Sunday, 27 December 2015

सबकी उम्मीदों को पूरा करती कांग्रेस

            कांग्रेस दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतांत्रिक दलों में से एक है। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस का उद्देष्य राजनीति की समानता है , जिसमें संसदीय लोकतंत्र पर आधारित एक समाजवादी राज्य की स्थापना षांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से की जा सकती है जो आर्थिक और सामाजिक अधिकारों और विष्व षांति और फेलोषिप के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची श्रद्धा और भारत के संविधान के प्रति निश्ठा और संप्रभुता रखती है। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस भारत की एकता और अखंण्डता को कायम रखेगी। अपने जन्म से लेकर अब तक, कांग्रेस में सभी वर्गों और धर्मों का समान प्रतिनिधित्व रहा है। कांग्रेस के पहले अध्यक्ष श्री डब्ल्यू सी. बनर्जी ईसाई थे, दूसरे अध्यक्ष श्री दादाभाई नौराजी पारसी थे और तीसरे अध्यक्ष जनाब बदरूदीन तैयबजी मुसलमान थे। अपनी धर्मनिरपेक्ष नीतियों की वजह से ही कांग्रेस की स्वीकार्यता आज भी समाज के हर तबके में समान रूप से है। गुलामी के बंधन में जकड़े भारत की तस्वीर बदलने के लिए करीब 130 साल पहले कांग्रेस पार्टी ने जन्म लिया था। भारतीय राश्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना सन 1885 में ए ओ ह्यूम ने दादाभाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी और मदनमोहन मालवीय के सहयोग से की। डब्ल्यू सी बनर्जी कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बनाए गए। षुरूआत में कांग्रेस की स्थापना का उद्देष्य भारत की जनता की आवाज ब्रिटिष षासकों तक पहुंचाना था, लेकिन धीरे-धीरे ये संवाद आजादी की मांग में बदलता चला गया।  प्रथम विष्वयुद्ध के बाद महात्मा गांधी के साथ कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा बुलंद कर दिया और 1947 में भारत आजाद हो गया।
1947 में जब देष आजाद हुआ, तो देष ने बेहिचक षासन की बागडोर कांग्रेस के हाथ में सौंप दी। पंडित जवाहर लाल नेहरु देष की पसंद बन कर उभरे और देष के पहले   प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने षपथ ली। पंडित नेहरु के नेतृत्व में देष ने विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ और आर्थिक आजादी के सपने सच होने लगे। पंडित नेहरु के साथ कांग्रेस ने 1952, 1957 और 1962 के आम चुनावों में भारी बहुमत से विजय प्राप्त की। अपनी स्थापना और विषेशकर आजादी के बाद से, कांग्रेस की लोकप्रियता अपने षिखर पर रही है। भारत की जनता ने आजादी के बाद से अब तक सबसे ज्यादा कांग्रेस पर ही भरोसा दिखाया है। आजादी के बाद से अभी तक हुए कुल 15 आम चुनावों में 6 बार कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई है और 4 बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर चुकी है। यानी कि पिछले 67 सालों में से करीब 50 साल, कांग्रेस देष की जनता की पसंद बनकर रही है। ये कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय राजनीति के पटल पर चाहे जितने दल उभरे हैं, देष की जनता के दिल में कांग्रेस ही राज करती है।
लोकतांत्रिक परंपराओं और धर्मनिरपेक्षता में यकीन करने वाली कांग्रेस देष के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत रही है। 1931 में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक कराची अधिवेषन में मूल अधिकारों के विशय में महात्मा गांधी ने एक प्रस्ताव पेष किया था, जिसमें कहा गया था कि देष की जनता का षोशण न हो इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक आजादी के साथ-साथ करोडों गरीबों को असली मायनों में आर्थिक आजादी मिले। 1947 में प्रधानमंत्री बनने के बाद पंडित नेहरु ने इस वायदे को पूरा किया। वो देष को आर्थिक और सामाजिक स्वावलंबन की दिषा में आगे ले गए। कांग्रेस ने संपत्ति और उत्पादन के साधनों को कुछ चुनिंदा लोगों के कब्जे से निकाल कर आम आदमी तक पहुंचाया और उन्हें सही मायनों में भूख, गरीबी और असमानता से छुटकारा दिलाकर आजादी के पथ पर अग्रसर करने में प्रभावकारी भूमिका निभाई। श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ कांग्रेस ने समाजवाद के नारे को और जोरदार तरीके से बुलंद किया और इसे राश्ट्रवाद से जोड़ते हुए देष को एक सूत्र में बांध दिया। देष में गरीबों की आवाज सुनने वाली, उनका दर्द समझने वाली कांग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुलंद किया जो कांग्रेस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। 1984 में श्री राजीव गांधी के साथ कांग्रेस ने देष को संचार क्रांति के पथ पर अग्रसर किया। 21वीं सदी के भारत की मौजूदा तस्वीर को बनाने का श्रेय कांग्रेस और श्री राजीव गांधी को ही जाता है। नब्बे के दषक में जब अर्थव्यवस्था डूब रही थी, तब कांग्रेस के श्री पीवी नरसिंह राव ने देष को एक नया जीवन दिया। कांग्रेस के नेतृत्व में श्री नरसिंहराव और श्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण के जरिए आम आदमी की उम्मीदों को साकार किया।
हमारे देष के समकालीन इतिहास पर कांग्रेस की एक के बाद एक बनी सरकारों की उपलब्धियों की अमिट छाप है। आर.एस.एस.-भाजपा गठबंधन ने कांग्रेस द्वारा किए गए हर काम का मखौल उडाने उसे तोड़-मरोड़ कर पेष करने और अर्थ का अनर्थ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
यह कांग्रेस ही थी, जिसने भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी और जीती। हिंदू महासभा और राश्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम कर रहे भारतीय जनता पार्टी के पूर्वजों ने तो भारत छोड़ों आंदोलन के दिनों में महात्मा गांधी द्वारा किए गए ‘करेंगे या मरेंगे’ के आह्वान का बहिश्कार किया था। यह कांग्रेस ही है, जिसके गांधी जी, इंदिरा जी और राजीव जी जैसे नेताओं ने देष की सेवा में अपनी जान भी कुर्बान कर दी। यह कांग्रेस ही है, जिसने संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की और उसकी जड़ों को सींचने का काम किया। यह कांग्रेस ही थी, जिसने आमूल और षांतिपूर्ण सामाजिक-आर्थिक बदलाव के राश्ट्रीय घोशणा पत्र भारतीय संविधान की रचना संभव बनाई। यह कांग्रेस ही थी, जिसने सदियों से षोशण और भेदभाव का षिकार हो रहे लोगों को गरिमामयी जिंदगी मुहैया कराने के लिए सामाजिक सुधारों की मुहिम की अगुवाई की। यह कांग्रेस ही है, जिसने भारत की राजनीतिक एकता और सार्वभौमिकता की हमेषा रक्षा की।
यह कांग्रेस ही है, जिसने अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने, देष का औद्योगीकरण करने, तरक्की की राह के दरवाजे करोड़ों भारतवासियों के लिए खोलने और खासकर दलितों और आदिवासियों को रोजगार मुहैया कराने, अनदेखी का षिकार हो रहे पिछड़े इलाकों में विकास करने, देष को तकनीकी विकास के नए षिखर पर ले जाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया।
यह कांग्रेस ही थी, जिसने जमींदारी प्रथा को खत्म किया और भूमि सुधार के कार्यक्रम षुरू किए। कांग्रेस ही देष में हरित क्रांति और ष्वेत क्रांति लाई और इन कदमों ने हमारे किसानों तथा खेत मजदूरों की जिंदगी में नई सपंन्नता पैदा की और भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक मुल्क बनाया। यह कांग्रेस ही थी, जिसने मुल्क में वैज्ञानिक-भाव पैदा किया और विज्ञान संस्थाओं का एक ऐसा ढांचा तैयार किया कि भारत नाभिकीय, अंतरिक्ष और मिसाइल जगत की एक बड़ी ताकत बना और सूचना क्रांति की दुनिया में हमने मील के पत्थर कायम किए। मई 1998 में भारत परमाणु विस्फोट सिर्फ इसलिए कर पाया कि इसकी नींव कांग्रेस ने पहले ही तैयार कर दी थी। अग्नि जैसी मिसाइलें और इनसेट जैसे उपग्रह कांग्रेस के वसीयतनाते के पन्ने हैं।
कांग्रेस ने ही गरीबी मिटाने और ग्रामीण इलाकों का विकास करने के व्यापक कार्यक्रमों की षुरुआत की। इन कार्यक्रमों पर हुए अमल ने गांवों की गरीबी दूर करने में खासी भूमिका अदा की और समाज के सबसे वंचित तबके की दिक्कतें दूर करने में भारी मदद की। आजादी मिलने के वक्त जिस देष की दो तिहाई आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रही थी, आज आजादी के पचास बरस के भीतर ही उस देष की दो तिहाई आबादी गरीबी की रेखा के ऊपर है। भारत का मध्य-वर्ग कांग्रेस ने निर्मित किया और इस पर हम गर्व करते हैं।
कांग्रेस ने ही अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों की बेहतरी और कल्याण के लिए उन्हें आरक्षण दिया और उनके लिए समाज कल्याण तथा आर्थिक विकास की कई योजनाएं षुरू कीं।
यह कांग्रेस ही थी, जिसने महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के जरिए पूर्ण स्वराज देने के आह्वान का अनुगमन किया और देष भर के गांवों और मुहल्लों में जमीनी लोकतंत्र के जरिए जमीनी विकास को प्रोत्साहन दिया। कांग्रेस ने ही पंचायती राज और नगर निकायों से संबंधित संविधान संषोधन की रूपरेखा तैयार की और पंचायती राज की स्थाना के लिए संविधान में जरूरी संषोधन किए।
कांग्रेस ने ही संगठित क्षेत्र के कामगारों और अनुबंधित मजदूरों को रोजगार की सुरक्षा तथा उचित पारिश्रमिक दिलाने के लिए व्यापक श्रम कानून बनाए और उन पर अमल कराया। कांग्रेस ने ही देष के कुल कामगारों के उस 93 फीसदी हिस्से को सामाजिक सुरक्षा देने की प्रक्रिया षुरू कराई, जो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है। यह कांग्रेस ही है, जिसने उच्च और तकनीकी षिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाए कि भारतीय मस्तिश्क आज दुनिया में सबसे कीमती मस्तिश्क माना जाता है। कांग्रेस ने ही देष भर में भारतीय तकनीकी संस्थान आई.आई.टी.  और भारतीय प्रबंधन संस्थान  आई.आई.एम. खोले और पूरे मुल्क में षोध प्रयोगषालाओं की स्थापना की।
कांग्रेस देष का अकेला अखिल भारतीय राजनीतिक दल है- अकेली ऐसी राजनीतिक ताकत, जो इस विषाल देष के हर इलाके में मौजूद है। सत्ता में रह या सत्ता के बाहर, कांग्रेस देष भर के गांवों, कस्बों और षहरों में वास्तविक और प्रत्यक्ष तौर पर मौजूद है। कांग्रेस अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जिसे हमारे रंगबिरंगे समाज के हर वर्ग से षक्ति मिलती है, जिसे रह वर्ग का समर्थन हासिल है और जा हर वर्ग को पसंद आती है। कांग्रेस अकेला राजनीतिक दल है, जिसने अपने संगठन में अनुसूचति जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर रखी है।  कांग्रेस अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जिसके राजकाज का दर्षन लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक न्याया के साथ होने वाली आर्थिक तरक्की और सामाजिक उदारतावाद एवं आर्थिक उदारीकरण के सामंजस्य गुंथा हुआ है। कांग्रेस संवाद में विष्वास करती है, अनबन में नहीं। कांग्रेस समायोजन में विष्वास करती है, कटुता में नहीं। कांग्रेस अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जिसके राजकाज का दर्षन एक मजबूत केंद्र द्वारा मजबूत राज्यों और षक्तिसंपन्न स्वायत्त निकायों के साथ लक्ष्यों को पाने के लिए काम करने पर आधारित है। कांग्रेस का मकसद है - राजनीतिक से लोकनीति, ग्रामसभा से लोकसभा।
कांग्रेस हमेषा नौजवानों का राजनीतिक दल रहा है। कांग्रेस बुजुर्गियत और वरिश्ठता का सदा सम्मान करती है, लेकिन युवा ऊर्जा और गतिषीलता हमेषा ही कांग्रेस की पहचान रहे हैं। 1989 में श्री राजीव गांधी ने ही मतदान कर सकने की उम्र घटा कर 18 साल की थी। राजीव जी ने ही स्वामी विवेकांनद के जन्म दिन 12 जनवरी को राश्ट्रीय युवा दिवस घोशित किया था। राजीव जी ने ही नेहरू युवा केंद्र की गतिविधियों का देष के हर जिले में विस्तार किया था। कांग्रेस की नीतियों का जन्म हमेषा राजनीतिक तौर पर एकजुट, आर्थिक तौर पर संपन्न, सामाजिक तौर पर न्यायसम्मत और सांस्कृति तौर पर समरस भारत के निर्माण का नजरिया सामने रख कर होता रहा है। इन नीतियों को कभी भी बिना सोचे-समझे सिद्धांतों या खोखली हठधर्मिता या मंत्रों में तब्दील नहीं होने दिया गया। कांग्रेस ने हमेषा समय की जरूरतों के मुताबिक इन नीतियों में सकारात्मक बदलाव के लिए जगह रखी। कांग्रेस सदा व्यावहारिक रही। कांग्रेस हमेषा नई चुनौतियों का मुकाबला करने को तैयार रही। नतीजतन, बुनियादी सिद्धांतों के प्रति वफादारी की भावना ने नर्द जरूरतों के मुताबिक खुद को तैयार करने के काम में कभी अड़चन महसूस नहीं होने दी।
1950 के दषक में भूमि सुधारों, सामुदायिक विकास, सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना और कृशि, उद्योग, सिचांई, षिक्षा, विज्ञान, वगैरह के आधारभूत ढांचे को विकसित करने की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्चित किया कि ये सभी काम पूरे हों। 19६0 और 1970 में गरीबी हटाने के लिए सीधा हमला बोलने, कृशि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में एकदम नया रुख अपनाने, तेल के घरेलू भंडार का पता लगाने और उसका उत्खनन करने और किसानों, बुनकरों कुटीर उद्योगों तथा छोटे दूकानदारों को प्राथमिकता देने के साथ बड़े उद्योगों का ध्यान रखने और अन्य सामाजिक जरूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बैंकों के राश्ट्रीयकरण की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्चित किया कि ये सभी काम पूरे हों। 1980 के दषक में लोगों की दिक्कतों को दूर करने और इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निबटने के लिए उद्योगों का आधुनिकीकरण करने के मकसद से विज्ञान और टकनालाजी पर नए सिरे से जोर देने की जरूरत थी। इस दौर में भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और दूरसंचार के क्षेत्र में भी तेजी से विकसित करने की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्चित किया कि ये सभी काम पूरे हों।
