महंगाई क्यों बढ़ती है, आज तक कोई समझ नहीं पाया। सरकार को महंगाई की सेहत और गति की खासी चिन्ता रहती है, पर वह सरकार की बिगडै़ल बहू जैसी रत्तीभर भी परवाह नहीं करती। सरकार उसके कद को रोकन के लिए घोषणाएं करती है। सरकार कहती है कि वह महंगाई पर लगाम लगाएगी। अब आप ही बताइए कि महंगाई कोई घोड़ी है, जिस पर लगाम कसी जाए। सरकार के इस रवैए से महंगाई चिढ़ जाती है। कई बार सरकार महंगाई से सीधे-सीधे अपील भी करती है पर महंगाई के कानों में जूं तक नही रेंगती, ढीठ जो ठहरी। विपक्षी दलां को बहुत भाती है महंगाई। महंगाई की भरी-पूरी सेहत देख कर उनकी बांछें खिल जाती हैं। महंगाई उन्हें बयान देने, सदन में बोलने और टेलीविजन की खबरों में आने का अवसर देती है। खासतौर पर इलेक्शन इयर में महंगाई का चढ़ता ग्राफ देख कर कुछ विपक्षी मारे खुशी के पागल हो उठते हैं। महंगाई आम आदमी को भले ही कष्ष्ट देती हो, लेकिन विपक्ष वालों को इसमें अवसर दिखाई देता है। वे इसको ऐसे मुद्दे की शक्ल देने में भी माहिर होते हैं, जो मतदान को तेवर देता है। महंगाई की उन्नति में गरीबी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। झुग्गी -झोपड़ी में बड़ी आसानी और तेजी से बढ़ती है महंगाई। गरीबों से अच्छी पट जाती है महंगाई की।
असलियत में देश के आर्थिक-सामाजिक हालात में सुधार का नाम ही वास्तविक विकास है। एक वर्ग के अमीर बनते चले जाने और किसान-मजदूरों के दरिद्र बनते जाने का नाम विकास नहीं बल्कि देश का विनाश है। निरंतर गति से बढ़ती महंगाई और शोषण के बीच चोली-दामन का संबंध है। महंगाई वास्तव में ताकतवर अमीरों द्वारा गरीबों को लूटने का एक अस्त्र है। इस खतरनाक साजिश में सरकारें भी अमीरों के साथ शामिल हैं। वास्तव में सरकार ने बाजार की ताकतों को इतना प्रश्रय और समर्थन दे दिया है कि घरेलू बाजार व्यवस्था सरकारी नियंत्रण से बाहर होकर बेकाबू हो चुकी है। सटोरिए, दलाल और बिचैलिए इसमें सबसे अहम किरदार हो गए हैं। और तय मानिए ये अहम किरदार बिना सरकार की शह के अपनी भूमिका नहीं निभा सकते। जाहिर है जब तक ये किरदार सरकार पर हावी रहेंगे, महंगाई की नई-नई किस्तें देश की जनता के नाम जारी होती रहेंगी।
आम बजट 2015-16 में प्रस्तावित सेवा कर में वृद्धि एक जून 2015 से लागू है। इसके साथ ही वर्तमान में 12.36 फीसदी सेवा कर की दर बढ़कर 14 फीसदी हो जाएगी। महंगाई की इस नई किस्त से रोजाना की तमाम सेवाओं के लिए आपकी जेब और ज्यादा ढीली होगी। कहने का मतलब यह कि मोदी सरकार की अर्थनीति के चलते आम आदमी की जिंदगी में मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। सेवा कर की नई दरें लागू होने से घर खरीदना महंगा हो जाएगा। इसका असर निर्माणाधीन घरों पर भी पड़ेगा। प्रॉपर्टी की कीमतें बढ़ने के साथ नए खरीददारों को घर खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकानी होगी। एक जून से एक करोड़ से कम कीमत की प्रॉपर्टी पर सर्विस टैक्स 3.50 फीसदी की दर से या प्रॉपर्टी की आधार मूल्य के 25 फीसदी पर 12.36 फीसदी सर्विस टैक्स चुकाना होगा। वहीं, एक करोड़ से अधिक की प्रॉपर्टी पर सर्विस टैक्स 4.2 फीसदी की दर से या प्रॉपर्टी के आधार मूल्य के 30 फीसदी पर 14 फीसदी की दर से सर्विस टैक्स चुकाना होगा। इसके अलावा दूसरे शुल्क भी बढ़ जाएंगे जैसे लीगल फीस, होम इंश्योरेंस व रजिस्ट्री फीस आदि।
रेस्टोरेंट में खाना, होटल में ठहरना, मनोरंजन, हवाई यात्रा, ट्रेनों के एसी क्लास के टिकट, माल ढुलाई, ईवेंट मैनेजमेंट, केटरिंग, सैलून, शराब, बीमा प्रीमियम, टिकट बुकिंग आदि महंगे हो जाएंगे। प्रथम श्रेणी और एसी श्रेणी के टिकटों पर अभी यात्रियों को 3.078 फीसदी की दर से सेवा कर देना होता है। एक जून से यह दर बढ़कर 4.2 फीसदी हो जाएगी। यानी इन यात्रियों को 0.5 फीसदी की दर से अधिक सेवा कर चुकाना होगा। जीवन बीमा के पहले वर्ष के प्रीमियम पर सेवा कर की दर 3 फीसदी से बढ़कर 3.5 फीसदी हो जाएगी। इसके आगे के प्रीमियम पर अभी 1.5 फीसदी का सेवा कर लग रहा है। एक जून से इसकी दर 1.75 फीसदी हो जाएगी। नई सेवा कर की दरें लागू होने से घरेलू उड़ानों में सेवा कर की दरें 0.6 फीसदी से बढ़कर 0.7 फीसदी जबकि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए सेवा कर की दरें 1.2 फीसदी से बढ़कर 1.4 फीसदी हो जाएंगी।
