ऐ जिन्दगी! तू ही बता
एक और स्वर्ग कहां बसाऊँ...
फिर वही कश्मीर कहां से लाऊँ...
कुदरत का ही दिया था सब
कुदरत ने ही लिया है सब
सच बता ऐ कुदरत!
चाहती तू क्या है?
कहते थे कभी सब...
धरती का स्वर्ग हेा तुम
तस्वीर कुछ ऐसी हुई कि नरक से भी बद्तर हुआ है।
‘हमारे बच्चे चार दिन से फंसे हैं... प्लीज़ सर हमारे बच्चों को बचा लीजिए... आँखों से बहती आँसुओं की धार और सूखे होंठों से निकलते ये बोल राहत कार्यों में जुटीं बचाव टीमों से अपने बच्चों की जान की भीख माँगते सुनाई दे रहे हैं। कुदरत के इस कहर ने अब तक सैकड़ों घरों के चिरागों का अपनी चपेट में ले लिया है और दर्जनों परिवार तबाह हो चुके हैं। दुआ करते हैं कि कुदरत का यह कहर उत्तराखण्ड की त्रासदी न बन जाए, जिसने लाखें घरों को पल भर में ही खत्म कर दिया और कइयों का तो कुछ पता ही नहीं चला, जहाँ आज भी लाश मिलने पर परिजन इस आस से पहुँच जाने हैं कि शायद यह लाश उनके ही परिवारीजन की हो...।
भारत ने तो पिछले वर्ष ही तो उत्तराखंड की भयानक त्रासदी झेली है और अब जम्मू-कष्मीर में हुए जन-धन के नुकसान की भरपाई के लिए हमारी सेना, एनडीआरएफ की टीम और जम्मू-कष्मीर सरकार के साथ भारत सरकार भी पूरी जिम्मेदारी के साथ मौके पर है। वहीं पाकिस्तान भी इस मुष्किल हालात से निपटने के लिए दिन-रात एक कर रहा है। पाकिस्तान तो अभी आर्थिक तौर पर इतना सक्षम भी नहीं है कि वह बाढ़ पीडि़तों की पूरी तरह मदद कर सके। भारत ने मानवता के आधार पर पाक अधिकृत कष्मीर में फंसे लोगों की मदद के लिए पहल की थी जिसे भी पाकिस्तान ने नकार कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिये और घाटी में अमन-चैन के पक्ष में नहीं है। पाकिस्तान यह समझने का प्रयास नहीं कर रहा है कि जम्मू-कष्मीर से निकलने वाली नदियां सिंधु, रावी, चिनाव, झेलम और तवी दोनों देषों के मध्य बहती है। लेकिन इन नदियों का अधिकांष भाग पाकिस्तान से गुजरकर अरब सागर में मिल जाता है। तो मतलब साफ है कि भारत शुरूआती दंष झेल रहा है तो पाकिस्तान को अभी सिंध, पंजाब में बाढ़ के कहर से निपटना बाकी है।
बाढ़ का जो कहर इन दोनों देषों पर बरपा है उसके लिए हमें पहले भारत-पाकिस्तान में बह रही इन नदियों की भौगोलिक स्थिति को समझना जरूरी होगा। सिंधु, रावी, चिनाव, झेलम, तवी, नीलम और सतलुज ये वे नदियां है जो भारत से होकर पाकिस्तान जाती है। हिमालय से निकलने वाली नदियों को लेकर भारत-पाक में एक समझौता भी हो चुका है। भारत-पाकिस्तान में नदियों के पानी के बंटवारे के लिए 1960 में ‘सिंधु जल-संधि’ पर भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी के सद्र अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। पानी के बंटवारे को लेकर विष्व बैंक की मध्यस्थता के बीच संधि में स्पष्ट लिखा है कि सिंधु, झेलम और चिनाव नदियों को भारत अविरल बहनें देगा। इस पर किसी प्रकार के बांध का निर्माण भारत की ओर से नहीं किया जायेगा। इससे एक बात तो स्पष्ट हो गई कि इस भयंकर बाढ़ में सबसे ज्यादा झेलम नदी उफान पर थी और पाकिस्तान के अखबारों एवं मीडिया-चैनलों ने खबरें दी कि भारत ने अपने लोगों को बचानें के लिए पाकिस्तान की ओर कई लाख क्यूबेक पानी छोड़ दिया। संधि के मुताबिक गौर करें तो पाकिस्तान को जबाव मिल गया होगा कि भारत ने न झेलम पर बांध बनाया है और न ही पानी छोड़ा है। यह प्राकृतिक आपदा है, जिसकी भयानक त्रासदी का दंष दोनों देष और जनता वर्तमान में भोग रही है।
