Monday, 6 April 2015

संवारना होगा किसान को

पश्चिम बंगाल में आत्महत्या कर चुके आलू किसानों की सूची में एक इंजीनियर किसान का नाम भी जुड़ गया है। यह जानकर कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है लेकिन यह सच है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 33 वर्षीय प्रवीण लाहा ने अपनी पुश्तैनी पांच बीघा जमीन में आलू की खेती की थी लेकिन उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण उसने आत्महत्या कर ली। राज्य के प्रतिष्ठित यादवपुर विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर प्रवीण लाहा ने खेती करने का फैसला किया था। संभवत: मनचाही नौकरी नहीं मिलने तथा अन्य किसी क्षेत्र में कैरियर बनाने में विफल होने बाद के उसने खेती में अपना भविष्य संवारने का निर्णय किया हो, लेकिन इससे उसकी योग्यता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगता, हालांकि खेती करने का उसका पहला अनुभव इतना कटु था कि वह झेल नहीं पाया। पांच बीघा जमीन में आलू की खेती करने में बीज लाने से लेकर उसे रोपने तथा खेत में फसल तैयार होने तक की पूरी प्रक्रिया में वह पूरी लगन से जुटा रहा और खेती में उसकी आंतरिक रूचि बढ़ने लगी थी। आत्महत्या के बाद जो तथ्य उभरकर सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि पहली बार ही खेती की आग में उसका हाथ इस कदर जला कि वह झेल नहीं पाया। उसकी पांच बीघा में आलू की खेती रोग की चपेट में आ गई। इस कारण आलू की पैदावार अच्छा नहीं हुई। प्रति बीघा जहां 90 बोरी आलू पैदा होनी चाहिए थी, वहां उसकी पूरी पांच बीघा जमीन में मात्र 220 बोरी ही आलू की उपज हुई। उस युवा किसान को 220 बोरी आलू का उचित मूल्य भी नहीं मिल सका और इस कारण वह जीवन से हताश हो गया। अंतत: उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
राज्य में अब तक लगभग डेढ़ दर्जन आलू किसान आत्महत्या कर चुके हैं लेकिन सरकार उनकी आत्महत्या को फसल का मूल्य नहीं मिलने से जोड़कर देखने को तैयार नहीं है। सरकार के कुछ मंत्रियों का तो यहां तक कहना है कि किसानों के आत्महत्या करने की दूसरी वजह है। सत्तारूढ़ दल के एक नेता ने तो यहां तक कहा है कि किसानों की आत्महत्या के कारणों में शराब के नशे से लेकर अवैध संबंध तक शामिल हैं। सरकार के मंत्री या सत्तारूढ़ दल के नेता जब इस तरह की बातें कहते हैं तो उन्हें यह भी साबित करना चाहिए कि किस किसान ने अवैध संबंध के कारण आत्महत्या की है और किसने शराब के नशे में जान दी है। ब‌र्द्धमान के मेमारी में आज प्रवीण लाहा के इंजीनियर से किसान बनने की दिलेरी की चर्चा करते हुए लोग उसके जान देने पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन सरकार के किसी मंत्री या नेता ने इसकी सुध लेने की भी जरूरत नहीं समझी। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है!
मौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण बर्बाद फसल देख संभल जिले में रविवार को एक किसान ने आत्मदाह कर लिया। मुरादाबाद बहजोई थाना इलाके के गांव परतापुर निवासी 50 वर्षीय हरिओम ने घासीपुर गांव में छह बीघा जमीन ठेके पर लेकर टमाटर की फसल बो रखी थी । 2 अप्रैल को हुई बरसात और ओलावृष्टि से फसल बर्बाद हो गई थी। रविवार सुबह हरिओम अपने भाइयों के साथ खेत पर गया तो टमाटर की बर्बाद फसल देखकर सकते में आ गया। इसके बाद वह अपनी जमीन पर बोई दो बीघा गेहूं की फसल देखने गया तो वह भी बर्बाद हो गई थी। इसके बाद वह घर वापस आया और खुद को कमरे में बंद कर आत्मदाह कर दिया।