अभी हाल में उद्योग संगठन भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) के एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि महानगरों और बड़े शहरों में अधिकाधिक लोग घर में खाना बनाने की बजाय बाजार में बिकने वाले श्रेडी टू ईटश् खाद्य पदार्थों का सहारा ले रहे हैं। इस सर्वेक्षण में 78 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि रसोई के बजट को नियंत्रित करने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। सर्वेक्षण के अनुसार बेमौसम बरसात की वजह से पैदावार घटने से पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने और बिचैलियों की बढ़ती भूमिका के कारण बाजार में इस वर्ष आम, केला, अंगूर और सेब जैसे फलों की कीमतों में भी पिछले वर्ष के इसी सीजन की तुलना में 45 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। इस कारण मौसमी फल भी आम जनता की पहुंच से दूर हो गए हैं। सब्जियों के साथ-साथ फलों के दाम भी आसमान छू रहे हैं जिससे आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा पौष्टिक आहार से वंचित हो गया है। सभी महानगरों और प्रमुख नगरों में सब्जियों और फलों के दाम आम आदमी की पहुंच से दूर हो गए हैं। दाल पहले ही थाली से दूर हो चुकी है।
बहरहाल, दुनिया के कई दिग्गज अर्थशास्त्रियों का भले ही यह मानना हो कि महंगाई श्मात्रश् मौद्रिक घटना है, लेकिन अगर आप इसका व्यवहारिक अध्ययन करें तो पाएंगे कि महंगाई हमेशा श्गंभीर राजनीतिक और सामाजिक विघटनश् से जुड़ी घटना का प्रतिफल होता है। यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि महंगाई राजनीतिक दलों क्रिएटिव बना देती है। जो भाजपा महंगाई को लेकर मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ भारत बंद किया करती थी, वह आजकल भारत की सरकार चला रही है। इसके बाद भी उन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पा पा रही है जिनसे राष्ट्रीय परिस्थितियों में महंगाई को बल मिलता है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि जो बातें मनमोहन सिंह बोला करते थे, वही बातें आज मोदी सरकार भी कहने लगी है।
असलियत में देश के आर्थिक-सामाजिक हालात में सुधार का नाम ही वास्तविक विकास है। एक वर्ग के अमीर बनते चले जाने और किसान-मजदूरों के दरिद्र बनते जाने का नाम विकास नहीं बल्कि देश का विनाश है। निरंतर गति से बढ़ती महंगाई और शोषण के बीच चोली-दामन का संबंध है। महंगाई वास्तव में ताकतवर अमीरों द्वारा गरीबों को लूटने का एक अस्त्र है। इस खतरनाक साजिश में सरकारें भी अमीरों के साथ शामिल हैं। वास्तव में सरकार ने बाजार की ताकतों को इतना प्रश्रय और समर्थन दे दिया है कि घरेलू बाजार व्यवस्था सरकारी नियंत्रण से बाहर होकर बेकाबू हो चुकी है। सटोरिए, दलाल और बिचैलिए इसमें सबसे अहम किरदार हो गए हैं। और तय मानिए ये अहम किरदार बिना सरकार की शह के अपनी भूमिका नहीं निभा सकते। जाहिर है जब तक ये किरदार सरकार पर हावी रहेंगे, महंगाई की नई-नई किस्तें देश की जनता के नाम जारी होती रहेंगी।
