Monday, 28 September 2015

पंडित नेहरू से काफी प्रभावित रहे भगत सिंह

1928 में भगत सिंह कोई 21 साल के जवान थे. ‘किरती’ नामक पत्र में उन्होंने ‘नए नेताओं के अलग-अलग विचार' नाम से एक लेख लिखा. वे असहयोग आंदोलन की असफलता और हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों की मायूसी के बीच उन आधुनिक विचारों की तलाश कर रहे थे जो नए आंदोलन के लिए नींव का काम करें. वे इस लेख में दो नए उभरते नेताओं ‘बंगाल के पूजनीय श्री सुभाष चंद्र बोस और माननीय पंडित श्री जवाहरलाल नेहरू’ के विचारों की पड़ताल करते हैं.

भगत सिंह के अनुसार सुभाष ‘भारत की प्राचीन संस्कृति के उपासक’ और नेहरू ‘पश्चिम के शिष्य’ माने जाते हैं. पहला ‘कोमल हृदयवाला भावुक’ और दूसरा ‘पक्का युगांतरकारी’ माना जाता है. लेकिन खुद भगत सिंह सुभाष और नेहरू के बारे में क्या राय रखते हैं? भगत सिंह अमृतसर और महाराष्ट्र में कांग्रेस के सम्मेलनों के इनके भाषणों को पढ़कर कहते हैं कि हालाँकि दोनों पूर्ण स्वराज्य के समर्थक हैं लेकिन इनके विचारों में ‘ज़मीन आसमान का अंतर’ है. भगत सिंह सुभाष चन्द्र बोस के उलट नेहरू से अधिक प्रभावित जान पड़ते हैं. वे कहते हैं कि सुभाष परिवर्तनकारी हैं जबकि नेहरू युगांतरकारी. भगत सिंह का मानना था, "एक के विचार में हमारी पुरानी चीज़ें बहुत अच्छी हैं और दूसरे के विचार में उनके विरुद्ध विद्रोह कर दिया जाना चाहिए. एक ‘भावुक’ कहा जाएगा और दूसरा ‘युगांतरकारी और विद्रोही." 21 साल के क्रांतिकारी भगत सिंह की यह टिप्पणी और भी मानीखेज है, "सुभाष बाबू राष्ट्रीय राजनीति की ओर उतने समय तक ही ध्यान देना आवश्यक समझते हैं जितने समय तक दुनिया की राजनीति में हिन्दुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल है. लेकिन पंडित नेहरू राष्ट्रीयता के संकीर्ण दायरों से निकलकर खुले मैदान में आ गए हैं."
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ  है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था।  भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे। भगतसिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला'रखा था। जिसका मतलब होता है 'अच्छे भाग्य वाला'। बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा। वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बंधन में बांधने की तैयारियां होने लगी तो वह लाहौर से भागकर कानपुर आ गए। फिर देश की आजादी के संघर्ष में ऐसे रमें कि पूरा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया। भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया,वह युवकों के लिए हमेशा ही एक बहुत बड़ा आदर्श बना रहेगा।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह,  सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।
उनकी मुख्य कृतियां हैं, 'एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल)।

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