भारत विविधताओं भरा देश है। हमलोग एक दूसरे से जुड़े हुए है। हमलोगों का जो इतिहास है, वह बहुत ही रोमांटिक है। इसमें शाहजहां, सिकंदर, अकबर, बुद्ध, महावीर, अशोकसब हमारे हैं। चाहे वे किसी भी देश या प्रांत से भारत आये हों. यही नयी राष्ट्रीयता भारत की है। हम ताजमहल को देख कर चकित होते हैं, उसी तरह से अजंता या एलोरा को देख कर भी। सभी को हम अपना मानते हैं। अपने-अपने राज्य में पार्टियां कुछ बोलती हैं, लेकिन जब दिल्ली आती हैं, तो यहां वे समझौता कर लेती हैं। इसलिए भारत के संघीय स्वरूप पर किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। सौदा जरूर हो रहा है, लेकिन यह मुद्दों पर होना चाहिए, पॉलिसी पर होना चाहिए न कि मुद्रा पर। आज भारत जिस दौर से गुजर रहा है, उस दौर से तकरीबन सभी देश गुजरे हैं। लेकिन संतुलन के साथ हमें आगे निकलना है, तभी हम 2014 में एक सुखद, स्वस्थ और निर्भीक भारत का निर्माण कर पायेंगे।
2014 का पहला सूरज अपने साथ नयी आस लेकर आया है। 2013 हमें यह सीख दे गया है कि अगर जनता जागरूक हो, तो बड़ा से बड़ा बदलाव भी मुमकिन है। राजनीति समेत विभिन्न क्षेत्रों के जानकार ले रहे हैं जायजा 2014 की चुनौतियों और उम्मीदों का। संसद से दागी सजायाफ्ता सदस्यों के निष्कासन और उच्चतर न्यायपालिका की सक्रियता ने आकांक्षाओं के जिस ज्वार को जन्म दिया है वह एकाएक थमनेवाला नहीं। अब तक ‘माई-बाप’ सरकार के आगे हाथ फैलाने वाले हम-आप अब राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी का स्वाद चख चुके हैं।
2013 में जो अशुभ संकेत सामने आये हैं, उनकी अनदेखी करना 2014 के स्वागत की उतावली में हमारे लिए आत्मघातकजोखिम ही पैदा कर सकता है। भलाई इसमें है कि हम इन चुनौतियों का सामना एकजुट हो करने के संकल्प के साथ नये साल की पारंपरिक शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करें और आशा भरी नयी सुबह की अगवानी की तैयारी करें। सबसे बडी और जटिल चुनौती देश की एकता और अखंडता की रक्षा की है। सरकार की स्थिरता के बारे में चिंतातुर राजनीतिक दलों को यह सोचने की फुर्सत नहींरही है कि जिस कीमत पर चुनावी जीत हासिल की जाती रही है उसने जनादेश को खंडित ही नहीं किया है, जनमत को भी बहुत बुरी तरह विभाजित कर दिया है। भाजपा का यूपीए पर जोरदार हमला दैत्याकार भ्रष्टाचार, दिशाहीन लकवाग्रस्त प्रशासन के साथ-साथ कुनबापरस्ती एवं व्यक्तिपूजा पर रहा है।
बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण लोगों के बीच गहरा असंतोष पैदा हो गया है । इसने देश की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौती खड़ी की है। आंतरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से नये वर्ष के संदर्भ में यही कहा जा सकता है सुशासन और नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल से ही हम इस दौड़ में जीत सकते हैं। सुशासन से ही लोगों के गुस्से को शांत किया जा सकता है और शांति कायम की जा सकती है। गवर्नेस और आंतरिक सुरक्षा आपस में गहराई से जुड़े हुए मसले हैं। गुड गवर्नेस यानी सुशासन का आशय पूर्ण जवाबदेही, ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ भागीदारी, उत्तरदायी, भेदभाव