आम बजट 2015-16 में प्रस्तावित सेवा कर में वृद्धि एक जून 2015 से लागू है। इसके साथ ही वर्तमान में 12.36 फीसदी सेवा कर की दर बढ़कर 14 फीसदी हो जाएगी। महंगाई की इस नई किस्त से रोजाना की तमाम सेवाओं के लिए आपकी जेब और ज्यादा ढीली होगी। कहने का मतलब यह कि मोदी सरकार की अर्थनीति के चलते आम आदमी की जिंदगी में मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। सेवा कर की नई दरें लागू होने से घर खरीदना महंगा हो जाएगा। इसका असर निर्माणाधीन घरों पर भी पड़ेगा। प्रॉपर्टी की कीमतें बढ़ने के साथ नए खरीददारों को घर खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकानी होगी। एक जून से एक करोड़ से कम कीमत की प्रॉपर्टी पर सर्विस टैक्स 3.50 फीसदी की दर से या प्रॉपर्टी की आधार मूल्य के 25 फीसदी पर 12.36 फीसदी सर्विस टैक्स चुकाना होगा। वहीं, एक करोड़ से अधिक की प्रॉपर्टी पर सर्विस टैक्स 4.2 फीसदी की दर से या प्रॉपर्टी के आधार मूल्य के 30 फीसदी पर 14 फीसदी की दर से सर्विस टैक्स चुकाना होगा। इसके अलावा दूसरे शुल्क भी बढ़ जाएंगे जैसे लीगल फीस, होम इंश्योरेंस व रजिस्ट्री फीस आदि।
रेस्टोरेंट में खाना, होटल में ठहरना, मनोरंजन, हवाई यात्रा, ट्रेनों के एसी क्लास के टिकट, माल ढुलाई, ईवेंट मैनेजमेंट, केटरिंग, सैलून, शराब, बीमा प्रीमियम, टिकट बुकिंग आदि महंगे हो जाएंगे। प्रथम श्रेणी और एसी श्रेणी के टिकटों पर अभी यात्रियों को 3.078 फीसदी की दर से सेवा कर देना होता है। एक जून से यह दर बढ़कर 4.2 फीसदी हो जाएगी। यानी इन यात्रियों को 0.5 फीसदी की दर से अधिक सेवा कर चुकाना होगा। जीवन बीमा के पहले वर्ष के प्रीमियम पर सेवा कर की दर 3 फीसदी से बढ़कर 3.5 फीसदी हो जाएगी। इसके आगे के प्रीमियम पर अभी 1.5 फीसदी का सेवा कर लग रहा है। एक जून से इसकी दर 1.75 फीसदी हो जाएगी। नई सेवा कर की दरें लागू होने से घरेलू उड़ानों में सेवा कर की दरें 0.6 फीसदी से बढ़कर 0.7 फीसदी जबकि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए सेवा कर की दरें 1.2 फीसदी से बढ़कर 1.4 फीसदी हो जाएंगी।
अभी हाल में उद्योग संगठन भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) के एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि महानगरों और बड़े शहरों में अधिकाधिक लोग घर में खाना बनाने की बजाय बाजार में बिकने वाले श्रेडी टू ईटश् खाद्य पदार्थों का सहारा ले रहे हैं। इस सर्वेक्षण में 78 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि रसोई के बजट को नियंत्रित करने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। सर्वेक्षण के अनुसार बेमौसम बरसात की वजह से पैदावार घटने से पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने और बिचैलियों की बढ़ती भूमिका के कारण बाजार में इस वर्ष आम, केला, अंगूर और सेब जैसे फलों की कीमतों में भी पिछले वर्ष के इसी सीजन की तुलना में 45 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। इस कारण मौसमी फल भी आम जनता की पहुंच से दूर हो गए हैं। सब्जियों के साथ-साथ फलों के दाम भी आसमान छू रहे हैं जिससे आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा पौष्टिक आहार से वंचित हो गया है। सभी महानगरों और प्रमुख नगरों में सब्जियों और फलों के दाम आम आदमी की पहुंच से दूर हो गए हैं। दाल पहले ही थाली से दूर हो चुकी है।
बहरहाल, दुनिया के कई दिग्गज अर्थशास्त्रियों का भले ही यह मानना हो कि महंगाई श्मात्रश् मौद्रिक घटना है, लेकिन अगर आप इसका व्यवहारिक अध्ययन करें तो पाएंगे कि महंगाई हमेशा श्गंभीर राजनीतिक और सामाजिक विघटनश् से जुड़ी घटना का प्रतिफल होता है। यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि महंगाई राजनीतिक दलों क्रिएटिव बना देती है। जो भाजपा महंगाई को लेकर मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ भारत बंद किया करती थी, वह आजकल भारत की सरकार चला रही है। इसके बाद भी उन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पा पा रही है जिनसे राष्ट्रीय परिस्थितियों में महंगाई को बल मिलता है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि जो बातें मनमोहन सिंह बोला करते थे, वही बातें आज मोदी सरकार भी कहने लगी है।
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