Monday, 30 June 2014

आज से शुरू हो गया रमजान

चांद दिखने के साथ ही रविवार को मुकद्दस रमजान की शुरुआत हो गई। देश कई हिस्सों में रविवार शाम को चांद देखा गया। फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम ने चांद दिखने की तसदीक की।  30 दिन के रोजों को लेकर देशभर के मस्जिदों में सभी तैयारियां पहले से ही पूरी कर ली गई थीं। चांद देखने के बाद ही इशा की नमाज (रात की नमाज) के बाद तरावीह (कुरान का पाठ) की विशेष नमाज शुरू हो गईं। जैसे ही रमजान का चांद दिखा लोगों ने एक दूसरे को चांद की बधाई देना शुरू कर दिया।
मस्जिदों में भी रविवार को सफाई की गई। बाजारों में चहल-कदमी बढ़ गई है। इस्लाम धर्म के अनुसार रमजान माह में एक नेक काम के बदले चौबीस गुना से सत्तर गुना पुण्य लाभ मिलता है। भूखे को खाना खिलाने से अल्लाह अपने बंदों पर रहमतें बरसाता है।

ये अल्लाह ताला की रहमतों और इनायतों का खास महीना है। इस महीने के आते ही इबादत व अताअत का नूरानी माहौल होने लगता है। इसका एहतराम करने वाले को अल्लाह तआला इनामात से नवाजता है। इस महीने की आमद का इंतजार हर मुसलमान को रहता है। रमजान खैरोबरकत और रहमत के नुजूल का महीना है। इस महीने में मुसलमानों को इबादत और कुरआन की तिलावत में सरफ करना चाहिए। पूरे महीने रोजे रखकर अल्लाह की इबादत की जाती है। अन्य दिनों के मुकाबले एक नेकी पर सवाब (पुण्य) भी बहुत ज्यादा मिलता है।  ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, जकात और अन्य दान दें। आम दिनों के मुकाबले लोगों से नर्म दिल से पेश आएं। गरीबों और अपने नौकरों से नरमी से पेश आएं। रमजान का एक महीना एक तरह से ट्रेनिंग का महीना है। इस महीने में लोग रोजे रखते हैं। रोजा रखकर भूखे रहने का एक खास मकसद है।
रोजा रखकर रोजेदार को उस व्यक्ति का एहसास होगा जो दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाता। लोगों में ऐसे लोगों का ख्याल रखने का जज्बा पैदा होगा। अल्लाह ने इसी लिए सभी मुसलमानों पर रोजे फर्ज किए। इधर, चांद देखने के बाद ही सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज शुरू हो गई। रमजान का चांद देखने के साथ ही तरावीह शुरू हो जाती है और ईद का चांद नजर आते ही पूरी हो जाती हैं। तरावीह की नमाज में हाफिज कुरान का पाठ करते हैं और लोग सुनते हैं।
रमज़ान का पवित्र माह फिज़ा में इबादत और इनायत का खूबसूरत तालमेल सजा रहा है। रोजा क्या है और किस महत्व के साथ इंसान को खुदा से जोंड़ती हैं इस दौरान की गई इबादतें। रोजा का अर्थ तकवा है। इंसान रोजा रख कर अपने आप को ऐसा इंसान बनने की कोश‍िश करता है, जैसा उसका रब चाहता है। तकवा यानी अपने आप को बुराइयों से बचाना, और भलाई को अपनाना है। रोजा केवल भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है। कहा जाता है कि रोजा इंसान के हर एक भाग का होता है। रोजा आंख का है, मतलब बुरा मत देखो, गलत बात न सुनो, मुंह से अपशब्द न निकले, हाथ से अच्छा काम ही हो व पांव सिर्फ अच्छाई के रास्ते परही बढ़ें।