रहित और जिम्मेवार प्रशासन से है। इसके माध्यम से ही समग्र विकास (शिक्षा, आर्थिक और ढांचागत विकास, रोजगार के अवसर, प्राकृतिक संसाधनों आदि) का सपना साकार किया जा सकता है। इतना ही नहीं, सुशासन के तहत शिक्षा के प्रचार-प्रसार से लोगों के नैतिक चरित्र में सुधार भी लाया जा सकता है ताकि उनमें सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, पारस्परिकता और असहमति के स्तर पर सुधार हो सके। संक्षेप में कहें तो सुशासन की पहचान वैधता, भागीदारी और वितरण से होती है। सुशासन के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक, आर्थिक, कार्यकारी और न्यायिक प्राधिकारी लोग इस तरह अपने दायित्वों का निर्वहन करें कि आम लोग अपने अधिकारों और विवादों को कानून के दायरे में रह कर हल कर सकें।
नयी उभरती चुनौतियों के मद्देनजर भारत को सुरक्षा-सुशासन की ओर ध्यान देना होगा. सरकार को बदलती परिस्थितियों के अनुसार न सिर्फ रणनीति में बदलाव लाना होगा, बल्कि नये संसाधनों का भी इस्तेमाल करना होगा। अगर बात सीमा सुरक्षा की करें तो कारगिल युद्ध के बाद इस दिशा में सुधार के कई नये मानदंड तय किये गये। लेकिन गुजरे वर्ष में जिस तरहे से पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिशें सामने आयीं, वह तय मानदंड को पूरा न करने का उदाहरण है। बोधगया, पटना जैसे शहरों तक आंतकी वारदातों ने आंतरिक सुरक्षा को और भी कठिन बना दिया है। आतंकवाद का खतरा बढ़ता जा रहा है। आतंकवादियों के पास केमिकल, बॉयोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और परमाणविक बमों का खतरा बढ़ता दिख रहा है।
ओड़िशा में आये तूफान का सामना तो हमने बेहतर तरीके से किया, लेकिन किसी बड़े आतंकी घटनाओं से निबटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण न ही राष्ट्रीय स्तर पर, न ही राज्य, जिला या दूर-दराज के इलाकों में पूरी तरह तैयार दिखता है। नक्सलवादियों से लेकर आतंकियों तक विस्फोट के लिए आइइडी का इस्तेमाल कर रहे हैं। आइडी में उर्वरकों में इस्तेमाल होने वाले रसायन अमोनियम नाइट्रेट एक मुख्य घटक है। सरकार को इसके सप्लाई चेन पर विशेष निगरानी करने की जरूरत है।
आकाश, जमीन और समुद्र से आनेवाले खतरों के बाद एक बहुत बड़ी चुनौती साइबर हमले से बचाव की भी है। मौजूदा समय में यह आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मसला है। पिछले वर्ष कई सरकारी व गैर सरकारी सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण वेबसाइटों को हैक करने की कोशिशें हुईं। इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम ने विश्लेषण के आधार पर सुरक्षात्मक उपाय बताये हैं, जिन्हें समय रहते अमल में लाना चाहिए।
गृह मंत्रलय की खुफिया डाटाबेस तैयार करने के लिए महत्वाकांक्षी नेटग्रिड योजना को जल्द से जल्द यथार्थ रूप देने की पहल होनी चाहिए। जहां कहीं भी केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा सुरक्षा मुहैया कराने की बात हो, उसमें निजी क्षेत्र की साङोदारी बेहद कम या नाममात्र की है। आंतरिक सुरक्षा को अभेद्य बनाने के वास्ते तकनीक निर्माण के क्षेत्र में सहयोग के लिए निजी क्षेत्र को भागीदार बनाने की जरूरत