Wednesday, 15 January 2014

राजनीती और सोशल मीडिया


आगामी चुनावों में सोशल मीडिया का प्रयोग कैसे और किस रूप में किया जाए, इसको लेकर राजनीतिज्ञों के बीच एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। सोशल मीडिया व इंटरनेट से जुड़ी दो रिपोट्र्स ने इस बहस को और तेज कर दिया है। पहली, आइरिश नॉलेज फाउंडेशन और इंटरनेट मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया अगले लोकसभा चुनाव में 543 सीटों में से 160 सीटों पर अपना प्रभावी असर दिखाएगा। इससे जुड़ी दूसरी रिपोर्ट अमरीका आधारित नॉन पार्टिजन फैक्ट टैंक और प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा "ग्लोबल एटिटयूड" नाम से है, जिसमें 21 देशों का सर्वे शामिल है। इसमें यह साफ कहा गया है कि भारत में मात्र छह फीसद लोग ही सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं। लिहाजा, भारत में इसका प्रभाव चुनाव पर उतना नहीं पड़ेगा, जितना विकसित देशों में पड़ता है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में अमरीका के 92 फीसद के मुकाबले मात्र 10-12 फीसद लोग ही इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। सोशल मीडिया का आगामी चुनाव में कितना प्रभाव पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर इतना जरूर है कि इन दोनों ही रिपोट्र्स में राजनीति में सोशल मीडिया के प्रयोग के सच को गहराई से स्वीकार किया गया है। यही वजह है कि आज भारत के कई राजनीतिक दलों ने फेसबुक व टि्वटर पर अपने अकाउंट्स खोल दिए हैं।


आज सोशल मीडिया सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक व राजनीतिक जगत का एक बहुत बड़ा शक्ति केन्द्र बनता जा रहा है। गौरतलब है कि सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक पर नरेन्द्र मोदी ने ममता बनर्जी और एम. करूणानिधि जैसे बहुचर्चित नामों को पछाड़ दिया और पहले स्थान पर पहुंच गए हैं। आज दुनिया में एक अरब से भी अधिक लोग सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। जहां तक भारत का सवाल है, तो यहां 2010 में इन्टरनेट यूजर्स की जो संख्या सात-आठ करोड़ के करीब थी, वह 2013 में 10-12 करोड़ के करीब पहुंच गई है। यहां सोशल मीडिया से जुड़े यूजर्स की संख्या भी आठ करोड़ को पार कर गई है। नेल्सन कम्पनी द्वारा किए गए अध्ययन बताते हैं कि भारत में सात-आठ करोड़ से अधिक उपभोक्ता सोशल नेटवर्किग साइट्स से जुड़े हैं। सोशल मीडिया से जुड़े इन यूजर्स का मकसद उस पर केवल निजी बातचीत या मनोरंजन करना ही नहीं है, बल्कि 45 फीसद से भी अधिक यूजर्स सघन राजनीतिक विमर्श भी खुलकर करते हैं। सोशल मीडिया से जुड़ी ये रिपोट्र्स इस बात का संकेत हैैं कि आज के दौर में सोशल मीडिया की अपनी एक हैसियत है, जिससे राजनीति भी अब अछूती नहीं है।
सवाल है, ऎसा क्या हुआ कि सोशल मीडिया को राजनीति के एक सशक्त औजार के रूप में देखा जाने लगा है। लोकसभा की 160 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने वाले निर्वाचन क्षेत्र वे हैं जहां कुल मतदाताओं की दस प्रतिशत आबादी सोशल मीडिया पर सक्रिय है। इसका मतलब यह है कि सोशल मीडिया उपभोक्ताओं की संख्या इन निर्वाचन क्षेत्रों में पिछले चुनाव में विजयी उम्मीदवार की जीत के अन्तर से अधिक है। ये आंकड़े करीब साल भर पुराने हैं। यानी फेसबुक और टि्वटर यूजर्स की संख्या में इस दौरान जो बढ़ोतरी हुई, वह अलग है।
इंटरनेट के मामले में तो भारत तेजी से अन्य देशों से आगे निकलता जा रहा है। खास बात यह है कि शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़त ज्यादा तेज गति से हो रही है। भारत में इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की विकास दर 58 प्रतिशत सालाना की दर से हो रही है। ग्रामीण भारत में इस वक्त 6.8 करोड़ उपभोक्ता है। इंटरनेट उपभोक्ताओं की कुल संख्या 20 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। इनमें सोशल मीडिया से जुड़े उपभोक्ताओं की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। आज यह संख्या 9 से 10 करोड़ के बीच आंकी जा रही है। इतनी बड़ी आबादी की अनदेखी करना संभव नहीं है। सोशल मीडिया से जुड़े इस विशाल समुदाय का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन या निजी बातचीत तक सीमित नहीं है। सोशल नेटवर्क पर 45 प्रतिशत से अधिक लोग राजनीतिक विमर्श भी खुलकर कर रहे हैं। यह एक नए किस्म का राजनीतिक समूह है, जो सभी दलों को समझ में आ रहा है।

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