Tuesday, 14 October 2014

फूल खिलते हैं तो आवाज कहाँ होती है


जीवन को सौंदर्य से आप्लावित करना है, उसे कलापूर्ण बनाना है तो सहजता का दामन थामना ही होगा और वो भी बाहरी नहीं, आंतरिक सहजता का। असली सौंदर्य सहजता में ही है। कली से फूल बनने में सहजता है, तभी फूल में असीम सौंदर्य है। जिसे हम तहजीब कहते हैं वह भी जीवन की सहजता ही है।
अधिकतर लोगों को अपने शारीरक व्यक्तित्व से शिकायत रहती है. कई बार मामूली शारीरक भिन्नताओं वाले लोग अपने खूबसूरत जीवन को इसी चिंता में बिता देते हैं. उन्हें लगता है कि सारी दुनिया सिर्फ उन्हें देखकर उन पर व्यंग्य कर रही है. वह कल्पनाओं में भी यही सोचते हैं कि वह जीवन में कभी प्रगति कर ही नहीं सकते ऐसा सोचना गलत है. सफलता के लिए जरुरी है आप खुद से प्रेम करें और सकारात्मक सोच रखें.
जो लोग सहज भाव से निरंतर प्रयास करते हैं, वे जीवन में बहुत आगे जाते हैं। सहजता का अनुगामी जीवन में कभी पीछे नहीं रहता। पिछड़ता नहीं। एक झटके में शिखर पर पहुँच जाने में आनंद नहीं है। लेकिन कई लोग सहज होते हुए भी अपेक्षित उन्नति क्यों नहीं कर पाते? वे जीवन में क्यों पिछड़ जाते हैं? यहाँ एक प्रश्न और उठता है कि क्या ऊपर से सहज दिखने वाला व्यक्ति वास्तव में सहज है? कई बार व्यक्ति ऊपर से तो सहज दिखलाई पड़ता है लेकिन वास्तव में सहज नहीं होता। उसके अंदर एक तूफान चलता रहता है। वह बाहर भी थोड़ा-बहुत झलकना चाहिए, लेकिन नहीं झलकता। अंदर द्वंद्व है, पीड़ा है, राग-द्वेष है, नकारात्मक भावों का तूफान है, लेकिन बाहर फिर भी खामोशी है। इसका ये अर्थ हुआ कि बाहर की खामोशी अभिनय मात्र है। अब यदि अभिनय ही करना है, तो आंतरिक शांति का कीजिए। बाहर की खामोशी बेकार है।बाहर की मुखरता और चंचलता से अंदर की सहजता प्राप्त की जा सकती है। किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम, व्यायाम, योगासन, खेल-कूद, शिल्प और कलाएँ इन सभी के द्वारा आंतरिक सहजता प्राप्त की जा सकती है। किसान-मजदूर प्रायरू अंदर से सहज ही होते हैं। तथाकथित बुद्धिजीवी या प्रफेशनल कई बार ऊपर से तो सहज दिखते हैं, लेकिन अंदर से उतने ही असहज होते हैं। मानसिक अशांति के शिकार, तनाव व दबाव से पीड़ित, हमेशा दुश्चिंताओं व द्वंद्व में घिरे हुए।

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