Tuesday, 7 January 2014

प्रियंका , नाम ही काफी


प्रियंका गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की निःसन्देह एक संभावनाशील महिला हैं। लोग अपने नेता के किसी गुण से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं, तो वह उसके द्वारा करिश्मा पैदा करने की क्षमता से होते हैं। 1999 के संसदीय चुनाव में किस तरह से प्रियंका गांधी के मात्र एक चुनावी संबोधन से रायबरेली लोकसभा में कांग्रेस ने भाजपा के प्रत्याशी अरुण नेहरू को हरा दिया था। प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व में यदि कोई गुण सर्वाधिक प्रभावित करता है, तो वह उनके द्वारा लोगों से सहज संवाद स्थापित करने की क्षमता है, बोली-वाणी, पहनावे एवं रहन-सहन से लोगों को सीधे प्रभावित करती हैं।


प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की ओर बढ़ सकती हैं। कहा जा रहा है कि उनका अपनी मां तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली का प्रभार संभालना तय-सा है। इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन कांग्रेस महासचिवों सहित अन्य पदाधिकारियों ने जोर देते हुए कहा कि प्रियंका राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश की इस सीट के लोगों से हमेशा मिलती रही हैं और उनके इस कदम में कुछ भी नया नहीं है। कांग्रेस में राहुल को चुनावी कमान सौंपने से पहले ही पार्टी की ओर से प्रियंका गांधी को सक्रिय कर दिया गया। यूं तो पार्टी के लिए वे उतना तैयार नहीं होती, लेकिन अपनी मां सोनिया गांधी और अपने भाई राहुल गांधी के चुनावी क्षेत्रों का हमेशा ही वह ख्याल रखती आई हैं। लिहाजा, कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी में संगठन मजबूत करने की जिम्मेदारी प्रियंका को सौंप दी। पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में तकरीबन दो लाख और राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में करीब पौने दो लाख वोटों से जीत दर्ज की थी, लेकिन मौजूदा हालात में देश और प्रदेश के दूसरे हिस्सों की तरह रायबरेली और अमेठी के लोगों में भी कांग्रेस को लेकर आक्रोश व्याप्त है। पार्टी कार्यकर्ता अलग से संगठन में गुटबाजी और बड़े नेताओं की उपेक्षा को लेकर रोष में हैं।
रायबरेली और अमेठी में संगठन को दुरुस्त करने का जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने वाली प्रियंका अब लोकसभा चुनाव तक लगभग हर महीने यहां का दौरा करेंगी। इसी योजना के तहत वह रायबरेली और अमेठी के ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं से कई बार अलग-अलग बैठक कर चुकी हैं।
प्रियंका अब तक पारिवारिक जिम्मेदारियों के नाम पर सक्रिय राजनीति से दूर रही हैं। सच तो यह भी है कि  पार्टी का एक तबका प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक देखता है और वह चाहता है कि प्रियंका सक्रिय भूमिका निभाएं। इस तबके का मानना है कि उत्तर प्रदेश और अन्यत्र पार्टी के बेहतर भविष्य के लिए ऐसा किया जाना अनिवार्य है। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने राहुल की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन किया था और उसे 22 सीटें मिली थीं, लेकिन विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा और पार्टी के गढ़ माने जाने वाले अमेठी एवं रायबरेली जैसे स्थानों पर भी पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया। चुनावों में प्रदर्शन खराब रहने के कारणों को लेकर राहुल ने खुद ही पार्टी विधायकों, सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों से बातचीत की थी। गौर करने योग्य यह भी है कि पहले राजनीति में आने के सवाल पर प्रियंका कहती थीं कि राजनीति में बिना आए भी समाज की सेवा की जा सकती है, लेकिन अब माहौल बदल गया लगता है। प्रियंका ने राजनीति में आने के संकेत कई महीने पहले ही देने शुरू कर दिए थे। 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब मीडिया ने प्रियंका गांधी से पूछा था कि वे राजनीति में कब आएंगी, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा था, जब राहुल भैया चाहेंगे तब राजनीति में आएंगी। हालांकि कांगे्रस के प्रवक्ता अब भी इसकी पुष्टि नहीं कर रहे कि प्रियंका सक्रिय राजनीति में आएंगी और यह कह कर सवालों को टाल देते हैं कि आखिरी निर्णय तो प्रियंका को ही करना है। