Thursday, 2 October 2014

अपने अंदर के रावण को मारें


विजय दशमी का अर्थ बुराई पर अच्छाई की विजय। इसी दिन भगवान राम ने बुराई रूपी रावण को मारकर अच्छाई और सत्य को विजय दिलाई। तब ही से प्रतिवर्ष प्रतीकात्मक रूप से रावण का दहन किया जाता है। सदियां बीत चुकी हैं, लेकिन रावण पर राम की विजय का यह पर्व हम आज भी उसी उल्लास और उमंग के साथ मनाते हैं। अक्सर रावण दहन कर हम सत्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। विजयदशमी का एक ही कारण है और वह है राम की विजय। इसीलिए इसे विजय पर्व के नाम से जाना जाता है। यथार्थ में श्रीराम मात्र रावण विजेता नहीं थे, वह कर्म विजेता थे। उन्होंने शत्रु यानी दुराचार, अधर्म और असत्य को परास्त कर धर्म, सदाचरण और सत्य की प्रतिष्ठा की। लंका काण्ड के अंत में वर्णित दोहे-समर विजय रघुवीर के चरित जे सुनहिं सुजान। विजय विवेक विभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान के अनुसार, विजय, विवेक और विभूति, तीनों का मानव जीवन में बड़ा महत्व है। ये चीजें उन्हीं को प्राप्त होती हैं, जो सुजान होते हैं। यहां सुजान का तात्पर्य है सद्कर्म करने वाला, सदाचरण का पालन करने वाला। विजय पर्व का उत्सव तो एक-दो दिन का होता है, पर यथार्थ में मानव के संपूर्ण जीवन में इन तीनों की परीक्षा पल-पल होती है। वस्तुत: अंदर के रावण पर विजय ही जीवन का मूल है।
विजयदशमी एक ऐसा पर्व है, जो समाज के विभिन्न स्वरूपों, प्रवृत्तियों और उसकी दिशा को समझने-बूझने की एक जबरदस्त कसौटी है। यह हमें राजनीति के अर्थ, राजनीति और कूटनीति के भेद-विभेद, परस्पर संबंधों के निर्धारण के सिद्धांत, रण-कौशल, शासन-व्यवस्था के लिए आवश्यक चातुर्य आदि का विस्तृत ज्ञान देता है। इसमें किंचित भी संदेह नहीं कि इसके कुछ पात्र ऐसे हैं, जो शुरू से ही समाज में अपनी पैठ बनाए हुए हैं, यदि उनके बारे में सही समझ पैदा करने में कामयाबी पाने में समर्थ हो सकें तथा उसको मर्यादित करने के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर, उन पर अमल कर लिया जाए, तो रामराज्य की कल्पना को साकार कर पाना असंभव नहीं होगा। लेकिन विडंबना यह है कि अधर्म रूपी पुतले का दहन करने के बाद भी सर्वत्र बुराई का बोलबाला है। रावण समाज में बुराई का प्रतीक है। हम हर साल रावण के पुतले जलाकर खुशियां मनाते हैं, पर क्या हम अपने अंदर बैठे रावण को मार पाए हैं? आइए इस विजयदशमी पर हम उन दशानन रूपी बुराइयों को जड़ से मिटाने का संकल्प लें, जिससे समाज में रामराज की स्थापना हो सके।
बाल विवाह
देश में बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए कई सख्त कानून हैं, लेकिन आज भी हजारों लड़कियों की शादी बचपन में कर दी जाती है। हमें यह समझना होगा कि केवल कानून बना देने से ऎसी सामाजिक कुरीतियों पर रोक नहीं लग सकती है। हमें इस दिशा में खुद पहल करनी होगी।
अतिक्रमण
हमारे यहां अतिक्रमण का यह हाल है कि राहगीरों के लिए बनी सड़कें अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद करती दिखती हैं। यह हमारा गैर जिम्मेदाराना रवैया ही है कि सड़कें आज गलियों में तब्दील हो चुकी हैं।
बलात्कार
