पश्चिम बंगाल में आत्महत्या कर चुके आलू किसानों की सूची में एक इंजीनियर किसान का नाम भी जुड़ गया है। यह जानकर कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है लेकिन यह सच है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 33 वर्षीय प्रवीण लाहा ने अपनी पुश्तैनी पांच बीघा जमीन में आलू की खेती की थी लेकिन उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण उसने आत्महत्या कर ली। राज्य के प्रतिष्ठित यादवपुर विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर प्रवीण लाहा ने खेती करने का फैसला किया था। संभवत: मनचाही नौकरी नहीं मिलने तथा अन्य किसी क्षेत्र में कैरियर बनाने में विफल होने बाद के उसने खेती में अपना भविष्य संवारने का निर्णय किया हो, लेकिन इससे उसकी योग्यता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगता, हालांकि खेती करने का उसका पहला अनुभव इतना कटु था कि वह झेल नहीं पाया। पांच बीघा जमीन में आलू की खेती करने में बीज लाने से लेकर उसे रोपने तथा खेत में फसल तैयार होने तक की पूरी प्रक्रिया में वह पूरी लगन से जुटा रहा और खेती में उसकी आंतरिक रूचि बढ़ने लगी थी। आत्महत्या के बाद जो तथ्य उभरकर सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि पहली बार ही खेती की आग में उसका हाथ इस कदर जला कि वह झेल नहीं पाया। उसकी पांच बीघा में आलू की खेती रोग की चपेट में आ गई। इस कारण आलू की पैदावार अच्छा नहीं हुई। प्रति बीघा जहां 90 बोरी आलू पैदा होनी चाहिए थी, वहां उसकी पूरी पांच बीघा जमीन में मात्र 220 बोरी ही आलू की उपज हुई। उस युवा किसान को 220 बोरी आलू का उचित मूल्य भी नहीं मिल सका और इस कारण वह जीवन से हताश हो गया। अंतत: उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
राज्य में अब तक लगभग डेढ़ दर्जन आलू किसान आत्महत्या कर चुके हैं लेकिन सरकार उनकी आत्महत्या को फसल का मूल्य नहीं मिलने से जोड़कर देखने को तैयार नहीं है। सरकार के कुछ मंत्रियों का तो यहां तक कहना है कि किसानों के आत्महत्या करने की दूसरी वजह है। सत्तारूढ़ दल के एक नेता ने तो यहां तक कहा है कि किसानों की आत्महत्या के कारणों में शराब के नशे से लेकर अवैध संबंध तक शामिल हैं। सरकार के मंत्री या सत्तारूढ़ दल के नेता जब इस तरह की बातें कहते हैं तो उन्हें यह भी साबित करना चाहिए कि किस किसान ने अवैध संबंध के कारण आत्महत्या की है और किसने शराब के नशे में जान दी है। बर्द्धमान के मेमारी में आज प्रवीण लाहा के इंजीनियर से किसान बनने की दिलेरी की चर्चा करते हुए लोग उसके जान देने पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन सरकार के किसी मंत्री या नेता ने इसकी सुध लेने की भी जरूरत नहीं समझी। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है!
मौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण बर्बाद फसल देख संभल जिले में रविवार को एक किसान ने आत्मदाह कर लिया। मुरादाबाद बहजोई थाना इलाके के गांव परतापुर निवासी 50 वर्षीय हरिओम ने घासीपुर गांव में छह बीघा जमीन ठेके पर लेकर टमाटर की फसल बो रखी थी । 2 अप्रैल को हुई बरसात और ओलावृष्टि से फसल बर्बाद हो गई थी। रविवार सुबह हरिओम अपने भाइयों के साथ खेत पर गया तो टमाटर की बर्बाद फसल देखकर सकते में आ गया। इसके बाद वह अपनी जमीन पर बोई दो बीघा गेहूं की फसल देखने गया तो वह भी बर्बाद हो गई थी। इसके बाद वह घर वापस आया और खुद को कमरे में बंद कर आत्मदाह कर दिया।
राज्य में अब तक लगभग डेढ़ दर्जन आलू किसान आत्महत्या कर चुके हैं लेकिन सरकार उनकी आत्महत्या को फसल का मूल्य नहीं मिलने से जोड़कर देखने को तैयार नहीं है। सरकार के कुछ मंत्रियों का तो यहां तक कहना है कि किसानों के आत्महत्या करने की दूसरी वजह है। सत्तारूढ़ दल के एक नेता ने तो यहां तक कहा है कि किसानों की आत्महत्या के कारणों में शराब के नशे से लेकर अवैध संबंध तक शामिल हैं। सरकार के मंत्री या सत्तारूढ़ दल के नेता जब इस तरह की बातें कहते हैं तो उन्हें यह भी साबित करना चाहिए कि किस किसान ने अवैध संबंध के कारण आत्महत्या की है और किसने शराब के नशे में जान दी है। बर्द्धमान के मेमारी में आज प्रवीण लाहा के इंजीनियर से किसान बनने की दिलेरी की चर्चा करते हुए लोग उसके जान देने पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन सरकार के किसी मंत्री या नेता ने इसकी सुध लेने की भी जरूरत नहीं समझी। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है!
मौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण बर्बाद फसल देख संभल जिले में रविवार को एक किसान ने आत्मदाह कर लिया। मुरादाबाद बहजोई थाना इलाके के गांव परतापुर निवासी 50 वर्षीय हरिओम ने घासीपुर गांव में छह बीघा जमीन ठेके पर लेकर टमाटर की फसल बो रखी थी । 2 अप्रैल को हुई बरसात और ओलावृष्टि से फसल बर्बाद हो गई थी। रविवार सुबह हरिओम अपने भाइयों के साथ खेत पर गया तो टमाटर की बर्बाद फसल देखकर सकते में आ गया। इसके बाद वह अपनी जमीन पर बोई दो बीघा गेहूं की फसल देखने गया तो वह भी बर्बाद हो गई थी। इसके बाद वह घर वापस आया और खुद को कमरे में बंद कर आत्मदाह कर दिया।