Thursday, 2 January 2014

मोदी को लताड़ा प्रधानमंत्री ने



आज का दिन, यानी 3 जनवरी, 2014,  नेशनल मीडिया सेंटर में हुई प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह ने पत्रकारों के सवालों के बखूबी जवाब दिए। खासकर भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के सवाल पर उनका जवाब बेहद सख्त था। उन्होंने मोदी को गुजरात में हुए नरसंहार की याद दिला दी। देश के अगले पीएम और नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच मुकाबले की बात पर उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि अगला पीएम यूपीए से ही होगा। नरेंद्र मोदी का पीएम बनना देश के लिए बहुत घातक होगा। नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि अहमदाबाद की सड़कों पर लोगों का कत्लेआम ताकत का प्रतीक नहीं है। उन्होंने कहा कि कहा कि मजबूत नेता का यह मतलब नहीं होता है कि अहमदाबाद में लोगों का कत्लेआम हो। यह पहला मौका है, जब प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह ने मोदी पर इतनी सख्त भाषा का इस्तेमाल किया है। मनमोहन ने इससे पहले कभी भी मोदी के लिए ‘कत्लेआम’ और ‘घातक’ जैसा शब्द इस्तेमाल नहीं किया। इससे पहले उन्होंने ने गुजरात में एक कार्यक्रम के दौरान सरदार पटेल के मुद्दे पर मोदी को उनके सामने ही जवाब दिया था, लेकिन इस तरह का सख्त रुख पहली बार नजर आया।


दरअसल, प्रधानमंत्री आज अकेले नहीं थे। इससे पहले भी नहीं थे। उनके पीछे पूरी कांग्रेस है। कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी हैं। उनका साथ है। अपने संबोधन में भी स्वयं प्रधानमंत्री ने इस सच को बखूबी स्वीकारा कि कांग्रेस अध्यक्षा का निर्णय देशहित में होता और सरकार उनकी सलाहों पर गौर फरमाती हैं। सही मायने में व्यक्तियों के नहीं, बल्कि विचारों के सहारे कांग्रेस राजनीति में महानदी के रूप में प्रवाहित हुई। उसने सभी दृष्टियों की छोटी-बड़ी विकृतियों को आत्मसात कर लिया। करोड़ों लोगों की प्रतिनिधि कांग्रेस बुनियादी तौर पर सोच की पार्टी रही ह।उसके निमार्ताओं का विचारों, बहस मुबाहिसों और किताबों से गहरा सरोकार रहा ह।कांग्रेस बनिए का बहीखाता या जैन डायरी नहीं रही है जिसमें सफेद और काले धन का हिसाब लिखा जाता रहा हो। पार्टी के शुरूआती दौर के सबसे बड़े नेता लोकमान्य तिलक सबसे बड़े विचारक थे। जो व्यक्ति ह्णस्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार हैह्ण का नारा अंग्रेज की छाती पर उगाता ह।काले पानी के दिनों में बैठकर ह्णगीता रहस्यह्ण जैसी अद्भुत कृति की रचना भी वही करता ह।प्रागैतिहासिक काल की उपपत्ति ह्णदी आर्कटिक होम इन दी वेदाजह्ण तिलक ने स्थापित की थी। ऐसा श्रेष्ठ बुद्धिजीवी जननेता भी हो सकता था-यह कांग्रेस ने सम्भव कर दिखाया। तिलक के बाद गांधी ने साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में जितना अधिक लिखा, वह विश्व इतिहास में बेमिसाल ह।महात्मा गांधी अंग्रेजी और गुजराती के अप्रतिम रचनाकार थे और कालजयी रचना ह्यहिन्द स्वराजह्य के लेखक। राजनीति से हटकर भी वे महानता की ऊँचाई तक पहुँच सकते थे। गांधी के बाद नेहरू ने विश्व लेखकों के बीच अपनी सम्मानजनक जगह सुरक्षित कर ली ह।बहुत कम लोगों को यह पता रहा है कि नेहरू परिवार के खर्च का मुख्य स्त्रोत जवाहरलाल नेहरू की किताबों से मिली रॉयल्टी ही रहा ह।मौलाना आजाद उर्दू, फारसी और अरबी के युग प्रवर्तक विद्वानों में से एक रहे हैं। डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद का अंग्रेजी भाषा पर इतना एकाधिकार था कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के वाद विवाद का निचोड़ प्रस्ताव की शक्ल में जब भी वे लिखते थे, उसमें एक शब्द का हेरफेर भी देखने और करने की जरूरत नहीं पड़ती थी।


