Wednesday, 18 June 2014

धारा 370 पर हाय-तौबा क्यों ?


प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जीतेंद्र सिंह के अनुच्देछ 370 पर सवाल उठाए जाने के बाद यह पूरा मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले में नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी के आक्रामक  तेवर को देखने के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सीधे मोर्चा संभाल लिया है। संघ की ओर से जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर यह कहते हुए पलटवार किया कि राज्य से संविधान की धारा 370 हटे या न हटे, लेकिन यह राज्य भारत का अभिन्न अंग रहेगा। आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, जम्मू एवं कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा? क्या उमर इसे अपनी पैतृक संपत्ति समझ रहे हैं? धारा 370 रहे या न रहे जम्मू-कश्मीर रहेगा और हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहेगा।
इससे पहले भी लगातार हमारे संविधान का यह अनुच्छेद राजनीतिक प्रोपेगैंडा का हथियार बनता रहा है। हम भारत के लोग इसी प्रोपेगैंडा के आधार पर ही अपनी राय कश्मीर और अनुच्छेद 370 को लेकर बनाते रहे हैं। लिहाजा हम भारत के लोग भी जाने-अनजाने में इन्हीं स्वार्थो में से किसी एक को समस्या व समाधान मानते हैं। अब डॉ जितेंद्र सिंह के बयान और उन पर आ रहीं प्रतिक्रियाओं पर नजर डालिए, तो क्या किसी ऐसे नतीजे पर पहुंचा जा सकता है जो पूरे मामले को सही परिप्रेक्ष्य में देख पाने मददगार हो सके। कोई कह रहा है कि यह जम्मू-कश्मीर और भारत को जोड़ने वाला सेतु है और यदि यह अनुच्छेद नहीं रहेगा तो यह सेतु खत्म हो जायेगा। कोई कह रहा है कि अलगाववाद के मूल में यह अनुच्छेद ही है और इसे हटा दिया जाये तो समस्या के समाधान में मदद मिलेगी। कोई इसे जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की शर्त बता रहा है, तो कोई इसे पंडित नेहरू द्वारा शेख अब्दुल्ला को खुश करने के लिए दिये गये अधिकार के रूप में परिभाषित कर रहा है। सच तो यह भी है कि इस राज्य का नाम लेने से दो ही तस्वीरें हमारे दिमाग में बनती हैं। पहली, एके 47 यानी आतंकवाद की और दूसरी खूबसूरती की। हां, अमरनाथ यात्र और वैष्णोदेवी की भी याद आ जाती है। इसके अलावा, वहां के बारे में हम कितना जानते हैं? आम लोगों के बीच अनुच्छेद 370, जम्मू-कश्मीर के इतिहास, उसके भारत में विलय, उसकी सूफी परंपरा आदि को लेकर जानकारी का स्तर शून्य है। वे शायद यह भी नहीं जानते कि कबायली हमले के समय कश्मीरियों की भूमिका क्या रही और कश्मीर घाटी का मुंह प्राकृतिक रूप से मुजफ्फराबाद की ओर ही खुलता है या आजादी से पहले कश्मीर को सड़क मार्ग से देश को जोड़ने वाली सड़क श्रीनगर से मुजफ्फराबाद व रावलपिंडी होते हुए लाहौर पहुंचती थी।
दिलचस्प बात तो यह है कि मुस्लिम बहुल कष्मीर घाटी में राजग की जीत पर लोगों ने खूब खुषियां मनाई। कारण जगजाहिर है कि कांगे्रस कष्मीर मसले को राजनीतिक रूप से सुलझाने में पूरी तरह नाकाम रही। इसके साथ ही लोगों को यह भरोसा होने लगा कि केंद्र में मोदी की सरकार होगी, तो सबका भला होगा। जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी ने अपने षपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज षरीफ को बुलाया। अगले दिन नवाज षरीफ और नरेंद्र मोदी की द्विपक्षीय वार्ता हुई, उससे कष्मीरी आवाम और नेताओं के भरोसे को और भी बल मिला। घाटी के अलगाववादी वरिष्ठ नेता मीरवाइज उमर फारूक कहते हैं, ‘ यह एक अच्छी षुरूआत है। जिस प्रकार से दोनों देषों के प्रधानमंत्री ने मुलाकात की है, उससे परस्पर विष्वास को बल मिलेगा। भारत और पाकिस्तान के बीच कष्मीर मसले के समाधान में यह कारगर पहल साबित होगा।‘ दरअसल, मीरवाइज ऐसे पहले कष्मीरी अलगाववादी नेता हैं, जिन्होंने भाजपा द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए जाने का स्वागत किया था। वे कहते हैं, ‘ जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार बनी थी, उस समय भी कष्मीर मसले को लेकर सकारात्मक पहल की गई थी। मुझे उम्मीद है कि मोदी भी वाजपेयी के पदचिन्हों का अनुसरण करेंगे। कष्मीर के आवाम को उनसे काफी उम्मीदें हैं।‘
