मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 23 जून यानी आज अपना 81वां जन्मदिन मनाया। इस अवसर पर हम उन्हें ढेरों षुभकामना और उनके षतायु होने की कामना करते हैं। जिस प्रकार से उन्होंने सुबह अपने निजी आवास हाली लॉज में मिलने आने वालों से शुभकामनाएं ली और फिर उसके बाद दोपहर प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में आयोजित होने वाले रक्तदान शिविर का शुभारंभ किया, वह उनकी जीवटता को दर्षाता है। हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह की एक अलग पहचान है। 23 जून 1934 को शिमला जिले के सराहन में पैदा हुए वीरभद्र सिंह ने राजनीतिक जीवन में लंबा सफर तय किया है। वह 1962 में पहली बार लोकसभा के सांसद चुने गए थे। प्रदेश में सबसे अधिक छह बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड भी वीरभद्र सिंह के नाम है।
वीरभद्र सिंह १९८३ से १९९० तक, १९९३ से १९९८ तक और २००३ से २००७ तक हिमाचल प्रदेश राज्य के भी छ बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं। वे आठ बार विधायक, छ बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पांचवीं बार लोकसभा में बतौर सांसद रह चुके हैं और पिछले आधे दशक में वे कोई चुनाव नहीं हारे। वीरभद्र सिंह १९६२. १९६७, १९७२, १९८० और २००९ में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके अलावा वे १९८३, १९८५, १९९०, १९९३, १९९८, २००३, २००७ तथा २०१२ में विधायक रहे। १९८३,१९८५, १९९३, १९९८, २००३ और २०१२ में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। अपने ४७ वर्षों के राजनैतिक सफर के दौरान उन्होंने १३ चुनाव लड़े और सभी जीते । वह हिमाचल कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वरिष्ठता के क्रम और हिमाचल प्रदेश के अकेले सांसद होने के कारण २२ मई २००९ को मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनने वाली केंद्र सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया । वो इस्पाल मंत्रालय बनाए गये थे। इससे पहले भी वीरभद्र सिंह १९७६ से १९७७ तक केंद्र में नागरिक उड्डयन तथा पर्यटन राज्यमंत्री और १९८२ से १९८३ तक केंद्र में उद्योग राज्यमंत्री रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्रसिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला में हुआ था। स्कूली शिक्षा शिमला से प्राप्त कर उन्होंने दिल्ली से स्नातक की डिग्री हासिल की। वीरभद्रसिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1962 में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने के साथ हुई। 1962 से 2007 तक वे हिमाचल प्रदेश की राज्यसभा में सात बार सदस्य रहे। 1967 में लोकसभा में वे दूसरी बार निर्वाचित हुए। 1971 में तीसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी रहे। 1976-77 के दौरान वह पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सहायक मंत्री रहे। 1980 के लोकसभा चुनावों में उन्हें चैथी बार चुना गया। 1982-83 में वे राज्य उद्योग मंत्री रहे। 1983, 1990, 1993, 1998 और 2003 तक वे पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 2009 में वे पांचवी बार लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गए। 31 मई 2009 को उन्हें केंद्रीय स्टील मंत्री बनाया गया। 19 जनवरी 2011 को उन्होंने सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला। राजनीति के अलावा वीरभद्र सिंह इंडो-सोवियत मैत्री समिति के सदस्य भी हैं।
हिमाचल के 21 लाख बिजली उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है। सूबे में बिजली और सस्ती हो गई है। स्लैब बढ़ा कर नियामक आयोग ने बिजली उपभोक्ताओं को राहत दी है। अगले पांच साल तक बिजली की दरें नहीं बढ़ेंगी। राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली दरें बढ़ाने के विद्युत बोर्ड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। व्यावसायिक उपभोक्ताओं और उद्योगों के लिए भी बिजली 20-30 पैसे प्रति यूनिट सस्ती कर दी गई है। बताया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसके लिए काफी मेहनत की। षिमला की बात दिल्ली जाकर भी बताई।
अब कहा जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश में बिजली की सस्ती दरों से उद्योगों को पंख लगेंगे। इससे युवाओं को घरद्वार के पास ही रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। बिजली की संशोधित दरों में उद्योगों को दी जा रही राहत और सरकार द्वारा की घोषणा से यह उम्मीद राज्य में साल दर साल बढ़ रही बेरोजगार युवाओं की फौज को कम कर सकती है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कह दिया है कि राज्य अपनी बिजली बाहर नहीं बेचेगा। बिजली की ज्यादा खपत करने वाले उद्योगों को हिमाचल आने का न्याोता दिया जाएगा। दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरें न बढ़ाने की सिफारिश की है। आयोग ने टैरिफ युक्तीकरण एवं पुन रूपांकन प्रक्रिया के कारण ऐसा किया है। लघु उद्योगों पर भी बीस लाख उपभोक्ताओं के साथ राहत दी गई है। ऐसे में जब सरकार ने 330 करोड़ रुपये की सबसिडी जारी रखी है।
