चांद दिखने के साथ ही रविवार को मुकद्दस रमजान की शुरुआत हो गई। देश कई हिस्सों में रविवार शाम को चांद देखा गया। फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम ने चांद दिखने की तसदीक की। 30 दिन के रोजों को लेकर देशभर के मस्जिदों में सभी तैयारियां पहले से ही पूरी कर ली गई थीं। चांद देखने के बाद ही इशा की नमाज (रात की नमाज) के बाद तरावीह (कुरान का पाठ) की विशेष नमाज शुरू हो गईं। जैसे ही रमजान का चांद दिखा लोगों ने एक दूसरे को चांद की बधाई देना शुरू कर दिया।
मस्जिदों में भी रविवार को सफाई की गई। बाजारों में चहल-कदमी बढ़ गई है। इस्लाम धर्म के अनुसार रमजान माह में एक नेक काम के बदले चौबीस गुना से सत्तर गुना पुण्य लाभ मिलता है। भूखे को खाना खिलाने से अल्लाह अपने बंदों पर रहमतें बरसाता है।
ये अल्लाह ताला की रहमतों और इनायतों का खास महीना है। इस महीने के आते ही इबादत व अताअत का नूरानी माहौल होने लगता है। इसका एहतराम करने वाले को अल्लाह तआला इनामात से नवाजता है। इस महीने की आमद का इंतजार हर मुसलमान को रहता है। रमजान खैरोबरकत और रहमत के नुजूल का महीना है। इस महीने में मुसलमानों को इबादत और कुरआन की तिलावत में सरफ करना चाहिए। पूरे महीने रोजे रखकर अल्लाह की इबादत की जाती है। अन्य दिनों के मुकाबले एक नेकी पर सवाब (पुण्य) भी बहुत ज्यादा मिलता है। ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, जकात और अन्य दान दें। आम दिनों के मुकाबले लोगों से नर्म दिल से पेश आएं। गरीबों और अपने नौकरों से नरमी से पेश आएं। रमजान का एक महीना एक तरह से ट्रेनिंग का महीना है। इस महीने में लोग रोजे रखते हैं। रोजा रखकर भूखे रहने का एक खास मकसद है।
रोजा रखकर रोजेदार को उस व्यक्ति का एहसास होगा जो दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाता। लोगों में ऐसे लोगों का ख्याल रखने का जज्बा पैदा होगा। अल्लाह ने इसी लिए सभी मुसलमानों पर रोजे फर्ज किए। इधर, चांद देखने के बाद ही सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज शुरू हो गई। रमजान का चांद देखने के साथ ही तरावीह शुरू हो जाती है और ईद का चांद नजर आते ही पूरी हो जाती हैं। तरावीह की नमाज में हाफिज कुरान का पाठ करते हैं और लोग सुनते हैं।
रमज़ान का पवित्र माह फिज़ा में इबादत और इनायत का खूबसूरत तालमेल सजा रहा है। रोजा क्या है और किस महत्व के साथ इंसान को खुदा से जोंड़ती हैं इस दौरान की गई इबादतें। रोजा का अर्थ तकवा है। इंसान रोजा रख कर अपने आप को ऐसा इंसान बनने की कोशिश करता है, जैसा उसका रब चाहता है। तकवा यानी अपने आप को बुराइयों से बचाना, और भलाई को अपनाना है। रोजा केवल भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है। कहा जाता है कि रोजा इंसान के हर एक भाग का होता है। रोजा आंख का है, मतलब बुरा मत देखो, गलत बात न सुनो, मुंह से अपशब्द न निकले, हाथ से अच्छा काम ही हो व पांव सिर्फ अच्छाई के रास्ते परही बढ़ें।
मस्जिदों में भी रविवार को सफाई की गई। बाजारों में चहल-कदमी बढ़ गई है। इस्लाम धर्म के अनुसार रमजान माह में एक नेक काम के बदले चौबीस गुना से सत्तर गुना पुण्य लाभ मिलता है। भूखे को खाना खिलाने से अल्लाह अपने बंदों पर रहमतें बरसाता है।
ये अल्लाह ताला की रहमतों और इनायतों का खास महीना है। इस महीने के आते ही इबादत व अताअत का नूरानी माहौल होने लगता है। इसका एहतराम करने वाले को अल्लाह तआला इनामात से नवाजता है। इस महीने की आमद का इंतजार हर मुसलमान को रहता है। रमजान खैरोबरकत और रहमत के नुजूल का महीना है। इस महीने में मुसलमानों को इबादत और कुरआन की तिलावत में सरफ करना चाहिए। पूरे महीने रोजे रखकर अल्लाह की इबादत की जाती है। अन्य दिनों के मुकाबले एक नेकी पर सवाब (पुण्य) भी बहुत ज्यादा मिलता है। ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, जकात और अन्य दान दें। आम दिनों के मुकाबले लोगों से नर्म दिल से पेश आएं। गरीबों और अपने नौकरों से नरमी से पेश आएं। रमजान का एक महीना एक तरह से ट्रेनिंग का महीना है। इस महीने में लोग रोजे रखते हैं। रोजा रखकर भूखे रहने का एक खास मकसद है।
रोजा रखकर रोजेदार को उस व्यक्ति का एहसास होगा जो दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाता। लोगों में ऐसे लोगों का ख्याल रखने का जज्बा पैदा होगा। अल्लाह ने इसी लिए सभी मुसलमानों पर रोजे फर्ज किए। इधर, चांद देखने के बाद ही सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज शुरू हो गई। रमजान का चांद देखने के साथ ही तरावीह शुरू हो जाती है और ईद का चांद नजर आते ही पूरी हो जाती हैं। तरावीह की नमाज में हाफिज कुरान का पाठ करते हैं और लोग सुनते हैं।
रमज़ान का पवित्र माह फिज़ा में इबादत और इनायत का खूबसूरत तालमेल सजा रहा है। रोजा क्या है और किस महत्व के साथ इंसान को खुदा से जोंड़ती हैं इस दौरान की गई इबादतें। रोजा का अर्थ तकवा है। इंसान रोजा रख कर अपने आप को ऐसा इंसान बनने की कोशिश करता है, जैसा उसका रब चाहता है। तकवा यानी अपने आप को बुराइयों से बचाना, और भलाई को अपनाना है। रोजा केवल भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है। कहा जाता है कि रोजा इंसान के हर एक भाग का होता है। रोजा आंख का है, मतलब बुरा मत देखो, गलत बात न सुनो, मुंह से अपशब्द न निकले, हाथ से अच्छा काम ही हो व पांव सिर्फ अच्छाई के रास्ते परही बढ़ें।