आज से ज्यादा मुश्किल हालात में इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए घेरी गईं थीं। देश के सामने भारी आर्थिक संकट था। पर्याप्त खाद्यान्न नहीं था। दवाओं की कमी थी। खजाना खाली हो रहा था। पी।एल। 480 जैसा बदनाम सौदा अमेरिका से हो चुका था। आज भारतीय कारपोरेट जगत मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी खेमों में बंटकर जनभावनाओं का मजाक उसी तर्ज पर उड़ा रहा ह।तब कांग्रेस में ह्यसिंडिकेटह्य के नाम से उभरे स्वार्थी वर्ग ने इन्दिरा गांधी को ह्यमोम की गुड़ियाह्य कहा था। नेहरू की बेटी ने पलटवार कर वामपंथी पार्टियों से सहयोग लेकर सिंडिकेट के पूंजीपरस्तों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। कोयला, बैंकिंग, बीमा, अल्यूमीनियम वगैरह कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। एटमी ताकत बढ़ाने के प्रयत्न किए गए।
 सच तो यही है कि इतिहास मंथन की प्रक्रिया से करोड़ों निस्तेज भारतीयों को आजादी के अणु से सम्पृक्त करने के लिए एक ऐतिहासिक जरूरत के रूप में वक़्त के बियाबान में कांग्रेस पैदा हुई। कांग्रेस उन्नीसवीं सदी की अंधेरी रात में जन्मी। बीसवीं सदी की भोर में उसने घुटनों से उठकर अपने पुख्ता पैरों पर चलना सीखा। प्रतिनिधिक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में इक्कीसवीं सदी की ओर वह मुखातिब हुई। कांग्रेस देश की राजनीति में घूमती हुई नहीं आई। कांग्रेस-संस्कृति इतिहास की दुर्घटना नहीं है।उसकी किशोरावस्था का परिष्कार भारतीय राजनीति के धूमकेतु लोकमान्य तिलक ने उसकी शिराओं में गर्म खून लबालब भरकर किया। उसकी जवानी गांधी के जिम्मे थी जिसने उसकी छाती को अंग्रेज की तोप के आगे अड़ाने का जलजला दिखाया। उसकी प्रौढ़ावस्था की जिम्मेदारियों के समीकरण जवाहरलाल ने लिखे। शतायु की ओर बढ़ती उसकी बूढ़ी हड्डियों को इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने आराम लेने नहीं दिया। कांग्रेस अपने जन्म से ही कर्मप्रधान पार्टी रही है। उसका जन्म वैसे तो एक अंगरेज द्वारा अंगरेजी सरकार को भारतीयों के लिए ज्ञापन वगैरह देने के नाम पर हुआ था। धीरे धीरे कांग्रेस गंगा की तरह भारतीय राजनीति की केन्द्रीय वाहिका बनी। उसने देश को आजाद कराया और उस पर हुकूमत की। यह अलग बात है कि गंगा में हरिद्वार अर्थात आजादी आते ही प्रदूषण आना शुरू हो गया। कानपुर, इलाहाबाद, बनारस और पटना जैसे शहरों के रासायनिक और चमड़े के कारखानों की मितली गंगा में प्रवाहित की जाती रही। वाराणसी में तो शव ही बहा दिए जाते हैं। कुछ लोगों को गलतफहमी है कि तृतीय श्रेणी में परीक्षा पास करना गांधी क्लास पाना ह।बीसवीं सदी ने सिद्ध किया है कि हिंदुस्तान की आत्मा, जे़हन और भविष्य को लेकर गांधी से बड़ा विचारक कोई नहीं हुआ। यदि वे बुद्धिजीवी नहीं होते तो अंग्रेज की काट नहीं होती। गांधी केवल कूटनीति के सहारे अंग्रेज प्रधानमंत्रियों और वाइसराय से बहस मुबाहिसा नहीं करते थे। वे अधिकृत चर्च के सबसे बड़े पादरी को यह चमत्कृत करने में समर्थ हुए थे कि बाइबिल की षिक्षाओं को किसी भी ईसाई के मुकाबले बेहतर आत्मसात कर चुके थे। कांग्रेस के बड़े दफ्तर से लेकर ब्लाक मुख्यालयों तक जिस भाषा में राजनीतिक चिंतन होता है, अब उस कागज के फूल में गांधी गंध नहीं होती। गांधी ने भारत के संविधान के लिए अपना ड्राफ्ट और विचार दिए थे।

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