1990 के दषक में दुनिया के बदलने आर्थिक परिदृष्य में भारत को जगह दिलाने के लिए आर्थिक तरक्की की रफ्तार को तेज करने आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण के साहसिक कदम उठाने और निजी क्षेत्र की भूमिका को व्यापक बनाने की जरूरत थी। आर्थिक विकास में सरकार की भूमिका की नई परिभाशा रचने और संविधान सम्मत पंचायती राज की संस्थाओं एवं नगर निकायों को स्वायत्तषासी इकाइयों के तौर पर स्थापित करना भी इस दौर की जरूरत थी। कांग्रेस ने सुनिष्ति किया कि ये सभी काम पूरे हों। कांग्रेस देषवासियों को एक सच्चा वचन देना चाहती है कि वह सभी लोगों के बीच षांति फिर कायम करेगी, सामाजिक सद्भाव पर जोर दे कर धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को मजबूत बनाएगी, सांस्कृतिक बहुलता और कानून का राज सुनिष्चित करेगी और देष के हर परिवार के लिए एक सुरक्षित आर्थिक भविश्य का निर्माण करेगी। देष भर में सामाजिक सद्भाव और एकता को बनाए रखने के लिए बिना किसी भय और पक्षपता के कानूनों को लागू किया जाएगा। इस मामले में किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा।
कांग्रेस कभी भी पारंपरिक अर्थों वाला राजनीतिक दल नहीं रहा। वह हमेषा एक व्यापक राश्ट्रीय आंदोलन की तरह रही है। पिछले 118 साल में कांग्रेस ने विभिन्न सामाजिक पृश्ठभूमि रखने वाले लोगों को देष सेवा की लिए साथ लाने के मकसद से असाधारणतौर पर व्यापक मंच की तरह काम किया है। कांग्रेस भारत-विचार की ऐसी अभिव्यक्ति है, जैसा कोई और राजनीतिक दल नहीं। कांग्रेस के लिए भारतीय राश्ट्रवाद सबको सम्मिलित करने वाला और सर्वदेषीय तत्व है। राश्ट्रवाद, जो इस देष की संपन्न विरासत के हर रंग से सष्जनात्मकता ग्रहण करता है। राश्ट्रवाद, जो संकीर्ण और धर्मान्ध नहीं है, बल्कि हमारी मिलीजुली संस्कृति में भारत-भूूमि पर मौजूद हर धर्म के योगदान का उत्सव मनाता है। राश्ट्रवाद, जिसमें प्रत्येक भारतीय का और हर उस चीज का जो भारतीय है, समान और गरिमापूर्ण स्थान है। राश्ट्रवाद, जो भारत को भावनात्मक तौर पर जोड़े रखता है। भारतीय जनता पार्टी का सांस्कृतिक राश्ट्रवाद भारतीयों को भावनात्मक तौर पर तोड़ने का हथियार है। कांग्रेस भारत को सर्वसम्मति के जरिए जोड़ रखने का काम करती है। भाजपा भारत को विवादों के जरिए तोड़ने का काम करती है।
कांग्रेस को इस बात की गहरी चिंता है कि पिछले कुछ वर्शों में धर्मनिरपेक्षता पर सबसे गंभीर हमले लगातार हो रहे हैं। कांग्रेस के लिए धर्म निरपेक्षता का मतलब है पूर्ण स्वतंत्रता और सभी धर्मों का पूरा आदर। धर्म निरपेक्षता का मतलब है सभी धर्मों के मानने वालों को समान अधिकार और धर्म के आधार पर किसी के भी साथ कोई भेदभाव नहीं। सबसे बढ़कर इसका मतलब है हर तरह की सांप्रदायिकता को ठोस विरोध।
हमारे समाज में नफरत और अलगाव फैलाने के लिए किसी भी धर्म का दुरूपयोग करना सांप्रदायिकता है। लोकप्रिय भावनाओं को आपसी दुर्भावना भड़काने के लिए किसी भी धर्म का दुरूपयोग करना सांप्रदायिकता है। ज्यादातर भारतीय दूसरे धर्मो के प्रति आदर का भाव रखते हैं। ज्यादातर भारतीय दूसरे भारतीयों के साथ मिलजुल कर षांति से रहना चाहते हैं, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। लेकिन कुछ भारतीय अपने धर्म के स्वंयभू संरक्षक बन गए हैं। ये ही वे लोग हैं, जो सामाजिक सद्भाव को नश्ट करना चाहते हैं। ये ही वे लोग हैं, जो हमें दो समुदायों में नफरत फैलाने के लिए खुद ही आविश्कृत कर लिए गए और तोड़-मरोड़ कर बताए गए हमारे अतीत का हमें गुलाम बना कर रखना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई का असली मैदान यही है। यह बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक मुद्दे से कहीं बडा़मसला है। दरअसल यह संघर्श इस मुल्क के सभी धर्मों के सार को बचाए रखने की कोषिष कर रही ताकतों और जानबूझ कर, चुनावी मकसदों की वजह से और मंजूर नहीं किए जा सकने लायक वैचारिक कारणों का हवाला दे कर इस मिलीजुली संस्कृति को नश्ट करने पर आमादा ताकतों के बीच है।
धर्मनिरपेक्षता प्रत्येक कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए आस्था का विशय है। कांग्रेस के दो महानतम नायकों ने धर्मनिरपेक्षता के आदर्षों की बलिवेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिये, भारत की धर्मनिरपेक्ष विरासत संरक्षित और सुरक्षित रहे, इसके लिए उन्होंने अपना जीवन दे दिया । पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके समान अन्य नेता भारत के         धर्मनिरपेक्ष बने रहने के लिए आजीवन अथक परिश्रम करते रहे, क्योंकि वे जानते थे कि बिना धर्मनिरपेक्षता के भारत संगठित और षक्तिषाली नहीं बना रह सकेगा।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोधी होना या धर्म के प्रति नकारात्मक या निश्क्रिय     दृश्टिकोण रखना नहीं है। हमारे देष में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल सभी धर्मों के प्रति समान आदर रखना और धर्म से राजनीति का स्पश्ट विभाजन ही हो सकता है। धर्म व्यक्तियों का अपना निजी विशय है। राजनीति का सारा मतलब सार्वजनिक जन-जीवन में है। धर्म का लोगों को झकट्ठा करने, उनकी भावनाएं और संवेदनाएं उभाड़    ने के लिए बतौर हथियार इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। राजनीतिक लक्ष्यों के लिए    धर्म के उपयोग को कांग्रेस अस्वीकार करती है। वह धार्मिक भावनाएं उभाड़कर लोगों को एकजुट करने के तरीके को भी अस्वीकार करती है।
कांग्रेस सभी नागरिकों को समान दर्ज देती है। तथापि वह कई प्रकार के अल्पसंख्यकों को मान्यता देती है क्योंकि उन्हें कुछ हानि और बाधाओं का षिकार होना पड़ा है और उन्हें विषेश सहायता की जरूरत हो सकती है। यही इतिहास और परंपरा का आदेष है और यही संविधान के प्रावधानों का अनुसरण करने की परंपरा है।
धर्मनिरपेक्षता पर बहस, अपने मूलरूप में, भारतीय दर्षन के स्वरूप पर ही, भारतीय संस्कृति के मूल अर्थ पर ही बहस उन लोगों के बीच है जो भारतीय संस्कृति को वह जो है, उस रूप में देखते हैं, अर्थात् विष्व की सर्वाधिक सहनषील और उदार जीवनषैली और वे जो अपनी कट्टरता, संकीर्ण मनोवष्त्ति और असहनषीलता के द्वारा उसे विकृत करना चाहते हैं। अतः धर्मनिरपेक्षता भारत की आत्मा के लिए ही एक लड़ाई है। यह लड़ाई है उसे नफरत के सौदागरों से बचाने के लिए, उन लोगों से बचाने के लिए जो भारतीय संस्कृति को समझने और उसकी ओर से बोलने का दावा तो करते है लेकिन जो वास्तव में, सदियों से भारतीय संस्कृति जिस बात पर अरूढ रही, उसी का अपमान कर रहे हैं। हमारे समाज के अर्द्ध-सुविधा प्राप्त तथा सुविधा-वंचित वर्गों एवं समुदायों में एक नया जोष और एक नयी चाह है। उनकी आवाज, षासन की संस्थाओं में पूर्ण प्रतिनिधित्व, सामाजिक मान्यता और राजनीतिक सत्ता के प्रत्यक्ष इस्तेमाल की उनकी बढ़ती आकांक्षाओं के प्रति कांग्रेस हमेषा से संवेदनषील रही है।
यह कांग्रेस ही है, जिसने उदारीकरण और आर्थिक सुधारों की षुरूआत की। ये कांग्रेस की ही आर्थिक नीतियां हैं, जिनपर चल कर एक कमजोर और औपनिवेषिक अर्थव्यवस्था ने अपने को एक पूूर्णतः आत्मनिर्भर और मजबूत अर्थव्यवस्था में तब्दील कर लिया। आर्थिक सुधारों को अगर ठीक से सोच-समझ कर लागू किया जाता रहा और इन सुधारों का प्रबंधन ठीक से होता रहा तो ये एक पीढ़ी के कार्यकाल में ही गरीबी को मिटा देने, रोजगार के बेतहाषा अवसर मुहैया कराने और भारत को दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के षिखर पर पहुंचा देने का माद्दा रखते हैं। और, इन सबसे भी बड़ी  बात यह है कि, यह कांग्रेस ही है, जिसने भारत की तमाम अनेकताओं का उत्सव मनाते हुए मुल्क की एकता को कायम रखने का काम कर दिखाया।
श्रीमती इंदिरा गांधी के अनुसार, ‘‘एक राश्ट्र की ताकत अंततः वह अपने दम पर क्या कर सकता है, इस बात में होती है और इस चीज में नहीं होती कि वह दूसरों से क्या ले सकता है।’’ भारत आजादी के बाद पहले कुछ दषकों के दौरान तेजी से राज्य समर्थित औद्योगीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में कामयाब हुआ। हरित क्रांति ने खाद्यान्न की कमी से जूझ रहे देष से खाद्यान्न आत्मनिर्भर देष में बदल दिया और ष्वेत क्रांति ने भारत को दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया। विषाल जल विद्युत परियोजना के निर्माण के जरिये भारत ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर हो चला और यूपीए सरकार के दौरान हमारा देष दुनिया के सबसे बड़े बिजली उत्पादकों में से एक बन गया। जब कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार 2004 में सत्ता में आयी तो सबसे बड़ी चुनौती स्वतंत्रता को अगले स्तर तक लेने जाने की थी। श्रीमती सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए का प्राथमिक प्रयास प्रत्येक भारतीय की आजादी को भूख, अभाव और अषक्त बनने से सुरक्षित करने का था। यूपीए सरकार ने पाया कि विषुद्ध दान और भिक्षा की वस्तुओं के रूप में आम गरीब के लिये बनने वाली योजनाओं पर आधारित विकास मॉडल अषक्तीकरण के बुनियादी मुद्दे के समाधान में मदद नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा, योजनाओं को धन की कमी का हवाला देकर या त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन की वजहों से खत्म किया जा सकता है। इसलिए कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने उन्हें षासन में हिस्सेदारी मुहैया कराने और सबसे जरुरी राज्यों को अधिक जवाबदेह बनाने की ताकत देने की मांग की। यूपीए सरकार ने षासन में अधिकार आधारित दृश्टिकोण को अपनाया और सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (बाद में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया गया), वन अधिकार अधिनियम 2006, निःषुल्क एवं अनिवार्य षिक्षा का अधिकार अधिनियम 2010 और राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के रूप में क्रांतिकारी कानूनों की षुरुआत की। भारतीय नागरिक सषक्त बने ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
सूचना का अधिकार
कांग्रेस नेतष्त्व वाली यूपीए सरकार ने सरकार बनाने के लिये चुने जाने के एक साल के अंदर 2005 में अधिक पारदर्षिता लाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया। सूचना का अधिकार अधिनियम लोगों को ना केवल सवाल पूछने के लिए सषक्त बनाता है, बल्कि यह प्रषासन में अधिक पारदर्षिता चाहने वाले लोगों के हाथों में प्रभावी उपकरण भी बन गया। आरटीआई के तहत सवाल लगातार आ रहे हैं और सरकार कानूनी तौर पर जवाब देने के लिए बाध्य है।
इसे भारत में पारदर्षिता क्रांति से कम नहीं कहा जा सकता। सरकारों की पारदर्षिता और जवाबदेही सुनिष्चित करने में आरटीआई एक बड़ा बदलाव है। भारत के सूचना का अधिकार कानून को रोल मॉडल के रूप में देखा गया और दुनिया के कई देष इसका अनुकरण करने की मांग कर रहे हैं। आगे पारदर्षिता और जवाबदेही बढाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के तौर पर कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वस्तु एवं सेवाओं के समयबद्ध वितरण और उनकी षिकायतों का निवारण के नागरिकों के अधिकार       विधेयक, 2011 को पेष किया।
महात्मा गांधी नरेगा
महात्मा गांधी राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजनाओं में से एक है और इसने लाखों भारतीयों में यह भरोसा जगाया है कि बेहतर भविश्य उनका इंतजार कर रहा है। संसद के अधिनियम के जरिये इसने ग्रामीण भारत को कानूनी अधिकार के तौर पर रोजगार तक पहुंच दी है, गरीबी और रोजगार के मुद्दे का समधान चुनने वाले राश्ट्र को बदलाव का रास्ता दिया है। आज मनरेगा का अध्ययन आईएलओ, संयुक्त राश्ट्र और कई सारे देषों द्वारा रोल मॉडल के रूप में अपनाने के लिये केस स्टडी के तौर पर किया जा रहा है।
पिछले सात वर्शों में सरकार ने मनरेगा के तहत 2 लाख करोड़ रुपये के करीब खर्च किए हैं, ताकि यह सुनिष्चित किया जा सके कि लाखों भारतीयों को गरीबी से बचने के लिए संसाधन मुहैया हों। वर्श 2012-13 में 4.08 परिवारों को 136.18 करोड़     मानव दिवस रोजगार प्रदान किया गया और इसमें 22 प्रतिषत अनुसूचित जाति के थे, 16 प्रतिषत अनुसूचित जनजाति के थे और 53 प्रतिषत महिलाएं थीं।
सबसे गरीब और खासकर सबसे वंचित लोगों को गारंटी के साथ न्यूनतम मजदूरी सहित 100 दिन के रोजगार से बुनियादी वित्तीय सुरक्षा और वित्तीय सषक्तिकरण, पलायन की आपा-धापी को रोकने और ग्रामीण भारत में स्थायी समुदायिक संपत्ति का निर्माण किया जाता है।