Friday, 3 April 2015

अन्नदाता का हित सर्वोपरि


कांग्रेस केवल सत्ता के लिए केवल राजनीति नहीं करती है। कांग्रेस ने हमेशा ही किसानों के लिए काम किया है। काम करती रहेगी। 60 हजार करोड़ किसानों का कर्ज माफ किया। कांग्रेस की जो नीति रही है और है, उस पर हमारी पार्टी की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी अमल कर रही है। जब भी किसी देश की जनता को दर्द हुआ है, कांग्रेस ने आगे आकर उसका दर्द बांटा है। आज भी वही किया जा रहा है।
हर बात में राजनीति हमलोग नहीं करते हैं। हमारे लिए राजनीति सेवा का माध्यम है। श्रीमती सोनिया गांधी संगठन को मजबूत करने के लिए पूरे देश का दौरा कर रही हैं। हमारी सरकार जब केंन्द्र में थी, तो महिला सशक्तीकरण और भूमि अधिग्रहण के लिए काम किया। जो भी अब तक वंचित रहा है, उसे सशक्त करने की हमारी कोशिश होती है। कांग्रेस ने तमाम मानदण्डों के आधार पर कोई भी निर्णय लिया है, लेकिन वर्तमान सरकार तो केवल अध्यादेश का सहारा लेती है। हमारी नेता सोनिया गांधी का साफ कहना है कि ‘अदूरदर्शी’ मोदी सरकार उद्योगपतियों को लाभ देने के लिए झुकी पड़ी है। उन्होंने मांग की कि संकीर्ण राजनीति से ऊपर उठकर 2013 में यूपीए द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण कानून को समग्रता में वापस लाया जाए। किसान हमारे देश की रीढ़ हैं और हर हाल में उनके हितों की रक्षा होनी ही चाहिए और इस पर कांग्रेस कोई समझौता नहीं कर सकती। हम इस देश की रीढ़ तोड़ने वाले किसी कानून का कभी समर्थन नहीं कर सकते। इसलिए मैं आपसे आग्रह करती हूं कि संकीर्ण पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर उठें और 2013 के उस कानून को समग्रता में वापस लाएं जो कि हमारे किसान भाइयों एवं बहनों की भावनाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल था। सरकार द्वारा मनमाने ढंग से किसान विरोधी कानून थोप देने के बाद बहस की बातें करना राष्ट्रीय महत्व की नीतियां लागू करने के पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वानुमति बनाने की परंपरा का उपहास करने के बाराबर है।
देखिए, मंत्री नितीन गडकरी ने अपने पत्र में भूमि अधिग्रहण में प्रस्तावित बदलावों को यह कह कर जायज ठहराने की कोशिश की है कि इससे गांव, गरीबों, किसानों और मजदूरों का फायदा होगा.. आपके तर्क यह जताने के लिए दिए गए हैं कि ये सब बातें यूपीए सरकार के विपरीत जैसे नरेन्द्र मोदी सरकार का नया योगदान है, और आपके कानून का विरोध करने वाले किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी हैं।  किसानों की जाने वाली आजीविका और उन्हें होने वाली पीड़ा को समझने के कांग्रेस और बीजेपी के तरीकों में बुनियादी अंतर है। यह खेदजनक है कि गरीब किसानों और जरूरतमंद श्रमिकों के हित में आवाज उठाने वालों को मोदी सरकार राष्ट्र विरोधी बता रही है और कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए पूरा जोर लगा रही है।
