नारी तू नारायणी क्यूँ इस जहाँ से डर रही
तू ही जीवनदायिनी क्यूँ मरने से पहले मर रही
तुझ से जीत जाने का यम ने भी न साहस किया
शिव भी चरण के नीचे थे जब तूने अट्टाहस किया
उठती थी तुझ पर निगाहेँ आज वो झुकने लगे
किसी मशहूर कवि की ये चंद लाइनें नारी की असीम शक्ति को रूपायित करती है। आज दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। इसे महिलाओं के संघर्ष और समाज को उनके योगदान के रूप में याद किया जाता है। पहला महिला दिवस साल 1911 में 19 मार्च को मनाया गया था पर 1914 से इसे आठ मार्च को मनाया जाने लगा। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
असल में, अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन, यह दिवस सबसे पहले सबसे पहले यह 28 फरवरी 1909 में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था। 1917 में रुस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखरी इतवार 23 फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
रोजमर्रा की भागती-दौड़ती जिंदगी में और वह भी खासकर जब सिर्फ गृहिणी न होकर उसके साथ-साथ और भी कई जिम्मेदारियाँ हो और रोजमर्रा के जीवन में आने वाली हर छोटी-बड़ी समस्या। जिसे बिना निपटाएँ वह आगे नहीं बढ़ सकती। ऐसे समय उस नारी की सबसे कठिन परीक्षा की घड़ी होती है। पहले घर, फिर ऑफिस, बाजार और फिर सामाजिक इन सब जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते जब वह थक भी जाती है। तब भी वह ऊफ... तक नहीं करती। हर नारी करीब-करीब इसी तरह की समस्याओं में घिरी होती है। फिर भी उसके मन में कुछ करने की लगन, और कुछ नया-नया करने की चाह बनी रहती है। और होना भी यही चाहिए। क्योंकि हमें अपने आपको ऊर्जावान बनाए रखने के लिए यह सब बहुत जरूरी है। लेकिन इतना सब करने के बाद भी परिवार वाले, समाज वाले नारी का महत्व कहाँ समझ पाए हैं। भले ही हम इस दिवस को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में घोषित करें। नारी जाति कितने ही मैडल कमा लें लेकिन समाज और परिवार में आज भी नारी के खिलाफ होने वाले अत्याचार, साजिश सबकुछ जारी है। आज भी महिलाओं पर अत्याचारों की श्रृंखलाएँ लदी हुई है। नारी भले ही कितनी ही पढ़ लिख जाए। थोड़े समय के लिए समाज का नजरिया उसके प्रति बदल भी जाएँ तब भी आज भी वह अत्याचारों के कैदखाने में बंद ही है। ऐसे कई उदाहरण आज रोजाना हमारी आँखों के सामने घूमते दिखाई देते हैं। जो दिखाई तो स्पष्ट रूप से देते है लेकिन फिर भी हम कुछ नहीं कर पातें।
ऐसी दुनिया की सारी नारियों के प्रति मेरी प्रति मेरा मन शत् शत् नमन करने को करता है। फिर भी मैं उम्मीद करती हूँ कि एक न दिन नारी के प्रति बह रही इस धारा को थाह मिलेगी और हमारा महिला दिवस मनाना सही साबित होगा।
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