Wednesday, 14 October 2015

राष्ट्र ऋषि डाॅ. कलाम

कुछ व्यक्तित्व इतने विराट होते हैं कि उनके बारे में कुछ कहने में भाषा पंगु हो जाती है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय ऋषि परम्परा के ऐसे ही महापुरुष थे। डॉ. अब्दुल कलाम क्या थे, यह कहने से ज्यादा यह कहना उपयुक्त होगा कि वह क्या नहीं थे! भारतीय जीवन मूल्यों के मूर्तिमंत स्वरूप डॉ. कलाम एक ज्योतिर्मय प्रज्ञा-पुरुष थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. कलाम उत्कृष्ट वैज्ञानिक, मौलिक विचारक, गंभीर आध्यात्मिक साधक, कवि, संगीत रसिक, कुशल वक्ता, प्रशासक और सबसे बड़ी बात, संवेदनाओं से परिपूर्ण एक महामानव थे।
‘मुझे आश्चर्य हुआ कि कुछ लोग विज्ञान को इस तरह से क्यों देखते हैं जो व्यक्तियों को ईश्वर से दूर ले जाए। जैसा कि मैंने इसमें देखा कि हृदय के माध्यम से ही हमेशा विज्ञान तक पहुंचा जा सकता है। मेरे लिए विज्ञान हमेशा आध्यात्मिक रूप से समृध्द होने और आत्मज्ञान का रास्ता रहा।’ ये विचार किसी धर्माचार्य के नहीं हैं वरन् भारतीय गणराज्य के 11वें राष्ट्रपति स्व. डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने व्यक्त किए थे। डॉ. कलाम देश की रचनात्मकता के विचार को विस्तार देने के कर्म में अंतिम सांस तक रत रहे। किसी भी रूप में डॉ. कलाम सहाब को मुसलमान के रूप में स्थापित करना हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियत की तौहीन की कहा जाएगा। वे भारत की प्रगतिशील ऋषि परंपरा के वाहक ही थे। वे आधुनिक भारत में युवाओं के लिए रचनात्मका, कर्म साधना और देश सेवा के प्रेरक और रोल मॉडल बने। उन्होंने शून्य से शिखर तक संघर्ष यात्रा से सत्य को स्थापित किया कि नेक नीयत से किए गए कर्म के द्वारा असंभव को संभव किया जा सकता। मेधा के धनी और सफलता से शीर्ष को प्राप्त करने के बाद उनकी बच्चे जैसी मासूमियत, सहजता और सरलता ने खुद ब खुद  लोगों के दिल पर छा गई, जिसके लिए आज हर हिन्दुस्तानी उनके निधन पर गहरा अफसोस जता रहा है।
डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मछुआरे अल्पशिक्षित निर्धन परिवार में जन्मे, गांव में बिजली न होने से लालटेन की रोशनी में अध्ययन की साधना करते हुये राष्ट्र के शिखर पुरुष बने। उन्होंने जो पुस्तकें लिखीं, उनमें 1. विग आफ द फायर, 2. इग्नाइटेड माइण्ड, 3. गाडडिंग सोल्स, 4. मिशन इण्डिया, 5. इण्डिया विजन- 2020, 6. इन विजनिंग एन इम्पावर्ड नेशन, अति चर्चित कृतियां हैं। देश के अनेक प्रकाशनों ने डा. कलाम विषयक पुस्तकें प्रकाशित की। जिनमें दिल्ली के प्रभात प्रकाशन ने ही तत्संबंधी 10 पुस्तकों का प्रकाशन करके 2,50,000 प्रतियों से अधिक की बिक्री से उनकी जनप्रियता का कीर्तिमान स्थापित किया। पांच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि ‘जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।’ अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अखबार वितरित करने का कार्य भी किया था। कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहां उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।  वैसे उनके  विचार शांति और हथियारों को लेकर विवादास्पद रहे। 

इस संबंध में कलाम साहब का कहना था- ‘2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण मिसाइलों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति संपन्न हो।’ कलाम साहब ने अपने इस विचार को कार्य रूप में स्थापित कर दुनिया से भारतीय मेधा का लोहा मनवा लिया, जिसके लिए सुपर पॉवर अमेरिका सहित समूचा पाश्चात्य जगत अपनी उपलब्धियों पर गौरन्वावित हुआ करता था। डॉक्टर कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने शोध को चार उत्कृष्ट पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं- 'विंग्स आॅफ फायर', 'इण्डिया 2020- ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
उनके जीवन में संवेदना सदा सृजन के लिए ही थी, उनके भावों की इन पंक्तियों में आप अनुभव करेंगे-
सुंदर हैं वे हाथ, सृजन करते जो सुख से, धीरज से, साहस से, हर क्षण, हर पल, हर दिन, हर युग।
