भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशस्त्री डॉ. मनमोहन सिंह कोहली आज अपना 82वां जन्मदिन मना रहे हैं। देश के 14वें प्रधानमंत्री रहे सिंह ने 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक प्रधानमंत्री पद संभाला। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद सिंह ही एकमात्र ऎसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने पांच-साल का कार्यकाल पूर कर फिर से प्रधानमंत्री पद संभाला। पाकिस्तान के पंजाब में स्थित गाह में जन्मे सिंह का परिवार विभाजन के वक्त भारत आ गया। सिंह ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में डॉक्ट्रेट डिग्री हासिल की और फिर वर्ष 1966-69 तक यूनाइटेड नेशंस के लिए काम किया।
भारतीय राजनीति में उनकी एंट्री तब हुई जब ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें मिनिस्ट्री ऑफ फॉरेन ट्रेड में बतौर एडवाइजर हायर किया। इसके बाद सिंह चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर (1972-76), रिजर्व बैंक के गर्वनर (1982-85) और प्लानिंग कमिशन के हैड (1985-87) रहे।
1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने निरन्तर पाँच वर्षों तक कार्य किया, जबकि १९९० में यह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। जब पी वी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को १९९१ में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें १९९१ में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया।
मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा।मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
वर्ष 1991 में भारत में भयंकर इकोनॉमिक क्राइसिस आई। उस समय प्रधानमंत्री बने पी वी नरसिम्हां राव ने सबको चौंकाते हुए सिंह को अपने कैबिनेट में बतौर वित्त मंत्री शामिल किया। अगले कुछ सालों में विपक्ष के विरोध के बावजूद सिंह ने कुछ स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स किए जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था उदार बनी। इससे देश की अर्थव्यवस्था संभली और देश में सिंह का कद कई गुना बढ़ गया। वर्ष 2004 में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तो पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह को आगे कर दिया। दसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में भी यूपीए की ही जीत हुई और मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री बने रहे। लोकसभा चुनाव २००९ में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बन गये हैं, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला ।
जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव
१९५७ से १९६५ - चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
१९६९-१९७१ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर
१९७६ - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
१९८२ से १९८५ - भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
१९८५ से १९८७ - योजना आयोग के उपाध्यक्ष
१९९० से १९९१ - भारतीय प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार
१९९१ - नरसिंहराव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में वित्त मन्त्री
१९९१ - असम से राज्यसभा के सदस्य
१९९५ - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
१९९६ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
१९९९ - दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गये।
२००१ - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
२००४ - भारत के प्रधानमन्त्री
इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिये भी काफी महत्वपूर्ण काम किया है।
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