हालांकि, मीरवाइज के इस प्रकार के बयानों और कदमों की काफी आलोचना की गई थी। कष्मीर के कई हिस्सों में इसको लेकर खूब चर्चाएं भी हुईं। इसके बावजूद मीरवाइज अपनी सोच को लेकर दृढ़ रहे। आखिरकार, कष्मीर की आवाम ने भी उनसे इत्तेफाक रखते हुए मोदी पर भरोसा जताया। न्यूज बेंच से बात करहे हुए मीरवाइज कहते हैं, ‘ मोदी ने खुद को गुजरात में एक अच्छे प्रषासक के रूप में साबित कर दिया है। मुझे पूरा भरोसा है कि प्रधानमंत्री के रूप में भी वे लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे और कष्मीर समस्या का समाधान कराने में सफल होंगे।‘
आखिर, भाजपा के नेता पर भरोसा क्यों ? जिस पार्टी के घोषणापत्र में संविधान द्वारा दिए गए विषेषाधिकार धारा 370 को खत्म करने की बात हो, उससे भला कष्मीर की अस्मिता और समस्याओं के समाधान की उम्मीद करना कहां तक उचित है ? मीरवाइज कहते हैं, ‘समस्या का समाधान षांति से होगा। बात केवल कष्मीर की ही नहीं, पूरे दक्षिण एषिया की है। मोदी ने षांतिपूर्ण परिस्थिति में देष के विकास और प्रगति की बात की है। भारत आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहा है। हमारे देष का रक्षा बजट 37 अरब तक पहुंच चुका है। मुझे भरोसा है कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए परस्पर विष्वास और स्थिरता सबसे अहम है।‘
ऐसा नहीं है कि मोदी के आने से अलगावादियों के बीच खुषी है। मुख्य धारा की राजनीति करने वाले नेताओं में भी उम्मीद जगी है। जम्मू-कष्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला और विधानसभा मंे प्रतिपक्ष की नेता महबूबा मुफ्ती ने भी नवाज षरीफ को हिंदुस्तान बुलाने के निर्णय का स्वागत किया। उमर अब्दुला, जो किसी भी मौके पर मोदी के विरोध करने का मौका नहीं छोड़ते, कहते हैं, ‘ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज षरीफ की मुलाकात जम्मू-कष्मीर के लिए षुभ संकेत है। हमें दोनों देषों के खराब रिष्तों की कीमत चुकानी पड़ती है। जब-जब दोनों देषों के रिष्ते बहेतर हुए हैं, जम्मू-कष्मीर को लाभ होता है।‘
बहरहाल, अलगावादी नेता केंद्र सरकार से बात करने की उम्मीद पाले हुए हैं। वरिष्ठ हुर्रियत नेता बिलाल गनी लोन कहते हैं, ‘ हमें पूरी उम्मीद है कि केंद्र की नई सरकार से हमंे बातचीत करने का अवसर मिलेगा और हम सकारात्मक बात करेंगे।‘ उल्लेखनीय है कि साल 2004 में जब तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से कष्मीरी नेताओं के एक दल ने मुलाकात की थी, उस दल में बिलाल गनी लोन भी षामिल थे।  जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर संविधान की धारा 370 हटाई गई तो जम्मू एवं कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि यह धारा राज्य को विशेष दर्जा देती है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को यह घोषणा करते हुए हड़कंप मचा दिया कि नई सरकार ने धारा 370 हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि, बाद में उन्होंने कहा कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि धारा 370 के मुद्दे को फिर से उठाने से जम्मू एवं कश्मीर के संघ के साथ विलय का मुद्दा भी फिर से उठेगा। अब्दुल्ला ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नजमा हेपतुल्ला के बयान पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण भारतीय मुसलमानों की समस्या का समाधान नहीं है।

आखिर क्या है अनुच्छेद 370.
1. संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रबंध के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाले राज्य का दर्जा देता है.
2. 370 का खाका 1947 में शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था.
3. शेख अब्दुल्ला ने 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए. उन्होंने राज्य के लिए मजबूत स्वायत्ता की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था.
4. 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है. लेकिन अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य का अनुमोदन चाहिए.
5. इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है.
6. भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं. यहां के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है. एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती है.
7. यहां दूसरे राज्य के नागरिक सरकारी नौकरी नहीं कर सकते.
8. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
9. अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह भी है.
10. 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।

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