मदर्स डे दुनिया भर में मनाया जाता है। भारत में मदर्स डे मई माह के दूसरे रविवार को मनाते हैं। मदर्स डे का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में मदर्स डे को मनाया जाता था। इसके पीछे कई धार्मिक कारण जुड़े थे।
मां, कितना मीठा, कितना अपना, कितना गहरा और कितना खूबसूरत शब्द है। समूची पृथ्वी पर बस यही एक पावन रिश्ता है जिसमें कोई कपट नहीं होता। कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है छलछलाता ममता का सागर। शीतल और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अव्यक्त अनुभूति छुपी है जैसे हरी, ठंडी व कोमल दूब की बगिया में सोए हों। लाज और लावण्य से दीपदिपाते-पुलकित इस भाव को किसी भाषा, किसी शब्द और किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती। 'मां' शब्द की पवित्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू धर्म में देवियों को मां कहकर पुकारते है। बेटी या बहन के संबोधनों से नहीं। मदर मैरी और बीवी फातिमा का ईसाई और मुस्लिम धर्म में विशिष्ट स्थान है। बेटी नहीं तो मां नहीं और मां नहीं तो संसार का अस्तित्व नहीं।
आज याद आ रही है एक कवि की कविता, जो काफी अंदर तक झकझोरती है।
माँ…माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ…माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,
माँ…माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,
माँ…माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ…माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
माँ…माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ…माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
माँ…माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
माँ…माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
माँ…माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ…माँ परामत्मा की स्वयँ एक गवाही है,
माँ…माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ…माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,
माँ…माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ…माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
माँ…माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है,
माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
तो माँ की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नही है…
…और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ.
मां, कितना मीठा, कितना अपना, कितना गहरा और कितना खूबसूरत शब्द है। समूची पृथ्वी पर बस यही एक पावन रिश्ता है जिसमें कोई कपट नहीं होता। कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है छलछलाता ममता का सागर। शीतल और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अव्यक्त अनुभूति छुपी है जैसे हरी, ठंडी व कोमल दूब की बगिया में सोए हों। लाज और लावण्य से दीपदिपाते-पुलकित इस भाव को किसी भाषा, किसी शब्द और किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती। 'मां' शब्द की पवित्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू धर्म में देवियों को मां कहकर पुकारते है। बेटी या बहन के संबोधनों से नहीं। मदर मैरी और बीवी फातिमा का ईसाई और मुस्लिम धर्म में विशिष्ट स्थान है। बेटी नहीं तो मां नहीं और मां नहीं तो संसार का अस्तित्व नहीं।
आज याद आ रही है एक कवि की कविता, जो काफी अंदर तक झकझोरती है।
माँ…माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ…माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,
माँ…माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,
माँ…माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ…माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
माँ…माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ…माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
माँ…माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
माँ…माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
माँ…माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ…माँ परामत्मा की स्वयँ एक गवाही है,
माँ…माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ…माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,
माँ…माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ…माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
माँ…माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है,
माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
तो माँ की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नही है…
…और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ.
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