अब जब भारत अपने महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन मंगलयान के जरिये अपने सौरमंडल के लाल ग्रह कहे जाने वाले मंगल तक पहुंचने ही जा रहा है, सारी दुनिया मुंहबाए देख रही है, क्यों भारतीय मिशन जो रकम खर्च कर पूरा किया जा रहा है, वह शेष विश्व के लिए अकल्पनीय रूप से कम है... इसरो के मंगलयान की सफलता से भारत विश्व का चैथा और एशिया का पहला देश बन गया है जिसने मंगल मिशन में सफलता हासिल की है। मंगलयान मंगल ग्रह की गतिविधियों पर नजर रखकर वहां के रहस्य का पता लगायेगा। कई शोधों से यह बात सामने आई है कि मंगल ग्रह का धरती पर जीवन के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए यह अभियान भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिका का मंगल मिशन छह बार फेल हो चुका था वहीं चीन से इसमें अभी तक सफलता हासिल नहीं की है।
इस यान में कई उपकरण लगाये गये हैं जैसे मंगल के वायुमंडल में जीवन की निशानी और मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और ग्रह की सतह और खनिज संपदा का पता लगाने वाला थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण। पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने के बाद यान मंगल ग्रह के दीर्घवृताकार पथ में प्रवेश कर गया है। भारत के मंगलयान का मुख्य उद्देश्य मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) लाल ग्रह पर मिथेन है या नहीं पता लगाना है। इस रसायन को जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण रसायन माना जाता है। भारत के मंगल अभियान में अंतरिक्ष यान में पांच पेलोड जुड़े हैं जिसमें से एक मिथेन सेंसर भी है। यह मंगल में मिथेन का पता लगायेगा। यान के साथ 15 किलो का पेलोड भेजा गया है इनमें कैमरे और सेंसर जैसे उपकरण लगे हैं। यह मंगल के वायुमंडल और उसकी दूसरी विशिष्टताओं का अध्ययन करगा। यान मंगल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां इसरो को भेजेगा। मंगलयान का मुख्य फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहेगा। मंगलयान पता लगाने की कोशिश करेगा कि क्या मंगल पर सचमुच जीवन पनप सकता है या नहीं। यह यान ग्रह की जलवायु ,आन्तरिक बनावट, वहां जीवन की उपस्थिति, ग्रह की उत्पति, विकास आदि के विषय में बहुत सी जानकारी जुटा कर इसरो को भेजेगा। वैज्ञानिक जानकारी को जुटाने हेतु मंगलयान पर कैमरा, मिथेन संवेदक, उष्मा संवेदी अवरक्त वर्ण विश्लेषक, परमाणुविक हाइड्रोजन संवेदक, वायु विश्लेषक आदि पांच प्रकार के उपकरण लगाए गये हैं। इन उपकरणों का वजन लगभग 15 किलोग्राम के लगभग होगा। इससे पहले अमेरिका, यूरोप और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियां कई कोशिश के बाद मंगल ग्रह की कक्षा में अपने उपग्रह भेज चुकी हैं। भारत का यह पहली कोशिश थी जिसे इसरो के वैज्ञानिकों ने सफल बना दिया हालांकि मंगल अभियान की सफलता को लेकर इसरो के वैज्ञानिक पहले से आश्वस्त थे।
यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है... यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंच जाएगा... यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है... आंध्र प्रदेश में समुद्रतट पर स्थापित और भारत के रॉकेट पोर्ट कहे जाने वाले श्रीहरिकोटा में इसी वर्ष जून के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी, ष्हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म ग्रेविटी का बजट हमारे मंगल अभियान से ज्यादा है... यह बहुत बड़ी उपलब्धि है... मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान श्क्यूरियॉसिटीश् की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की... भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है...
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