Sunday, 22 March 2015

है शहीदी दिवस, पर कायम है सवाल


शहीदे–आजम भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव के बलिदान दिवस पर उन्हें याद करते हुए हमारे मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जिस सपने को लेकर हमारे क्रान्तिकारी पुरखों ने हँसते–हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया था, उसका क्या हुआ ? जो लोग इन शहीदों की याद में जलसे करने और उत्सव मनाने पर बेहिसाब पैसा फँूकते हैं, क्या उन लोगों को पता भी है कि हमारे शहीदों के विचार क्या थे, वे किस तरह का समाज बनाना चाहते थे और देश को किस दिशा में ले जाना चाहते थे ? उनके सपनों और विचारोंे को दरकिनार करके, उनके बलिदान दिवस का उत्सवधर्मी, खोखला और पाखण्डी आयोजन करना उन शहीदों का कैसा सम्मान है ?
सच तो यह है कि अंग्रेजों ने भगत सिंह और उनके साथियों के शरीर को ही फाँसी चढ़ायी थी, उनके विचारों को वे खत्म नहीं कर सकते थे और कर भी नहीं पाये । भगत सिंह ने कहा था कि––
हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली,
ये मुश्ते–खाक है फानी रहे, रहे न रहे ।
आजादी के बाद देशी शासक भी भगत सिंह के विचारों से उतना ही भयभीत थे जिम्मा अंग्रेज । उन्होंने इन विचारों को जनता से दूर रखने की भरपूर कोशिश की । लेकिन देश की जनता अपने गौरवशाली पुरखों को भला कैसे भूल सकती है । आज भी जन–जन के मन–मस्तिष्क में उन बलिदानियों की यादें जिन्दा हैं ।
आज 23 मार्च है. हमारे नौजवान और बच्चों से अगर ये पूछा जाये कि 23 मार्च का क्या महत्व है, तो अधिकाँश इस पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर करेंगे. हो सकता है कि कुछ 23 मार्च को वर्ल्ड कप के नॉक आउट मुकाबलों का दौर शुरू होने के दिन के तौर पर याद करें. लेकिन आज का दिन समर्पित है उन महान स्वतन्त्रता सेनानियों को, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया. मैं बात कर रहा हूँ भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की जिनका आज शहीदी दिवस है.
बात आगे बढ़ाने से पहले सरदार भगत सिंह के जीवन को याद कर लें.
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में चक नंबर 105 (अब पाकिस्तान में) नामक जगह पर हुआ था। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए थे। भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। इस संगठन का उद्देश्य ‘सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले’ नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर17 दिसम्बर 1928 लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा था। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने नई दिल्ली की सेंट्रल एसेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को ‘अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए’ बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। बाद में भगत सिंह कई क्रांतिकारी दलों के सदस्य बने । बाद मे वो अपने दल के प्रमुख क्रान्तिकारियो के प्रतिनिधि बने। उनके दल मे प्रमुख क्रन्तिकारियो मे सुखदेव, राजगुरु थे। इन तीनों ने मिलकर अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया. घबराई सरकार ने इनको जेल में बंद कर दिया.
23 मार्च 1931 को भगत सिह तथा इनके दो साथियों सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी दे दी गई ।
फांसी पर जाते समय वे तीनों गा रहे थे -
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी खुस्बू ए वतन आएगी ।
फांसी के बाद कोई आन्दोलन ना भड़क जाए इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किए तथा फिर इसे बोरियों में भर कर फ़िरोजपुर की ओर ले गए जहां घी के बदले किरासन तेल में ही इनको जलाया जाने लगा । गांव के लोगो ने आग देखी तो करीब आए । इससे भी डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ो को सतलुज नदी में फेंक कर भागने लगे। जब गांव वाले पास आए तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो को एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया ।
तो ये थी हमारे इन महान स्वतन्त्रता सेनानियों के गौरवमयी जीवन गाथा। यह सत्य है कि आज के हालातों में यदि भगत सिंह जैसे कर्मठ और माटी के सपूत जीवित होते तो देश का इतना बुरा हाल नहीं होता। धन्य है भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव। भगत सिंह और उनके साथियों का हमारे लिए सबसे बड़ा महत्त्व यह है कि वे महान क्रान्तिकारी और महान विचारक थे । हमारे देश, समाज और मेहनती गरीब जनता के लिए उन क्रान्तिकारियों के विचार आज पहले से कहीं ज्यादा प्रासांगिक हैं । लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनके विचारों के बारे में आज भी देश के अधिकांश लोगों को कुछ खास पता नहीं है । भगत सिंह को याद करने का सबसे सही तरीका यही हो सकता है कि उनके विचारों को जन–जन तक पहुँचाया जाय । साथ ही उनके विचारों को व्यवहार में उतारने के लिए एकजुट होना भी आज समय की माँग है । शहीदों के सपने को देश की बहुसंख्य जनता का सपना बनाना और उसे साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है ।

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