वन अधिकार अधिनियम
अनुसूचित जनजाति और परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 (वन अधिकारों की मान्यता) पारित करके यूपीए सरकार ने पंडित जवाहर लाल नेहरु की ‘आदिवासी पंचषील’ की नीति को आगे बढाने का काम किया है, जिसमें उन्होंने आदिवासी विकास के लिए एक मॉडल का सुझाव दिया है, जो उन्हें अपने तरीके से जिंदगी जीने देता है और राश्ट्रीय मुख्यधारा में एकीकृत करने का अवसर भी प्रदान करता है।
‘आदिवासी पंचषील’ में वर्णित मुख्य बिंदुओं में से एक ‘भूमि और जंगलों में आदिवासी अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए’ था। वन अधिकार अधिनियम न केवल अपनी जमीन पर अपने अधिकार को मान्यता देता है बल्कि उन्हें अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण भी प्रदान करता है। 31 जनवरी, 2012 तक की स्थिति के अनुसार पूरे देषभर से कुल 31,68,478 दावे प्राप्त हुए हैं। इनमें से 86 प्रतिषत दावों पर काम किया गया। लगभग 12.51 लाख आदिवासी परिवारों को कुल 17.60 लाख हेक्टेयर जमीन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा उनके दावे का सत्यापन करने के बाद दी जा चुकी है।
षिक्षा का अधिकार
जब षिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 1 अप्रैल, 2010 को अधिनियमित किया गया, तो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बच्चों की षिक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को ठोस ढंग से जाहिर कर दिखाया। इसने भारत में हर बच्चे के लिए षिक्षा को कानूनी अधिकार बनाया है।
यह अधिनियम समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों के बच्चों के लिए सभी निजी स्कूलों में 25 प्रतिषत सीटों को आरक्षित करने आवष्यकता बताता है। यह कानून सभी गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर प्रैक्टिस का प्रतिबंध लगाता है, कोई दान या कैपिटेषन फीस और प्रवेष के लिए बच्चे या माता पिता के किसी भी तरह के साक्षात्कार पर रोक का प्रावधान करता है।
अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि किसी भी बच्चे को एक ही कक्षा में रोका नहीं जा सकता, स्कूल से निकाला नहीं जा सकता या प्राथमिक षिक्षा के पूरा होने तक बोर्ड परीक्षा पास करना जरूरी होगा। इसमें बीच में ही पढ़ाई  छोड़ने वालों को उनकी उम्र के छात्रों के साथ बराबर लाने के लिए विषेश प्रषिक्षण का भी प्रावधान है।
षिक्षा का अधिकार अधिनियम पड़ोस के सभी इलाकों और षिक्षा की जरूरत वाले सभी बच्चों की पहचान की निगरानी की आवष्यकता और इन्हें प्रदान करने के लिए सुविधाओं की स्थापना की जरुरत बताता है। यह षायद दुनिया का पहला कानून होगा जो सरकार पर नामांकन, उपस्थिति और पढाई पूरी कराने की जिम्मेदारी डालता है।
खाद्य सुरक्षा विधेयक
राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक कानूनी रूप से भारत की 1.2 अरब जनता का 67 प्रतिषत को रियायती दर पर खाद्यान्न देने का समर्थन करता है और आम लोगों के लिए भोजन और पोशण सुरक्षा को सुनिष्चित करता है। यह भारतीयों की दो तिहाई आबादी को चावल, गेहूं और मोटे अनाज की लगभग 62 लाख टन आपूर्ति पर सालाना 1,25,000 करोड़ के अनुमानित सरकारी खर्च के साथ दुनिया की सबसे बड़ी ऐसी परियोजना होगी।
इस विधेयक के तहत महिलाओं और बच्चों के लिए पोशण के समर्थन पर विषेश ध्यान दिया गया है। निर्धारित पोशण संबंधी मानदंडों के अनुसार स्तनपान कराने वाली माताओं, गर्भवती महिलाओं को पौश्टिक भोजन के अलावा छह महीने तक कम से कम 6,000 रुपये का मातष्त्व लाभ प्राप्त करने का हक होगा। छह महीने से 14 साल के आयु वर्ग के बच्चों को निर्धारित पोशण संबंधी मानदंडों के अनुसार राषन घर ले जाने या गर्म पका हुआ भोजन पाने का हक होगा।
यह विधेयक अध्यादेष के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत वस्तुओं के वितरण, कंप्यूटरीकरण सहित संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के माध्यम से घर के दरवाजे पर अनाज की आपूर्ति, एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक कम्प्यूटरीकरण, ‘आधार’ लाभार्थियों की विषिश्ट पहचान कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में सुधारों के लिए प्रावधान करता है। इस      विधेयक में राज्य और जिला स्तर पर नामित अधिकारियों के साथ एक षिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है। प्रत्येक और हर भारतीय को सषक्त बनाना एक      बड़ा काम है। इसमें राज्य और प्रत्येक नागरिक की निरंतर प्रतिबद्धता की आवष्यकता है। लेकिन यूपीए सरकार द्वारा लोगों को षासन में महत्वपूर्ण भागीदारी प्रदान की गई है और यह प्रक्रिया अच्छी तरह से और सही मायने में चल रही है।
श्रीमती सोनिया गांधी के अनुसार, ‘‘हम एक साथ मिलकर सागर जितनी गहरी और आकाष जितनी ऊंची किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।’’

Friday, 25 December 2015

'अ‍लविदा साधना जी'...

'झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में…' जैसे मशहूर गाने और बॉलीवुड में कई बड़ी और सुपरहिट देने वाली हिंदी सिनेजगत की जानी-मानी अदाकारा साधना का आज निधन हो गया। उन्होनें हिंदुजा अस्पताल में सुबह ली आखिरी सांस ली। उनके एक पारिवारिक मित्र ने बताया कि वह अर्से से कैंसर से जूझ रही थीं। साधना (74) के परिवार में एक गोद ली हुई बेटी है।साधना का जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुआ था। साधना की शादी जाने-माने फिल्म निर्देशक रामकृष्ण नैयर से हुई थी।


उन्होंने 'आरज़ू', 'मेरे मेहबूब', 'लव इन शिमला', 'मेरा साया', 'वक़्त', 'आप आए बहार आई', 'वो कौन थी', 'राजकुमार', 'असली नकली', 'हम दोनों' जैसी कई मशहूर हिंदी फ़िल्मों में काम किया था. साधना का पूरा नाम साधना शिवदासानी था. उनके नाम पर 'साधना कट' हेयरस्टाइल बेहद मशहूर हुआ था. फिल्म ‘लव इन शिमला’ से ही साधना के हेयर स्टाइल ने खूब चर्चा बटोरी थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान साधना और रामकृष्ण नैयर को एक दूसरे से मोहब्बत हुई और दोनों ने 7 मार्च 1966 को शादी कर ली।
साधना फिल्म से जुड़े कार्यक्रमों में शरीक होना पसंद नहीं था। करीना कपूर की मां बबिता साधना की चचेरी बहन थीं। साधना ने फिल्म में मेरा साया, राजकुमार, वो कौन थी समेत करीब 35 फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा था। साधना के साथ फ़िल्म 'एक फूल दो माली' और 'इंतकाम' में काम कर चुके अभिनेता संजय ख़ान कहते हैं, ''मैंने उनके साथ अपनी दो सबसे कामयाब फ़िल्में की थीं. वो बेहद ख़ूबसूरत थीं. बहुत सुंदर तरीके से चलती थीं. उन्हें हेयर स्टाइलिंग की इतनी समझ थी की एक बार उन्होनें मुझे एक नया हेयर स्टाइल दिया था.'' उन्होंने कहा, ''साधना के पति आरके नैय्यर मेरे करीबी मित्र थे. मुझे याद है कि साधना जितनी ख़ूबसूरत थी उतनी ही साफ़ दिल की थीं.'' संजय ख़ान ने कहा, ''मैं उनसे मिलने नहीं गया क्योंकि मुझे मालूम था कि वो ठीक नहीं हैं. उन्हें दावत देने की मेरी ख़्वाहिश अधूरी रह गई. मैं उन्हें बीमार नहीं देखना चाहता था. बहुत दुख है.'' अभिनेत्री आशा पारेख के मुताबिक़, ''पिछले हफ़्ते ही हम मिले थे और हमारी पार्टियां होती थीं, जिनमें हम बीते ज़माने की एक्ट्रेसेज़– हेलेन, वहीदा रहमान, शम्मी आंटी और कई लोग मिलते थे. उनकी तबियत पहले से ख़राब थी और पांच-छह कोर्ट केस भी चल रहे थे, जिनके चलते वह परेशान थीं. उन्होंने कभी अपना दुख हमसे साझा नहीं किया.'' आशा पारेख कहती हैं, ''वह बहुत पॉपुलर थीं और उसका 'साधना कट' मुझे आज भी याद है. हम उनके घर ही जा रहे हैं.

Thursday, 24 December 2015

खुषी व उल्लास का पर्व क्रिसमस

क्रिसमस ईसाइयों का पवित्र पर्व है जिसे वह बड़ा दिन भी कहते हैं। प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में संपूर्ण विश्व में ईसाई समुदाय के लोग विभिन्न स्थानों पर अपनी-अपनी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के साथ श्रद्धा, भक्ति एवं निष्ठा के साथ मनाते हैं। क्रिसमस पर घर-घर और प्रत्येक चर्च में सजने वाला क्रिसमस ट्री आज पूरे विश्व में मशहूर हो चला है। रंगबिरंगी सजावटों से, रोशनियों, गिफ्ट्स से सजा-धजा यह क्रिसमस ट्री अपना अद्भुत आकर्षण पेश करता है। हर एक व्यक्ति इसके सौंदर्य में आप ही खो जाता है। रोशनी से नहाया हुआ क्रिसमस ट्री अपनी ख़ूबसूरती की अनोखी छटा बिखेरता है जिसे देखकर मन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाता है।

 क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसम्बर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है और लगता है कि इस तिथि को एक रोमन पर्व या मकर संक्रांति (शीत अयनांत) से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है। आधुनिक क्रिसमस की छुट्टियों मे एक दूसरे को उपहार देना, चर्च मे समारोह और विभिन्न सजावट करना शामिल है। इस सजावट के प्रदर्शन मे क्रिसमस का पेड़, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। सांता क्लॉज़ (जिसे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है हालाँकि, दोनों का मूल भिन्न है) क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है। सांता के आधुनिक स्वरूप के लिए मीडिया मुख्य रूप से उत्तरदायी है।
क्रिसमस को सभी ईसाई लोग मनाते हैं और आजकल कई गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान प्रदान, सजावट का सामन और छुट्टी के दौरान मौजमस्ती के कारण यह एक बड़ी आर्थिक गतिविधि बन गया है और अधिकांश खुदरा विक्रेताओं के लिए इसका आना एक बड़ी घटना है।
ऐसा माना जाता है कि संत बोनिफेस इंग्लैंड को छोड़कर जर्मनी चले गए। जहां उनका उद्देश्य जर्मन लोगों को ईसा मसीह का संदेश सुनाना था। इस दौरान उन्होंने पाया कि कुछ लोग ईश्वर को संतुष्ट करने हेतु ओक वृक्ष के नीचे एक छोटे बालक की बलि दे रहे थे। गुस्से में आकर संत बोनिफेस ने वह ओक वृक्ष कट‍वा डाला और उसकी जगह फर का नया पौधा लगवाया जिसे संत बोनिफेस ने प्रभु यीशु मसीह के जन्म का प्रतीक माना और उनके अनुयायिओं ने उस पौधे को मोमबत्तियों से सजाया। तभी से क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा चली आ रही है।
आधुनिक क्रिसमस ट्री की शुरुआत पश्चिम जर्मनी में हुई। मध्यकाल में एक लोकप्रिय नाटक के मंचन के दौरान ईडन गार्डन को दिखाने के लिए फर के पौधों का प्रयोग किया गया जिस पर सेब लटकाए गए। इस पेड़ को स्वर्ग वृक्ष का प्रतीक दिखाया गया था। उसके बाद जर्मनी के लोगों ने 24 दिसंबर को फर के पेड़ से अपने घर की सजावट करनी शुरू कर दी। इस पर रंगीन पत्रियों, कागजों और लकड़ी के तिकोने तख्ते सजाए जाते थे। 1605 में जर्मनी में पहली बार क्रिसमस ट्री को काग़ज़ के गुलाबों, सेब और केन्डीस से सजाया गया। पहले के समय में क्रिसमस ट्री के टॉप पर बालक यीशु का स्टेच्यू रखा जाता था। जिसका स्थान बाद में उस एंजल के स्टेच्यू ने ले लिया जिसने गरड़‍ियों को यीशु मसीह के जन्म के बारे में बताया था। कुछ समय बाद क्रिसमस ट्री के टॉप पर सितारे को रखा जाने लगा जिसने ज्योति‍‍षियों को यीशु का पता बताया था। आज भी क्रिसमस ट्री के टॉप पर सि‍तारा रखा जाता है। क्रिसमस ट्री के साथ-साथ ही सारे मसीह परिवार और चर्च में इस तारे को विशेष तौर पर लगाया जाता है। क्रिसमस से इस पेड़ का जुड़ाव सदियों पुराना बताया जाता है। यूरोप में कहते हैं कि जिस रात जीसस का जन्म हुआ, जंगल के सारे पेड़ जगमगाने लगे थे और फलों से लद गए थे। यही वजह है कि क्रिसमस के दिन इस पेड़ को घर लाकर सजाते हैं।
इसके अलावा इससे जुड़ी एक और कहानी मशहूर है वह यह कि एक बार क्रिसमस पूर्व की संध्या में कड़ाके की ठंड में एक छोटा बालक घूमते हुए खो जाता है। ठंड से बचने के लिए वह आसरे की तलाश करता है तभी उसको एक झोपड़ी दिखाई देती है। उस झोपड़ी में एक लकड़हारा अपने परिवार के साथ आग ताप रहा होता है। लड़का इस उम्मीद के साथ दरवाज़ा खटखटाता है कि उसे यहां आसरा मिल जाएगा। लकड़हारा दरवाज़ा खोलता है और उस बालक को वहां खड़ा पाता है। उस बालक को ठंड में ठिठुरता देख लकड़हारा उसे अंदर बुला लेता है। उसकी बीवी उस बच्चे की सेवा करती है। उसे नहला कर, खाना खिलाकर अपने सबसे छोटे बेटे के साथ उसे सुला देती है। क्रिसमस की सुबह लकड़हारे और उसके परिवार की नींद स्वर्गदूतों की गायन मंडली के स्वर से खुलती है और वे देखते हैं कि वह छोटा बालक यीशु मसीह के रूप में बदल गया है। यीशु बाहर जाते हैं और फर वृक्ष की एक डाल तोड़कर उस परिवार को धन्यवाद कहते हुए देते हैं। तभी से इस रात की याद में प्रत्येक मसीह परिवार अपने घर में क्रिसमस ट्री सजाता है।
दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह २५ दिसम्बर को मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसम्बर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार २५ दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।क्रिसमस आमतौर पर बहुत सी देशों के लिए सबसे बड़ा वार्षिक आर्थिक उत्तेजना लाता है। सभी खुदरा दूकानों में बिक्री अचानक से बढ़ जाती है। दूकानों में नए ये सामान मिलने लगते हैं क्यूंकि लोग सजावट. के सामान. उपहार और अन्य सामान की करिदारी शुरू कर देते हैं। अमेरिका में, "क्रिसमस की खरीदारी का मौसम" आम तौर पर काला शुक्रवार (Black Friday), को शुरू होता है ये दिन थान्क्स्गिविंग (Thanksgiving) दिन के बाद आता है हलाकि बहुत से दुनाकन में क्रिसमस के सामान अक्टूबर के शुरुआत से ही मिलने लगते हैं।
अधिकांश क्षेत्रों में, क्रिसमस दिवस व्यापार और वाणिज्य के लिए इस वर्ष के कम से कम सक्रिय दिन है, लगभग सभी, वाणिज्यिक खुदरा और संस्थागत व्यवसाय बंद हो जाती हैं लगभग सभी उद्योगों गतिविधि समाप्त (वर्ष के किसी भी दूसरे दिन की तुलना में) इंग्लैंड और वेल्स (England and Wales) में (व्यापार) अधिनियम, 2004 (Christmas Day (Trading) Act 2004) क्रिसमस दिवस पर व्यापार से सभी बड़े दुकानों से बचाता है। स्कॉटलैंड वर्तमान में इसी तरह के कानून की योजना बना रही है।फ़िल्म स्टूडियो (Film studio) इन छुट्टी के दिनों में बहुत से मेहेंगी फिल्में रेलेसे करती है जिनमें जाया कर के क्रिसमस फिल्में काल्पनिक (fantasy) या उच्चा कोटि का ड्रामा होता था और उनका उत्पादन (production) मूल्य काफी ज्यादा होता था
एक अर्थशास्त्री (economists) के विश्लेषण के अनुसार रूढ़िवादी microeconomic सिद्धांत (microeconomic theory), उपहार में वृद्धि-देने के कारण.क्रिसमस एक deadweight हानि (deadweight loss) इस नुकसान की गणना उपहार देने और उपहार लेने के बीच के खर्च को जोड़ कर होता है ऐसा लगता है कि 2001 में क्रिसमस अमेरिका में अकेले एक 4 अरब डॉलर डेडवेट की हानी की वजह था।[41][42] पेचीदा कारकों की वजह से, इस विश्लेषण का प्रयोग कभी कभी वर्तमान मिक्रोइकनॉमिक सिद्धांत में संभव दोषों की चर्चा करने के लिए किया जाता है। अन्य डेडवेट हानियों me शामिल हैं क्रिसमस के प्रभावों पर्यावरण और इस तथ्य पर कि उपहार अक्सर सफेद हाथी (white elephant) की रखरखाव और भंडारण और अव्यवस्था में योगदान करने के लिए अधिरोपित करने की लागत, माना जाता है।

