Saturday, 7 November 2015

जीती जनता, नीतीश कुमार को बधाई

विभिन्न लोगो की राय अलग अलग है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि हमारा समाज परिपक्व है व चुनाव में धन बल व प्रचार का महत्व होते हुये भी निर्णायक नही है ।निर्णायक भूमिका है वर्तमान सरकार के नेतृत्व की कार्यप्रणाली व उसकी छवि तथा उसके विपरीत मैदान में मुख्य विपक्षी दल के नेतृत्व व स्वीकार्यता । गत चुनावों में केन्द्र ,राजस्थान,महाराष्ट्र व हरियाना में सरकारों को बुरी तरह हराना,झारखण्ड में दोनो पक्षों मे किसी का विश्वसनीय न होनेपर निर्णायक बहुमत किसी को न देना तथा मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में अच्छा कार्य करने वाले नेतृत्व को जनता ने आशीर्वाद दिया था ।उसी क्रम में नितिश के नेतृत्व में अपना मत देकर जनता ने उनकी कार्य प्रणाली की स्वीकार्यता पर मुहर लगाया है क्योंकि उनके सामने कोई विश्वसनीय स्थानीय नेतृत्व नहीं था । पर नितिश जी को लालू की छवी व उनके तौर तरीक़ों से सतर्क रहना होगा ।लेकिन बिहार अभी भी जातिवाद के कोढ़ से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाया है ।देखे शायद नई पीढ़ी इस कोढ़ से मुक्ति दिला दे क्योकि जातिवाद राजनिति के पोषक नेताओं का अस्पताल अब पास ही है ।

बिहार के 243 सदस्यीय विधानसभा चुनाव केजो नतीजे सामने आ रहे हैं वो बता रहे हैं कि नीतीश कुमार और लालू यादव के बवंडर में मोदी लहर पूरी तरह हवा हो गई। महागठबंधन बंपर बहुमत की तरफ बढ़ रहा है। एनडीए गठबंधन 100 सीटों से भी कम पर सिमटता दिख रहा है। रुझानों के बाद जहां बीजेपी खेमे में खामोशी है और बैठकों का दौर शुरू हो गया है, वहीं महागठबंधन  खेमे में जबरदस्त उत्साह और जश्न का माहौल है। आज सुबह लालू यादव ने कहा था, गुड मॉर्निंग हम जीत रहे हैं। लालू की ये बात सही भी साबित हुई। 
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पिछले एक माह से जारी चुनाव नतीजों  के रुझानों से तय हो गया है कि जेडीयू नीत महागठबंधन को बहुमत मिल रहा है। बीजेपी के लिए ये नतीजे किसी झटके से कम नहीं। बीजेपी गठबंधन 100 से भी कम सीटों पर सिमट गया। आइए उन कारणों के बारे में जानते हैं जिससे महागठबंधन को इतनी बड़ी कामयाबी मिलती दिख रही है। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह इस बार पूरी तरह विफल रहे। बीजेपी की चुनावी रणनीति शुरुआत से ही संदेहों के घेरे में रही। विकास के मुद्दे से शुरू हुआ चुनाव प्रचार हर चरण के साथ बदलते हुए आरक्षण के रास्ते कब ध्रुवीकरण और बदजुबानी तक पहुंच गया पता ही नहीं चला। बीजेपी नेता कभी बीफ तो कभी पाकिस्तान में पटाखे छूटने की बात करते रहे और नीतीश कुमार मीडिया हलचल से दूर अपनी रणनीति को अमल में लाते रहे। नीतीश ने लालू को बीजेपी का मुकाबला करने के आगे बढ़ाकर अपनी योजना को सफल बनाने में लगे रहे और यहां बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह नीतीश के चुनावी रणनीति को समकझने में नाकाम रहे। बीजेपी कभी पीएम मोदी के जाति बताकर जातीय समीकरण साधते दिखी तो कभी संघ के संग ध्रुवीकरण लेकिन कुल मिलाकर चुनावी रमनीति स्पष्ट न होने के खामियाजा भुगतना पड़ा।
एक बात स्पष्ट है कि मात्र लफ्फाबाजी व अनर्गल / दुष्प्रचार से चुनाव जीत पाना सम्भव नहीं है व जनता के आशिर्वाद के लिये सरकारों को काम करना होगा व अपनी छवि में सुधार करना होगा यानि विकास, नेतृत्व की सत्यनिष्ठा प्रदर्शित करनी होगी ।
यह देश व देशवासियों के लिये शुभ संदेश /समाचार है ।
जय भारत,जय लोक तन्त्र,जय समाजवाद व जय जनता जनार्दन ।।

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