Wednesday, 1 October 2014

एक नारे से बदल दिया हिन्दुस्तान



आज ही के दिन 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में पैदा हुए लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्मदिवस और गांधी जी काजन्मदिवस ही एक समान नहीं था। बल्कि व्यक्तित्व और विचारधारा भी एक जैसे थे। शास्त्री जी गांधी के विचारों से बेहद प्रेरित थे। शास्त्री जी ने आजादी के आंदोलन में गांधीवादी विचारधारा का अनुसरण करते हए देश की सेवा की और आजादी के बाद भी अपनी निष्ठा और सच्चाई में कमी नहीं आने दी।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में 'मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव' के यहां हुआ था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। ऐसे में सब उन्हें 'मुंशी जी' ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी कर ली थी। लालबहादुर की मां का नाम 'रामदुलारी' था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार से 'नन्हे' कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हे अठारह महीने के हुए तब दुर्भाग्य से उनके पिता का निधन हो गया। उसकी मां रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर चली गईं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हे की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी मां का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अनपे नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रुप में नियुक्त किया गया था। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जून 1964 को प्रधान मंत्री का पद भार ग्रहण किया। शास्त्री जी का प्रधानमंत्री पद के लिए कार्यकाल राजनैतिक सरगर्मियों से भरा और तेज गतिविधियों का काल था। पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर नजरें गडाए खड़े थे तो वहीं देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं भी थीं। लेकिन शास्त्री जी ने हर समस्या को बेहद सरल तरीके से हल किया। किसानों को अन्नदाता मानने वाले और देश के सीमा प्रहरियों के प्रति उनके अपार प्रेम ने हर समस्या का हल निकाल दिया। “जय जवान, जय किसान” के साथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया।
लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम रोल अदा किया, केन्द्र सरकार में रेलमंत्री रहे और 1964 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। 1965-66 में हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध में उनके निर्णयों की वजह से भारत ने पाकिस्तान को मार भगाया। जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद शास्त्री जी ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। उनका कार्यकाल राजनीतिक सरगर्मियों से भरा और तेज गतिविधियों का काल था। पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर नजरें गड़ाए खड़े थे तो वहीं देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं भी थीं। लेकिन शास्त्री जी ने हर समस्या को बेहद सरल तरीके से हल किया। किसानों को अन्नदाता मानने वाले और देश की सीमा प्रहरियों के प्रति उनके अपार प्रेम ने हर समस्या का हल निकाल दिया "जय जवान, जय कि सान" के उद्घोष के साथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया।
जिस समय वह प्रधानमंत्री बने उस साल 1965 में पाकिस्तानी हुकूमत ने कश्मीर घाटी को भारत से छीनने की योजना बनाई थी। लेकिन शास्त्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए प ंजाब के रास्ते लाहौर में सेंध लगा पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस हरकत से पाकिस्तान की विश्व स्तर पर बहुत निंदा हुई। पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए तत्कालीन सोवियस संघ से संपर्क साधा जिसके आमंत्रण पर शास्त्री जी 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए। इस समझौते के तहत भारत, पाकिस्तान के वे सभी हिस्से लौटाने पर सहमत हो गया जहां भारतीय फौज ने विजय के रूप में तिरंगा झंडा गाड़ दिया था। इस समझौते के बाद दिल का दौरा पड़ने से 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में शास्त्री जी का निधन हो गया। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कोई आधिकारिक रिपोर्ट सामने नहीं लाई गई है। उनके परिजन समय समय पर उनकी मौत का सवाल उठाते रहे हैं। वर्ष 1966 में ही उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार भी मिला था।

No comments:

Post a Comment