किसान नहीं रहेगा, तो देश नहीं रहेगा। इस सच को क्या हम या आप नहीं जानते हैं। हमारे देश के अन्नदाता को बार-बार दैवीय प्रकोप को सहन करना पड़ता है। हमारे देश का अन्नदाता यानी भारतीय किसान वैसे तो लगभग प्रत्येक वर्ष देश के किसी न किसी हिस्से में आने वाली बाढ़ अथवा सूखे के कारण संकट का सामना करता ही रहता है। खासतौर पर गरीब व मध्यमवर्गीय किसान तो ऐसे हालात से प्रायरू प्रभावित ही रहता है। परंतु इस वर्ष मार्च के महीने में हुई बेतहाशा बारिश व इसी के साथ-साथ आने वाले आंधी-तूफान व ओलावृष्टि ने तो मानो देश के किसानों विशेषकर उत्तर व मध्य भारत के ‘अन्नदाता’ की तो कमर ही तोड़ कर रख दी। किसानों के खेतों में रबी की फसलों के रूप में तैयार हो रही गेहूं,सरसों,अरहर,चना,लाही के अतिरिक्त मटर,टमाटर,आलू जैसी और भी कई सब्जियां व तंबाकू,तिलहन व दलहन की कई किस्में जो तैयारी के कगार पर थीं लगभग नष्ट हो गई हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वेस्टर्न डिस्टर्बेंस ने बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर से अर्थात् देश के पूर्वी और पश्चिमी देानों ही छोर से एक साथ नमी उठाई जोकि इतने बड़े पैमाने पर होने वाली बारिश का कारण बनी। दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों में तो मार्च के महीने में होने वाली इस बारिश ने पिछले सौ वर्षों की बारिश का रिकार्ड तोड़ दिया। बताया जाता है कि इसके पूर्व 1915 में दिल्ली में इतनी वर्षा रिकॉर्ड की गई थी। बारिश के साथ-साथ सक्रिय रही चक्रवाती हवाओं ने भी किसानों की आजीविका पर भारी कहर बरपा किया है।
देश के विभिन्न भागों से किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने, अपनी तबाह फसल को देखकर हृदयगति रुक जाने से उनका देहांत होने जैसे हृदयविदारक समाचार भी सुनाई देने लगे हैं। जाहिर है विभिन्न राज्यों की सरकारें ऐसे संकट के समय में किसानों के साथ उनका दुरूख बांटने हेतु सहायतार्थ आर्थिक पैकेज घोषित करती भी नजर आ रही हैं। किसानों पर टूटे इस प्राकृतिक कहर के प्रभाव से आम नागरिक भी अछूता नहीं रहने वाला। विशेषज्ञों के अनुसार शीघ्र ही दलहन,तिलहन और तत्काल रूप से विभिन्न सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी के रूप में आम देशवासियों को इस मौसम का भुगतान करना पड़ सकता है। इससे उनकी कमर टूट जाती है। उसे अभी मदद की जरूरत है। उसे संवारना देश के हर जिम्मेदार और सक्षम नागरिक का कर्तव्य है। कांग्रेस ने हमेशा ही किसानों की हित की बात की। बैंकों के द्वारा कर्ज, खाद, बीज संबंधी सहूलियत प्रदान करवाई। किसान इस देश की रीढ़ हैं। इस सच को हर देशवासी को समझना होगा। यदि अन्नदाता अनाज पैदा नहीं करेगा, तो लोग खाएंगे क्या ? देश का जवान तैयार होगा कैसे ?








