महात्मा गाँधी के शांति के संदेश को समझने की आवश्यकता है. यह संदेश क़ज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव ने 40 देशों के 80 राजनीतिज्ञों और धर्मगुरुओं को दिया. हर तीन साल में होने वाली इस विश्व धर्म कांग्रेस का यह पाँचवा सत्र था. इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के महासचिव बान की मून, जॉर्डन के शाह अब्दुल्लाह और फिनलैंड के राष्ट्रपति सोली नीनेत्सो भी शरीक हुए. नूरसुल्तान ने कहा कि इस्लाम के मूल सिद्धांत और मात्मा गाँधी की शिक्षाओं को समझने का वक्त है. उन्होंने कहाकि हमारे इन प्रयासों से आतंकवाद और कट्टरता पर रोक लगेगी। दुनिया को आज नफ़रत और अलगाव को त्यागने की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि कज़ाख़स्तान के इस पाँचवे सत्र को इतिहास में याद किया जाएगा कि शांति की स्थापना के लिए कज़ाख़स्तान ने प्रयास किया। नूरसुल्तान ने देश के शांति प्रयासों का हवाला देते हुए कहाकि हमने परमाणु हथियारों से निजात पाने का वचन लिया है। शांति के नाम पर कज़ाख़स्तान की शानदार नई राजधानी अस्ताना में तैयार की गई पैलेस ऑव इंडडिपेंडेंस एंड अकॉर्ड में राष्ट्रपति ने कहाकि 2003 में इस इमारत को इस बात के लिए बनाया कि शांति और भाईचारा का कज़ाख़स्तान का संदेश दुनिया के हर हिस्से में जाए। सभी धर्मगुरुओं, नेताओं और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून का स्वागत करते हुए नूरसुल्तान ने कहाकि नए विश्व के निर्माण में हमारी ज़िम्मेदार बनती है कि हम नई दुनिया के लिए मिलकर काम करें। महात्मा गाँधी ने कहाकि धर्म शांति के लिए है। नूरसुल्तान ने उपनिषद् का हवाला देते हुए कहाकि यदि हम अधर्म को अपनाएंगे तो विश्व को क्षति होगी। उन्होंने कज़ाख़स्तान के धर्म निरपेक्ष ढांचे के बारे में कहाकि आप देखेंगे कि लोग बिना किसी बाधा के अपने धर्म की पालना करते हैं। उन्होंने दोहराया कि कज़ाख़स्तान में हम बच्चों को धर्मनिरपेक्षता की तालीम देते हैं एवं धर्म और शांति की स्थापना इस कांग्रेस की आवश्यकता है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने सत्र में कहाकि मैं नूरसुल्तान की चमत्कारी लीडरशिप का सम्मान करता हूँ। उन्होंने कहाकि आपने सिर्फ़ सिद्धांत ही नहीं बल्कि वाक़ई शांति के लिए काम किया है। मैं कट्टरता के विरुद्ध आपके इन प्रयासों की प्रशंसा करता हूँ. हम एक ऐसे विश्व में रहते हैं जिसमें बहुत चुनौतियां हैं और विश्व तेज़ी से बदलाव की प्रक्रिया में है। नागरिक टकराव, ड्रग, स्वास्थ्य, कट्टरता और आतंकवाद की चुनौतियों से विश्व गुज़र रहा हैं और इस संकट में धर्मगुरू बेहतर काम कर सकते हैंं। मून ने कहाकि वह संवाद पर ज़ोर दें, धर्म गुरू इस बात को बताएं कि धर्म के नाम पर हिंसा को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। हमें संयुक्त राष्ट्र के प्लैटफार्म को इस्तमाल कर दुनिया में शांति के लिए काम करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहाकि सत्रहवें सत्र में हम इस पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं। आतंकवादी संगठन अलशबाब, अलक़ायदा, बोको, आईएस धर्म की पालना नहीं कर रहे क्योंकि धर्म बच्चों और लोगों की हत्या की इजाज़त नहीं देता। महिलाओं और बच्चियों की स्थिति पर दुख जताते हुए बान की ने कहाकि महिलाएँ नियोजित अपराध की शिकार हो रही हैंं। उनका शोषण और बलात्कार बहुत घिनौने अपराध हैंं। उन्होंने दोहराया कि युवाओं की भागीदारी से हम उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोक सकते हैं। मून ने दोहराया कि हमें अल्पसंख्यकों के हितों का ख़याल रखना है और इसका मतलब है अल्पसंख्यकों को मान्यता देना।