है। कुल मिलाकर, आंतरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से नये वर्ष के संदर्भ में यही कहा जा सकता है सुशासन और नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल से ही हम इस दौड़ में जीत सकते हैं। सुशासन से ही लोगों के गुस्से को शांत किया जा सकता है और शांति कायम की जा सकती है। हालांकि सुशासन मात्र से ही आतंरिक सुरक्षा के हरेक मोरचे पर पूरी कामयाबी हासिल नहीं हो सकती, लेकिन इसके बगैर खतरा तेजी से बढ़ेगा।
भारत में वर्ष 2014 में सबसे बड़ी चुनौती चालू बचत घाटे को काबू में करने की है। दूसरी चुनौती मनी सप्लाई यानी मुद्रा छापने की आदत में बदलाव लाने की है, क्योंकि जब कभी पैसा कम हो जाता है, हम नोट छाप लेते हैं। इससे दाम बढ़ जाता है। नोट ज्यादा हो जाते हैं, जबकि समान उतना ही रहता है। महंगाई में जो बढ़ोतरी होती है, उसके दो कारण होते हैं। पहला कारण उत्पादन में गिरावट है, जबकि दूसरा कारण उत्पादन वही रहा, लेकिन उसके मुकाबले ज्यादा पैसा आ गया। ऐसी स्थिति में भी महंगाई बढ़ती है। भारत के 25 करोड़ परिवारों में से तीन करोड़ परिवार सरकारी मुलाजिम हैं। इनके पास ‘पे कमीशन’ से पैसा बढ़ता है। बड़ी कंपनियों में भी अनेकानेक सुविधाएं और महंगाई भत्ता मिलता है। इसलिए ऐसे परिवारों को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। इनके पास जब ज्यादा पैसा आता है, तो उनके आसपास रहनेवाले लोग भी दाम बढ़ा देते हैं। लेकिन दूसरी ओर नये सेक्टर यानी संगठित क्षेत्र, जो रेफ्रिजेरेटर या मोटर बनाते हैं, उनका दाम वही होता है। चाहे वह भारत में खरीदें या चीन में, दाम लगभग बराबर होता है। लेकिन यदि आप टमाटर या सब्जी खरीदें, तो उसका दाम अमेरिका में अलग, चीन में अलग और भारत के अलग-अलग शहरों में अलग होता है। किसान को देसी दाम पर अपने सामान को बेचने को कहा जाता है, जबकि किसान से खरीदे गये सामान को विदेशी दाम पर बेचा जाता है। यह न्यायोचित नहीं है। इसीलिए अभी इंडिया और भारत के बीच एक तनाव चल रहा है और यह तनाव दाम को लेकर है।
वर्ष 2014 में एक और चुनौती यह है कि इस साल लगभग एक करोड़ लोग वर्क फोर्स में आ रहे हैं, जिन्हें नौकरी चाहिए। उनके लिए नौकरियों की जरूरत होगी। आजकल उद्योग धंधे नहीं लग रहे हैं। जो हैं वे बंद हो रहे हैं या फिर बंदी के कगार पर पहुंच रहे हैं। खेत में कितने लोग काम करेंगे। अगर फैक्ट्री के लिए जमीन नहीं मिलती है, तो वह उसे कहां लगायेंगे। जमीन मिलती भी है, तो कारखाने लगाने में अन्य समस्याएं आ जाती हैं। इसीलिए इसकी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए कुछ नये कानून लाया जाना चाहिए। कारखाने लगाने में जोर देना चाहिए। भारत को उद्योग निर्भर देश बनाना चाहिए। यह बड़ा चुनौती है। जैसे ही फैकटरी लगायी जाती है, दूसरे दिन यूनियन के लोग पहुंच जाते हैं। उन्हें बंद कराने की कोशिश करने लगते हैं। वेतन बढ़ाने की मांग करने लगते हैं। पिछले साल छोटे, मंझोले और बड़े लाखों कारखाने बंद हुए हैं। जो देश की सेहत के लिए नुकसानदायक है। ऐसा बहुत दिनों तक नहीं चल सकता है। उपरोक्त चुनौतियों से निपटना बहुत जरूरी है।
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