Tuesday, 8 December 2015

कांग्रेस में जान फूंकी सोनिया गांधी ने


कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी का आज 69वां जन्म दिन है। इटली के एक छोटे से गांव की एक साधारण सी लड़की के भारत के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की बहू बनने की कहानी किसी परी कथा से कम नहीं है। सोनिया गांधी और राजीव गांधी की जिंदगी के शुरुआती 13 साल कई सियासी उतार-चढ़ावों से होकर गुजरे क्योंकि पूरा परिवार एक के बाद एक दुखद घटनाओं से जूझ रहा था। पहले विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत, उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और सात साल बाद खुद राजीव गांधी की हत्या। हर बार सोनिया गांधी को शिद्दत से ये एहसास हो रहा था कि ये राजनीति ही थी जो राजीव गांधी और उनकी जिंदगी की दुश्मन साबित हुई थी, पर विकल्प कोई नहीं था। बाद के सालों ने दिखाया कि विदेश में पैदा हुई ये गांधी अपनी जिंदगी और इस देश की सियासत की किताब नए सिरे से लिखने को तैयार हो रही थी। उनकी भावना की तुलना बाद में उन्हें मिली फतह से की जा सकती है।

साल 2004 में बीजेपी ने सोनिया गांधी की ताकत को अनदेखा किया था और अब बीजेपी के सामने ही सोनिया गांधी एक खास अंदाज में अपने लिए लिखे भाषण पढ़कर उस भारत तक पहुंच रही थीं जो उतना चमकदार नहीं था जितना दावा किया जा रहा था। सोनिया गांधी की लगातार एक ही कोशिश थी कि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए सहयोगी मिल जाएं। पुराने दुश्मन अब दोस्त का दर्जा पा गए थे। कुछ जातियों और समुदायों में सोनिया ने भी अपनी पैठ बना ली थी अचानक सोनिया एम करुणानिधि, वायको, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जैसे नेताओं की भी पसंद बन गई थीं।
हरकिशन सिंह सुरजीत से उनकी काफी बनती थी। एक बार वो सुरजीत के घर भी गई थीं। गर्मियों के दिन थे। सुरजीत ने कहा कि उनके घर में अंदर के कमरे में एक एयरकंडिश्नर है तो क्या तुम अंदर जा सकती हो और सोनिया गांधी तुरंत चली गईं। जिस कुर्सी पर वो बैठीं वो टूटी हुई थी। सोनिया गांधी ने उस पर तकिया रखा और बैठकर बातचीत करती रहीं। तब से सुरजीत से सोनिया गांधी की अच्छी दोस्ती हो गई और याद रखें कि ये कोई राजनीतिक दोस्ती नहीं थी, जिसके लिए वो पांच साल से मोलतोल कर रही थीं।
2004 चुनावों ने दिखाया कि दांव पर क्या लगा था। कांग्रेस का अस्तित्व ही नहीं बल्कि भारत की राजनीति में शायद एक गांधी की औकात भी दांव पर लगी थी। देश ने कांग्रेस को चुना और कांग्रेस ने सोनिया गांधी को और सोनिया गांधी ने उस शख्स को चुना जो सियासतदान कम था वफादार ज्यादा। उनके घर के बाहर कांग्रेसियों का हुजूम लग गया। पर सोनिया गांधी की तरफ से न हो चुकी थी। सोनिया गांधी के त्याग की कहानी देशभर में टेलीकास्ट हुई। सत्ता त्यागकर सोनिया और भी ताकतवर बन गई थीं। यहां तक कि बीजेपी ने भी माना कि ये सोनिया गांधी का मास्टरस्ट्रोक था।
ये उस नेता की कामयाबी थी, जिसे 1999 में सियासत का नौसिखिया कहा जाता था। राष्ट्रपति भवन के सामने कभी न भूलने वाली वो प्रेस कांफ्रेंस जब सोनिया गांधी ने जादुई आंकड़ों का ऐलान किया और कहा कि हमें यकीन है कि हमें 272 सीटें मिलेंगी। चुनाव अभियान का कर्ताधर्ता गलती कर सकता था, पर संसद में पार्टी प्रमुख के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। पता चला कि आंकड़ा 272 तक नहीं पहुंच पाया और 40 कम है तो चुनाव मजबूरी बन गए और सोनिया ने पाया कि उनके लिए अब अपनी छवि बनाए रखना बहुत जरूरी था। सोनिया गांधी से दोबारा गलती नहीं हुई। अब उन्होंने अपनी हर रुकावट को अपने फायदे में बदलना शुरू कर दिया। इस हद तक कि उनके विरोधी भी चौंक जाते थे।
राष्ट्रपति चुनाव, लाभ के पद के संकट और न्यूक्लियर करार पर तकरार जैसे जोखिम से गुजरकर सोनिया गांधी सत्ता में भागीदारी की कला अच्छी तरह जान गई थीं। एक सर्वशक्तिमान नेता और एक आज्ञाकारी प्रधानमंत्री के गठबंधन ने सत्ता में भागीदारी की नई परंपरा को जन्म दिया। सोनिया गांधी पार्टी के लिए जिम्मेदार थीं तो मनमोहन सरकार के लिए। ऐसी हिस्सेदारी पहले नहीं देखी गई थी फिर भी बहुत से लोग कहते हैं कि सत्ता सिर्फ सोनिया गांधी के पास ही रहती थी।
सोनिया गांधी ने १९९७ में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके ६२ दिनों के अंदर १९९८ में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे।
सोनिया गांधी अक्टूबर १९९९ में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और करीब तीन लाख वोटों की विशाल बढ़त से विजयी हुईं। १९९९ में १३वीं लोक सभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गयी। २००४ के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में यूपीए को अनपेक्षित २०० से ज़्यादा सीटें मिली। सोनिया गांधी स्वयं रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं। वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। १६ मई २००४ को सोनिया गांधी १६-दलीय गंठबंधन की नेता चुनी गई जो वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाता जिसकी प्रधानमंत्री सोनिया गांधी बनती। सबको अपेक्षा थी की सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी और सबने उनका समर्थन किया। परंतु एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए। सुषमा स्वराज और उमा भारती ने घोषणा की कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वे अपना सिर मुँडवा लेंगीं और भूमि पर ही सोयेंगीं। १८ मई को उन्होने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने का अनुरोध किया और प्रचारित किया कि सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनने की घोषणा की है। कांग्रेसियों ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फ़ैसले को बदलने का अनुरोध किया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया।

राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप २३ मार्च २००६ को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई २००६ में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गई और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एक बार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गई। महात्मा गांधी की वर्षगांठ के दिन २ अक्टूबर २००७ को सोनिया गांधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया।
सोनिया गांधी ने बार-बार सरकार का फोकस आम आदमी की तरफ मोड़ने की कोशिश की। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना, सूचना का अधिकार अधिनियम ये सभी तब आए जब 2006 तक वो नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की अध्यक्ष थीं। इधर, दो साल से कम वक्त में दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष फिर बाहर निकलीं और अपने पारिवारिक गढ़ रायबरेली में चुनावी समर के लिए वापस लौटीं।
2009 में सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने देश के दूसरे हिस्सों पर भी ध्यान देना शुरू किया। बेशक दोनों देश के दूसरे इलाकों का दौरा करके पार्टी की नींव मजबूत करने में लगे हों, लेकिन रायबरेली और अमेठी में तो मानो जीत गांधी परिवार के खाते में पहले से ही लिख दी गई है।  साल 2013 के बाद एक के बाद एक हुए चुनावों में पार्टी की हार से नेहरू-गांधी की जमीन धीरे-धीरे उनके पैरों से खिसकने लगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ गई और देश की जनता ने उसे नकार दिया एनडीए को जहां एक ओर भारी बहुमत मिला वहीं कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई, ये कांग्रेस के लिए बेहद शर्मनाक हार थी, लगने लगा कि अब कांग्रेस के लिए दोबारा उभरना आसान नहीं होगा, लेकिन एक बार फिर सोनिया गांधी ने पार्टी को हार से उभारने के लिए पूरी तरह एक्टिव हो गई हैं। गिरती सेहत के बावजूद सोनिया गांधी आज भा कांग्रेस की ढाल बनकर खड़ी हैं।

संसद में दहाड़ी सोनिया गांधी



पटियाला हाउस कोर्ट में नेशनल हेराल्ड केस में सुनवाई टल गई है। अब सुनवाई 19 दिसंबर को होगी। आज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अदालत में पेश होना था। कल दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए सोनिया और राहुल को निचली अदालत में पेश होने को कहा था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि जो करना है कोर्ट को करना है। साथ ही उन्होंने कहा कि मै मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं, मैं किसी से नहीं डरती। मैं क्यों अपसेट होऊं।
कोर्ट में सोनिया-राहुल गांधी की तरफ से कहा गया कि हम कोर्ट में पेश होने के लिए तैयार हैं। लेकिन चूंकि राहुल चेन्नई में हैं और सोनिया गांधी संसद सत्र में व्यस्त हैं, सैम पित्रोदा अमेरिका में हैं, इसलिए कुछ दिन की मोहलत चाहिए। इस पर कोर्ट ने 19 दिसंबर को पेशी की तारीख तय कर दी।
राज्यसभा में कांग्रेसी सांसदों ने 'तानाशाही नहीं चलेगी', 'बदले की राजनीति नहीं चलेगी' के नारे लगाए। वहीं लोकसभा में मोदी सरकार होश में आओ के नारे लगे।
 नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी कोर्ट में पेशी को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर रही। सोनिया गांधी के बाद राहुल ने भी इसे लेकर सरकार पर वार किया। राहुल ने पार्टी की तर्ज पर इसे सरकार का राजनीतिक बदला करार दिया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी  तमिलनाडु में बाढ़ के हालात का जायजा लेने पुड्डचेरी पहुंचे। नेशनल हेराल्ड केस के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हां ये राजनीतिक बदला है। केंद्र सरकार मुझे ऐसे ही सवाल पूछने से रोकती है, लेकिन मैं चुप नहीं बैठूंगा। मैं सवाल पूछता रहूंगा और केंद्र सरकार पर दबाव बनाता रहूंगा।
 कांग्रेस ने इस मामले में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दाखिल याचिका को राजनीतिक बदला बताया। प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, गुलाम नबी आजाद और रणदीप सुरजेवाला ने सरकार पर जमकर हमला बोला। इसे लेकर संसद के दोनों सदनों में भी जमकर बवाल मचा।

Wednesday, 2 December 2015

Honoring and Dutiful Advocates' Day



Advocate's day is celebrated in India by the lawyer community on the 3rd of December to mark the birth anniversary of Rajendra Prasad, First President and a very eminent lawyer.  Dr. Rajendra Prasad, the First President of India and a very eminent lawyer himself. Advocates' Day brings together labor officials, labor representatives, public and private sector managers, management representatives and labor relations neutrals from across the States and Territories to hear national and regional speakers addressing the key issues of the day. Dr. Rajendra Prasad (December 3, 1884 – February 28, 1963) was the first President of Independent India. He was an independence activist and as a leader of the Congress Party, played a prominent role in the Indian Independence Movement. He served as President of the Constituent Assembly that drafted the constitution of the Republic from 1948 to 1950. He had also served as a Cabinet Minister briefly in the first Government of Independent India.
He was born in Zeradei, in the Siwan district of Bihar near Chapra. His father, Mahadev Sahai, was a Persian and Sanskrit language scholar; his mother, Kamleshwari Devi, was a devout lady. He was married at the age of 12 to Rajvanshi Devi. His dauntless determination towards the service of nation impressed many prominent leaders of his genre who came under his tutelage. He passed in 1915 with a Gold medal in Masters in Law examination with honors and went on to complete his Doctorate in Law. Dr. Rajendra Prasad used to practice his Law and studies in Bhagalpur (Bihar), and was a very popular and eminent figure over there during that ceremonious era. Rajendra Prasad was greatly moved by the dedication, courage and conviction of Mahatma Gandhi and he quit as a Senator of the University in 1921 and was drawn into the Indian freedom struggle.
He was elected as the President of Indian National Congress during the Bombay session in October 1934 and took active role in meeting its objectives. After India became independent he was elected as the President of India. As the first President, he was independent and unwilling to allow the Prime Minister or the party to usurp his constitutional prerogatives. However, following the tussle over the enactment of the Hindu Code Bill, he moderated his stance. He set several important precedents for later Presidents to follow. In 1962, after 12 years as President, he announced his decision to retire and was Succeeded by Dr. Sarvepalli Radhakrishnan. He was subsequently awarded the 'Bharat Ratna', the nation's highest civilian award in 1962, the order which was established by himself, on January 2nd, 1954. Advocates' day is observed in India to commemorate his birthday.

