Monday, 27 October 2014

कुप्रभाव से रक्षा करने का महापर्व


आशा, त्याग और विश्वास का महापर्व छठ, सोमवार को नहाए खाए से शुरू हो रहा है। संतान सुख की आशा और छठ मइया पर विश्वास के साथ व्रती 48 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इसी आस्था के साथ घाटों पर भीड़ उमड़ती है। इसे लेकर तैयारी शुरू हो गई है। सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ सोमवार से शुरू हो गया। महिलाओं ने सायंकाल चने की दाल, लौकी की सब्जी तथा हाथ की चक्की से पीसे आटे की पूड़ी खाया। मंगलवार को खरना है। इस दिन दिन में व्रत रखकर सायंकाल रोटी व गन्ने का रस अथवा गुड़ की बनी खीर खाएंगी। चार दिवसीय इस पर्व को लेकर महिलाओं में उत्साह देखा जा रहा है। प्रथम दिन से ही सूर्य की पूजा शुरू हो गई है। चार दिवसीय इस पर्व की तैयारी भी व्यापक रूप से की जा रही है। पर्व में प्रयुक्त होने वाले सामानों की अस्थाई दुकानें भी लग गई हैं। वहां खरीदने के लिए महिलाओं की भीड़ पहुंच रही है। सूप, दौरी, चलनी के अलावा मिट्टी के पात्रों की भी खूब खरीदारी की जा रही है। यह खरीदारी देर रात तक होती है, इसलिए शहर ही नहीं गांवों के बाजार तथा कस्बों में भी चहल-पहल बढ़ गई है।

इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास करते हैं और शाम में भगवान सूर्य को खीर-पूड़ी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाने के बाद खुद खाते हैं. यह व्रत काफी कठिन होता है. पूरी पूजा के दौरान किसी भी तरह की आवाज नहीं होनी चाहिए. खासकर जब व्रती प्रसाद ग्रहण कर रही होती है और कोई आवाज हो जाती हो तो खाना वहीं छोड़ना पड़ता है और उसके बाद छठ के खत्म होने पर ही वह मुंह में कुछ डाल सकती है. इससे पहले एक खर यानी तिनका भी मुंह में नहीं डाल सकती इसलिए इसे खरना कहा जाता है. खरना के दिन खीर के प्रसाद का खास महत्व है और इसे तैयार करने का तरीका भी अलग है. मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर यह खीर तैयार की जाती है. प्रसाद बन जाने के बाद शाम को सूर्य की आराधना कर उन्हें भोग लगाया जाता है और फिर व्रतधारी प्रसाद ग्रहण करती है. इस पूरी प्रक्रिया में नियम का विशेष महत्व होता है. शाम में प्रसाद ग्रहण करने के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कहीं से कोई आवाज नहीं आए. ऐसा होने पर खाना छोड़कर उठना पड़ता है.
छठ, सूर्य की आराधना का पर्व है। वैदिक ग्रन्थ में सूर्य को देवता मानकर विशेष स्थान दिया गया है। प्रात: काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण का नमन किया जाता है। सूर्य की उपासना भारतीय समाज में ऋग्वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य की उपासना के महत्व को विष्णु,भागवत और ब्र±ा पुराण में बताया गया है। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार षष्ठी को एक विशेष खौगोलीय घटना होती है। इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। इसके संभावित कुप्रभाव से रक्षा करने का सामथ्र्य पूजा पाठ में होता है।
छठ पर्व की शुरूवात को लेकर अनेक कथानक हैं। आध्यात्मिक कथा के अनुसार ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकृति देवी की आराधना कर संतान की रक्षा की कामना की जाती है। कार्तिक मास की षष्ठी व स#मी को वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। उनकी आराधना के लिए शाम को अस्त और सुबह उदय होते सूर्य को अघ्र्य देकर कामना की जाती है। यह भी कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। इससे राजा व्यथित होकर खुदकुशी करने जा रहा था। तभी षष्ठी देवी प्रकट हुई। उन्होेंने राजा से संतान सुख के लिए षष्ठी देवी की पूजा करने के लिए कहा। राजा ने देवी की आज्ञा मानकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की पूजा थी। प्रियव्रत को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तब से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास खत्म होने पर अयोध्या लौट आए।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देवता की पूजा की। तब से जनमानस में ये पर्व मान्य हो गया।

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