Monday, 23 June 2014

विकास पुरूष हैं वीरभद्र सिंह

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 23 जून यानी आज अपना 81वां जन्मदिन मनाया। इस अवसर पर हम उन्हें ढेरों षुभकामना और उनके षतायु होने की कामना करते हैं। जिस प्रकार से उन्होंने सुबह अपने निजी आवास हाली लॉज में मिलने आने वालों से शुभकामनाएं ली और फिर उसके बाद दोपहर प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में आयोजित होने वाले रक्तदान शिविर का शुभारंभ किया, वह उनकी जीवटता को दर्षाता है। हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह की एक अलग पहचान है। 23 जून 1934 को शिमला जिले के सराहन में पैदा हुए वीरभद्र सिंह ने राजनीतिक जीवन में लंबा सफर तय किया है। वह 1962 में पहली बार लोकसभा के सांसद चुने गए थे। प्रदेश में सबसे अधिक छह बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड भी वीरभद्र सिंह के नाम है।

वीरभद्र सिंह १९८३ से १९९० तक, १९९३ से १९९८ तक और २००३ से २००७ तक हिमाचल प्रदेश राज्य के भी छ बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं। वे आठ बार विधायक, छ बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पांचवीं बार लोकसभा में बतौर सांसद रह चुके हैं और पिछले आधे दशक में वे कोई चुनाव नहीं हारे। वीरभद्र सिंह १९६२. १९६७, १९७२, १९८० और २००९ में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके अलावा वे १९८३, १९८५, १९९०, १९९३, १९९८, २००३, २००७ तथा २०१२ में विधायक रहे। १९८३,१९८५, १९९३, १९९८, २००३ और २०१२ में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। अपने ४७ वर्षों के राजनैतिक सफर के दौरान उन्होंने १३ चुनाव लड़े और सभी जीते । वह हिमाचल कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वरिष्ठता के क्रम और हिमाचल प्रदेश के अकेले सांसद होने के कारण २२ मई २००९ को मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनने वाली केंद्र सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया । वो इस्पाल मंत्रालय बनाए गये थे। इससे पहले भी वीरभद्र सिंह १९७६ से १९७७ तक केंद्र में नागरिक उड्डयन तथा पर्यटन राज्यमंत्री और १९८२ से १९८३ तक केंद्र में उद्योग राज्यमंत्री रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्रसिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला में हुआ था। स्कूली शिक्षा शिमला से प्राप्त कर उन्होंने दिल्ली से स्नातक की डिग्री हासिल की। वीरभद्रसिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1962 में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने के साथ हुई। 1962 से 2007 तक वे हिमाचल प्रदेश की राज्यसभा में सात बार सदस्य रहे। 1967 में लोकसभा में वे दूसरी बार निर्वाचित हुए। 1971 में तीसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी रहे। 1976-77 के दौरान वह पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सहायक मंत्री रहे। 1980 के लोकसभा चुनावों में उन्हें चैथी बार चुना गया। 1982-83 में वे राज्य उद्योग मंत्री रहे।  1983, 1990, 1993, 1998 और 2003 तक वे पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 2009 में वे पांचवी बार लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गए। 31 मई 2009 को उन्हें केंद्रीय स्टील मंत्री बनाया गया। 19 जनवरी 2011 को उन्होंने सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला। राजनीति के अलावा वीरभद्र सिंह इंडो-सोवियत मैत्री समिति के सदस्य भी हैं।
