Monday, 12 October 2015

शक्तियों को जगाने का आह्वान है नवरात्र



नवरात्र आह्वान है शक्ति की शक्तियों को जगाने का ताकि हममें देवी शक्ति की कृपा होकर हम सभी संकटों, रोगों, दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। शारीरिक तेज में वृद्धि हो। मन निर्मल हो व आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का लाभ मिल सके। नवरात्र" शब्द में "नव" संख्यावाचक होने से नवरात्र के दिनों की संख्या नौ तक ही सीमित होनी चाहिए लेकिन ऎसा नहीं हैं। प्रत्येक नर-नारी जो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हैं वे किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं देवी की उपासना करते ही हैं। फिर चाहे व्रत रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान करें या अपनी-अपनी श्रद्धा-‍भक्ति अनुसार कर्म करते रहें। वैसे माँ के दरबार में दोनों ही चैत्र व अश्विन मास में पड़ने वाले शारदीय नवरात्र की धूमधाम रहती है। सबसे अधिक अश्विन मास में जगह-जगह गरबों की, जगह-जगह देवी प्रतिमा स्थापित करने की प्रथा है।  कुछ देवताओं के 7 दिनों के तो कुछ देवताओं के 9 या 13 दिनों के नवरात्र हो सकते हैं। सामान्यत: कुलदेवता और इष्टदेवता का नवरात्र संपन्न करने का कुलाचार है। किसी देवता का अवतार तब होता है जब उसके लिए कोई निमित होता है। यदि कोई दैत्य अन्य आपति आती है तो संकट में फंस जाते हैं। अथवा इसी प्रकार की कोई अन्य आपति आती हैं,तो संकट की कालवधि 7 दिनों से लेकर 13 दिनों तक रहती है। ऎसी कालावधि में उस देवता की मूर्ति या प्रतिमा का टांक चांदी के पत्र या नागवेली के पते पर रखकर नवरात्र बैठाए जाते हैं।
उस समय स्थापित देवता की षोडशोपचार पूजा की जाती है। अखंड दीप प्रज्वलन,माला बंधन,देवता के माहात्म्य का पठन,उपवास तथा जागरण आदि विविध कार्यक्रम करके अपनी शक्ति एवं कुलदैवत के अनुसार नवरात्र कहोत्सव संपन्न किया जाता है। यदि पडता है। इस कालावधि में उत्कृष्ट आचार के एक अंग के स्वरूप श्मश्रु (हजामत) न करना और कडें ब्रहा्रचर्य का पालन करना भी समाविष्ट है। इसके अलावा पलंगा या गद्ये पर न सोना, सीमा का उल्लंघन न करना और पादत्राण न पहनना आदि बातों का भी पालन किया जाता है। आज के युग में सभी बातों का पालन करना व्यावहारिक दृष्टि से असुविधाजनक एवं कष्टकारक होता है। इसलिए हमें अधिक असुविधाएं न देने वाली बातों का पालन करना चाहिए। इसके लिए ब्रहा्रचर्य का पालन,पलंग-गद्दे पर न सोना, पहले दिन और आखिरी दिन उपवास करना तथा कलह न करना आदि बातों का पालन अत्यावश्यक है। इससे नवरात्र के फल तो प्राप्त होते ही हैं, साथ ही साथ शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य के लिए भी ये बहुत उपकारक सिद्ध होते हैं। कई बार अशौच के दौरान दवरात्र आता है।
 इसके कारण नवरात्र महोत्सव 9 के बजाय 8 दिनों से लेकर 1 दिन तक का भी हो सकता है। कई बार अशौच समाçप्त एवं नवरात्र समाçप्त एक ही दिन होती है। ऎसे समय नवरात्र स्थापन न करके दूसरे दिन पूजा,अभिषेक एवं समाराधना करें। कुछ लोग घर के ब्रहा्रचारी पुत्र से या उपाध्याय के हाथों नवरात्र स्थापना करवाते हैं। ऎसे समय दूध-शक्कर का भोग जगाएं लेकिन घर में पकाए हुए अनाज का भोग न लगाएं। दूसरे घर का नैवेद्य अग्राहा रहता है। कई बार नवरात्र शुरू रहते अशौच आता है। ऎसे समय ब्रहा्रचारी लडके या गुरूजी द्वारा पूजा एवं माला-बंधन आदि करवा लेें। नवरात्र स्थापना भी उनके द्वारा करवाएं। पके अन्न का नैवेद्य न दिखाएं। अशौच समाçप्त के बाद समाराधना करने में शास्त्र को एतराज नहीं रहता। कुछ लोग अल्प ज्ञान के कारण खंडित कुलाचार अगले कुलाचार के समय करते हैं परंतु यह बात शास्त्र सम्मत नहीं है। शारदीय नवरात्र खंडित होने पर ज्येष्ठा गौरी का उत्सव चैत्रागौरी के समय और चैत्रागौरी का दोलोत्सव नवरात्र के समय करना शास्त्र सम्मत नहीं है,अतएव ऎसा न करें।
नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएं अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है।
नवरात्र कुलधर्म खंडित न करके नियमित करते रहने से उस देवता की पूर्ण कृपा परिवार पर बनी रहती है। इससे उस घर पर सहसा आध्यात्मिक,आधिदैविक एवं आधिभौतिक संकट नहीं मंडराते।यदि संकट आ भी जाए तो वह तीव्र न होकर सौम्य बनता है। जिस घर में चूल्हा है,वहां देवता स्थापना होना आवश्यक है। इसी तरह परिवार विभक्त होने पर नवरात्र को विभक्त रूप से संपन्न करना चाहिए। यदि पिता से पुत्र अलग रहता हो तो भी पिता एवं पुत्र के घर अलग-अलग नवरात्र होना आवश्यक है।

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