जॉर्डन के बादशाह अब्दुल्लाह द्वितीय ने कहाकि दुनिया की आबादी का आधे मुसलमाना और ईसाई हैं लेकिन आज कुछ लोगं हमें बाँटने की कोशिश कर रहे हैं। खारिजीन धर्म के नाम पर समाज को बांटने में लगे हैं। इस्लाम किसी पर भी अत्याचार की इजाज़त नहीं देता। अपने लोगो की रक्षा के लिए हमें यह लड़ाई लड़नी होगी। इस मौक़े पर फिनलैंड के राष्ट्रपति सौली नीनेत्सो ने कहाकि हमें तेज़ी से बदलते विश्व के लिए कज़ाखस्तान जैसे प्रयासों की आवश्यकता है। धर्म का रोल शांति और समृद्धि की स्थापना है लेकिन कुछ लोग इसका प्रयोग विनाश के लिए करते हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।
भारत के प्रतिनिधि इंस्टीट्यूट ऑव हिन्दुइज्म एंड इंटर सोसाइटी डायलॉग के प्रमुख समीर सुमैया ने कहाकि महात्मा गाँधी ने मानवता के विरुद्ध सात गंभीर अपराधों का ज़िक्र किया है। यह. बिना काम किए धन, बिना संवेदना के आराम, बिना चरित्र का ज्ञान, बिना मूल्यों के व्यापार, बिना मानवता का विज्ञान, बिना त्याग के धर्म एवं बिना उसूल की राजनीति हैं। देखा जाए तो आज विश्व के सामने यही चुनौतियाँ हैं। उन्होंने कहाकि स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा के नैतिक होने पर इसीलिए ही ज़ोर दिया है। उन्होंने पुरषार्थ और धर्म को याद करते हुए कहाकि यदि चार पुरुषार्थों का सार समझा जाए तो जीवन में संकट नहीं होगा। उन्होंने कहाकि आज दुनिया को लालच और भूख से निजात चाहिए। उन्होंने महात्मा गांधी का अनमोल वाक्य दोहराया कि शांति का मार्ग नहीं होता बल्कि शांति ही मार्ग है।
वर्ल्ड मुस्लिम लीग के उपमहासचिव अब्दुर्रहमान अब्दुल्लाह अलज़ैद ने कहाकि अस्ताना में प्रस्ताव पारित करने से हमें हिंसा से निजात में मदद मिलेगी। उन्होंने कहाकि अतिवाद नीतियों में दोहरेपन भी हिंसा के लिए ज़िम्मेदार है जैसे रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बर्ताव किया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि रोहिंग्या और फ़िलस्तीन के मुसलमानों की समस्या को समझना होगा। ऑर्गेनाइज़ेशन ऑव इस्लामिक कॉर्पोरेशन के महासचिव इयान बिन अमीन मदनी ने कहाकि हमारा संगठन 57 देशों का संगठन है। उन्होंने कहाकि आर्थिक स्थितियों, गरीबी और लोगों को हाशिये पर धकेलने से पिछले 10 सालों में नस्ल और धर्म की राजनीति बहुत तेज़ हुई है और इससे हिंसा बढ़ी है। मदनी ने कहाकि लाखों लोग नाज़ीवाद का शिकार हुए हैं और हथियारों की बेतहाशा होड़ मची है। उन्होंने कहाकि धर्म के नाम पर हिंसा जायज नहीं है पर हम इस्लामोफोबी से ग्रस्त लोगों से भी बात करना चाहते हैं। सिर्फ़ सैनिक उपायों से हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सकता। उन्होंने मीडिया पर भी दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया।
सम्मेलन के अंत में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह तय किया गया कि राजनीतिक चर्चा और संवाद पर ज़ोर देने, अपने नागरिकों और मानवीय जानों की रक्षा करने, शांति के लिए अन्तरराष्ट्रीय समझौतों की पालना करने, सभी धर्मों के सम्मान पर ज़ोर देंने, धर्मोंगुरुओं के आपसी सहयोग पर ज़ोर देंने, कट्टरता और आतंकवाद से लड़ने लेकिन यह ध्यान रखने पर ज़ोर दिया गया कि धर्म के आधार पर नफ़रत नहीं फैलने देने, मीडिया और साइबर मीडिया से अपनी नैतिक ज़िम्मेदारियों का निर्वाहकरने, गरीबी, बेरोज़गारी, बीमारी और हिंसा से लड़ने की कोशिश करने का प्रस्ताव पारित किया गया। अंत में राष्ट्रपति नूरसुल्तान ने घोषणा की कि अगली सभा 2018 जून में होगी। सम्मेलन में 40 देशों के क़रीब 100 प्रतिनिधि शामिल हुए और सेमिनार के कवरेज के लिए दुनिया भर के करीब 100 पत्रकार जमा हुए.
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