पंजाब में नरमा कपास की खराब फसल के मुआवजे की मांग पर किसान आंदोलरत थे। सात दिनों तक जबरदस्त आंदोलन किया। रेलवे ट्रैक पर बैठे रहे। सातवें दिन धरना समाप्त किया गया। सरकार के दबाव में किसान संगठनों को बिना मांग पूरी करवाए ही आंदोलन खत्म करना पड़ा। अब किसानों ने 22 अक्टूबर से अकाली दल के सांसदों तथा विधायकों के आवास के घेराव का निर्णय किया है। लेकिन कुछेक संस्थानों के अलावा कहीं इन्हें पर्याप्त स्पेस नहीं मिला। क्यों ? क्योंकि इससे टीआरपी नहीं आती? क्योंकि इससे विज्ञापन नहीं आती? लेकिन, हां इतना गुणा-भाग करके यह जरूत आकलन किया गया कि किसानों के इस धरने से रेलवे 200 करोड़ से अधिक रुपये की हानि हुई। रेलवे अपने नुकसान का अनुमान ट्रेनों के रद्द होने यात्रियों के टिकटों की वापसी, माल गाड़ी में बुकिंग कैंसिल के अलावा गाड़ियों के ट्रैक बदलने को लेकर जोड़ा जाता है। अम्बाला और फिरोजपुर रेलवे मंडलों से गुजरने वाली 574 रेल गाड़ियां किसान आंदोलन में प्रभावित रहीं। इनमें अम्बाला मंडल की 311 रेल गाड़ियां थीं।
किसान संगठन पंजाब सरकार से किसानों के लिए 40 हजार और मजदूरों के लिए 20 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा तथा बासमती चावल का दाम बढ़ाने की मांग कर रहे थे। सरकार ने केवल मजदूरों को मुआवजा राशि देने के लिए 66 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। भारतीय किसान यूनियन एकता उग्रांहा के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी के अनुसार, आम लोगों को परेशानी से बचाने के लिए धरना उठाने का निर्णय किया गया। पंजाब सरकार द्वारा मात्र आठ हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया जा रहा है, जबकि किसानों को इससे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है।
बता दें कि पंजाब के आठ किसान तथा चार मजदूर संगठन की ओर से बठिंडा, फिरोजपुर, मानसा तथा अमृतसर जिले में रेल रोको आंदोलन किया जा रहा था। पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान रूट की करीब 550 रेलगाड़ियां प्रभावित रहीं। चंडीगढ़ में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से किसान और मजदूर संगठनों के साथ बैठक की थी, लेकिन वह बैठक बेनतीजा रही थी। पंजाब में सफेद मक्खी की वजह से कपास की फसल बर्बाद हो गई है। इसको लेकर परेशान चल रहे किसानों के जख्म पर प्रदेश सरकार ने भी नमक छिड़कने का काम किया। मुआवजे के नाम पर किसी किसान को 15 रुपये का चेक दिया गया, तो किसी को 80 रुपये का। कपास की बर्बाद फसल के उचित मुआवजे की मांग को लेकर चल रहे राज्य स्तरीय धरने पर किसान द्वारा जहर खाकर आत्महत्या करने के मामले ने भी तूल पकड़ लिया था।
और तो और, किसानों की दिक्कत यह भी रही कि इतने कम राशि के चेक को वे अगर अपने खाते में नकद करवाते हैं, तो उसका शुल्क अधिक लग जाएगा। एक किसान के अनुसार, उसका बठिडा के कोआपरेटिव बैंक में खाता है। मुआवजा चेक पंजाब नेशनल बैंक तलवंडी साबो का है। चेक बाहरी शहर का होने पर क्लीयरिग चार्ज (आउट स्टेशन) के रूप में 25 रुपये वसूले जाएंगे, जिसके बाद उसे सिर्फ 55 रुपये मिलेंगे। एक बैंक अधिकारी से जब पूछा गया कि 15 रुपया मुआवजा पाने वाले किसान को अगर क्लीयरेंस चार्ज देना पड़ा, तो उसके पल्ले क्या पड़ेगा? इस पर उनका जवाब था कि ऐसा चेक लगाने की क्या जरूरत है। चेक शीशे में जड़वा कर यादगार के तौर पर रख लेना चाहिए।
जब हम पंजाब में किसानों की स्थिति की पड़ताल करते हैं, तो पाते हैं कि पंजाब में कर्ज के कारण आत्महत्या के मामले 1997 से जारी हैं। 1997-2003 में कपास बेल्ट में फसल खराब हुई थी। इस इलाके में तब किसानों की खुदकुशी के मामले ज्यादा देखने को मिले। भारतीय किसान यूनियन ने 2004 में पंजाब के 300 गांवों का सर्वे किया था। इसमें 3000 किसानों की खुदकुशी का आंकड़ा सामने आया था। यूनियन के दावे के मुताबिक 1990 से 2013 के बीच सवा लाख किसानों और मजदूरों ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि सरकार के आदेश पर हुए पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, पंजाबी यूनिवर्सिटी और गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी के संयुक्त सर्वे के मुताबिक 2000 से 2010 तक ग्रामीण इलाकों में 6926 किसानों और मजदूरों ने खुदकुशी की। इनमें से करीब 4800 मामलों में आत्महत्या की वजह कर्ज थी। साल 2010 के बाद के खुदकुशी के मामलों का सर्वे होना अभी बाकी है।
जानकारों का कहना है कि आढ़तियों का नेटवर्क काफी बड़ा है। उपज की मार्केटिंग और किसान को अदायगी आढ़तिए के जरिए होती है। आढ़तिया तब उसका पेमेंट करता है, जब वो उसका कर्ज़ चुका देता है। पंजाब सरकार आढ़तियों के साथ है और वे संगठित हैं। उनका असर बहुत ज्यादा है। उपज की मार्केटिंग सहकारी व्यवस्था के जरिए हो तभी किसान को इस मुश्किल से बाहर निकाला जा सकता है। अभी कम कीमत वाली फसल का उत्पादन होता है। किसान को लो वैल्यू फसल से निकालकर हाई वैल्यू फसल में शिफट करने की जरूरत है. तभी वो समृद्ध हो सकते हैं। इसके लिए भी सहकारी व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत है।
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