हिमाचल के 21 लाख बिजली उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है। सूबे में बिजली और सस्ती हो गई है। स्लैब बढ़ा कर नियामक आयोग ने बिजली उपभोक्ताओं को राहत दी है। अगले पांच साल तक बिजली की दरें नहीं बढ़ेंगी। राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली दरें बढ़ाने के विद्युत बोर्ड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। व्यावसायिक उपभोक्ताओं और उद्योगों के लिए भी बिजली 20-30 पैसे प्रति यूनिट सस्ती कर दी गई है। बताया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसके लिए काफी मेहनत की। षिमला की बात दिल्ली जाकर भी बताई।
अब कहा जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश में बिजली की सस्ती दरों से उद्योगों को पंख लगेंगे। इससे युवाओं को घरद्वार के पास ही रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। बिजली की संशोधित दरों में उद्योगों को दी जा रही राहत और सरकार द्वारा की घोषणा से यह उम्मीद राज्य में साल दर साल बढ़ रही बेरोजगार युवाओं की फौज को कम कर सकती है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कह दिया है कि राज्य अपनी बिजली बाहर नहीं बेचेगा। बिजली की ज्यादा खपत करने वाले उद्योगों को हिमाचल आने का न्याोता दिया जाएगा। दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरें न बढ़ाने की सिफारिश की है। आयोग ने टैरिफ युक्तीकरण एवं पुन रूपांकन प्रक्रिया के कारण ऐसा किया है। लघु उद्योगों पर भी बीस लाख उपभोक्ताओं के साथ राहत दी गई है। ऐसे में जब सरकार ने 330 करोड़ रुपये की सबसिडी जारी रखी है।
बीते दिनों मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की ओर से साफतौर पर कहा गया था कि प्रदेश के लोगों को जल विद्युत परियोजनाओं का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल प्रदेश बल्कि देश भी लाभान्वित होता है। ऊर्जा विकास के लिए आवश्यक है। भाखड़ा एवं पौंग बांध के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए जबकि 1500 मैगावाट क्षमता की नाथपा झाखड़ी परियोजना के निर्माण के कारण बहुत कम लोग प्रभावित हुए। राज्य सरकार केवल ‘रन ऑफ रिवर’ परियोजनाओं को स्वीकृत करेगी, क्योंकि इनसे काफी कम जनसंख्या प्रभावित होती है। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया था कि इन परियोजनाओं से उन्हें समुचित मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि पांच मैगावाट तक की जल विद्युत परियोजनाएं केवल हिमाचलवासियों को आवंटित की जाएंगी जबकि 25 मैगावाट तक की परियोजनाओं के आवंटन में हिमाचलवासियों को वरियता दी जाएगी ताकि प्रदेश के लोग इस क्षेत्र में आगे आ सकें।
हिमाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि हिमाचल प्रदेश विकास के मामले में देश भर में अग्रणी बन कर उभरा है, जिसका श्रेय राज्य में अधिकांश समय तक रही कांग्रेस सरकारों को जाता है। प्रदेश के विकास में भाजपा को कोई योगदान नहीं रहा है, यहां तक कि प्रदेश के गठन के समय भी भाजपा के लोगों ने इसका विरोध किया था। एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि प्रदेश सरकार राज्य के समान एवं संतुलित विकास के प्रति वचनबद्ध है और जनजातीय क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके।  राज्य सरकार ने वर्ष 2013-14 में जनजातीय उपयोजना के अन्तर्गत 369 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो गत वर्ष की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक है। गैर योजना सहित कुल 764 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं ताकि इन क्षेत्रों का तीव्र विकास सुनिश्चित बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि लाहौल मण्डल में इस वित्त वर्ष में सड़कों, पुलों और भवनों के निर्माण पर 3.60 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, नाबार्ड के तहत सड़कों को पक्का करने और तारकोल बिछाने पर 25 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे।