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस उन्हें आगे लाने को आतुर है। कुछ दिग्गज तो साफ कह भी चुके हैं कि प्रियंका को आगे आना चाहिए। सच तो यह है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता व कार्यकर्ताओं में यह धारणा मजबूत होती जा रही है कि चूंकि राहुल गांधी खारिज होते नजर आ रहे हैं, ऐसे में प्रियंका को ही आखिरी दाव के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वे ही राजनीति के खेल में कांग्रेस का आखिरी ‘तुरूप का पत्ता’ साबित हो सकती हैं। मगर संभवतरू सोनिया गांधी इस राय से इत्तफाक नहीं रखतीं। जाहिर सी बात है कि वंश परंपरा को कायम रखने के लिए सोनिया की रुचि बेटे राहुल गांधी में है। प्रियंका दूसरा विकल्प हैं।
दरअसल, कांग्रेस में गांधी परिवार का बड़ा ही योगदान रहा है। जब-जब कांग्रेस कमजोर हुई है या कमजोर की गई है, गांधी परिवार का कोई न कोई व्यक्तित्व इसको उबारने में महती भूमिका निभाया है। जिसमें उनके बलिदान तक की बातें निहित हैं। 20वीं सदी के अंत में जब कांग्रेस कई टुकड़ों में विभाजित हो गई थी ओर देश में भाजपा की सरकार चल रही थी। उस समय कांग्रेस की अपील पर गांधी परिवार की मुखिया श्रीमती सोनिया गांधीजी अपने पुत्र राहुल गांधी के साथ राजनीति में सक्रिय होकर भारतीय कांग्रेस का नेतृत्व संभाला। इसमें संदेह नहीं की गांधी परिवार ने अपने नेतृत्व क्षमता और साफ सुथरी छवि के आधार पर 2004 के आम चुनाव में आम जनमानस के सहयोग से विखंडित कांग्रेस को संगठित एवं जोड़कर भारत की सत्ता में पुनः वापसी की। प्रियंका गांधी का राजनीतिक योगदान इस चुनाव में काफी बढ़ गया, वे कांग्रेसियों को जोड़ने में सफल रही। उनके सक्रिय राजनीति में आने का प्रश्न अब महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि उन्हे तो अब इसका विस्तारीकरण करना है। अमेठी और रायबरेली में वह लगाार समय देती आ रही हैं। उनके आने से निश्चित रूप से कांग्रेस को फायदा होगा, क्योंकि वह इंदिरा गांधी की प्रतिरूप मानी जाती हैं। साथ ही उनकी छवि संवेदनशील एवं ईमानदार राजनीतिज्ञ की है। रही बात वंशवाद की तो अगर किसी के पूर्वज राजनीति में थे, तो उसमें उसका क्या दोष?
प्रियंका गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की निःसन्देह एक संभावनाशील महिला हैं। लोग अपने नेता के किसी गुण से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं, तो वह उसके द्वारा करिश्मा पैदा करने की क्षमता से होते हैं। 1999 के संसदीय चुनाव में किस तरह से प्रियंका गांधी के मात्र एक चुनावी संबोधन से रायबरेली लोकसभा में कांग्रेस ने भाजपा के प्रत्याशी अरुण नेहरू को हरा दिया था। प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व में यदि कोई गुण सर्वाधिक प्रभावित करता है, तो वह उनके द्वारा लोगों से सहज संवाद स्थापित करने की क्षमता है, बोली-वाणी, पहनावे एवं रहन-सहन से लोगों को सीधे प्रभावित करती हैं। भीड़ में विषेशतया महिलाओं में अपने घुलने मिलने की क्षमता के कारण वह लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेती है। जो लोग कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाते हैं, वह अन्य राजनीतिक दलों के वंशवाद की तरफ से आंखे फेरे हुए हैं। अन्य दलों से विपरीत कांग्रेस का परंपरा से प्राप्त नेतृत्व सदैव जनता द्वारा बड़े इम्तिहान पास कर आता है। वह चाहे इंदिरा जी की ‘इन्डीकेट बनाम सिण्डीकेट’ की लड़ाई हो, संजय गांधी द्वारा 1977 के आम चुनाव से पस्त मृतप्राय कांग्रेस में जान फूंकने का काम हो, राजीव गांधी द्वारा इंदिरा जी की हत्या से उपजे शून्य को भरना रहा हो, या श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा 2004 में साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता से अप्रत्याशित तौर पर बाहर करना हो। इस तरह नेहरू - गांधी परिवार का नेतृत्व जनता द्वारा कठिनतम परीक्षा पास करता आ रहा है। प्रियंका गांधी निरूसन्देह कांग्रेस का भविष्य हैं उनके आने से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी एवं समाज को भी एक सक्षम नेतृत्व मिलेगा।

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