प्रगति व सम्मान के लिए मनुष्य के जीवन में अनुशासन आवश्यक है। यह आगे बढ़ाता है। अनुशासन के बिना व्यक्ति, परिवार, देश व प्रदेश प्रगति नहीं कर सकता। अनुशासित व्यक्ति तब बन सकता है, जब उसका अपने मन और तन पर नियंत्रण हो। जीवन में अनुशासन से ही प्रगति संभव है। सोए हुए सिंह के मुंह में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करता। उसे भी शिकार के लिए परिश्रम करना पड़ता है। अनुशासन का पाठ वास्तव मे प्रेम का पाठ होता है ,कठोरता का नहीं। अत: इसे प्रेम के साथ सीखना चाहिए । बालक को अनुशासन का पाठ पढ़ाते समय कु्छ कठोर कदम उठाने आवश्यक हैं, परन्तु इससे रहित रखकर हम बालक को अवश्य ही अवनति की ओर ढकेल देंगे। गाँधीजी ने भी कहा था कि अनुशासन ही आजादी की कुंजी है।
अनुशासन शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है - अनु, शास्, अन, । विशेष रूप से अपने ऊपर शासन करना तथा शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही अनुशासन है । अनुशासन राष्ट्रीय जीवन का प्राण है । यदि प्रशासन, स्कूल समाज, परिवार सभी जगह सब लोग अनुशासन में रहेंगे और अपने कर्त्तव्य का पालन करेंगे, अपनी जिÞम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी । नियम तोड़ने से ही अनुशासनहीनता बढती है तथा समाज में अव्यवस्था पैदा होती है। बड़े होकर अनुशासन सीखना कठिन है । अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है । बचपन के समय मे अनुशासन सिखाने की जिम्?मेदारी माता-पिता तथा गुरूओं की होती है । अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है । विद्यालय जाकर अनुशासन की भावना का विकास होता है । अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है । वास्तव में अनुशासन-शिक्षा के लिये विद्यालय ही सर्वोच्च स्थान है । विद्यार्थियों को यहाँ पर अनुशासन की शिक्षा अवश्य मिलनी चाहिये । ताकि उनका सामाजिक दृष्?टी से सम्?पूर्ण विकास हो सके । उन्हें सदा गुरुओं की आज्ञा का पालन करना चाहिये । अनुशासनप्रिय होने पर ही हर विद्यार्थी की शिक्षा पूर्ण समझी जानी चाहिये । सच्चा अनुशासन ही मनुष्य को पशु से ऊपर उठाकर वास्तव में मानव बनता है । दर से अनुशान का पालन करना सच्चा अनुशासन नहीं है और ना ही अनुशासन पराधीनता है । यह तो सामाजिक तथा राष्ट्रीय आवश्यकता है। पाश्चात्य देशों में भी शिक्षा का उद्देश्य जीवन को अनुशासित बनाना है । अनुशासित विद्यार्थी अनुशासित नागरिक बनते हैं, अनुशासित नागरिक एक अनुशासित समाज का निर्माण करते हैं और एक अनुशासित समाज पीढ़ियों तक चलने वाली संस्कृति की ओर पहला कदम है । अनुशासन का पाठ वास्तव मे प्रेम का पाठ होता है, ना कि कठोरता का । अत: इसे प्रेम के साथ सीखना चाहिये । बालक को अनुशासन का पाठ पढ़ाते समय कु्छ कठोर कदम उठाने आवश्यक हैं लेकिन आज कल माता-पिता अपने बच्?चों को बाल्?या अवस्?था में, अति प्रेम में आकर उन्?हे कुछ छुट दे देते है जिसेस उनमे अनुशासन की कमी आ जाती है ओर इस बात का पता उन्?हे समय निकल जाने के बाद होता है । आज हमारे जीवन मे अनुशासन की सख्?त आवश्?यकता है अनुशासन जीवन के विकास का अनिवार्य तत्व है, जो अनुशासित नहीं होता, वह दूसरों का हित तो कर नहीं पता, स्वयं का अहित भी टाल नहीं सकता ।
जैन-शासन के संदर्भ में अनुशासन के लिए ‘आज्ञा’ शब्द का प्रयोग भी हुआ है। आज्ञा को सर्वोपरि मूल्य दिया गया है। जिस प्रकार मौलि और शिरोमणि रत्न को शिर पर धारण किया जाता है, उसी प्रकार आज्ञा को शिरोधार्य किया जाता है। फिर उसी आज्ञा के अनुसार अपना प्रत्येक कार्य करना होता है। कहा भी गया है -
शिरोरत्नमिवार्याज्ञां धारयंत: स्वमस्तके.
निर्मान्तु निखिलं कार्यं आचार्याज्ञानुवर्तिन:..