Friday, 20 June 2014

सरकार और संगठन के बीच सेतु बने किशोर


उत्तराखंड कांग्रेस को आगे बढ़ाने के लिए और संगठन को पहले से अधिक मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने श्री किशोर उपाध्याय को प्रदेष कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष बनाया है। नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष श्री किशोर उपाध्याय का कहना है कि उनकी प्राथमिकता त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों और विधानसभा उपचुनाव में पार्टी को जीत दिलाना है। इसके लिए संगठन को और अधिक मजबूत व चुस्त-दुरुस्त किया जाएगा। वरिष्ठ नेताओं के साथ विचारिवमर्श कर पार्टी को मजबूत करने के लिए रणनीति तैयार की जाएगी। सरकार और संगठन के बीच सही तालमेल किया जाएगा, ताकि प्रदेश को विकास की राह पर आगे ले जाने में मदद मिल सके। उनका यह भी कहना है कि कार्यकर्ता पार्टी की रीढ होते हैं और उनको पार्टी में पूरा मान-सम्मान दिया जाएगा।
उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद किशोर उपाध्याय पहली बार जब चंबा पहुंचे, तो चंबा में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने किशोर उपाध्याय का स्वागत किया, साथ ही किशोर उपाध्याय ने कहा जब भी मैं कोई शुभ कार्य शुरू करता हूं तो सबसे पहले अपनी कुलदेवी के पास आर्शीवाद लेने जाता हूं। मैं औपचारिक तौर पर 22 जून को 3 बजे प्रदेश कार्यालय में कार्यभार ग्रहण करूंगा। उल्लेखनीय है कि एनडी तिवारी शासनकाल में राज्य मंत्री रह चुके किशोर उपाध्याय प्रदेश संगठन में पदाधिकारी रहने के साथ ही राज्य आंदोलन से भी जुडे रहे हैं।
हम आपको बता दें कि एनडी तिवारी शासनकाल में राज्य मंत्री रह चुके किशोर उपाध्याय प्रदेश संगठन में पदाधिकारी रहने के साथ ही राज्य आंदोलन से भी जुडे रहे हैं। पिछले वर्ष वरिष्ठ कांग्रेसी यशपाल आर्य ने जब अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तभी से संगठन के लिए नए सिपहसालार की तलाश शुरु हो गई थी। हालांकि नए मनोनयन तक यशपाल आर्य को ही अध्यक्ष पद पर बने रहने को कहा गया था। बताया जाता है कि नरेंद्र नगर के विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष अनुसूया प्रसाद मैख्ुारी अध्यक्ष पद के लिए प्रबल दावेदार के रुप में सामने आए थे। केद्रिय आलाकमान ने इन दोनों नेताओं के नाम को खारिज करते हुए किशोर उपाध्याय पार भरोसा जताया है और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। श्री उपाध्याय काफी सुलझे हुए इंसान है। आम आदमी और जमीन से जुड़े लोगों के बीच उनकी काफी अच्छी पैठ है। साथ ही उनका मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ भी काफी अच्छे ताल्लुकात हैं। 

Wednesday, 18 June 2014

धारा 370 पर हाय-तौबा क्यों ?