बीते दिनों मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की ओर से साफतौर पर कहा गया था कि प्रदेश के लोगों को जल विद्युत परियोजनाओं का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल प्रदेश बल्कि देश भी लाभान्वित होता है। ऊर्जा विकास के लिए आवश्यक है। भाखड़ा एवं पौंग बांध के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए जबकि 1500 मैगावाट क्षमता की नाथपा झाखड़ी परियोजना के निर्माण के कारण बहुत कम लोग प्रभावित हुए। राज्य सरकार केवल ‘रन ऑफ रिवर’ परियोजनाओं को स्वीकृत करेगी, क्योंकि इनसे काफी कम जनसंख्या प्रभावित होती है। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया था कि इन परियोजनाओं से उन्हें समुचित मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि पांच मैगावाट तक की जल विद्युत परियोजनाएं केवल हिमाचलवासियों को आवंटित की जाएंगी जबकि 25 मैगावाट तक की परियोजनाओं के आवंटन में हिमाचलवासियों को वरियता दी जाएगी ताकि प्रदेश के लोग इस क्षेत्र में आगे आ सकें।
हिमाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि हिमाचल प्रदेश विकास के मामले में देश भर में अग्रणी बन कर उभरा है, जिसका श्रेय राज्य में अधिकांश समय तक रही कांग्रेस सरकारों को जाता है। प्रदेश के विकास में भाजपा को कोई योगदान नहीं रहा है, यहां तक कि प्रदेश के गठन के समय भी भाजपा के लोगों ने इसका विरोध किया था। एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि प्रदेश सरकार राज्य के समान एवं संतुलित विकास के प्रति वचनबद्ध है और जनजातीय क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके। राज्य सरकार ने वर्ष 2013-14 में जनजातीय उपयोजना के अन्तर्गत 369 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो गत वर्ष की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक है। गैर योजना सहित कुल 764 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं ताकि इन क्षेत्रों का तीव्र विकास सुनिश्चित बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि लाहौल मण्डल में इस वित्त वर्ष में सड़कों, पुलों और भवनों के निर्माण पर 3.60 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, नाबार्ड के तहत सड़कों को पक्का करने और तारकोल बिछाने पर 25 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे।
वीरभद्र सिंह १९८३ से १९९० तक, १९९३ से १९९८ तक और २००३ से २००७ तक हिमाचल प्रदेश राज्य के भी छ बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं। वे आठ बार विधायक, छ बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पांचवीं बार लोकसभा में बतौर सांसद रह चुके हैं और पिछले आधे दशक में वे कोई चुनाव नहीं हारे। वीरभद्र सिंह १९६२. १९६७, १९७२, १९८० और २००९ में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके अलावा वे १९८३, १९८५, १९९०, १९९३, १९९८, २००३, २००७ तथा २०१२ में विधायक रहे। १९८३,१९८५, १९९३, १९९८, २००३ और २०१२ में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। अपने ४७ वर्षों के राजनैतिक सफर के दौरान उन्होंने १३ चुनाव लड़े और सभी जीते । वह हिमाचल कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वरिष्ठता के क्रम और हिमाचल प्रदेश के अकेले सांसद होने के कारण २२ मई २००९ को मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनने वाली केंद्र सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया । वो इस्पाल मंत्रालय बनाए गये थे। इससे पहले भी वीरभद्र सिंह १९७६ से १९७७ तक केंद्र में नागरिक उड्डयन तथा पर्यटन राज्यमंत्री और १९८२ से १९८३ तक केंद्र में उद्योग राज्यमंत्री रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्रसिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला में हुआ था। स्कूली शिक्षा शिमला से प्राप्त कर उन्होंने दिल्ली से स्नातक की डिग्री हासिल की। वीरभद्रसिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1962 में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने के साथ हुई। 1962 से 2007 तक वे हिमाचल प्रदेश की राज्यसभा में सात बार सदस्य रहे। 1967 में लोकसभा में वे दूसरी बार निर्वाचित हुए। 1971 में तीसरी बार लोकसभा चुनाव में विजयी रहे। 1976-77 के दौरान वह पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सहायक मंत्री रहे। 1980 के लोकसभा चुनावों में उन्हें चैथी बार चुना गया। 1982-83 में वे राज्य उद्योग मंत्री रहे। 1983, 1990, 1993, 1998 और 2003 तक वे पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 2009 में वे पांचवी बार लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गए। 31 मई 2009 को उन्हें केंद्रीय स्टील मंत्री बनाया गया। 19 जनवरी 2011 को उन्होंने सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला। राजनीति के अलावा वीरभद्र सिंह इंडो-सोवियत मैत्री समिति के सदस्य भी हैं।