बाढ़ से घिरे दोनों देष अभी इतने सक्षम नहीं है कि बाढ़ का पूर्वानुमान लगा सके। भारत ने उत्तराखंड त्रासदी से कोई सबक नहीं लिया। जम्मू-कष्मीर में तेज बारिष की चेतावनी तो मौसम विभाग ने दी थी लेकिन जम्मू सरकार ने ऐहतियात के तौर पर कोई कदम नहीं उठाये। भारत की एक और संस्था ब्ॅब् यब्मदजमतंस ॅंजमत ब्वउउपेेपवदद्ध की 6 सितंबर की रिपोर्ट में नदियों के बढ़ते जलस्तर को लेकर जो आंकड़े प्रस्तुत किये गये, उसमें जम्मू-कष्मीर की एक भी नदी का आंकड़ा नहीं था। यही हाल पाकिस्तान का है कि पाकिस्तान के मौसम विभाग ने तो तेज बारिष की जानकारी तो दी थी लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाली एजेंसी एनडीएमए ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। दोनों देषों की सरकारें हमेषा से प्राकृतिक आपदा होने के बाद सक्रिय होती आई है। इसके कई उदाहरण पूर्व में हमारे सामने आ चुके है। ताजा हालातों में जो फुर्ती दिखाई गई, वह है बाढ़ के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आपातकाल घोषित कर दिया गया है तो चिनाव दी में बांध पर संभावित दरार के चलते रेड-अलर्ट जारी किया जा चुका है। वहीं भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर देषवासियों से मदद के लिए आगे आने का आग्रह किया है।
भारत पाकिस्तान दोनों देष की सरकार, समाज और सेनाओं को समझना होगा कि वे अभी इतने सक्षम नहीं हुए है कि बार-बार आ रही भीषण त्रासदियों से निपट सके। सीमा सुरक्षा पर जितना अधिक पैसा दोनों देष खर्च करते है उसमें कमी लाकर अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए अन्य तंत्रों को मजबूत करनें के प्रयासों में तेजी लाए तो बेहतर होगा। लेख लिखने तक तो जम्मू-कष्मीर में मौसम खुल चुका है। पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर पाक अधिकृत कष्मीर में बाढ़ पीडि़तों की मदद की पहल का स्वागत किया है। उम्मीद की जा सकती है कि खुले आसमान के नीचे कराहते लोगों की मदद के लिए दोनों देष की सरकारें मिलकर बचाव काम में तेजी लायेगी और घाटी में अमन-चैन बनायें रखनें के लिए संयुक्त प्रयास शुरू करेंगी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सरहद पर बसे लोग आए दिन इन हालातों का सामना करते रहते हैं। पहले से ही समस्याओं से दो चार राज्य की जनता पर बाढ़ आफत बनकर टूटी है। राज्य में आयी बाढ़ ने धरती के स्वर्ग को नर्क में बदलकर रख दिया है। इस बारे में पुंछ की सुरनकोट तहसील के स्थानीय निवासी और उड़ान अखबार के रिपोर्टर सैय्यद एजाज-उल-हक बुखारी कहते हैं कि सरहद पर बसे होेने की वजह से दर्द हमारी किस्मत बन चुका है। सरहद पर होने की वजह से हम हर वक्त परेषान हाल रहते हैं। उस पर अब यह आपदा हम पर कहर बनकर टूटी है जिसने चंद ही दिनों धरती के स्वर्ग में इतनी तबाही मचाई है कि आज इसके हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे किसी खुबसूरत फूल की हालत मुरझाने के बाद हो जाती है। जिधर देखो तबाही का मंजर है, मदद के लिए एक दूसरे को बेसब्री से पुकारती हुई लोगों की चीखें हैं और आंखों में आसूंओं की वह बाढ़ है जो इस बाढ़ के गुजर जाने के बाद न जाने कितने महीनों, सालों तक हमें हमारे गम की याद दिलाती रहेगी। आंकड़ों के मुताबिक बाढ़ की वजह से अब तक 5 सौ गांव डूब चुके हैं और तकरीबन 40 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। एक गांव के लोगों का दूसरे गांव के लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। सड़क, पुल और संचार सेवाएं सब कुछ बाढ़ की भेंट चढ़ गए हैं। स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि बच्चे अपनों से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर सब कुछ पहले जैसा हो पाएगा या नहीं?
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