समाज में किसी भी स्त्री का बलात्कार होना, केवल उस स्त्री के साथ अन्याय नहीं, बल्कि उस समाज के सभ्य होने पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि बलात्कार की अधिकांश घटनाओं में आरोपित पीडित का परिचित ही होता है। दिनोंदिन बढ़ती इस सामाजिक बुराई पर जल्द से जल्द काबू पाना होगा। एक बेहतर समाज तभी स्थापित हो सकता है जब हम खुद जागरूक हों और इसके लिए आगे आएं। केवल कानून बना देने से बलात्कार की घटनाओं पर काबू नहीं पाया जा सकता है।
कुपोषण
कुपोषण के मामले मे भारत अपने पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश से भी आगे है। हर व्यक्ति तक भोजन पहंुचाने के सरकारी प्रयास जब तक कागज से जमीन पर नहीं उतरेंगे, स्थिति बदलने वाली नहीं है। इस दिशा में लोगों को भी सरकार का सहयोग करने की जरूरत है। हम सभी को सजग रहने की जरूरत है। देश में खाद्यान्न उत्पादन को सड़ने से बचाना होगा, जिससे कोई भी देश में भूखा न रहे। तभी हम कुपोष्ाण मुक्त भारत बनाने में सफल होंगे।
गंदगी
सफाई ही किसी भी स्वस्थ समाज का आइना होता है। आइए, हम एक सभ्य नागरिक का परिचय देते हुए समाज को स्वस्थ बनाने का संकल्प लें।
भ्रष्टाचार
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था, भारत में सिंहासन और व्यापार के बीच सम्बंध जितना दूçष्ात है, उतना किसी भी देश में नहीं है। भ्रष्टाचार ने देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर बहुत ही विपरीत प्रभाव डाला है।
दहेज
इतिहास गवाह है, जिस समाज ने नारी का सम्मान नहीं किया, उसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया। आज दहेज के नाम पर नारी का प्रतिदिन अपमान किया जा रहा है। यह एक ऎसा कलंक है, जिसने समाज को घुन खाई लकड़ी की तरह अशक्त कर दिया है। इस सामाजिक अभिशाप को खत्म करने के लिए हमें मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।
लूट
बढ़ती आपराधिक घटनाएं पुलिस के लिए चुनौती बन चुकी हैं। लूट की वारदात दिनोंदिन कमजोर हो रही सामाजिक ताने-बाने पर चोट जैसी है। लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गलत राह चुनने से नहीं कतरा रहे हैं। कहीं न कहीं ऎसी घटनाएं हमारे संस्कारों में चूक को ही प्रदर्शित करती हैं।
छेड़खानी
आज महिलाएं खुद को कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं। छेड़खानी की घटनाएं हमारी गिरती नैतिकता को दिखाती हैं। महिलाएं आज भले ही हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, लेकिन समाज की पुरूष मानसिकता आज भी नहीं बदली है। महिलाएं तभी खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी, जब हम खुद अपने आचरण में बदलाव लाएंगे।
भ्रण हत्या
यह विडम्बना ही है, जिस नारी का हम "शक्ति" के रूप में पूजा करते हैं, उसी नारी को हम गर्भ में ही मारने से नहीं चूकते हैं। कन्या भ्रूण हत्या आज हमारे समाज का एक स्याह पहलू बन चुका है। आइए, इस विजयदशमी पर महिला सशक्तीकरण की शुरूआत हम अपने घर से ही करते हैं।
मनुष्य को अपने भीतर के रावण को मारकर दिल में राम को लाने की जरूरत है। रावण रूपी बुराइयां हमारे अंदर घुसी हुई हैं, जिसे हम पाप के दलदल से निकल नहीं पाते और पुण्य कर्मों से दूर रहते हैं। मन में श्रीराम के विचारों के आने से दूषित विचार बाहर हो जाएंगे। जब हर घर का मनुष्य राम बन जाएगा, तो रावण अपने आप ही खत्म हो जाएगा। 

1 comment:

  1. सिद्दीकी साहब,शानदार प्रस्तुति। बधाई। बधाई आपकी लेखनी को,बधाई आपकी सक्रियता को।

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