Wednesday, 18 November 2015

सशक्त देश की पहचान इंदिरा गांधी

देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म आज ही के दिन, 17 नवंबर 1917 को हुआ था। भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी को विशेष रूप से याद रखा जाता है। एक तेज तर्रार, त्‍वरित निर्णयाक क्षमता और लोकप्रियता ने इंदिरा गांधी को देश और दुनिया की सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार कर दिया। इंदिरा को तीन कामों के लिए देश सदैव याद करता रहेगा। पहला बैंकों का राष्ट्रीयकरण, दूसरा राजा-रजवाड़ों के प्रिवीपर्स की समाप्ति और तीसरा पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर बांग्लादेश का उदय।

गुलाम भारत को आजादी की कितनी जरूरत है यह इंदिरा ने अच्छे से समझ लिया था। बचपन से ही वो भी भारत की आजादी की लड़ाई में जुट गई थीं। उन्होंने अपने हमउम्र बच्चों के साथ एक वानर सेना बनाई जिसका उद्देश्य देश की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारी एवं आंदोलनकारियों तक गुप्त सूचनाएं पहुंचाना था। 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त के वित्त मंत्री मोरारजी देसाई इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुके थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी। 1969 में इंदिरा गांधी ने भूमिहीन और समाज के कमजोर वर्ग के लिए भूमि सुधार नीति बनाई। हरित क्रांति इंदिरा के अथक प्रयास का फल था। बीस सूत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत भी इंदिरा गांधी ने ही की थी।
1967 के आम चुनावों में कई पूर्व राजे-रजवाड़ों ने सी.राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्वतंत्र पार्टी का गठन लिया था। इनमें से कई कांग्रेस के बागी भी थे। इस कारण इंदिरा ने प्रिवीपर्स समाप्ति का संकल्प ले लिया। 1971 के चुनावों में सफलता के बाद इंदिरा ने संविधान में संशोधन कराया और प्रिवीपर्स की समाप्ति कर दी। इस तरह राजे-महाराजों के सारे अधिकार और सहूलियतें वापस ले ली गईं। 1971 के चुनाव में इंदिरा जी ने नारा दिया था ‘गरीबी हटाओ’। इस नारे का जादू देश भर में लोगों के सिर चढ़कर बोला। पाकिस्तान के साथ युद्ध में विजयी होने के बाद वे संसद में पहले ही दुर्गा की परिभाषा से विभूषित हो चुकी थी। उनकी लोकप्रियता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती। भारत पाकिस्तान के बीच तीसरे युद्ध ने दक्षिण एशिया का भूगोल ही नहीं इतिहास भी बदल दिया। ये इंदिरा की अगुवाई का ही कमाल था कि भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर भी मजबूर तक दिया जब महाबली अमेरिकी खुद उसका खुलकर साथ दे रहा था।पाकिस्तान से लड़ाई के तीन साल बाद 18 मई 1974 को भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर विश्व पटल पर अपनी सैन्य ताकत दर्ज कराने की कोशिश की। इसके साथ ही अमरीका, सोवियत संघ (तत्कालीन), ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत छठा ऐसा करने वाला देश बन गया।साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर सैन्य हमले पर विचार किया था। वह पड़ोसी देश को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए ऐसा करना चाहती थीं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के सार्वजनिक किए गए एक दस्तावेज में यह दावा किया गया।
 बांगलादेश के उदय को इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन का उत्कर्ष कहा जा सकता है, वहीं 1975 में रायबरेली के चुनाव में गड़बड़ी के आरोप और जेपी द्वारा संपूर्ण क्रांति के नारे के अंतर्गत समूचे विपक्ष ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इस पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल में नागरिक अधिकार रद्द हो गए और प्रेस और मीडिया पर सेंसरशिप लागू हो गई। कई विपक्षी नेता जेल भेज दिए गए। संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान और सत्ता पक्ष द्वारा दमन के कारण आपातकाल को इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन का निम्न बिंदु कहा जाने लगा।
दरअसल, 1971 में ही हाईकोर्ट ने रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी का निर्वाचन अवैध ठहरा दिया था। इस चुनाव में राजनारायण थोड़े ही मतों से हार गए थे। इंदिरा गांधी ने इस निर्णय को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी तो उन्हें स्टे मिल गया। वे प्रधानमंत्री के पद पर बनी रह सकतीं थी लेकिन सदन की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकती थीं और न ही सदन में वोट दे सकती थीं। इन्ही परिस्थितियों के मद्देनजर इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगा दिया था। इसका जनता ने माकूल जवाब दिया। 1977 में इमरजेंसी हटा ली गई और  आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी की अभूतपूर्व हार हुई।
जनता पार्टी के नेतृत्व में चार घटक दलों के साथ मोरराजी देसाई प्रधानमंत्री बने। हालांकि दो साल ही जनता पार्टी में खींचतान शुरू हो गई। चरण सिंह 64 सांसदों को साथ जनता पार्टी से अलग हो गए। मोरारजी देसाई ने सदन में विश्वासमत का सामना करने से पहले् ही इस्तीफा दे दिय़ा।
चरणसिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। चरणसिंह भी सदन में विश्वास मत हासिल करते इसके पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रपति से नए चुनाव करने का अनुरोध किया । 1980 के चुनावों में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत हासिल हुई और कांग्रेस सत्ता में लौटी। जाहिर है इंदिरा के शासनकाल में हुई ये ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाओं ने भारत में न केवल राजनीतिक बल्‍कि सामाजिक परिवर्तन भी किए। आज भी देश और दुनिया इंदिरा गांधी को एक मजबूत नेता के रूप में जानती है।

Friday, 13 November 2015


जय जवाहरलाल की

'हम कोटि-कोटि कुटुम्बियों की और विश्व विशाल की,
सुख-शांति-चिंता थी, तुम्हारी सहचरी चिरकाल की।
तुम जागते थे रात में भी, जबकि सोते थे सभी,
जन-मात्र की सच्ची विजय है, जय जवाहरलाल की।'
- मैथिलीशरण गुप्त की कविता 'जय' से



नेहरू जी यह जानते थे कि देश को आजादी मिलने के बाद देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ देश को मजबूत बनाया जाना बड़ा जरूरी है। भारत के आजाद होने के पहले ही चीन भी साम्राज्यवादी राजतंत्र से आजाद हुआ था। नेहरू की सर्वभौम वैश्विक दृष्टि थी। उनकी सोच यही थी कि नए आजाद हुए एशियाई देशों में सहयोग और भाईचारे की भावना जरूरी है तभी वे गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी जैसी चुनौतियों से पार पा सकेंगे। उन्होंने चीन के साथ पंचशील का समझौता इसी उद्देश्य से किया था कि देश के सैन्य संसाधनों का अनाश्यक विस्तार न करते हुए देश निर्माण पर ध्यान दिया जाए। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू एक गांव में पहुंचे। उन्होंने ग्रामीणों से सवाल किया कि आप अक्सर भारत माता की जय का नारा लगाते हैं, क्या आप बता सकते हैं भारत माता कौन है। कोई जवाब नहीं मिला तो नेहरू बोले हमारे पहाड़, नदियां, जंगल, जमीन, वन संपदा,खनिज... यही तो भारत माता है।
आप भारत माता की जय का नारा लगाते हैं तो आप हमारे प्राकृतिक संसाधनों की जय ही करते हैं। नेहरू कहते थे हिन्दुस्तान एक ख़ूबसूरत औरत नहीं है। नंगे किसान हिन्दुस्तान हैं। वे न तो ख़ूबसूरत हैं, न देखने में अच्छे हैं- क्योंकि ग़रीबी अच्छी चीज़ नहीं है, वह बुरी चीज़ है। इसलिए जब आप 'भारतमाता' की जय कहते हैं- तो याद रखिए कि भारत क्या है, और भारत के लोग निहायत बुरी हालत में हैं- चाहे वे किसान हों, मजदूर हों, खुदरा माल बेचने वाले दूकानदार हों,और चाहे हमारे कुछ नौजवान हों। नेहरू की इसी सोच के चलते उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है। उन्होंने भाखड़ा नंगल डेम, बीएचईएल (बिजली के भारी उपकरणों का उद्योग) आईआईटी, एम्स, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी की स्थापना की। नेहरू ने गांधी की आर्थिक संकल्पना को व्यवहारवादी रुख देते हुए देश में बड़े कारखानों, तकनीकी प्रगति और वैज्ञानिक सोच को समाविष्ट किया।
देश के प्रथम प्रधानमंंत्री की घरेलू नीति चार स्तंभों पर थी लोकतंत्र, समाजवाद,एकता और धर्मनिरपेक्षता। नेहरू ने अपने कार्यकाल के दौरान इन चारों स्तंभों को मजबूती प्रदान की। नेहरू एक आइकॉन थे। उनके आदर्श और राजनीतिक कुशलता का सम्मान विदेशों में भी किया जाता था। देश के जनमानस को आधुनिक मूल्य और विचारों से नेहरू ने ही संपृक्त कराया। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को सदा ही महत्व दिया। उन्होंने हमेशा देश की एकता बनाए रखने का प्रयास किया। वे जातीय अस्मिताओं और विविध धार्मिक समूहों वाले इस देश को वैज्ञानिक नवाचार और तकनीकी प्रगति के आधुनिक युग में लेकर गए। समाज में हाशिए के लोग और गरीब उनकी चिंता के केंद्र थे। लोकतात्रिंक मूल्यों में नेहरू ने सदैव पूर्ण आस्था रखी।
नेहरू को खास तौर पर हिंदू सिविल कोड लागू करने के लिए याद किया जाता है, इसी की बदौलत हिंदू औरतें उत्तराधिकार और संपत्ति में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा पा सकीं। नेहरू ने ही हिंदू कानून में बदलाव लाकर जातिगत भेदभाव को आपराधिक कृत्य की श्रेणी में ला दिया। नेहरू ने ही पांच वर्षीय योजना में देश के सभी बच्चों को अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा देने की गारंटी दी।
नेहरू के अनुसार भारत की सेवा का अर्थ, करोड़ों पीड़ितों की सेवा है। इसका अर्थ दरिद्रता और अज्ञान, और अवसर की विषमता का अन्त करना है। नेहरू की आकांक्षा यही रही कि प्रत्येक आँख के प्रत्येक आँसू को पोंछ दिया जाए, ऐसा करना हमारी शक्ति से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आँसू हैं और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा।
पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर निजी शिक्षकों से प्राप्त की। पंद्रह साल की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए और हैरो में दो साल रहने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए। यहाँ तक कि छात्र जीवन के दौरान भी वे विदेशी हुकूमत के अधीन देशों के स्वतंत्रता संघर्ष में रुचि रखते थे। उन्होंने आयरलैंड में हुए सिनफेन आंदोलन में गहरी रुचि ली थी। उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनिवार्य रूप से शामिल होना पड़ा।
1912 में उन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में बांकीपुर सम्मेलन में भाग लिया एवं 1919 में इलाहाबाद के होम रूल लीग के सचिव बने। 1916 में वे महात्मा गांधी से पहली बार मिले जिनसे वे काफी प्रेरित हुए। उन्होंने 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया। 1920-22 के असहयोग आंदोलन के सिलसिले में उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा।
पंडित नेहरू सितंबर 1923 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने। उन्होंने 1926 में इटली, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी एवं रूस का दौरा किया। बेल्जियम में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में ब्रुसेल्स में दीन देशों के सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने 1927 में मास्को में अक्तूबर समाजवादी क्रांति की दसवीं वर्षगांठ समारोह में भाग लिया। इससे पहले 1926 में, मद्रास कांग्रेस में कांग्रेस को आजादी के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध करने में नेहरू की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व करते हुए उन पर लाठी चार्ज किया गया था। 29 अगस्त 1928 को उन्होंने सर्वदलीय सम्मेलन में भाग लिया एवं वे उनलोगों में से एक थे जिन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधार की नेहरू रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर किये थे। इस रिपोर्ट का नाम उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था। उसी वर्ष उन्होंने ‘भारतीय स्वतंत्रता लीग’ की स्थापना की एवं इसके महासचिव बने। इस लीग का मूल उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्णतः अलग करना था।
1929 में पंडित नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए जिसका मुख्य लक्ष्य देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था। उन्हें 1930-35 के दौरान नमक सत्याग्रह एवं कांग्रेस के अन्य आंदोलनों के कारण कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने 14 फ़रवरी 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी ‘आत्मकथा’ का लेखन कार्य पूर्ण किया। रिहाई के बाद वे अपनी बीमार पत्नी को देखने के लिए स्विट्जरलैंड गए एवं उन्होंने फरवरी-मार्च, 1936 में लंदन का दौरा किया। उन्होंने जुलाई 1938 में स्पेन का भी दौरा किया जब वहां गृह युद्ध चल रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले वे चीन के दौरे पर भी गए।
पंडित नेहरू ने भारत को युद्ध में भाग लेने के लिए मजबूर करने का विरोध करते हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह किया, जिसके कारण 31 अक्टूबर 1940 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें दिसंबर 1941 में अन्य नेताओं के साथ जेल से मुक्त कर दिया गया। 7 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में पंडित नेहरू ने ऐतिहासिक संकल्प ‘भारत छोड़ो’ को कार्यान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया। 8 अगस्त 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले जाया गया। यह अंतिम मौका था जब उन्हें जेल जाना पड़ा एवं इसी बार उन्हें सबसे लंबे समय तक जेल में समय बिताना पड़ा। अपने पूर्ण जीवन में वे नौ बार जेल गए। जनवरी 1945 में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने राजद्रोह का आरोप झेल रहे आईएनए के अधिकारियों एवं व्यक्तियों का कानूनी बचाव किया। मार्च 1946 में पंडित नेहरू ने दक्षिण-पूर्व एशिया का दौरा किया। 6 जुलाई 1946 को वे चौथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए एवं फिर 1951 से 1954 तक तीन और बार वे इस पद के लिए चुने गए।

