Tuesday, 10 March 2015

अदालतों के लिए चुनौती


सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने ऐसा एक जोडा बलात्कारी और बलात्कार पीड़िता के रूप में खडा था जो पिछले ३ सालों से लव इन रिलेशन में रह रहा था। इसमें युवती एक एयरलाइन्स में एयर होस्टेस रही थी और युवक बैंक में ऊंचे ओहदे में था। युवक शादीशुदा था। लडकी ने उसके खिलाफ शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाने और फिर बाद में मुकर जाने का आरोप लगाते हुए बलात्कार का मामला दर्ज करवाया था। लडकी ने अदालत को बताया कि वे लव-इन-रिलेशन में रहते थे उस दौरान युवक ने उससे शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास किया लेकिन वह हमेशा इंकार कर देती। तब उसने उससे शादी का वादा किया और दोनों के बीच संबंध बन गए। उसका कहना था कि बिना शादी के वादे के मैं कभी भी यौन संबंध नहीं बनाती। वहीं दूसरी ओर युवक का तर्क था वह यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि मैं शादीशुदा हूं और उससे शादी नहीं कर सकता। उसने पूरी सहमति और खुशी से उससे शारीरिक संबंध बनाये थे। दोनों ने एक-दूसरे की अश्लील तस्वींरें खीचकर अदालत को दिखार्इं। दोनों के बीच ३ साल तक रोांस चलता रहा था। अदालत में न्यायाधीश विक्रमजीत सेन और एसके qसह ने कहा कि- इट इज नाट क्यूपिट बट स्टुपिड यानी यह प्रे नहीं बेवकूफी है। अश्लील तस्वीरें न्यायालय को दिखाने के लिए दोनों को फटकार भी लगाई गई। इस तरह के हजारों मामले देश भर की अदालतों में हैं जिसमें न्यायाधीशों को फैसला तय करने में काफी असमंजस का सामना करना पड रहा है। सवाल यह खडा हो जाता है कि शादी के वादे के बाद सहमति से बनाया गया शारीरिक संबंध को क्या बलात्कार माना जा सकता है। पिछले साल २७ अगस्त को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सदानंद गौडा के बेटे कार्तिक गौडा पर कन्नड फिल्म अभिनेत्री मिथ्रिया ने जब कार्तिक की दूसरी लडकी से सगाई के बाद उस पर बलात्कार का आरोप लगाया तो देश भर में बवाल मच गया। मिथ्रिया का आरोप है कि कार्तिक ने उसके गले में मंगलसूत्र पहनाया था और यह वादा किया था कि सार्वजनिक रूप से वह उसी से शादी करेगा। उसके बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए। कार्तिक की ऐन सगाई के बाद मिथ्रिया ने अपने संबंधों का खुलासा कर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी। उसका आरोप है कि कार्तिक ने उसे शादी का झांसा ही नहीं दिया बल्कि उससे संबंध बनाने के लिए उसके गले में मंगलसूत्र डालकर यह जताने की कोशिश की कि वह उसका जीवन भर साथ निभायेगा और अपनी पत्नी बना बनायेगा। पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही उसने उससे शारीरिक संबंध बनाये थे। इस मामले में कार्तिक पर धारा ३७६ के तहत बलात्कार और ४२० के तहत धोखाधडी का मामला दर्ज किया है। यह हाईप्रोफाइल मामला भी सशर्त प्यार का नजर आता है यानी शादी की शर्त पर शारीरिक संबंध बने। फैमिली कोर्ट ने कार्तिक और मिथ्रिया की एकांत में मंगलसूत्र पहनाकर की गई शादी को मान्यता नहीं देकर गौडा परिवार को राहत पहुंचाई लेकिन हाईकोर्ट ने मिथ्रिया के आरोपों को गंभीरता से लिया और कार्तिक की आरोपों को रद्द करने की याचिका ठुकरा दी। उसके खिलाफ जांच बंद करने से भी इंकार कर दिया। इस मामले के बाद देश भर में इस तरह के ढेरों मामले सामने आ सकते हैं। दिल्ली की वकील रेबेका जान का कहना है कि बलात्कारियों पर शिकंजा कसने के लिए २०१३ में आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किये थे। नये संशोधन से बलात्कार की व्याख्या और अधिक व्यापक हो गई है। रजामंदी नहीं होने का मतलब बलात्कार है। अब आरोपी को यह साबित करना होता है कि यौन संबंध रजामंदी से बनाए गए थे। कानून के मुताबिक यदि किसी महिला ने शादी के वादे के बाद शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में पुरुष ने शादी से इंकार कर दिया तो यह सहमति से बनाए यौन संबंधों के दायरे में नहीं आएगा। कानून आयोग के पूर्व सदस्य आचार्य का कहना है कि ऐसे मामले जटिल होते हैं और कोई नहीं जानता कि इन्हे कैसे सुलझाया जाए। सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि ऐसा कोई फार्मूला नहीं है जो इस तरह के सभी मामलों में एक जैसा लागू हो सके। इसलिए हर मामले को मौजूद साक्ष्यों के आधार पर ही सुलझाया जाना चाहिए। ऐसे में अलग-अलग कोर्ट के एक ही तरह के मामले में अलग-अलग फैसले भी आते हैं। २००३ में शीर्ष अदालत ने एक शख्स को इसलिए बरी कर दिया था क्योंकि अदालत का मानना था कि जब दो लोग प्रे और रोांस में डूबे हों तो शादी का वादा बहुत मायने नहीं रखता। लेकिन २००६ में एक व्यक्ति को इसलिए सजा मिली क्योंकि शुरू से ही उसका इरादा लडकी से शादी करने का नहीं था। २०१३ में सुप्रीम कोर्ट ने शादी करने का वादा तोडने और झूठा वादा करने के बीच अंतर स्पष्ट किया। एक अन्य विधि विशेषज्ञ सतीश कहते हैं कि काफी मामले पुलिस के केस दायर करने की वजह से ही अदालत तक आते हैं। हालांकि की देश की पुलिस बलात्कार के मामलों में एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करने के लिए कुख्यात है लेकिन नये बलात्कार कानून में पुलिस की जवाबदही तय कर दी गई है। किसी महिला की एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले पुलिसकर्मी पर ड्यूटी में लापरवाही बरतने का आरोप लगता है और उसे कम से कम ६ माह सजा का प्रावधान है। इसी का परिणाम है कि जैसे ही अब कोई महिला सहमति से संबंधों के मामले में एफआईआर दर्ज करवाने आती है तो पुलिस इसे बलात्कार की शिकायत के रूप में दर्ज करती है। उनका रवैया ऐसा होता कि हम क्यों जोखिम उठाएं जो फैसला करना है वह अदालत करेगी। एक लीगल वेबसाइट पर एक लडकी ने वकीलों से अपनी परेशानी बताते हुए सलाह मांगी थी। उसने लिखा था कि मैं एक लडके के साथ लव-इन- रिलेशन में थी। मैं लडके से शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहती थी तब लडके ने कहा कि मैं तुसे शादी करूंगा। उसके बाद ६ सालों तक दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते रहे और फिर संबंध टूट गया। अब लडकी को लगता है कि वह उसके साथ बलात्कार करता रहा। उसे सलाह देने वाले ७ वकीलों में से ४ ने सुझाव दिया कि लडके के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज करो। २ ने लिखा केस करो और एक ने पूछा क्या शादी का वादा करने का लिखित सबूत है। बहरहाल, यह जरूर qचतन का विषय है कि जहां एक ओर महानगरों और अब छोटे शहरों में लव-इन-रिलेशन में रहने वाले जोडों की संख्या बढती जा रही है तो क्या रिलेशन के दौरान सहमति से बनने वाले संबंधों को विवाद की किसी स्थिति में बलात्कार माना जाएगा।

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