फखरुद्दीन अली अहमद एक अनुकरणीय व्यक्तित्व वाले इंसान थे । उनके व्यक्तित्व पर एक संपन्न परिवार से संबंधित होने की झलक साफ दिखाई पड़ती थी । वह हमेशा शोषण के प्रति आवाज उठाने के लिए तत्पर रहते थे । इसी उद्देश्य से उन्होंने मजदूर संघों का भी नेतृत्व किया । वह एक बेहद संयमित और अपने अपने लक्ष्यों के प्रति गंभीर व्यक्ति थे । अहमद अली 1974 से 1977 के दरम्यान भारत के राष्ट्रपति रहे। फखरुद्दीन अली अहमद भारत के पांचवें राष्ट्रपति के रूप में जाने जाते हैं। इनका राष्ट्रपति चुना जाना भी भारतवर्ष की धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक व्यवस्था का एक ज्वलंत प्रमाण है। 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा करने वाले राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ही थे। फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई 1905 को पुरानी दिल्ली के हौज काजी इलाके में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘कर्नल जलनूर अली अहमद’ और दादा का नाम ‘खलीलुद्दीन अहमद’ था। फखरुद्दीन अली अहमद के दादा गोलाघाट शहर के निकट कदारीघाट के निवासी थे, जो असम के सिवसागर में स्थित था। इनके दादा का निकाह उस परिवार में हुआ था, जिसने औरंगजेब द्वारा असम विजय के बाद औरंगजेब के प्रतिनिधि के रूप में असम पर शासन किया था। फखरुद्दीन अली अहमद के पिता तब अंग्रेज सेना में इण्डियन मेडिकल सर्विस के तहत कर्नल के पद पर थे।
फखरुद्दीन अली अहमद न केवल एक नामी मुस्लिम घराने में पैदा हुए थे, बल्कि इनके परिवार में बेहद सम्पन्नता और शिक्षा के प्रति अच्छी जागृति भी थी। इनकी आरंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश गोंडा सरकारी हाई स्कूल में सम्पन्न हुई लेकिन 1918 में पिता का स्थानांतरण दिल्ली हो गया। 1921 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1927 में फखरुद्दीन अली अहमद ने स्नातक स्तर की शिक्षा तथा 1928 में विधि की शिक्षा सम्पन्न कर ली। विधि की डिग्री लेने के बाद यह भारत लौट आए और पंजाब हाई कोर्ट में वकील के तौर पर नामांकित हुए।
फखरुद्दीन अली अहमद अपने पिता के मित्र मुहम्मद शफी जो पेशे से एक एडवोकेट थे उनके सहयोग में आकर एक सहयोगी के रूप में विधि व्यवसाय करने लगे। लेकिन कुछ समय बाद पिता की प्रेरणा से फखरुद्दीन अली असम चले गए। इन्होंने अपने गृह राज्य के गोहाटी हाई कोर्ट में विधि व्यवसाय आरंभ किया। कुछ समय बाद इन्हें बड़ी सफलता प्राप्त हुई। यह उच्चतम न्यायालय में बतौर वरिष्ठ एडवोकेट के रूप में कार्य करने लगे। फखरुद्दीन अली के पिता कर्नल जलनूर अली अहमद एक राष्ट्रवादी शख्स थे लेकिन स्वयं फखरुद्दीन अली ने उनसे एक कदम आगे रहते हुए 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता प्राप्त कर ली। 1937 में यह असम लेजिसलेटिव असेम्बली में सुरक्षित मुस्लिम सीट से निर्वाचित हुए। जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें कांग्रेस की कार्य समिति का सदस्य बनाया। 1964 से 1974 तक यह कार्य समिति और केन्द्रीय संसदीय बोर्ड में रहे।
1938 में जब गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में असम में कांग्रेस की संयुक्त सरकार बनी तो फखरुद्दीन अली अहमद को वित्त एवं राजस्व मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ तो फखरुद्दीन अली अहमद ने भी उसमें भाग लिया। इस कारण अंग्रेज सरकार ने इन्हें 13 अप्रैल 1940 को गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया। इन्हें अप्रैल 1945 तक साढ़े तीन वर्ष जेल भुगतनी पड़ी।
फखरुद्दीन अली अहमद इंदिरा गांधी के करीबी सहयोगी थे। 29 जनवरी 1966 को इन्हें संघीय मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शामिल कर लिया। उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में भी 14 नवम्बर 1966 से 12 मार्च 1967 तक कार्य किया। 3 जुलाई 1974 तक खाद्य कृषि मंत्री के रूप में इनकी सेवाएं जारी रहीं।
3 जुलाई 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद ने केन्द्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में अपना त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रपति नियुक्त होने के समय यह लोक सभा के सदस्य भी थे, अत: उन्होंने 21 अगस्त 1974 लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इन्होंने 24 अगस्त 1974 को शपथ ग्रहण की। डा जाकिर हुसैन के पश्चात ये दूसरे ऐसे अल्पसंख्यक नेता थे जो राष्ट्रपति बने। 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा करने वाले राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ही थे। 11 फरवरी 1977 को वे इस संसार से चले गए।
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