Tuesday, 10 November 2015

कांग्रेस की सात गुना छलांग

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार विजय के सूत्रधार हैं और राहुल गांधी गठबंधन के सूत्रधार हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की प्रभावशाली भूमिका के बिना महागठबंधन संभव नहीं होता।  जिस समय राजद प्रमुख को इस बारे में आपत्तियां थी, तब राहुल ने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को साथ लाने में बड़ी भूमिका निभाई। बिहार की विजय राहुल गांधी के पार्टी प्रमुख बनने का सही समय है।  वैसे इस मुद्दे पर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी को फैसला करना है।
कांग्रेस के लिए बिहार चुनावों में गठबंधन का रास्ता काफी फायदेमंद साबित हुआ है। परिणाम दर्शाते हैं कि पार्टी ने जिन 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें से 27 पर वह जीत दर्ज करने में कामयाब रही। 2010 के विधानसभा चुनावों में इसे सिर्फ चार सीटें मिली थीं जबकि उसने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार कम सीट पर चुनाव लड़ने के कारण उसका मत प्रतिशत भी कम हो गया जो 2010 में 8.37 फीसदी के मुकाबले 6.7 फीसदी रहा । पिछले चुनावों में पार्टी के 216 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।
इस चुनाव में पार्टी के हिसाब से देखें तो मत प्रतिशत के मामले में कांग्रेस चौथे स्थान पर है। पिछले वर्ष मई के लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी के लिए बिहार एक बड़ी जीत है। लोकसभा चुनावों में पार्टी महज 44 सीटों पर सिमट कर रह गई है। पार्टी ने महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था. दिल्ली में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था।
भारत की आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अविभाजित बिहार की 324 विधानसभा सीटों में से 239 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2010 में बिहार के विभाजित होने के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन दिया और 243 विधानसभा सीटों में से मात्र 4 सीटें हासिल कीं। साल 2014 के उपचुनावों में कांग्रेस ने एक और सीट जीती।
ऐसे में इन चुनावों में 5 से 27 सीटों तक का सफर तय करके कांग्रेस ने शानदार कमबैक किया है. मंडल दौर के बाद लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक कद में दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हुई। साल 1995 के चुनावों में कांग्रेस मात्र 29 सीटों पर सिमट गई। बीजेपी इन चुनावों में 41 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनने में सफल हुई।  साल 2000 में लालू यादव ने कांग्रेस के 23 विधायकों को राबड़ी देवी कैबिनेट में शामिल किया। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सदानंद सिंह को असेंबली स्पीकर भी बनाया गया।
इसके बाद कांग्रेस ने दोबारा कभी बिहार में अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की मजबूत कोशिश नहीं की। प्रदेश स्तर पर किसी ओबीसी या महादलित नेता को भी तैयार नहीं किया गया। कांग्रेस को बिहार की राजनीति में की हुईं गलतियों से सबक नहीं लेने का परिणाम 2005 के चुनावों में मिल गया। इन चुनावों में कांग्रेस के हाथ मात्र 5 सीटें आईं, अगले चुनावों (2010) में कांग्रेस सिर्फ चार सीटें हासिल कर सकी।
इसके पांच साल बाद 2015 में कांग्रेस ने न चुनावों में लालू और नीतीश ने कांग्रेस के उम्मीदवारों को चुना। यही नहीं चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने 6 और राहुल गांधी ने 10 रैलियां कीं। इस चुनाव की पूरी जिम्मेदारी लालू और नीतीश ने अपने कंधों पर संभाली और कांग्रेस को 41 में से 27 सीटों पर जीत दिलाई।
हालांकि, कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में वापसी की है लेकिन इसे बरकरार रखने के लिए कांग्रेस को बिहार में नेताओं की नई फौज तैयार करनी पड़ेगी.

Saturday, 7 November 2015

जीती जनता, नीतीश कुमार को बधाई

विभिन्न लोगो की राय अलग अलग है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि हमारा समाज परिपक्व है व चुनाव में धन बल व प्रचार का महत्व होते हुये भी निर्णायक नही है ।निर्णायक भूमिका है वर्तमान सरकार के नेतृत्व की कार्यप्रणाली व उसकी छवि तथा उसके विपरीत मैदान में मुख्य विपक्षी दल के नेतृत्व व स्वीकार्यता । गत चुनावों में केन्द्र ,राजस्थान,महाराष्ट्र व हरियाना में सरकारों को बुरी तरह हराना,झारखण्ड में दोनो पक्षों मे किसी का विश्वसनीय न होनेपर निर्णायक बहुमत किसी को न देना तथा मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में अच्छा कार्य करने वाले नेतृत्व को जनता ने आशीर्वाद दिया था ।उसी क्रम में नितिश के नेतृत्व में अपना मत देकर जनता ने उनकी कार्य प्रणाली की स्वीकार्यता पर मुहर लगाया है क्योंकि उनके सामने कोई विश्वसनीय स्थानीय नेतृत्व नहीं था । पर नितिश जी को लालू की छवी व उनके तौर तरीक़ों से सतर्क रहना होगा ।लेकिन बिहार अभी भी जातिवाद के कोढ़ से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाया है ।देखे शायद नई पीढ़ी इस कोढ़ से मुक्ति दिला दे क्योकि जातिवाद राजनिति के पोषक नेताओं का अस्पताल अब पास ही है ।

बिहार के 243 सदस्यीय विधानसभा चुनाव केजो नतीजे सामने आ रहे हैं वो बता रहे हैं कि नीतीश कुमार और लालू यादव के बवंडर में मोदी लहर पूरी तरह हवा हो गई। महागठबंधन बंपर बहुमत की तरफ बढ़ रहा है। एनडीए गठबंधन 100 सीटों से भी कम पर सिमटता दिख रहा है। रुझानों के बाद जहां बीजेपी खेमे में खामोशी है और बैठकों का दौर शुरू हो गया है, वहीं महागठबंधन  खेमे में जबरदस्त उत्साह और जश्न का माहौल है। आज सुबह लालू यादव ने कहा था, गुड मॉर्निंग हम जीत रहे हैं। लालू की ये बात सही भी साबित हुई। 
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पिछले एक माह से जारी चुनाव नतीजों  के रुझानों से तय हो गया है कि जेडीयू नीत महागठबंधन को बहुमत मिल रहा है। बीजेपी के लिए ये नतीजे किसी झटके से कम नहीं। बीजेपी गठबंधन 100 से भी कम सीटों पर सिमट गया। आइए उन कारणों के बारे में जानते हैं जिससे महागठबंधन को इतनी बड़ी कामयाबी मिलती दिख रही है। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह इस बार पूरी तरह विफल रहे। बीजेपी की चुनावी रणनीति शुरुआत से ही संदेहों के घेरे में रही। विकास के मुद्दे से शुरू हुआ चुनाव प्रचार हर चरण के साथ बदलते हुए आरक्षण के रास्ते कब ध्रुवीकरण और बदजुबानी तक पहुंच गया पता ही नहीं चला। बीजेपी नेता कभी बीफ तो कभी पाकिस्तान में पटाखे छूटने की बात करते रहे और नीतीश कुमार मीडिया हलचल से दूर अपनी रणनीति को अमल में लाते रहे। नीतीश ने लालू को बीजेपी का मुकाबला करने के आगे बढ़ाकर अपनी योजना को सफल बनाने में लगे रहे और यहां बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह नीतीश के चुनावी रणनीति को समकझने में नाकाम रहे। बीजेपी कभी पीएम मोदी के जाति बताकर जातीय समीकरण साधते दिखी तो कभी संघ के संग ध्रुवीकरण लेकिन कुल मिलाकर चुनावी रमनीति स्पष्ट न होने के खामियाजा भुगतना पड़ा।
एक बात स्पष्ट है कि मात्र लफ्फाबाजी व अनर्गल / दुष्प्रचार से चुनाव जीत पाना सम्भव नहीं है व जनता के आशिर्वाद के लिये सरकारों को काम करना होगा व अपनी छवि में सुधार करना होगा यानि विकास, नेतृत्व की सत्यनिष्ठा प्रदर्शित करनी होगी ।
यह देश व देशवासियों के लिये शुभ संदेश /समाचार है ।
जय भारत,जय लोक तन्त्र,जय समाजवाद व जय जनता जनार्दन ।।

Friday, 30 October 2015

स्वयं को सफल साबित किया इंदिरा गाँधी ने



भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की ग़लतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।
इंदिरा प्रियदर्शिनी को परिवार के माहौल में राजनीतिक विचारधारा विरासत में प्राप्त हुई थी। यही कारण है कि पति फ़ीरोज़ गाँधी की मृत्यु से पूर्व ही इंदिरा गाँधी प्रमुख राजनीतिज्ञ बन गई थीं। कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी में इनका चयन 1955 में ही हो गया था। वह कांग्रेस संसदीय मंडल की भी सदस्या रहीं। पंडित नेहरू इनके साथ राजनीतिक परामर्श करते और उन परामर्शों पर अमल भी करते थे।
इंदिरा गाँधी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के आरोप उस समय पंडित नेहरू पर लगे। 1959 में जब इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। लेकिन वे आलोचना इतने मुखर नहीं थे कि उनकी बातों पर तवज्जो दी जाती। वस्तुतः इंदिरा गाँधी ने समाज, पार्टी और देश के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त थी। विदेशी राजनयिक भी उनकी प्रशंसा करते थे। इस कारण आलोचना दूध में उठे झाग की तरह बैठ गई। कांग्रेस अध्यक्षा के रूप में इंदिरा गाँधी ने अपने कौशल से कई समस्याओं का निदान किया। उन्होंने नारी शाक्ति को महत्त्व देते हुए उन्हें कांग्रेस पार्टी में महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किए। युवा शक्ति को लेकर भी उन्होंने अभूतपूर्व निर्णय लिए। इंदिरा गाँधी 42 वर्ष की उम्र में कांग्रेस अध्यक्षा बनी थीं।
पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने अपना सारा ध्यान देश के विकास की ओर केंद्रित कर दिया। संसद में उन्हें बहुमत प्राप्त था और निर्णय लेने में स्वतंत्रता थी। उन्होंने ऐसे उद्योगों को रेखांकित किया जिनका कुशल उपयोग नहीं हो रहा था। उनमें से एक बीमा उद्योग था और दूसरा कोयला उद्योग। बीमा कंपनियाँ भारी मुनाफा अर्जित कर रही थीं। लेकिन उनकी पूँजी से देश का विकास नहीं हो रहा था। वह पूँजी निजी हाथों में जा रही थी। बीमा कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता का अभाव होने के कारण जनता को वैसे लाभ नहीं प्राप्त हो रहे थे, जैसे होने चाहिए थे। लिहाज़ा अगस्त, 1972 में बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
15 जून, 1975 को जे.पी. और समर्थिक विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया। साथ ही यह तय किया गया कि पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जाए और प्रधानमंत्री आवास को भी घेर लिया जाए। आवास में मौजूद लोगों को नज़रबंद करके किसी को भी अंदर प्रविष्ट न होने दिया जाए। इन्हीं परिस्थितियों के कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 25 जून, 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की हस्ताक्षरित स्वीकृति प्राप्त कर ली। इस प्रकार 26 जून, 1975 की प्रातः देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आपातकाल लागू होने के बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। ऐसा माना जाता है कि आपातकाल के दौरान एक लाख व्यक्तियों को देश की विभिन्न जेलों में बंद किया गया था। इनमें मात्र राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं, आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी थे जो ऐसे आंदोलनों के समय लूटपाट करते हैं। साथ ही भ्रष्ट कालाबाज़ारियों और हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को बंद कर दिया गया।
अभी तीन वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए थे कि जनता पार्टी में दरारें पड़ गईं और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने देश में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार के दौरान आपातकाल के लिए शर्मिंदगी का इजहार किया और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार का नारा दिया। लोगों को यह नारा काफ़ी पसंद आया और चुनाव के बाद नतीजों ने यह प्रमाणित भी कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और स्पष्ट बहुमत के कारण केंद्र में इनकी सरकार बनी। इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार 34 महीनों के बाद वह सत्ता पर दोबारा क़ाबिज हुईं। जनता पार्टी ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उस समय उसने यह तर्क दिया कि जनता का रुझान जनता पार्टी के साथ है, अतः नए चुनाव होने चाहिए। इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी द्वारा आरंभ की गई परिपाटी पर चलकर उन प्रदेशों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जहाँ जनता पार्टी तथा विपक्ष का शासन था। बाद में हुए इन राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। 22 राज्यों में से 15 राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई। यह चुनाव जून 1980 में संपन्न हुए थे।
उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं। आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर एक सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था। लेकिन ये भी एक अघोषित नियम था कि अगर इंदिरा दूसरे शहर के दौरे से देर शाम घर पहुंचेंगी तो अगले दिन जनता दरबार नहीं होगा। 30 तारीख की शाम को भी इंदिरा से कहा गया कि वो अगले दिन सुबह के कार्यक्रम रद्द कर दें। लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया। वो आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव को मुलाकात का वक्त दे चुकी थीं।

एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट बताते हैं कि जैसे एक नॉर्मल तरीका होता है। सुबह उठकर आप जनता से मिलते हैं तो उस दिन एक बिजी शिड्यूल था। उनके इंटरव्यू के लिए बाहर से एक टीम आई हुई थी। पीटर उस्तीनोव आए। उन लोगों ने अपना सर्वे किया। ये देखा कि खुली जगह पर इंटरव्यू करना चाहिए। वहां दीवाली के पटाखे पड़े हुए थे। उसको साफ-वाफ करवा कर वैसा इंतजाम करवाया गया तो उसमें कुछ वक्त लग रहा था।
दरअसल पीटर इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे थे। इस बीच सुबह के आठ बजे इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन एक सफदरजंग रोड पहुंच चुके थे। धवन जब इंदिरा गांधी के कमरे में गए तो वो अपना मेकअप करा रही थीं। इंदिरा ने पलटकर उन्हें देखा। दीवाली के पटाखों को लेकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई और फिर अपना मेकअप पूरा कराने में लग गईं।
अब तक घड़ी ने 9 बजा दिए थे। लॉन भी साफ हो चुका था और इंटरव्यू के लिए सारी तैयारियां भी पूरी थीं। चंद मिनटों में ही इंदिरा एक अकबर रोड की तरफ चल पड़ीं। यहीं पर पेंट्री के पास मौजूद था हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह। नारायण सिंह की ड्यूटी आइसोलेशन कैडर में होती थी। साढ़े सात से लेकर 8.45 तक पोर्च में ड्यूटी करने के बाद वो कुछ देर पहले ही पेंट्री के पास आकर खड़ा हुआ था। इंदिरा को सामने से आते देख उसने अपनी घड़ी देखी। वक्त हुआ था 9 बजकर 05 मिनट। आर के धवन भी उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। दूरी करीब तीन से चार फीट रही होगी। तभी वहां से एक वेटर गुजरा। उसके हाथ में एक कप और प्लेट थी। वेटर को देखकर इंदिरा थोड़ा ठिठकीं। पूछा कि ये कहां लेकर जा रहे हो। उसने जवाब दिया इंटरव्यू के दौरान आइरिश डायरेक्टर एक-टी सेट टेबल पर रखना चाहते हैं। इंदिरा ने उस वेटर को तुरंत कोई दूसरा और अच्छा टी-सेट लेकर आने को कहा। ये कहते हुए ही इंदिरा आगे की ओर बढ़ चलीं। ड्यूटी पर तैनात हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह के साथ छाता लेकर उनके साथ हो लिया।
तेज कदमों से चलते हुए इंदिरा उस गेट से करीब 11 फीट दूर पहुंच गई थीं जो एक सफदरजंग रोड को एक अकबर रोड से जोड़ता है। नारायण सिंह ने देखा कि गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था। ठीक बगल में बने संतरी बूथ में कॉन्सटेबल सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन के साथ मुस्तैद खड़ा था।
आगे बढ़ते हुए इंदिरा गांधी संतरी बूथ के पास पहुंची। बेअंत और सतवंत को हाथ जोड़ते हुए इंदिरा ने खुद कहा-नमस्ते। उन्होंने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता लेकिन बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा गांधी पर एक गोली दाग दी। आसपास के लोग भौचक्के रह गए। सेकेंड के अंतर में बेअंत सिंह ने दो और गोलियां इंदिरा के पेट में उतार दीं। तीन गोलियों ने इंदिरा गांधी को जमीन पर झुका दिया। उनके मुंह से एक ही बात निकली-ये क्या कर रहे हो। इस बात का भी बेअंत ने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता। लेकिन तभी संतरी बूथ पर खड़े सतवंत की स्टेनगन भी इंदिरा गांधी की तरफ घूम गई। जमीन पर नीचे गिरती हुई इंदिरा गांधी पर कॉन्सटेबल सतवंत सिंह ने एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरु कीं। लगभग हर सेकेंड के साथ एक गोली। एक मिनट से कम वक्त में सतवंत ने अपनी स्टेन गन की पूरी मैगजीन इंदिरा गांधी पर खाली कर दी। स्टेनगन की तीस गोलियों ने इंदिरा के शरीर को भूनकर रख दिया।

Tuesday, 27 October 2015

भगवान वाल्मीकि का संदेश, हर वर्ग बने सक्षम




भगवान वाल्मीकि ने पूरी मानवता को शिक्षा ग्रहण करने और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का संदेश दिया। दयावान वाल्मीकि भगवान जी ने सर्वप्रथम दुनिया को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और शांति का संदेश दिया। वह किसी को भी दुखी नहीं देख सकते थे। एक दिन जब वह तमसा नदी के घाट पर नित्य की तरह स्नान के लिए गए तो पास ही क्रौंच पक्षियों का जोड़ा जो कभी भी एक-दूसरे से अलग नहीं रहता था, विचरण कर रहा था। उसी समय एक निषाद ने उस जोड़े में से नर पक्षी को बाण से मार डाला। यह देखकर महर्षि का हृदय बहुत दुखी हुआ। उन्होंने निषाद से कहा कि यह अधर्म हुआ है। निषाद तुझे नित्य निरंतर कभी भी शांति न मिले क्योंकि तूने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर डाली। ऐसा कह कर जब महर्षि ने अपने कथन पर विचार किया तब उनके मन में बड़ी चिंता हुई कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर मैंने क्या कह डाला। अंतत: उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि मैं ऐसे ही श्लोकों में रामायण काव्य की रचना करूं।
सामर्थ्यशाली, सर्वशक्तिमान, महाज्ञानी, परमबुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के निर्माता, आदिकवि महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामाह के रूप में जाना व माना जाता है। इस महाकाव्य रामायण में इन्होंने चौबीस हजार श्लोक, एक सौ आख्यान, पांच सौ सर्ग और उत्तरकांड सहित सात कांडों का प्रतिपादन किया है। इस महाकाव्य में महापराक्रम, लोकप्रियता, क्षमा, सौम्यभाव तथा सत्यशीलता का वर्णन है जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और समाज की अमूल्य निधि है। श्रीमद् वाल्मीकि महाकाव्य रामायण विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें मानवीय जीवन के प्रभावशाली आदर्श हैं। इस महाकाव्य में धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक क्षेत्र के समूह संबंधों के आदर्श रूप वॢणत मिलते हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने राम कथा के माध्यम से मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जो अनुपम और दिव्य है। समाज और राष्ट्र को उन्नत तथा स्वस्थ बनाने के लिए व्यक्ति का चरित्र विशेष महत्व रखता है। चरित्र के निर्माण के लिए परिवार के महान योगदान को श्रीमद् वाल्मीकि रामायण ने ही स्वीकार किया है। परिवार एक ऐसा शिक्षा केंद्र है जहां व्यक्ति स्नेह, सौहार्द, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा पाता है। परिवार समस्त मानवीय संगठनों की इकाई है जिसमें जीवन के प्राचीन आदर्शों को सुरक्षित रखा गया है।
भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य रामायण में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें कर्तव्य परायणता, आज्ञा पालन, वचन निभाना, भाई का भाई के प्रति अथाह प्रेम व स्नेह, दुखियों, शोषित व पीड़ितों के प्रति दया और करुणा प्रेम, मानवता व शांति का संदेश देने के साथ-साथ अपने अंदर के अहंकार, ईर्षा, क्रोध व लोभ रूपी राक्षस को मारकर सहनशीलता का परिचय देना शामिल है। परम बुद्धिमान व महाज्ञानी भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार संसार का मूल आधार ज्ञान ही है अर्थात शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ एवं अर्थहीन है क्योंकि जिंदगी की भूल भुलैयां के चक्रव्यूह से शिक्षित व्यक्ति का ही बाहर निकलना संभव तथा आसान होता है। इनकी शिक्षाओं  में अस्त्र-शस्त्र, ज्ञान-विज्ञान, राजनीति तथा संगीत के अलावा आदर्श पिता, आदर्श माता, आदर्श पत्नी, आदर्श पति, आदर्श भ्राता, आदर्श स्वामी, आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा का ही नहीं आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है। आज भी इनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया को मानवता, प्रेम व शांति तथा सहनशीलता का संदेश देती हैं तथा हिंसा, शत्रुता व युद्ध से होने वाले भयंकर विनाश के दुष्परिणामों से बचने का संकेत कर रही हैं।
रामायण मुख्यतः एक पारिवारिक महाकाव्य है। इस काव्य का मूल स्वर परिवार है जो कि सामाजिक समरसता, मानव-गौरव और भ्रातृत्व की विराट भावना की बुनियाद है। इसमें तीन प्रकार के भ्रातृ-युगल दिखाई देते हैं-राम और भरत, बाली और सुग्रीव तथा रावण और विभीषण।
इसी प्रकार तीन प्रकार के जीवन-साथी हैं-राम और सीता, बाली और तारा तथा रावण और मंदोदरी। सीता-राम हृदय-संगम के आदर्श प्रतिरूप हैं। बाली और तारा में समानता कम होने पर भी समरसता बराबर है। रावण और मंदोदरी के आदर्शों में काफी अंतर होने पर भी एक-दूसरे के प्रति अनुराग, सद्भाव और सदाशय में कोई कमी नहीं है। सीता, तारा और मंदोदरी-तीनों में से सीता सर्वाधिक पूजनीय हैं, हालांकि लौकिक दृष्टि से उनको सबसे अधिक पीड़ा सहनी पड़ी। तारा सबसे अधिक सुखी रही और मंदोदरी का स्वाभिमान सर्वोपरि है। उनका स्वभाव, व्यवहार और आदर्श संसार के समस्त स्त्री-पुरुषों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं। विडंबना है कि सारा संसार सीता और राम को आदर्श दंपति मानकर उनकी पूजा करता है किंतु उनके जैसा दांपत्य जीवन किसी को भी स्वीकार्य नहीं होगा। इससे स्पष्ट होता है कि उनके दांपत्य जीवन में मानव की सहनशीलता का कितना उदात्त उन्नयन हो पाया है। पीड़ा सहने से यदि लोक कल्याण संभव है तो सहनशीलता तपस्या बन जाती है। वाल्मीकि ने अपनी कृति रामायण के माध्यम से मानव-जाति को यही संदेश दिया है।

Friday, 16 October 2015

कोई तो किसान की सुनो

पंजाब में नरमा कपास की खराब फसल के मुआवजे की मांग पर किसान आंदोलरत थे। सात दिनों तक जबरदस्त आंदोलन किया। रेलवे ट्रैक पर बैठे रहे। सातवें दिन धरना समाप्त किया गया। सरकार के दबाव में किसान संगठनों को बिना मांग पूरी करवाए ही आंदोलन खत्म करना पड़ा। अब किसानों ने 22 अक्टूबर से अकाली दल के सांसदों तथा विधायकों के आवास के घेराव का निर्णय किया है। लेकिन कुछेक संस्थानों के अलावा कहीं इन्हें पर्याप्त स्पेस नहीं मिला। क्यों ? क्योंकि इससे टीआरपी नहीं आती? क्योंकि इससे विज्ञापन नहीं आती? लेकिन, हां इतना गुणा-भाग करके यह जरूत आकलन किया गया कि किसानों के इस धरने से रेलवे 200 करोड़ से अधिक रुपये की हानि हुई। रेलवे अपने नुकसान का अनुमान ट्रेनों के रद्द होने यात्रियों के टिकटों की वापसी, माल गाड़ी में बुकिंग कैंसिल के अलावा गाड़ियों के ट्रैक बदलने को लेकर जोड़ा जाता है। अम्बाला और फिरोजपुर रेलवे मंडलों से गुजरने वाली 574 रेल गाड़ियां किसान आंदोलन में प्रभावित रहीं। इनमें अम्बाला मंडल की 311 रेल गाड़ियां थीं। 
किसान संगठन पंजाब सरकार से किसानों के लिए 40 हजार और मजदूरों के लिए 20 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा तथा बासमती चावल का दाम बढ़ाने की मांग कर रहे थे। सरकार ने केवल मजदूरों को मुआवजा राशि देने के लिए 66 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। भारतीय किसान यूनियन एकता उग्रांहा के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी के अनुसार, आम लोगों को परेशानी से बचाने के लिए धरना उठाने का निर्णय किया गया। पंजाब सरकार द्वारा मात्र आठ हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया जा रहा है, जबकि किसानों को इससे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है।
बता दें कि पंजाब के आठ किसान तथा चार मजदूर संगठन की ओर से बठिंडा, फिरोजपुर, मानसा तथा अमृतसर जिले में रेल रोको आंदोलन किया जा रहा था। पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान रूट की करीब 550 रेलगाड़ियां प्रभावित रहीं। चंडीगढ़ में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से किसान और मजदूर संगठनों के साथ बैठक की थी, लेकिन वह बैठक बेनतीजा रही थी। पंजाब में सफेद मक्खी की वजह से कपास की फसल बर्बाद हो गई है। इसको लेकर परेशान चल रहे किसानों के जख्म पर प्रदेश सरकार ने भी नमक छिड़कने का काम किया। मुआवजे के नाम पर किसी किसान को 15 रुपये का चेक दिया गया, तो किसी को 80 रुपये का। कपास की बर्बाद फसल के उचित मुआवजे की मांग को लेकर चल रहे राज्य स्तरीय धरने पर किसान द्वारा जहर खाकर आत्महत्या करने के मामले ने भी तूल पकड़ लिया था। 
और तो और, किसानों की दिक्कत यह भी रही कि इतने कम राशि के चेक को वे अगर अपने खाते में नकद करवाते हैं, तो उसका शुल्क अधिक लग जाएगा। एक किसान के अनुसार, उसका बठिडा के कोआपरेटिव बैंक में खाता है। मुआवजा चेक पंजाब नेशनल बैंक तलवंडी साबो का है। चेक बाहरी शहर का होने पर क्लीयरिग चार्ज (आउट स्टेशन) के रूप में 25 रुपये वसूले जाएंगे, जिसके बाद उसे सिर्फ 55 रुपये मिलेंगे। एक बैंक अधिकारी से जब पूछा गया कि 15 रुपया मुआवजा पाने वाले किसान को अगर क्लीयरेंस चार्ज देना पड़ा, तो उसके पल्ले क्या पड़ेगा? इस पर उनका जवाब था कि ऐसा चेक लगाने की क्या जरूरत है। चेक शीशे में जड़वा कर यादगार के तौर पर रख लेना चाहिए।
जब हम पंजाब में किसानों की स्थिति की पड़ताल करते हैं, तो पाते हैं कि पंजाब में कर्ज के कारण आत्महत्या के मामले 1997 से जारी हैं। 1997-2003 में कपास बेल्ट में फसल खराब हुई थी। इस इलाके में तब किसानों की खुदकुशी के मामले ज्यादा देखने को मिले। भारतीय किसान यूनियन ने 2004 में पंजाब के 300 गांवों का सर्वे किया था। इसमें 3000 किसानों की खुदकुशी का आंकड़ा सामने आया था। यूनियन के दावे के मुताबिक 1990 से 2013 के बीच सवा लाख किसानों और मजदूरों ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि सरकार के आदेश पर हुए पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, पंजाबी यूनिवर्सिटी और गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी के संयुक्त सर्वे के मुताबिक 2000 से 2010 तक ग्रामीण इलाकों में 6926 किसानों और मजदूरों ने खुदकुशी की। इनमें से करीब 4800 मामलों में आत्महत्या की वजह कर्ज थी। साल 2010 के बाद के खुदकुशी के मामलों का सर्वे होना अभी बाकी है।
जानकारों का कहना है कि आढ़तियों का नेटवर्क काफी बड़ा है। उपज की मार्केटिंग और किसान को अदायगी आढ़तिए के जरिए होती है। आढ़तिया तब उसका पेमेंट करता है, जब वो उसका कर्ज़ चुका देता है। पंजाब सरकार आढ़तियों के साथ है और वे संगठित हैं। उनका असर बहुत ज्यादा है। उपज की मार्केटिंग सहकारी व्यवस्था के जरिए हो तभी किसान को इस मुश्किल से बाहर निकाला जा सकता है। अभी कम कीमत वाली फसल का उत्पादन होता है। किसान को लो वैल्यू फसल से निकालकर हाई वैल्यू फसल में शिफट करने की जरूरत है. तभी वो समृद्ध हो सकते हैं। इसके लिए भी सहकारी व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत है।