उनके जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना ‘अग्नि मिसाइल’ के सफल परीक्षण के दिन उनकी डायरी में लिखी ये भावपूर्ण पंक्तियां हैं- राष्ट्र के गौरव तथा शत्रु को भयभीत करने वाली धधकती आग- अग्नि में मत ढूंढ़ों, शत्रु को भय ग्रस्त करता, शक्ति का स्तम्भ कोई, यह तो एक आग है, दिल में जो सुलगती है, हर भारतीय के, सभ्यता के स्त्रोत की, एक छोटी-सी प्रतिमा है यह भारत के गौरव की आभा से प्रदीप लौ।
डा. कलाम के कार्यकाल में देश की सुरक्षा हेतु सफल परीक्षण 1. पृथ्वी, 2. त्रिशूल, 3. आकाश, 4. आग, 5. अग्नि किए गए। राष्ट्र इतना अभिभूत हुआ कि उन्हें ‘मिसाइलमैन’ नाम से संबोधित करने लगा। देश ने विज्ञान की दीर्घकालीन सक्रिय सतत् सेवाओं हेतु पद्मभूषण, पद्म विभूषण और शिखर सम्मान पदक भारत रत्न से सम्मानित किया। देश के 28 विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं ने मानद् डी.एस.सी. एवं डी. लिट् की उपाधियां भी प्रदान कीं। कृतज्ञ राष्ट्र ने इन्हें देश के प्रथम नागरिक रूप में राष्ट्रपति बनाया। वहां भी वह एक विदेह संत की भांति रहे। वह जितनी भारत की सुरक्षा हेतु रचनात्मक वैज्ञानिक कार्यों को गति दे रहे थे उतना ही जनता के दु:ख दर्द को आन्तरिक रूप से अनुभव करते थे। कलाम ने अपने कार्यकाल में पोलियोग्रस्त बच्चों हेतु कुछ तत्वों के मिश्रम से लकड़ी के भारी पैरों के बदले हल्के पैर निर्मित कराए और हजारों पोलियोग्रस्त बच्चों में वितरण कराया। इनके कार्यकाल में कई प्राकृतिक आपदाओं में डी.आर.डी.ओ ने सहायता प्रदान की। गुजरात का चक्रवात, जलेश्वर (उड़ीसा) का तुफान, मानसरोवर के मार्ग में भूस्खलन, चमोली (उत्तराखण्ड) का भूकम्प, गुजरात का भूकम्प, लातूर (महाराष्ट्र) का भूकम्प की सहायता में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाहन किया।
83 वर्षीय कलाम का सोमवार को आईआईएम शिलांग में व्याख्यान देते समय दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्हें एक ऐसे दिलेर राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है जिन्होंने सुखोई लड़ाकू विमान में उड़ान भरी, पनडुब्बी में सफर किया, दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान सियाचिन ग्लेशियर गए और नियंत्रण रेखा पर जाकर सैनिकों से बातचीत की।
इसमें वह साहसिक घटना भी शामिल है जब उनके विमान ने एजल हवाई अड्डे से रात के समय उड़ान भरी तो रनवे को लालटेन और टॉर्च की रोशनी से प्रकाशित किया गया। यह घटना 2005 की है जब कलाम ने अपनी मिजोरम यात्रा के दौरान सभी आधिकारिक कार्यक्रम पूरे कर लिये। उनका अगली सुबह रवाना होने का कार्यक्रम था। लेकिन कलाम ने रात में ही दिल्ली के लिए उड़ान भरने का निर्णय किया। उनके एक वरिष्ठ सहयोगी ने इस घटना को याद करते हुए यह विवरण सुनाया।
भारतीय वायु सेना के स्टेशन प्रमुख को बुलाया गया और उन्हें राष्ट्रपति के राष्ट्रीय राजधानी के लिए उड़ान भरने की इच्छा से अवगत कराया क्योंकि मिजोरम में उनका काम पूरा हो गया है। वायु सेना के अधिकारी ने कहा, ‘‘लेकिन हवाई अड्डे पर रात में उड़ान भरने की सुविधा नहीं है।’’ लेकिन कलाम उनके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अगर आपात स्थिति हो तो क्या होगा ? क्या वायु सेना सुबह का इंतजार करेगी। उन्हें बता दें कि मुझे उड़ान भरना है और सभी जरूरी व्यवस्था की जाए।’’
डॉ. कलाम के सहयोगी तब वायु सेना के अधिकारी के पास गए और उन्हें उनका संदेश सुनाया जो राष्ट्रपति के तौर पर सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर भी थे। आईएएफ के कमांडर ने तत्काल दिल्ली में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सम्पर्क किया। लेकिन उच्च अधिकारियों ने उन्हें मिसाइल मैन के आदेशों का पालन करने का निर्देश दिया। सहयोगी ने बताया कि अंतत: कलाम की इच्छा पूरी हुई और वायुसेना कर्मियों ने लालटेन, टॉर्च एवं मशाल जलाकर रनवे को रौशन किया ताकि उड़ान भरी जा सके। कलाम के सहयोगी उनके रात में उड़ान भरने के फैसले से चिंतित थे क्योंकि हवाई अड्डे पर केवल बुनियादी सुविधा ही उपलब्ध थी। वायुसेना अधिकारियों से अलग से पूछा गया कि क्या ऐसे में उड़ान भरना सुरक्षित होगा।
