हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राजनीति में वैसी अमिट छाप छोड़ी है, जिसका कोई दूसरा उपमा नहीं दिया जा सकता है। उनके जैसा कोई दूसरा राजनीति नहीं हुआ। उनके बारे में बहुतेरे बात लोगों के जेहन में हैं और रहेंगे। ऐसे ही चंद बातों का जिक्र हम कर रहे हैं, जिसे याद करने से हम गदगद हो उठते हैं।
14 अगस्त की रात 11 बजे से ही आजादी समारोह शुरू हो गया था. समारोह के मुख्य वक्ताओं में से एक हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. नेहरू ने कहा, 'मध्य रात्रि की इस बेला में जब पूरी दुनिया नींद की आगोश में सो रही है, हिंदुस्तान एक नई जिंदगी और आजादी के वातावरण में अपनी आंख खोल रहा है. यह एक ऐसा पल है जो इतिहास में बहुत ही कम दिखता है, जब हम पुराने युग से नए युग में प्रवेश करते हैं और जब एक युग खत्म होता है और जब एक देश की बहुत दिनों से दबाई गई आत्मा अचानक अपनी अभिव्यक्ति पा लेती है.' नेहरू ने यह भाषण इंग्लिश में दिया था लेकिन इसके बावजूद भी बहुत से इंग्लिश न जानने वालों की आंखें नम हो गईं थीं.
तिरंगे को लेकर नेहरू ने दिसंबर 1929 लाहौर अधिवेशन में यादगार भाषण दिया. नेहरू ने अपने संदेश में कहा, 'एक बार फिर आपको याद रखना है कि अब यह झंडा फहरा दिया गया है. जब तक एक भी हिंदुस्तानी मर्द, औरत, बच्चा जिंदा है, यह तिरंगा झुकना नहीं चाहिए.'
बंटवारे की तकलीफ सबसे ज्यादा महिलाओं को ही उठानी पड़ी. हिंदू, मुसलमान, सिख महिलाओं का अपहरण कर बलात्कार के अनगिनत मामले सामने आए. बाद में सरकार की कोशिशों से जब यह महिलाएं वापस घर लौटने की स्थिति में आईं तो बहुत सारी महिलाएं या तो घर जाना ही नहीं चाहती थी या महिलाओं के परिवारों ने 'अपवित्र' कह उनका परित्याग कर दिया था. आजादी के बाद दिल्ली, मुंबई के वेश्यालयों में महिलाओं की संख्या काफी बढ़ गई थी. नेहरू ने एक रेडियो कार्यक्रम के जरिए इन महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा, 'बंटवारे के दौरान जिन महिलाओं को तमाम तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ा, उन्हें ये नहीं सोचना चाहिए कि हमें उनके चरित्र के बारे में कोई संदेह है. हम उन्हें प्यार से वापस लाना चाहते हैं क्योंकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है. हम उन्हें बहुत प्यार से अपने घरों में रखना चाहते हैं. ऐसी महिलाओं की हर संभव मदद की जाएगी.'
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान की ओर से आए हमलावरों के कबीलाई हमले में कश्मीर की शांति भंग हो गई थी. उस वक्त कश्मीर भारत में शामिल नहीं हुआ था. भारत ने समय रहते सेना भेजकर कबीलाई हमले को बढ़ने से रोका था. कश्मीर में शांति स्थापित हो जाने के बाद नेहरू ने अपनी बहन को खत लिखकर कहा, 'मैं यह मानता हूं कि कश्मीर के भाग्य का फैसला कश्मीरी लोग ही करेंगे. जहां तक मेरा ख्याल है मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है कि कश्मीर कमोवेश आजाद हो जाए. लेकिन यह एक क्रूर मजाक होगा कि कश्मीर पाकिस्तान का एक शोषित हिस्सा बनकर रह जाए.'
हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देने के बड़े पक्षधर आरवी धूलेकर ने 10 दिसंबर 1946 को संसद की कार्यवाही के दौरान कहा कि जो लोग हिंदुस्तानी नहीं समझते उन्हें सदन में रहने का कोई हक नहीं है और ऐसे लोग अगर सदन में मौजूद हैं तो वो सदस्य बनने के काबिल नहीं हैं. वो यहां से चले जाएं. इस बात पर सदन में हंगामा शुरू हो गया. हंगामा बढ़ता देख नेहरू ने मंच पर जाकर सदस्यों से कहा, 'ये कोई झांसी की जनसभा नहीं है कि आप उठे और भाइयों बहनों कहते हुए ऊंची आवाज में अपना ज्ञान देना शुरू कर दें.'
राष्ट्र के गठन से लेकर देश के बंटवारे दौरान अल्पसंख्यकों का ख्याल नेहरू के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आई. नेहरू ने इस बारे में एक बार कहा, 'हम जिस तरह से अपने बहुसंख्यक समाज के साथ व्यवहार करते हैं, उसी तरह का व्यवहार अल्पसंख्यक वर्ग के साथ भी करेंगे. मैं तो कहूंगा कि अल्पसंख्यकों के साथ बराबरी का ही नहीं, बल्कि इस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए कि उन्हें इसका एहसास हो कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा.'
1952 में भारत में पहला चुनाव हुआ था. इस चुनाव में नेहरू ने दिल्ली में एक जनसभा के बीच करीब 95 मिनट लंबा भाषण दिया. नेहरू के इस भाषण के उस अंश को लोगों ने काफी पसंद किया, जिसमें नेहरू ने कहा, 'अगर कोई आदमी किसी दूसरे आदमी पर धर्म की वजह से हाथ उठाता है तो मैं सरकार का मुखिया होने के नाते, जिंदगी की आखिरी सांस तक उससे लड़ता रहूंगा.'
नेहरू कुछ मामलों में बेहद ही जिद्दी स्वभाव के थे. आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर 19 अक्टूबर 1952 को पोट्टी श्रीरामलू ने आमरण अनशन शुरू कर दिया था. इस अनशन को लोगों का काफी समर्थन हासिल हुआ. इस बारे में नेहरू को भी यथास्थिति पता थी. नेहरू ने 3 दिसंबर को मद्रास के मुख्यमंत्री राजगोपालाचारी को खत लिखकर कहा,'आंध्र प्रदेश की मांग के लिए अनशन जैसी घटनाएं शुरू हुई हैं और मुझे इस बाबत विचलिच कर देने वाले टेलीग्राम मिल रहे हैं. मैं इससे बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हूं और मैं इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर देना चाहता हूं.' लेकिन इस खत के 12 दिन बाद 15 दिसंबर को अनशन के 58वें दिन श्रीरामलू की मौत हो गई. मौत की खबर सुनते ही आंध्र का पूरा इलाका हिंसा में डूब गया. हिंसा को देखते हुए श्रीरामलू की मौत के दो दिन बाद ही नेहरू ने आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के लिए हामी भर दी.
भारत के निर्माण में आजादी के बाद तमाम नेताओं और नागरिकों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा. नेहरू से एक बार फ्रांसीसी लेखक मेलरौक्स ने आजादी के बाद उनकी सबसे बड़ी समस्या के बारे में जानना चाहा. तब नेहरू ने कहा, 'न्यायपूर्ण साधनों द्वारा एक समतामूलक समाज का निर्माण मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या रही. शायद एक धार्मिक देश में धर्मनिरपेक्ष राज्य का निर्माण भी मेरे लिए समस्या रही है.'
26 नवंबर 1962, वो दिन जब प्रधानमंत्री नेहरू ने रेडियो के जरिए चीनी फौजों के आगे भारत की हार का ऐलान किया. नेहरू ने कहा, 'इन चीनी फौजों ने हमारे ऊपर हमला किया और पूर्वी सीमा प्रांत नेफा से ये लोग हमारे मुल्क में घुस आए और उन्होंने हमारे फौजी जवान दस्तों पर हमला किया. उसके बाद वहां एक काफी बड़ी जंग हुई. चीनियों ने इतनी बड़ी फौज वहां डाली कि उन्होंने हमारी उससे छोटी फौज को हटा दिया और दबा दिया.' चीन से हार का नेहरू को गहरा झटका लगा और चीन से हार के करीब डेढ़ साल बाद 27 मई 1964 को नेहरू ने अंतिम सांस ली और एक युग का अंत हो गया.
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