प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जीतेंद्र सिंह के अनुच्देछ 370 पर सवाल उठाए जाने के बाद यह पूरा मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले में नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी के आक्रामक  तेवर को देखने के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सीधे मोर्चा संभाल लिया है। संघ की ओर से जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर यह कहते हुए पलटवार किया कि राज्य से संविधान की धारा 370 हटे या न हटे, लेकिन यह राज्य भारत का अभिन्न अंग रहेगा। आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, जम्मू एवं कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा? क्या उमर इसे अपनी पैतृक संपत्ति समझ रहे हैं? धारा 370 रहे या न रहे जम्मू-कश्मीर रहेगा और हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहेगा।
इससे पहले भी लगातार हमारे संविधान का यह अनुच्छेद राजनीतिक प्रोपेगैंडा का हथियार बनता रहा है। हम भारत के लोग इसी प्रोपेगैंडा के आधार पर ही अपनी राय कश्मीर और अनुच्छेद 370 को लेकर बनाते रहे हैं। लिहाजा हम भारत के लोग भी जाने-अनजाने में इन्हीं स्वार्थो में से किसी एक को समस्या व समाधान मानते हैं। अब डॉ जितेंद्र सिंह के बयान और उन पर आ रहीं प्रतिक्रियाओं पर नजर डालिए, तो क्या किसी ऐसे नतीजे पर पहुंचा जा सकता है जो पूरे मामले को सही परिप्रेक्ष्य में देख पाने मददगार हो सके। कोई कह रहा है कि यह जम्मू-कश्मीर और भारत को जोड़ने वाला सेतु है और यदि यह अनुच्छेद नहीं रहेगा तो यह सेतु खत्म हो जायेगा। कोई कह रहा है कि अलगाववाद के मूल में यह अनुच्छेद ही है और इसे हटा दिया जाये तो समस्या के समाधान में मदद मिलेगी। कोई इसे जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की शर्त बता रहा है, तो कोई इसे पंडित नेहरू द्वारा शेख अब्दुल्ला को खुश करने के लिए दिये गये अधिकार के रूप में परिभाषित कर रहा है। सच तो यह भी है कि इस राज्य का नाम लेने से दो ही तस्वीरें हमारे दिमाग में बनती हैं। पहली, एके 47 यानी आतंकवाद की और दूसरी खूबसूरती की। हां, अमरनाथ यात्र और वैष्णोदेवी की भी याद आ जाती है। इसके अलावा, वहां के बारे में हम कितना जानते हैं? आम लोगों के बीच अनुच्छेद 370, जम्मू-कश्मीर के इतिहास, उसके भारत में विलय, उसकी सूफी परंपरा आदि को लेकर जानकारी का स्तर शून्य है। वे शायद यह भी नहीं जानते कि कबायली हमले के समय कश्मीरियों की भूमिका क्या रही और कश्मीर घाटी का मुंह प्राकृतिक रूप से मुजफ्फराबाद की ओर ही खुलता है या आजादी से पहले कश्मीर को सड़क मार्ग से देश को जोड़ने वाली सड़क श्रीनगर से मुजफ्फराबाद व रावलपिंडी होते हुए लाहौर पहुंचती थी।
दिलचस्प बात तो यह है कि मुस्लिम बहुल कष्मीर घाटी में राजग की जीत पर लोगों ने खूब खुषियां मनाई। कारण जगजाहिर है कि कांगे्रस कष्मीर मसले को राजनीतिक रूप से सुलझाने में पूरी तरह नाकाम रही। इसके साथ ही लोगों को यह भरोसा होने लगा कि केंद्र में मोदी की सरकार होगी, तो सबका भला होगा। जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी ने अपने षपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज षरीफ को बुलाया। अगले दिन नवाज षरीफ और नरेंद्र मोदी की द्विपक्षीय वार्ता हुई, उससे कष्मीरी आवाम और नेताओं के भरोसे को और भी बल मिला। घाटी के अलगाववादी वरिष्ठ नेता मीरवाइज उमर फारूक कहते हैं, ‘ यह एक अच्छी षुरूआत है। जिस प्रकार से दोनों देषों के प्रधानमंत्री ने मुलाकात की है, उससे परस्पर विष्वास को बल मिलेगा। भारत और पाकिस्तान के बीच कष्मीर मसले के समाधान में यह कारगर पहल साबित होगा।‘ दरअसल, मीरवाइज ऐसे पहले कष्मीरी अलगाववादी नेता हैं, जिन्होंने भाजपा द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए जाने का स्वागत किया था। वे कहते हैं, ‘ जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार बनी थी, उस समय भी कष्मीर मसले को लेकर सकारात्मक पहल की गई थी। मुझे उम्मीद है कि मोदी भी वाजपेयी के पदचिन्हों का अनुसरण करेंगे। कष्मीर के आवाम को उनसे काफी उम्मीदें हैं।‘
