Tuesday, 9 September 2014

कहीं हो न जाए मर्यादाओं की अनदेखी


दिल्ली में जो आजकल हो रहा है, वह नहीं होना चाहिए। जब हम या आप क्षमता नहीं होते हुए किसी चीज को पाने की कोषिष करते हैं, तो जाहिर है कि अनैतिक आचरण करते हैं। दिल्ली में सरकार के गठन को लेकर जिस प्रकार की कवायद हो रही है, उसने कई सवाल खड़े किए हैं। उस पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल का स्टिंग। जाहिर है जनता के मन में कई प्रकार के सवालों का उठना लाजिमी है।
असल में, सरकार का गठन कौन करे, लोकतंत्र में यह फैसला जनता मतदान के जरिये करती है। परंतु, सरकार गठन के तरीके पर जनता का अख्तियार नहीं होता। हां, उसे यह भरोसा होता है कि लोकतंत्र में सरकार गठन के लिए भी नियम-कायदे हैं, सो उनका पालन किया जायेगा। मुश्किल तब खड़ी होती है जब किसी एक दल के पक्ष में स्पष्ट जनादेश न हो। भारत जैसे बहुदलीय लोकतंत्र में ऐसा होना हरचंद संभव है। इसलिए अहम सवाल यह है कि क्या ऐसी स्थिति में सरकार बनाने में जुटे दल स्थापित मर्यादाओं की अनदेखी करेंगे? और, अगर ऐसी अनदेखी हो, तब इन मर्यादाओं की बहाली का दायित्व कौन संभालेगा?
दिल्ली में सरकार गठन को लेकर खींचतान से झांकती विद्रुपताओं की असल वजह किसी व्यक्ति या पार्टी में नहीं, बल्कि सरकार गठन से जुड़ी मर्यादाओं की बहाली और उसकी निगरानी से जुड़े तंत्र की विफलताओं में ही तलाशी जानी चाहिए। जिस पार्टी (भाजपा) ने दिल्ली विधानसभा में सर्वाधिक सीटें जीतीं, उसने जनादेश के बाद पूर्ण बहुमत नहीं होने का हवाला देते हुए स्वयं को सरकार गठन या जोड़-तोड़ की राजनीति से दूर रखा। लेकिन अब एक स्टिंग में उसी पार्टी के एक नेता को सरकार गठन के लिए विधायकों की बोली लगाते देखना-सुनना दुखद है। उधर, जिस पार्टी (आप) ने काफी हिचक के बाद सरकार बनायी और फिर जिम्मेवारियों से कन्नी काटते हुए बेहिचक इस्तीफा दे दिया, वह अब खुद को सरकार गठन की मर्यादाओं की प्रवक्ता के तौर पर पेश कर रही है।
दिल्ली के उप-राज्यपाल के पास किसी पार्टी ने बहुमत की दावेदारी या सरकार गठन के आमंत्रण के लिए कोई अनुरोध नहीं किया है और पहले गठित सरकार का हश्र उनके सामने है, फिर भी वे सरकार गठन के मोरचे पर सक्रिय हो गये हैं। राष्ट्रपति के फैसले का अभी इंतजार है। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कोई व्यवस्था देने से इनकार कर दिया है। दिल्ली में सरकार बनाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है। केंद्र सरकार ने मंगलवार को कोर्ट को बताया कि ये मामला फिलहाल राष्ट्रपति के पास है। सरकार उनके आदेश का इंतजार कर रही है। कोर्ट ने सरकार को ये मोहलत देते हुए विधायकों की खरीद-फरोख्त की खबरों पर चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में विधायकों की खरीद-फरोख्त पर चिंता जताई लेकिन चूंकि मामला राष्ट्रपति के पास है इसलिए चार हफ्तों का समय देना उचित समझा। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता आम आदमी पार्टी ने एक स्टिंग ऑपरेशन का हवाला देते हुए विधायकों की खरीद-फरोख्त का मामला उठाया और दिल्ली में जल्द चुनाव कराने की मांग की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी राष्ट्रपति की राय का इंतजार करना चाहिए और इन आरोपों पर अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा। उधर सुप्रीम कोर्ट के बाहर भी सरकार बनाने को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में जंग जारी है।
यह चैतरफा बेचारगी की सूरत है, जिसका संकेत साफ है कि ऐसी स्थिति में सरकार गठन की मर्यादाओं की रक्षा को लेकर सर्वसम्मति से कोई रास्ता तलाशा जाये। सिर्फ दलबदल कानून या राज्यपाल के विवेक के भरोसे रह कर यह मान लेना कि सरकार गठन से जुड़ी मर्यादाओं का पालन हो जायेगा। एक ख्याली पुलाव ही बना रहेगा।

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