Saturday, 11 January 2014

राष्ट्रीय निर्माण में हो योगदान

बदली परिस्थितियों में युवाओं की पूर्ण क्षमता का विकास करने और उसे देश निर्माण में लगाने के लिए यूपीए सरकार ने 2003 की राष्ट्रीय युवा नीति को ‘राष्ट्रीय युवा नीति-2014’ से बदले जाने को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट ने देशहित में इसे स्वीकृति प्रदान कर दी। युवाओं को उनकी पूर्ण क्षमता को पाने का अवसर देने और ऐसा करते हुए विश्व में भारत को उसका उचित स्थान दिलाने के मकसद से इस नई राष्ट्रीय युवा नीति को मंजूरी दी गई है। इस उद्देश्य को पाने के लिए नई नीति में प्राथमिकता के 11 क्षेत्र सुझाए गए हैं। इनमें शिक्षा, दक्षता, रोजगार, उद्यमशीलता, स्वास्थ्य व स्वस्थ जीवन शैली, खेल, सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देना, राजनीति व शासन में उनकी भागीदारी और सामाजिक न्याय शामिल हैं। राष्ट्रीय युवा नीति-2014 से सभी हितधारकों को जोड़ा जाएगा, ताकि ऐसी शिक्षित व स्वस्थ युवा आबादी सुनिश्चित की जा सके जो न सिर्फ आर्थिक रूप से उत्पादक हो बल्कि सामाजिक रूप से भी जिम्मेदार नागरिक के रूप में राष्ट्रीय निर्माण में योगदान कर सके।