Wednesday, 14 October 2015

राष्ट्र ऋषि डाॅ. कलाम

कुछ व्यक्तित्व इतने विराट होते हैं कि उनके बारे में कुछ कहने में भाषा पंगु हो जाती है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय ऋषि परम्परा के ऐसे ही महापुरुष थे। डॉ. अब्दुल कलाम क्या थे, यह कहने से ज्यादा यह कहना उपयुक्त होगा कि वह क्या नहीं थे! भारतीय जीवन मूल्यों के मूर्तिमंत स्वरूप डॉ. कलाम एक ज्योतिर्मय प्रज्ञा-पुरुष थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. कलाम उत्कृष्ट वैज्ञानिक, मौलिक विचारक, गंभीर आध्यात्मिक साधक, कवि, संगीत रसिक, कुशल वक्ता, प्रशासक और सबसे बड़ी बात, संवेदनाओं से परिपूर्ण एक महामानव थे।
‘मुझे आश्चर्य हुआ कि कुछ लोग विज्ञान को इस तरह से क्यों देखते हैं जो व्यक्तियों को ईश्वर से दूर ले जाए। जैसा कि मैंने इसमें देखा कि हृदय के माध्यम से ही हमेशा विज्ञान तक पहुंचा जा सकता है। मेरे लिए विज्ञान हमेशा आध्यात्मिक रूप से समृध्द होने और आत्मज्ञान का रास्ता रहा।’ ये विचार किसी धर्माचार्य के नहीं हैं वरन् भारतीय गणराज्य के 11वें राष्ट्रपति स्व. डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने व्यक्त किए थे। डॉ. कलाम देश की रचनात्मकता के विचार को विस्तार देने के कर्म में अंतिम सांस तक रत रहे। किसी भी रूप में डॉ. कलाम सहाब को मुसलमान के रूप में स्थापित करना हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियत की तौहीन की कहा जाएगा। वे भारत की प्रगतिशील ऋषि परंपरा के वाहक ही थे। वे आधुनिक भारत में युवाओं के लिए रचनात्मका, कर्म साधना और देश सेवा के प्रेरक और रोल मॉडल बने। उन्होंने शून्य से शिखर तक संघर्ष यात्रा से सत्य को स्थापित किया कि नेक नीयत से किए गए कर्म के द्वारा असंभव को संभव किया जा सकता। मेधा के धनी और सफलता से शीर्ष को प्राप्त करने के बाद उनकी बच्चे जैसी मासूमियत, सहजता और सरलता ने खुद ब खुद  लोगों के दिल पर छा गई, जिसके लिए आज हर हिन्दुस्तानी उनके निधन पर गहरा अफसोस जता रहा है।
डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मछुआरे अल्पशिक्षित निर्धन परिवार में जन्मे, गांव में बिजली न होने से लालटेन की रोशनी में अध्ययन की साधना करते हुये राष्ट्र के शिखर पुरुष बने। उन्होंने जो पुस्तकें लिखीं, उनमें 1. विग आफ द फायर, 2. इग्नाइटेड माइण्ड, 3. गाडडिंग सोल्स, 4. मिशन इण्डिया, 5. इण्डिया विजन- 2020, 6. इन विजनिंग एन इम्पावर्ड नेशन, अति चर्चित कृतियां हैं। देश के अनेक प्रकाशनों ने डा. कलाम विषयक पुस्तकें प्रकाशित की। जिनमें दिल्ली के प्रभात प्रकाशन ने ही तत्संबंधी 10 पुस्तकों का प्रकाशन करके 2,50,000 प्रतियों से अधिक की बिक्री से उनकी जनप्रियता का कीर्तिमान स्थापित किया। पांच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि ‘जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।’ अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अखबार वितरित करने का कार्य भी किया था। कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहां उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।  वैसे उनके  विचार शांति और हथियारों को लेकर विवादास्पद रहे। 

इस संबंध में कलाम साहब का कहना था- ‘2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण मिसाइलों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति संपन्न हो।’ कलाम साहब ने अपने इस विचार को कार्य रूप में स्थापित कर दुनिया से भारतीय मेधा का लोहा मनवा लिया, जिसके लिए सुपर पॉवर अमेरिका सहित समूचा पाश्चात्य जगत अपनी उपलब्धियों पर गौरन्वावित हुआ करता था। डॉक्टर कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने शोध को चार उत्कृष्ट पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं- 'विंग्स आॅफ फायर', 'इण्डिया 2020- ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
उनके जीवन में संवेदना सदा सृजन के लिए ही थी, उनके भावों की इन पंक्तियों में आप अनुभव करेंगे-
सुंदर हैं वे हाथ, सृजन करते जो सुख से, धीरज से, साहस से, हर क्षण, हर पल, हर दिन, हर युग।
उनके जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना ‘अग्नि मिसाइल’ के सफल परीक्षण के दिन उनकी डायरी में लिखी ये भावपूर्ण पंक्तियां हैं- राष्ट्र के गौरव तथा शत्रु को भयभीत करने वाली धधकती आग- अग्नि में मत ढूंढ़ों, शत्रु को भय ग्रस्त करता, शक्ति का स्तम्भ कोई, यह तो एक आग है, दिल में जो सुलगती है, हर भारतीय के, सभ्यता के स्त्रोत की, एक छोटी-सी प्रतिमा है यह भारत के गौरव की आभा से प्रदीप लौ।
डा. कलाम के कार्यकाल में देश की सुरक्षा हेतु सफल परीक्षण 1. पृथ्वी, 2. त्रिशूल, 3. आकाश, 4. आग, 5. अग्नि किए गए। राष्ट्र इतना अभिभूत हुआ कि उन्हें ‘मिसाइलमैन’ नाम से संबोधित करने लगा। देश ने विज्ञान की दीर्घकालीन सक्रिय सतत् सेवाओं हेतु पद्मभूषण, पद्म विभूषण और शिखर सम्मान पदक भारत रत्न से सम्मानित किया। देश के 28 विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं ने मानद् डी.एस.सी. एवं डी. लिट् की उपाधियां भी प्रदान कीं। कृतज्ञ राष्ट्र ने इन्हें देश के प्रथम नागरिक रूप में राष्ट्रपति बनाया। वहां भी वह एक विदेह संत की भांति रहे। वह जितनी भारत की सुरक्षा हेतु रचनात्मक वैज्ञानिक कार्यों को गति दे रहे थे उतना ही जनता के दु:ख दर्द को आन्तरिक रूप से अनुभव करते थे। कलाम ने अपने कार्यकाल में पोलियोग्रस्त बच्चों हेतु कुछ तत्वों के मिश्रम से लकड़ी के भारी पैरों के बदले हल्के पैर निर्मित कराए और हजारों पोलियोग्रस्त बच्चों में वितरण कराया। इनके कार्यकाल में कई प्राकृतिक आपदाओं में डी.आर.डी.ओ ने सहायता प्रदान की। गुजरात का चक्रवात, जलेश्वर (उड़ीसा) का तुफान, मानसरोवर के मार्ग में भूस्खलन, चमोली (उत्तराखण्ड) का भूकम्प, गुजरात का भूकम्प, लातूर (महाराष्ट्र) का भूकम्प की सहायता में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाहन किया।
83 वर्षीय कलाम का सोमवार को आईआईएम शिलांग में व्याख्यान देते समय दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्हें एक ऐसे दिलेर राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है जिन्होंने सुखोई लड़ाकू विमान में उड़ान भरी, पनडुब्बी में सफर किया, दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान सियाचिन ग्लेशियर गए और नियंत्रण रेखा पर जाकर सैनिकों से बातचीत की।
इसमें वह साहसिक घटना भी शामिल है जब उनके विमान ने एजल हवाई अड्डे से रात के समय उड़ान भरी तो रनवे को लालटेन और टॉर्च की रोशनी से प्रकाशित किया गया। यह घटना 2005 की है जब कलाम ने अपनी मिजोरम यात्रा के दौरान सभी आधिकारिक कार्यक्रम पूरे कर लिये। उनका अगली सुबह रवाना होने का कार्यक्रम था। लेकिन कलाम ने रात में ही दिल्ली के लिए उड़ान भरने का निर्णय किया। उनके एक वरिष्ठ सहयोगी ने इस घटना को याद करते हुए यह विवरण सुनाया।
भारतीय वायु सेना के स्टेशन प्रमुख को बुलाया गया और उन्हें राष्ट्रपति के राष्ट्रीय राजधानी के लिए उड़ान भरने की इच्छा से अवगत कराया क्योंकि मिजोरम में उनका काम पूरा हो गया है। वायु सेना के अधिकारी ने कहा, ‘‘लेकिन हवाई अड्डे पर रात में उड़ान भरने की सुविधा नहीं है।’’ लेकिन कलाम उनके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अगर आपात स्थिति हो तो क्या होगा ? क्या वायु सेना सुबह का इंतजार करेगी। उन्हें बता दें कि मुझे उड़ान भरना है और सभी जरूरी व्यवस्था की जाए।’’
डॉ. कलाम के सहयोगी तब वायु सेना के अधिकारी के पास गए और उन्हें उनका संदेश सुनाया जो राष्ट्रपति के तौर पर सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर भी थे। आईएएफ के कमांडर ने तत्काल दिल्ली में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सम्पर्क किया। लेकिन उच्च अधिकारियों ने उन्हें मिसाइल मैन के आदेशों का पालन करने का निर्देश दिया। सहयोगी ने बताया कि अंतत: कलाम की इच्छा पूरी हुई और वायुसेना कर्मियों ने लालटेन, टॉर्च एवं मशाल जलाकर रनवे को रौशन किया ताकि उड़ान भरी जा सके। कलाम के सहयोगी उनके रात में उड़ान भरने के फैसले से चिंतित थे क्योंकि हवाई अड्डे पर केवल बुनियादी सुविधा ही उपलब्ध थी। वायुसेना अधिकारियों से अलग से पूछा गया कि क्या ऐसे में उड़ान भरना सुरक्षित होगा।
वायुसेना अधिकारी ने कहा कि आप उडान तो भर सकते हैं लेकिन अगर लौटना पड़ा तो परेशानी होगी। रात के करीब नौ बजे राष्ट्रपति के बोइंग विमान ने उड़ान भरी जिस पर कलाम और उनके साथ 22 लोग थे। विश्वविद्यालय और स्कूली छात्रों से चर्चा के दौरान डॉ. कलाम कहा करते थे, ‘‘अगर आप विफल होते हैं तब साहस नहीं छोड़े क्योंकि एफ ए आई एल का अर्थ होता है पहले प्रयास में सीखना, समाप्त का अर्थ समाप्त नहीं होता, बल्कि ई एन डी का अर्थ अगला अवसर होता है, इसलिए सकारात्मक रहें।
डॉ. कलाम जब देश के 11वें राष्ट्रपति बने तब इसके कुछ ही समय बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया। कलाम उनका कुशलक्षेम पूछने के लिए पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उस दिन वह नीले रंग की शर्ट और खाकी पैंट पहनकर गए थे। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कलाम ने सियाचिन जाकर सैनिकों से मुलाकात करने का निर्णय किया। मौसम साफ होने के लिए उन्हें करीब 40 मिनट तक इंतजार करना पड़ा और बाद में वह हेलीकाप्टर से सियाचिन आधार शिविर पहुंचे। सैनिकों को अपने संबोधन में कलाम ने कहा था, ‘‘यह ग्लेशियर अत्यंत भू सामरिक महत्व का है। पिछले 20 वर्षो में कई युद्ध लड़े गए और हमारी सर्वोच्चता स्थापित हुई। यह हमारे जाबांज कारनामों की लड़ाई थी।’’ एयरोनॉटिकल इंजीनियर कलाम ने जून 2006 में सुखोई 30 लड़ाकू विमान उड़ाया और कहा था, ‘‘यह 1958 से ही मेरा सपना था कि मैं लड़ाकू विमान उड़ाऊं। मैं बचपन से ही पायलट बनना चाहता था।’’ इसी वर्ष कलाम ने फरवरी माह में तब इतिहास रचा जब वह आईएनएस सिंधुरक्षक पनडुब्बी से सफर करने वाले वह देश के पहले राष्ट्रपति बने।
आखिरकार शिक्षा वास्तव में सत्य की खोज है। ज्ञान और जागरूकता के माध्यम से यह एक कभी न समाप्त होने वाली यात्रा है। जहांर् ईष्या, घृणा, दुश्मनी, संकीर्णता और असमंजस के लिये कोई स्थान नहीं होता। यह मनुष्य को एक हितकारी, उदार इंसान और विश्व का एक उपयोगी व्यक्ति बना देती है। वास्तविक ज्ञान मनुष्य की गरिमा और स्वाभिमान को बढ़ाता है। देश और समाज के विकास मार्ग में वह अतीत तथा वर्तमान के सभी सत्कार्यों को मान्यता देते थे।
डा. अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व विज्ञानवेत्ता के साथ ही एक श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में भी उजागर होता है। हरिद्वार उत्तरांचल के देव संस्कृति विश्वविद्यालय के दीक्षान्त भाषण के कुछ अंश कलाम के शब्दों में- मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग 3000 पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के स्वप्न को साकार रूप दिया है। उन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपर्युक्त होगा। दोस्तों! रामेश्वरम् में अपने बाल्यकाल में मैंने वकीलों, वैज्ञानिकों, आध्यात्मिकों, व्यवसायियों और शिक्षाविदों की देशभक्ति देखी, जिन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। अपनी इस स्वतंत्रता के लिए हम उन महान आत्माओं के ऋणी हैं। ऐसे देश भक्तों को मैं सलाम करता हूं।’ देश को स्वतंत्र करवाने के पश्चात् अब वर्ष 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र में परिवर्तित करना हमारी जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि हमारे देश के 54 करोड़ तेजस्वी युवा मिलकर निश्चित ही इस परिवर्तन की दिशा में कार्य करेंगे…।
एक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने जो नई परंपराएं स्थापित की, जिनको लेकर किसी को भी परहेज नहीं हुआ और न किसी तरह की सियासत करने का मौका दिया, उनकी यही विलक्षणता सच्चे अर्थों में ‘भारत रत्न’ के रूप में स्थापित करती है। अपनी मानवीय खूबियों के साथ वह एक राष्ट्रनायक के रूप में लोगों के दिल में जगह बनाने में कामयाब हुए। 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गांव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पांच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।