हिमाचल के 21 लाख बिजली उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है। सूबे में बिजली और सस्ती हो गई है। स्लैब बढ़ा कर नियामक आयोग ने बिजली उपभोक्ताओं को राहत दी है। अगले पांच साल तक बिजली की दरें नहीं बढ़ेंगी। राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली दरें बढ़ाने के विद्युत बोर्ड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। व्यावसायिक उपभोक्ताओं और उद्योगों के लिए भी बिजली 20-30 पैसे प्रति यूनिट सस्ती कर दी गई है। बताया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसके लिए काफी मेहनत की। षिमला की बात दिल्ली जाकर भी बताई।
अब कहा जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश में बिजली की सस्ती दरों से उद्योगों को पंख लगेंगे। इससे युवाओं को घरद्वार के पास ही रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। बिजली की संशोधित दरों में उद्योगों को दी जा रही राहत और सरकार द्वारा की घोषणा से यह उम्मीद राज्य में साल दर साल बढ़ रही बेरोजगार युवाओं की फौज को कम कर सकती है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कह दिया है कि राज्य अपनी बिजली बाहर नहीं बेचेगा। बिजली की ज्यादा खपत करने वाले उद्योगों को हिमाचल आने का न्याोता दिया जाएगा। दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरें न बढ़ाने की सिफारिश की है। आयोग ने टैरिफ युक्तीकरण एवं पुन रूपांकन प्रक्रिया के कारण ऐसा किया है। लघु उद्योगों पर भी बीस लाख उपभोक्ताओं के साथ राहत दी गई है। ऐसे में जब सरकार ने 330 करोड़ रुपये की सबसिडी जारी रखी है।
बीते दिनों मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की ओर से साफतौर पर कहा गया था कि प्रदेश के लोगों को जल विद्युत परियोजनाओं का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल प्रदेश बल्कि देश भी लाभान्वित होता है। ऊर्जा विकास के लिए आवश्यक है। भाखड़ा एवं पौंग बांध के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए जबकि 1500 मैगावाट क्षमता की नाथपा झाखड़ी परियोजना के निर्माण के कारण बहुत कम लोग प्रभावित हुए। राज्य सरकार केवल ‘रन ऑफ रिवर’ परियोजनाओं को स्वीकृत करेगी, क्योंकि इनसे काफी कम जनसंख्या प्रभावित होती है। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया था कि इन परियोजनाओं से उन्हें समुचित मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि पांच मैगावाट तक की जल विद्युत परियोजनाएं केवल हिमाचलवासियों को आवंटित की जाएंगी जबकि 25 मैगावाट तक की परियोजनाओं के आवंटन में हिमाचलवासियों को वरियता दी जाएगी ताकि प्रदेश के लोग इस क्षेत्र में आगे आ सकें।
हिमाचल प्रदेष के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि हिमाचल प्रदेश विकास के मामले में देश भर में अग्रणी बन कर उभरा है, जिसका श्रेय राज्य में अधिकांश समय तक रही कांग्रेस सरकारों को जाता है। प्रदेश के विकास में भाजपा को कोई योगदान नहीं रहा है, यहां तक कि प्रदेश के गठन के समय भी भाजपा के लोगों ने इसका विरोध किया था। एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का कहना है कि प्रदेश सरकार राज्य के समान एवं संतुलित विकास के प्रति वचनबद्ध है और जनजातीय क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके। राज्य सरकार ने वर्ष 2013-14 में जनजातीय उपयोजना के अन्तर्गत 369 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो गत वर्ष की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक है। गैर योजना सहित कुल 764 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं ताकि इन क्षेत्रों का तीव्र विकास सुनिश्चित बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि लाहौल मण्डल में इस वित्त वर्ष में सड़कों, पुलों और भवनों के निर्माण पर 3.60 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, नाबार्ड के तहत सड़कों को पक्का करने और तारकोल बिछाने पर 25 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे।
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