हालांकि, मीरवाइज के इस प्रकार के बयानों और कदमों की काफी आलोचना की गई थी। कष्मीर के कई हिस्सों में इसको लेकर खूब चर्चाएं भी हुईं। इसके बावजूद मीरवाइज अपनी सोच को लेकर दृढ़ रहे। आखिरकार, कष्मीर की आवाम ने भी उनसे इत्तेफाक रखते हुए मोदी पर भरोसा जताया। न्यूज बेंच से बात करहे हुए मीरवाइज कहते हैं, ‘ मोदी ने खुद को गुजरात में एक अच्छे प्रषासक के रूप में साबित कर दिया है। मुझे पूरा भरोसा है कि प्रधानमंत्री के रूप में भी वे लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे और कष्मीर समस्या का समाधान कराने में सफल होंगे।‘
आखिर, भाजपा के नेता पर भरोसा क्यों ? जिस पार्टी के घोषणापत्र में संविधान द्वारा दिए गए विषेषाधिकार धारा 370 को खत्म करने की बात हो, उससे भला कष्मीर की अस्मिता और समस्याओं के समाधान की उम्मीद करना कहां तक उचित है ? मीरवाइज कहते हैं, ‘समस्या का समाधान षांति से होगा। बात केवल कष्मीर की ही नहीं, पूरे दक्षिण एषिया की है। मोदी ने षांतिपूर्ण परिस्थिति में देष के विकास और प्रगति की बात की है। भारत आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहा है। हमारे देष का रक्षा बजट 37 अरब तक पहुंच चुका है। मुझे भरोसा है कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए परस्पर विष्वास और स्थिरता सबसे अहम है।‘
ऐसा नहीं है कि मोदी के आने से अलगावादियों के बीच खुषी है। मुख्य धारा की राजनीति करने वाले नेताओं में भी उम्मीद जगी है। जम्मू-कष्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला और विधानसभा मंे प्रतिपक्ष की नेता महबूबा मुफ्ती ने भी नवाज षरीफ को हिंदुस्तान बुलाने के निर्णय का स्वागत किया। उमर अब्दुला, जो किसी भी मौके पर मोदी के विरोध करने का मौका नहीं छोड़ते, कहते हैं, ‘ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज षरीफ की मुलाकात जम्मू-कष्मीर के लिए षुभ संकेत है। हमें दोनों देषों के खराब रिष्तों की कीमत चुकानी पड़ती है। जब-जब दोनों देषों के रिष्ते बहेतर हुए हैं, जम्मू-कष्मीर को लाभ होता है।‘
बहरहाल, अलगावादी नेता केंद्र सरकार से बात करने की उम्मीद पाले हुए हैं। वरिष्ठ हुर्रियत नेता बिलाल गनी लोन कहते हैं, ‘ हमें पूरी उम्मीद है कि केंद्र की नई सरकार से हमंे बातचीत करने का अवसर मिलेगा और हम सकारात्मक बात करेंगे।‘ उल्लेखनीय है कि साल 2004 में जब तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से कष्मीरी नेताओं के एक दल ने मुलाकात की थी, उस दल में बिलाल गनी लोन भी षामिल थे।  जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर संविधान की धारा 370 हटाई गई तो जम्मू एवं कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि यह धारा राज्य को विशेष दर्जा देती है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को यह घोषणा करते हुए हड़कंप मचा दिया कि नई सरकार ने धारा 370 हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि, बाद में उन्होंने कहा कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि धारा 370 के मुद्दे को फिर से उठाने से जम्मू एवं कश्मीर के संघ के साथ विलय का मुद्दा भी फिर से उठेगा। अब्दुल्ला ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नजमा हेपतुल्ला के बयान पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण भारतीय मुसलमानों की समस्या का समाधान नहीं है।