Thursday, 2 April 2015

क्षमा का संदेश देता गुड फ्राइडे


आज गुड फ्राइडे यानी पवित्र शुक्रवार है। आज के ही दिन प्रभु यीशु ने इस संसार के गुनाहों के लिए अपने प्राणों को क्रूस पर अर्पित किया था। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों की कोई सजावट नहीं की जाती है। इसी दिन प्रभु यीशु की मृत्यु के बाद उनके शरीर को कब्र में भी रखा गया था। इसलिए ऐसा समझा जाता है कि इस दिन वे शारीरिक तौर पर गिरजाघरों में उपस्थिति नहीं रहते , परंतु आत्मिक दृष्टिकोण से वे हर पल वहां मौजूद होते हैं। उनकी याद में दिन भर गिरजाघरों में प्रार्थना सभाएं होती हैं। ईसा मसीह के जन्म क्रिसमस का आनंद मनाने के कुछ ही दिन बाद ईसाई तपस्या, प्रायश्चित्त और उपवास का समय मनाते हैं। यह समय जो 'ऐश वेडनस्डे' से शुरू होकर 'गुड फ्राइडे' को खत्म होता है, 'लेंट' कहलाता है। जिस सलीब क्रॉस पर ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था उसके प्रतीक रूप में आस्थावानों की श्रद्धा स्वरूप लकड़ी का एक तख्ता गिरजाघरों में रखा जाता है। ईसा के अनुयायी एक-एक कर आकर उसे चूमते हैं।
तत्पश्चात समारोह में प्रवचन, ध्यान और प्रार्थनाएँ की जाती हैं। इस दौरान श्रद्धालु प्रभु यीशु द्वारा तीन घंटे तक क्रॉस पर भोगी गई पीड़ा को याद करते हैं। रात के समय कहीं-कहीं काले वस्त्र पहनकर श्रद्धालु यीशु की छवि लेकर मातम मनाते हुए एक चल समारोह निकालते हैं और प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार भी किया जाता है। चूँकि गुड फ्राइडे प्रायश्चित्त और प्रार्थना का दिन है अतः इस दिन गिरजाघरों में घंटियां नहीं बजाई जातीं।
ईसाई धर्म का अनुसरण करने वाले इसके पहले चालीस दिनों तक संयम और व्रत का पालन करते हैं। इस अवधि को बोलचाल की भाषा में ' चालीसा ' कहते हैं। यह चालीसा काल साल में एक बार आता है। इस दौरान ईसाई धर्मावलंबी अपने आध्यात्मिक और शारीरिक शुद्धीकरण के लिए प्रयास करते हैं। यह उनके आंतरिक और बाहरी बदलाव का मार्ग प्रशस्त करता है।
त्याग , तपस्या , उपवास , परहेज तथा प्रायश्चित के इन 40 दिनों का आरंभ जिस दिन होता है , उस दिन को ' राख बुध ' कहा जाता है। इस वर्ष 9 मार्च को राख बुध मनाया गया था। इस दिन पादरी ( पुरोहित ) सभी श्रद्धालुओं के माथे पर राख मलते हुए कहते हैं , ' हे मनुष्य , तू मिट्टी है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा। ' यह जीवन की नश्वरता की याद दिलाता है , ताकि मनुष्य अपना समय अच्छे कार्य और व्यवहार में लगाए। कैथलिक चर्च ' राख बुध ' को क्षमा और प्रायश्चित के पर्व के रूप में मनाता है। चालीसा का व्रत गुड फ्राइडे को प्रभु यीशु के सूली पर चढ़ाए जाने के साथ समाप्त हो जाता है।
इन 40 दिनों को ' दुखभोग ' भी कहा जाता है , क्योंकि यीशु ने आम लोगों तक अपने उपदेशों को पहुंचाने से पहले चालीस दिनों तक रेगिस्तान में बिना कुछ खाए - पिए ईश्वर से प्रार्थना की थी। उनके इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ईसाई लोग इस दौरान अपने पापमय जीवन का परित्याग करते हुए , उपवास व परहेज के साथ ईश्वर से प्रार्थना करते हुए , पवित्र जीवन जीने की कामना करते हैं। इन दिनों में वे यीशु के जीवन पर मनन - चिंतन करते हैं और उसका आध्यात्मिक अर्थ समझने की कोशिश करते हैं। पूरे संयम के साथ दिन बिताने के बाद वे अपने गलत कार्यों और भूलों के लिए यीशु से क्षमा मांगते हैं।
बाइबिल में उल्लेख है कि एक विद्वान ने ईसा से पूछा, गुरुवर, अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना होगा? ईसा ने उससे कहा, ईश्वर को अपने हृदय, आत्मा और सारी शक्ति से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। तब उस व्यक्ति ने एक और प्रश्न किया, लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है? ईसा ने कहा, किसी भी समय वह जरूरतमंद और लाचार व्यक्ति जो तुम्हारे सामने है, वही तुम्हारा पड़ोसी है।