हार से श्री रेड्डी को गहरा धक्का लगा. वह अनंतपुर लौट गए और अपना अधिकांश समय कृषि कार्यों में ही गुजारने लगे. एक लम्बे अंतराल के बाद 1 मई, 1975 को श्री नीलम संजीव रेड्डी पुन: सक्रिय राजनीति में उतरे. जनवरी 1977 में यह जनता पार्टी की कार्य समिति के सदस्य बनाए गए और छठवीं लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की ओर से आंध्र प्रदेश की नंड्याल सीट से उन्होंने अपना नामांकन पत्र भरा. जब चुनाव के नतीजे आए तो वह आंध्र प्रदेश से अकेले गैर कांग्रेसी उम्मीदवार थे, जो विजयी हुए थे. 26 मार्च, 1977 को श्री नीलम संजीव रेड्डी को सर्वसम्मति से लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया. लेकिन 13 जुलाई, 1977 को उन्होने यह पद छोड़ दिया क्योंकि इन्हें राष्ट्रपति पद हेतु नामांकित किया जा रहा था, जिसमें नीलम संजीव रेड्डी सर्वसम्मति से निर्विरोध आठवें राष्ट्रपति चुन लिए गए. नीलम संजीवा रेड्डी को श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, त्रिमूर्ति द्वारा 1958 में सम्मानार्थ डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई.
राष्ट्रपति पद का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के चौदह वर्ष बाद नीलम संजीवा रेड्डी का निधन हो गया. नीलम संजीवा रेड्डी के जीवन वृत्तांत पर नजर डालें तो यह स्वीकार करना होगा कि उन्होंने राजनीति में रहते हुए उसकी गरिमा का सदैव पालन किया. राष्ट्रवादी सोच और राजनीतिज्ञ के रूप में इनका अनुशासन भाव निश्चय ही प्रंशसनीय रहा है. नीलम संजीवा रेड्डी ने एक राष्ट्रपति के रूप में भी संवैधानिक मर्यादाओं का सफलतापूर्वक निर्वहन किया था.
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