आखिर क्या है अनुच्छेद 370.
1. संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रबंध के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाले राज्य का दर्जा देता है.
2. 370 का खाका 1947 में शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था.
3. शेख अब्दुल्ला ने 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए. उन्होंने राज्य के लिए मजबूत स्वायत्ता की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था.
4. 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है. लेकिन अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य का अनुमोदन चाहिए.
5. इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है.
6. भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं. यहां के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है. एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती है.
7. यहां दूसरे राज्य के नागरिक सरकारी नौकरी नहीं कर सकते.
8. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
9. अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह भी है.
10. 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।

Tuesday, 10 June 2014

आजाद के अनुभवों से मिलेगा लाभ





कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के संसदीय अनुभवों को देखते हुए कांग्रेस पार्टी की ओर से उन्हें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। गुलाम नबी आजाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक तेज-तर्रार नेता हैं। वह एक कुशल राजनेता हैं। कांग्रेस को उनके अनुभवों से लाभ मिलेगा।
गुलाम नबी आजाद का जन्म 7 मार्च, 1949 को जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम रहमतुल्लाह था। गुलाब नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर विश्वविद्यालय से प्राणि विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढाई संपन्न की। गुलाम नबी आजाद ने वर्ष 1980 में कश्मीर की एक लोकप्रिय और प्रतिष्ठित गायिका शमीन देव आजाद के साथ विवाह संपन्न किया। इनके परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। वर्ष 1973 में कांग्रेस के सदस्य के तौर गुलाम नबी आजाद ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। वर्ष 1973-1975 के बीच वह ब्लेस्सा  कांग्रेस समिति के ब्लॉक सचिव रहे।
 यहीं से उनके राजनैतिक जीवन को सही दिशा मिलनी प्रारंभ हो गई। वर्ष 1975 में गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और फिर 1977 में डोडा जिले के कांग्रेस अध्यक्ष बने। इसके बाद जल्द ही वह अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के महासचिव बनाए गए। वर्ष 1982 में गुलाम नबी आजाद ने पहले केन्द्रीय उपमंत्री के तौर पर कानून, न्याय और कंपनी मामलों का मंत्रालय संभाला फिर कुछ ही समय बाद राज्य मंत्री बने। वर्ष 1985 में गुलाम नबी आजाद वशिम निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा लोकसभा चुनाव जीतने के बाद गृह राज्य मंत्री बनाए गए। लेकिन उन्हें जल्द ही खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय सौंप दिया गया। इन सब के अलावा वर्ष 1978 से 1981 तक गुलाम नबी आजाद अखिल भारतीय मुस्लिम युवा कांग्रेस के भी अध्यक्ष रहे। 1986 में कांग्रेस कार्य समिति के भी सदस्य बनाए गए। इसके बाद वर्ष 1987 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव बने। गुलाम नबी आजाद नौ बार इस पद पर काबिज रहे। वर्ष 1990 में राज्यसभा में चयनित होने के बाद वह पी.वी. नरसिंह राव सरकार में संसदीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री और बाद में पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री बनाए गए। गुलाम नबी आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद पर रहते हुए कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत हासिल हुई जिसके बाद वह प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी। मनमोहन सरकार में गुलाम नबी आजाद संसदीय मामलों के मंत्री रहे, लेकिन 2007 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद के कारण उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री का पद प्रदान किया गया था। स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए उन्होंने कई प्रकार के सुझाव दिए। जैसे लड़कियों का विवाह अगर 25-30 वर्ष के बीच किया जाए तो इससे जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है आदि बहुत प्रशंसनीय रहे।
उल्लेखनीय है कि इसके साथ ही यूपीए-2 में एक अन्य मंत्री रहे आनंद शर्मा को पार्टी ने उपनेता बनाया है। कांग्रेस के पास राज्य सभा (उच्च सदन) में विपक्ष के नेता का दावा करने के लिए अपेक्षित संख्या बल है। उच्च सदन में 245 सदस्य हैं और कांग्रेस की सदस्य संख्या 67 है। इस प्रकार सदन की कुल संख्या का 10 फीसदी अपेक्षित आंकड़ा कांग्रेस के पास है जो विपक्ष का नेता पद पाने के लिए जरूरी है। लोकसभा में कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का नेता बनाया है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को निचले सदन में कांग्रेस का उपनेता बनाया गया है। कांग्रेस की ओर से लोकसभा के लिए चीफ व्हिप और व्हिप के पदों का ऐलान कर दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा में कांग्रेस का चीफ व्हिप बनाया गया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्दर सिंह हुड्डा के सांसद बेटे दीपेंदर सिंह हुड्डा और केरल से सांसद केसी वेणुगोपाल को व्हिप नियुक्त किया गया है।