आचार्य के अनुशासन में रहने वाले आचार्य की आज्ञा को शिरोरत्न की तरह मस्तक पर धारण करते हुए अपने सब काम सम्पादित करें। आज्ञा को महत्व देने वाला व्यक्ति स्वयं महत्वपूर्ण बन जाता है। जो व्यक्ति आज्ञा को तुच्छ समझता है, उसकी अवहेलना करता है, वह स्वयं तुच्छ और अवहेलित हो जाता है। गुरु ने शिष्य को सदा दो बातों से दूर रहने का निर्देश देते हुए कहा-'अणाणाए एगे सोवट्ठाणा आणाए एगे निरुवट्ठाणा'- कुछ व्यक्ति उन कार्यों में अपने पुरुषार्थ का नियोजन करते हैं जिनके लिए भगवान की आज्ञा नहीं होती है। वे उन कामों के प्रति उदासीन रहते हैं, जिन्हें करने की आज्ञा होती है. ये दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। इनसे बचने वाला साधक लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ता है। जो आज्ञा की उपेक्षा कर अनाज्ञा में प्रवृत्त होता है, वह विकास के बदले ह्मास के पथ पर अग्रसर होता है।
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्व है । अनुशासन से धैर्य और समझदारी का विकास होता है । समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है । इससे कार्य क्षमता का विकास होता है तथा व्यक्ति में नेतृत्व की शक्ति जाग्रत होने लगती है । इसलिए हमे हमेशा अनुशासनपूर्वक आगे बढने का प्रयत्न करना चाहिए । आज भारत देश में इस आयु के लोग सबसे बड़ी संख्या में मौजूद है। यह एक ऐसा वर्ग है जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से सबसे ज्यादा ताकतवर है। जो देश और अपने परिवार के विकास के लिए हर संभव प्रयत्न करते हैं। आज भारत देश में 75% युवा पढ़ना लिखना जानता है। आज भारत ने अन्य देशों की तुलना में अच्छी खासी प्रगति की है। इसमें सबसे बड़ा योगदान शिक्षा का है। आज भारत का हर युवा अच्छी से अच्छी शिक्षा पा रहा है। हम सब जानते हैं कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। आज भारत में दूसरे देशों से सबसे ज्यादा युवा बसते हैं। युवा वर्ग वह वर्ग होता है जिसमें 14 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक के लोग शामिल होते हैं। भारत की राजनीति में आज वृद्ध लोगों का ही बोलबाला है और चंद गिने-चुने युवा ही राजनीति में है। इसका एक कारण यह है कि भारत में राजनीति का माहौल दिन-ब-दिन बिगड़ रहा है और सच्चे राजनीतिक लोगों की जगह सत्तालोलुप और धन के लालची लोगो ने ले ली है।
यह सच है कि राजनीति में देश प्रेम की भावना की जगह परिवारवाद, जातिवाद और संप्रदाय ने ले ली है। आए दिन जिस तरह से नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्से बाहर आ रहे है देश के युवा वर्ग में राजनीति के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही है। ईमानदारी और संजीदगी के लाख पाठ पढ़ाए जाएं, लेकिन यह एक क्रूर सत्य है कि उदारीकरण के दौर में संजीदगी और ईमानदारी में प्रगति की गुंजाइश लगातार कम हुई है। चूंकि राजनीति का आज सीधा संबंध पैसे और ताकत से जुड़ गया है, इसलिए इस क्षेत्र में नई प्रतिभाओं के पनपने और शिखर तक पहुंचने की गुंजाइश लगातार कम होती गई है। मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव जीतना ही राजनीति का अहम और विशिष्ट दोनों तरह का पर्याय बन गया है, शायद यही वजह है कि कार्यकर्ता दरी और जाजिम बिछाते रह जाते हैं और नेता और नेता के बाद उसके परिवार के लोगों को ही सियासी राह पर आगे बढ़ने के मौके मिलते चले जाते हैं। अब भारत की राजनीति में सुभाषचन्द्र बोस, शहीद भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, लोकमान्य तिलक जैसे युवा नेता आज नहीं है। जो अपने होश और जोश से युवा वर्ग के मन में एक नई क्रांति का संचार कर सके। लेकिन अफसोस आजादी के बाद नसीब में है यह बूढ़े नेता जो खुद की हिफाजत ठीक से नहीं कर सकते तो युवा को क्या देशभक्ति या क्रांति की बातें सिखाएंगे? यही वजह है कि भारत के युवा अब इस देश को अपना न समझकर दूसरे देशो में अपना आशियाना खोज रहे हैं। वे यहां की राजनीतिक सत्ता और फैले हुए भ्रष्टाचार से दूर होना चाहते हैं। इसलिए वे कोई भी ठोस कदम उठाने से पहले कई-कई बार सोचते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि युवा वर्ग संयमित रहे। अनुशासित रहे। बिना अनुशासित हुए वह अपने अभीष्ट की प्राप्ति नहीं कर सकता है।
हालांकि, आज के युवाओं को सिर्फ और सिर्फ टारगेट ओरियेंटेड बना दिया गया है। मतलब यह है कि आजकल के माता-पिता स्वंय नहीं चाहते कि उनका पुत्र या पुत्री अपने कार्यो के अलावा देश के सामाजिक कार्यो में भी अपना योगदान दें क्योंकि आजकल का माहौल ही कुछ इस तरह का हो गया है कि सब केवल अपना भविष्य बनाने में लगे हुए हैं। यहां तक कि आजकल के युवाओं को उनके परिवार के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तक नहीं होता, इसलिए हमें इसके लिए कई ठोस कदम उठाने होंगे। आज भारत का हर नागरिक भली-भांति अपना अच्छा बुरा समझता है। युवाओं को संप्रदायवाद तथा राजनीति से परे अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा। युवाओं को इस मामले में एकदम सोच समझकर आगे बढ़ना होगा। और ऐसी किसी भी भावना में न बहकर सोच समझकर निर्णय लेना होगा। भारत का युवा वर्ग वाकई में समझदार है जो सच में इस मामले में एक है और ज्यादातर युवावर्ग राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि मान रहा है। यह वाकई में एक अच्छी और सकारात्मक बात है जो भारत जैसे देश के लिए बड़ी बात है।
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