वायुसेना अधिकारी ने कहा कि आप उडान तो भर सकते हैं लेकिन अगर लौटना पड़ा तो परेशानी होगी। रात के करीब नौ बजे राष्ट्रपति के बोइंग विमान ने उड़ान भरी जिस पर कलाम और उनके साथ 22 लोग थे। विश्वविद्यालय और स्कूली छात्रों से चर्चा के दौरान डॉ. कलाम कहा करते थे, ‘‘अगर आप विफल होते हैं तब साहस नहीं छोड़े क्योंकि एफ ए आई एल का अर्थ होता है पहले प्रयास में सीखना, समाप्त का अर्थ समाप्त नहीं होता, बल्कि ई एन डी का अर्थ अगला अवसर होता है, इसलिए सकारात्मक रहें।
डॉ. कलाम जब देश के 11वें राष्ट्रपति बने तब इसके कुछ ही समय बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया। कलाम उनका कुशलक्षेम पूछने के लिए पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उस दिन वह नीले रंग की शर्ट और खाकी पैंट पहनकर गए थे। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कलाम ने सियाचिन जाकर सैनिकों से मुलाकात करने का निर्णय किया। मौसम साफ होने के लिए उन्हें करीब 40 मिनट तक इंतजार करना पड़ा और बाद में वह हेलीकाप्टर से सियाचिन आधार शिविर पहुंचे। सैनिकों को अपने संबोधन में कलाम ने कहा था, ‘‘यह ग्लेशियर अत्यंत भू सामरिक महत्व का है। पिछले 20 वर्षो में कई युद्ध लड़े गए और हमारी सर्वोच्चता स्थापित हुई। यह हमारे जाबांज कारनामों की लड़ाई थी।’’ एयरोनॉटिकल इंजीनियर कलाम ने जून 2006 में सुखोई 30 लड़ाकू विमान उड़ाया और कहा था, ‘‘यह 1958 से ही मेरा सपना था कि मैं लड़ाकू विमान उड़ाऊं। मैं बचपन से ही पायलट बनना चाहता था।’’ इसी वर्ष कलाम ने फरवरी माह में तब इतिहास रचा जब वह आईएनएस सिंधुरक्षक पनडुब्बी से सफर करने वाले वह देश के पहले राष्ट्रपति बने।
आखिरकार शिक्षा वास्तव में सत्य की खोज है। ज्ञान और जागरूकता के माध्यम से यह एक कभी न समाप्त होने वाली यात्रा है। जहांर् ईष्या, घृणा, दुश्मनी, संकीर्णता और असमंजस के लिये कोई स्थान नहीं होता। यह मनुष्य को एक हितकारी, उदार इंसान और विश्व का एक उपयोगी व्यक्ति बना देती है। वास्तविक ज्ञान मनुष्य की गरिमा और स्वाभिमान को बढ़ाता है। देश और समाज के विकास मार्ग में वह अतीत तथा वर्तमान के सभी सत्कार्यों को मान्यता देते थे।
डा. अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व विज्ञानवेत्ता के साथ ही एक श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में भी उजागर होता है। हरिद्वार उत्तरांचल के देव संस्कृति विश्वविद्यालय के दीक्षान्त भाषण के कुछ अंश कलाम के शब्दों में- मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग 3000 पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के स्वप्न को साकार रूप दिया है। उन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपर्युक्त होगा। दोस्तों! रामेश्वरम् में अपने बाल्यकाल में मैंने वकीलों, वैज्ञानिकों, आध्यात्मिकों, व्यवसायियों और शिक्षाविदों की देशभक्ति देखी, जिन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। अपनी इस स्वतंत्रता के लिए हम उन महान आत्माओं के ऋणी हैं। ऐसे देश भक्तों को मैं सलाम करता हूं।’ देश को स्वतंत्र करवाने के पश्चात् अब वर्ष 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र में परिवर्तित करना हमारी जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि हमारे देश के 54 करोड़ तेजस्वी युवा मिलकर निश्चित ही इस परिवर्तन की दिशा में कार्य करेंगे…।
एक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने जो नई परंपराएं स्थापित की, जिनको लेकर किसी को भी परहेज नहीं हुआ और न किसी तरह की सियासत करने का मौका दिया, उनकी यही विलक्षणता सच्चे अर्थों में ‘भारत रत्न’ के रूप में स्थापित करती है। अपनी मानवीय खूबियों के साथ वह एक राष्ट्रनायक के रूप में लोगों के दिल में जगह बनाने में कामयाब हुए। 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गांव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पांच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।

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