बिजली की लगातार बढ़ती मांग और सीमित मात्रा में होने वाले उत्पादन के कारण असंतुलन पैदा हो गया है। असंतुलन की स्थिति में मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।हालात कुछ ऐसे बन गये हैं कि बिजली उत्पादन के जो नए तरीके खोजे जा रहे हैं मांग उससे भी ज्यादा बढ़ती जा रही है। बिन बिजली सब सून है यह मान लिया जाना चाहिये। बिजली की कमी से जन जीवन प्रभावित होता है। बिजली के बगैर रहना कितना मुश्किल है इसे आसानी से समझा जा सकता है।
यह जानते हुए भी कि सभी संसाधनों के उपयोग करते हुए भी अब तक पर्याप्त विद्युत उत्पादन संभव नहीं हो पाया है, लोग बिजली का बेहिसाब, बेफालतू उपयोग करते हैं। बात शासकीय अशासकीय कार्यालयों की हो या घर, दुकान, गली, मुहल्ले, चैक चैराहों की आप हर कहीं-हर तरफ बिजली की बर्बादी के नज़ारे देख सकते है।बिजली के इस बेकार में हो रहे खर्च को रोकने के लिए जो जागरूकता अभियान, योजनाएं, नियम बनाये गये वे भी प्रभावी परिणाम नहीं दे पाये हैं। नतीजा यह है कि बिजली का बेहिसाब दुरूपयोग हो रहा है इसे रोकने की फिक्र नहीं है।
बिजली के दुरूपयोग को बढ़ाने में उन घोषणाओं ने भी बड़ा योगदान दिया है जिनमें झुग्गी बस्ती में रहने वालों, किसानों, आदमी की जाति बिरादरी को देख परखकर उसे मुफ्त में बिजली देने का ऐलान कर दिया गया। ‘‘माले मुफ्त दिले बेरहम’’ वाली कहावत ने ऐसा असर दिखाया कि लोगों ने खंभे पर तार डालकर मोटर पम्प,हीटर, फ्रिज, एयर कंडीशनर ही नहीं बड़ी बड़ी मशीनें भी खूब मुफ्त बिजली से चलाई और चला रहे हैं। बिजली उत्पादन को रसातल में पहुंॅचाने का काम करने में उद्योगपति भी पीछे नहीं रहे जिन्होंने रियायती दरों पर बिजली की सुविधा लेकर उसका सदुपयोग कम दुरूपयोग अधिक किया। बिजली चोरी करने वाले आज भी जमकर अपनी मनमानी कर रहे हैं। राजनीतिक, प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव में बिजली की बर्बादी खूब हो रही है।
अब सवाल यह है कि सीमित मात्रा में हो रहे बिजली उत्पादन की तुलना में बिजली के बेहिसाब खर्च को रोका जा सकता है ? आखिर ऐसा क्या किया जाये जिससे बिजली की बर्बादी को बचाया जा सके ? ऐसा क्या करें कि लोग खुद ही बिजली की बचत करने में जुट जायें ? अब समय आ गया है कि बिजली से जु़ड़े इन ज्वलंत सवालों के जवाब तलाशे जायें। इसका एक तरीका यह हो सकता है कि बिजली की मुफ्तखोरी को तत्काल बंद किया जाये। जो बिजली का उपयोग करते हैं उनके लिए इसका शुल्क अदा करना जरूरी हो।
इसके साथ ही बिजली की बचत का एक फार्मूला यह भी हो सकता है जिस अवधि में बिजली का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है उस अवधि के निर्धारित समय में बिजली की दरें कुछ बढ़ाकर वसूल की जायें। इसी के साथ देर रात को बिजली के उपयोग की दरें प्रति यूनिट लगभग आधी कर दी जाये जबकि दिन के समय में उपयोग की जाने वाली बिजली की दर भी वर्तमान दर से कुछ कम ही होना चाहिये। इसका अर्थ यह है कि विद्युत दरों को सबसे अधिक खपत, सामान्य खपत और कम खपत के आधार पर तय किया जाये तो इससे बचत करने वाले उपभोक्ताओं को प्रोत्साहन मिलेगा। यदि बिजली के उपयोग की दर 24 घंटे के लिए अलग अलग तीन स्लेब बनाकर निर्धारित की जायें तो इसके परिणाम निश्चित ही अच्छे देखने को मिलेगें।
प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि बिजली उपभोक्ता उत्पादन तो नहीं बढ़ा सकते लेकिन बिजली के अपव्यय को रोककर उसकी बचत अवश्य कर सकते हैं। यह सच है कि बिजली की बचत से ही बिजली उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। बचत के लिए बिजली उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। ‘पीक आवर्स’ में बिजली की दरें बढ़ाने का प्रस्ताव एक ऐसा प्रलोभन है जो विद्युत के बेहिसाब खर्च को नियंत्रित कर सकता है। बिजली उपभोक्ता अपना बिल कम करने के लिए इस प्रलोभन का लाभ अवश्य लेना चाहेगें।
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