इस नीति के तहत 15 से 29 साल के देश के सभी नागरिक आएंगे जो 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल आबादी का 27।5 फीसद यानी 33 करोड़ हैं। भारत दुनिया में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है और भविष्य में देश के विकास और उत्थान में इसका उसे भारी लाभ मिलेगा। इसी मकसद से नई परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्रीय युवा नीति-2014 लाई गई है। सच तो यह है कि भारत में आज से 25 साल पहले, 1988 में पहली राष्ट्रीय युवा नीति बनी। दूसरी बार 15 साल बाद, 2003 में युवा नीति बनाई गई, लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके बाद भी कई ऐसे विषय हैं, जिन पर काम करना जरूरी है। इसलिए 2012 में नयी राष्ट्रीय युवा नीति का मसौदा तैयार किया गया। सबसे अहम बात यह है कि अब तक देश में युवा विकास सूचकांक प्रणाली विकसित नहीं है। इसलिए ऐसे युवाओं की पहचान की कोई व्यवस्था नहीं है, जो विकास की रफ्तार में पीछे छूट गए हैं या छूट रहे हैं। दूसरी बात कि एक सार सूचकांक नहीं होने के कारण भौगोलिक क्षेत्रों और वर्गों के बीच युवा विकास की तुलना संभव नहीं है। देश में मानव विकास सूचकांक है। इससे मानव विकास की क्षेत्र, लिंग, वर्ग और सामाजिक -आर्थिक स्थिति के आधार पर तुलना संभव है। इसका लाभ यह है कि जो क्षेत्र या वर्ग विकास की रफ्तार में पीछे छूट रहा है, उस पर विशेष ध्यान देने के लिए योजना बनाने में सुविधा हो रही है। उसे लेकर स्पष्ट दृष्टि बन रही है, लेकिन युवाओं के मामले में ऐसी सुविधा नहीं है। तीसरी बात कि जब तक तुलनात्मक विेषण वाले आंकड़े नहीं होंगे, तब तक सामान्य और विशिष्ट श्रेणी के युवाओं के लिए विकास संबंधी गतिविधि तय नहीं की जा सकती। यह युवा विकास सूचकांक के आंकड़ों से ही संभव है।
गौर करने योग्य यह भी है कि इससे पूर्व केन्द्रीय युवा मामले और खेल राज्यमंत्री अजय माकन ने वर्ष 2012 में राष्ट्रीय युवा नीति 2012 का मसौदा जारी किया था। अजय माकन ने घोषणा की थी कि राष्ट्रीय युवा नीति का मसौदा अपनी तरह का पहला है। यह इस बात का सबूत है कि सभी युवाओं को एक ही तराजू पर नहीं तौला जा सकता क्योंकि हरेक का रहन-सहन, माहौल, उनके परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति अलग-अलग है। मसौदा नीति में लक्षित आयु वर्ग को वर्तमान 13-15 वर्ष से परिवर्तित कर 16-30 वर्ष करने का प्रस्ताव है। मसौदा नीति का विवरण देते हुए माकन ने कहा कि नीति न केवल उद्देश्यों की जानकारी देती है बल्कि उद्देश्यों को हासिल करने के लिए उत्तरदायी साझ्झीदारों की पहचान करती है। पहली बार युवा विकास सूचकांक (वाईडीआई) मूल्य निर्धारकों और नीति निर्माताओं के लिए आसान संगणन और आधार रेखा के रूप में काम करेगा। इसे नीति के हिस्से के तौर पर शामिल किया गया है। वैश्वीकरण, तकनीक के तेजी से विकास और भारत के वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने के कारण वर्तमान युवा नीति 2003 की समीक्षा करना जरूरी हो गया था। एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाते हुए पहली बार युवा नीति के मसौदे को प्रधानमंत्री के कौशल विकास मिशन के अनुरूप युवाओं को रोजगार आधारित कौशल प्रदान करने के सिद्धांत पर तैयार किया गया है। साथ ही उस समय यह प्रस्ताव रखा गया कि युवा संगठनों, छात्रों और चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों की युवा शाखाओं सहित विभिन्न साझ्झीदारों के साथ राष्ट्रीय युवा नीति 2012 के मसौदे पर विचार-विमर्श किया जाए। इस पर संसदीय युवा फोरम और युवा मामले और खेल मंत्रालय से सम्बद्ध संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में भी विचार-विमर्श किया जाएगा।
बहरहाल, राष्ट्रीय युवा नीति 2003 के मुताबिक 13-35 वर्ष के आयु वर्ग की जनसंख्या युवाओं की है। इस आयु वर्ग की पूरी जनसंख्या युवा है और राष्ट्रीय युवा नीति के तहत आती है। इसमें किशोर वर्ग भी शामिल होता है। इसलिए उसके हित में विशिष्ट सोच के लिए युवाओं को दो वर्गो में बांटा गया। पहला 13 से 19 साल और दूसरा 20 से 35 साल। इन दोनों आयु वर्गो को अलग-अलग श्रेणी में रखा गया। 1991 की जनसंख्या के मुताबिक देश में 34 करोड़ थी। 1997 में यह संख्या बढ़ कर 38 करोड़ हो गयी, जो उस समय की देश की कुल आबादी का लगभग 37 प्रतिशत थी। यह अनुमान किया गया कि 2016 में युवाओं की जनसंख्या बढ़ कर 51 करोड़ हो जायेगी, जो उस समय की कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत होगी, लेकिन 2001 की जनगणना के आधार पर जब देश के युवाओं यानी 13 से 35 आयु वर्ग की जनसंख्या का आंकड़ा तैयार किया गया, तो युवाओं की कुल जनसंख्या 42.23 करोड़ हो गयी, जो कुल आबादी का 41 प्रतिशत से ज्यादा है। इसमें 21.9 करोड़ पुरुष युवा और 20.3 करोड़ महिला युवा हैं।
जाहिर कि देश के सामाजिक-आर्थिक बदलाव और तकनीकी विकास में युवाओं की सबसे बड़ी भूमिका है। यह देश का वह मानव संसाधन है, जिसे लेकर ठोस रणनीति और कार्यक्रम, सभी स्तर पर, बनाने की जरूरत है। गांव-पंचायत के युवाओं को लेकर विशिष्ट कार्यक्रमकी जरूरत है, जो उन्हें शिक्षा, तकनीकी और व्यावहारिक ज्ञान, रोजगार तथा स्वास्थ्य ज्ञान के क्षेत्र में आगे ले जा सके। चूंकि यह उत्पादक आयु वर्ग है। इसलिए इसकी सामाजिक-राजनीतिक सोच की सबसे अधिक अहमियत है। दिल्ली में आम आदमी पाटी के उदय के बाद गांव-पंचायत के युवाओं में राजनीतिक सोच तेजी से बदली है। दरअसल हमारी ग्रामीण जीवन शैली और उससे जुड़ी चुनौतियों का बड़ा हिस्सा रोटी, कपड़ा, मकान और स्वास्थ्य है। इसे हासिल करने में गांव-पंचायत के युवक ज्यादा परेशान हैं। इसलिए राजनीतिक बदलाव में अपनी सीधी भागीदारी को लेकर ज्यादा सोचने का उनके पास समय नहीं है। दूसरा कि एक राजनीतिक साजिश के तहत उन्हें आरक्षण, धर्म, जाति और वर्ग के आधार पर इतने हिस्सों में बांट कर रखा गया कि वे उसी सोच में कैद होते रहे हैं। आजादी के बाद अविभाजित बिहार में अगर परिवर्तन को लेकर आंदोलन हुआ, तो वह 1974 का जेपी आंदोलन था। उस आंदोलन की चिनगारी अब भी समय की रख के नीचे बची हुई है। आम आदमी प्रकरण ने इसे हवा देने का काम किया है। गांव-पंचायत के युवाओं की सोच को बदलने का काम किया है।

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