Friday, 12 June 2015

सवालों का जवाब क्यों नहीं देती भाजपा ?

हमारी पार्टी अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी के नुमांइदें से केवल आठ ही तो सवाल किए थे, उसका भी जवाब ये लेाग क्यों नहीं देते..




पहला, किसानों की सहमति वाले प्रवधान को हटाने के लिये बीजेपी इतनी उतावली क्यों है?

सरकार ने सहमति के अधिकार को हटा दिया है (2013 के कानून में प्रभावित परिवारों को दिया गया था)। न सिर्फ सरकार ज्यादातर परियोजनाओं के लिये जमीन का अधिग्रहण जमीन मालिकों की सहमति के बगैर कर सकती है, बल्कि सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment) के प्रावधान को भी हटा दिया है; जिसके अंतर्गत जिस परियोजना के लिये जमीन ली जानी थी, उससे संबंधित पूरी जानकारी देना सरकार के लिये जरूरी था। सामाजिक प्रभाव के आकलन से अधिग्रहण और अधिक जवाबदेह बनता। इस प्रवधान को हटाने के लिये बीजेपी इतनी उतावली क्यों है?

दूसरा, अध्यादेश पास करने से पहले किसान समूहों या किसी दूसरे हितधारकों के साथ विचार-विमर्श क्यों नहीं किया गया?

सरकार अध्यादेश को लागू करने को लेकर बहुत जल्दबाजी में थी। एक ऐसा कानून जिसके लिए लोगों की व्यापक और जागरुक विचार-विमर्श की जरूरत थी, क्या यह सही था कि बंद दरवाजे के पीछे, सिर्फ अधिकारियों के साथ मंत्रणा कर, यहां तक की ग्रामीण विकास मंत्री की गैर मौजूदगी में किसानों के हितों की चिंता किये बिना प्रावधानों को बदलने का फैसला लिया जाए? राज्य के प्रतिनिधियों के साथ एक या दो बैठक से विचार-विमर्श की प्रकिया पूरी नहीं हो सकती।

तीसरा, वो कौन लोग हैं जिनके फायदे के लिये ये संशोधन किये गये?

सहमति और सामाजिक प्रभाव आकलन (Consent and Social Impact Assessment) के प्रावधानों को दूर कर अधिग्रहण को आसान बनाने के लिये कई श्रेणियों में छूट दी गई है। जमीन लौटाने की शर्तों को कड़ा कर दिया गया है, जिससे कोर्ट के लिये यह कठिन हो गया है कि वो अनुचित अधिग्रहण को रद्द कर सके। रक्षा हमेशा से छूट की श्रेणी में थी इसलिय कोई ओर अतिरिक्त छूट विवादास्पद है। ये सब कई सवालों को जन्म देती है कि इन संशोधनों का वास्तव में लाभार्थी कौन है। जाहिर तौर पर किसान नहीं। क्या यही सरकार की ‘न्यूनतम सरकार’ और ‘अधिकतम शासन’ की अभिव्यक्ति है?

चौथा, किसानों की चिंताओं पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया?

किसानों के हितों की रक्षा कैसे की गई है या नहीं ऐसी एक भी शर्त क्या बीजेपी बता सकती है, जबकि यह साफ और जाना हुआ है कि इससे किसानों के हित खतरे में है। मजदूरों के लिये अनिवार्य रोजगार से संबंधित एक संशोधन किया गया है जो किसान समर्थक लगता है। लेकिन, अगर संशोधनकर्ताओं ने 2013 के कानून को पढ़ा है तो ऐसी र्शतें (विषय 4, अनुसूची 2) पहले से मौजूद हैं जो न सिर्फ खेतिहर मजदूरों के लिए नौकरी(या 5 लाख रुपये) का वादा करता है बल्कि जमीन से विस्थापित परिवारों के लिए भी।

पांचवां, पहले से अधिग्रहीत जमीन का इस्तेमाल क्यों नहीं?

बजाये इसके कि नई जमीन का अधिग्रहण किया जाए, लैंड बैंक के पास मौजूद जमीन का इस्तेमाल क्यों नहीं? केंद्र और राज्य दोनों सरकार के पास जमीन का भारी भंडार है जिसके इस्तेमाल करने की जरूरत है। सरकार को बंजर, व्यर्थ और विभिन्न राज्यों के स्वामित्व वाले निगमों के पास मौजूद भूमि पर एक श्वेत पत्र या स्टेटस रिपोर्ट लेकर आना चाहिये।

छठा, संसद के पटल पर अध्यादेश में  किये गये नये संशोधनों में क्या शामिल है?

संसद में पेश विधेयक में किये गये संशोधनों के बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है कि ये सतही हैं। अगर आपके सहयोगियों ने बिल को पढ़ा था तो आप महसूस करेंगे कि संशोधनों का समर्थन नहीं किया जा सकता। सरकार ने मनमाने ढंग से जमीन के अधिग्रहणों से रक्षा की शर्तों को हटा दिया है, न सिर्फ कंपनियों के लिये जमीन के अधिग्रहण को आसान कर दिया गया है बल्कि उनसब के लिये भी जो अधिग्रहण करना चाहते हैं। इसके साथ साथ विधेयक उन अधिकारियों का भी बचाव करता है जो कानून का उल्लंघन करते हैं। यह स्पष्ट करना जरूरी है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के द्वारा डाले गये दबाव के आगे झुकते हुए सरकार ने अस्पष्ट और अपरिभाषित शब्द 'सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर' को नई श्रेणी से निकाला है, लेकिन यह कोई मेहरबानी नहीं है।

सातवां,  2013 के मूल कानून के पास होने के वक्त खड़े अपने रुख से बीजेपी इतनी तेजी से पीछे क्यों हट रही है?

2013 का कानून पास होना ऐतिहासिक था क्योंकि यह विधायकी के दोहरे दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता था। जिसमें बीजेपी एक विरोधी ताकत की बजाए एक सकारात्म भागीदार की भूमिका में थी।संसद के पटल पर दिये गये भाषणों में दर्ज अपने घोषित रुख से बीजेपी के पीछे हटने के क्या कारण हैं?

आठवां, अपने संशोधनों की खूबियों को लेकर अगर बीजेपी इतनी आश्वस्त है तो फिर इसे स्थायी समिति(Standing Committee) के पास क्यों नहीं भेज रही?

बिना देरी किये यूपीए ने अपने पहले मसौदे को बीजेपी सदस्य की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति को भेज दिया था। कानून की खूबियों को लेकर हमें इतना विश्वास था कि हमने किसी भी तरह की जांच और सुझावों का स्वागत किया।यहां तक की हमने सभी सुझावों को शामिल किया। आखिर क्यों बीजेपी सरकार ऐसे कदम उठाने से संकोच कर रही है?
किसानों के इतनी बड़ी संख्या में सामने आने के कारण हैं।यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, जैसा कि साफ है जिन समूहों की दूसरे मुद्दों पर अलग राय होती है वो सभी विरोध के लिये इस अहम मुद्दे पर एक हैं।

No comments:

Post a Comment