आज गुड फ्राइडे यानी पवित्र शुक्रवार है। आज के ही दिन प्रभु यीशु ने इस संसार के गुनाहों के लिए अपने प्राणों को क्रूस पर अर्पित किया था। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों की कोई सजावट नहीं की जाती है। इसी दिन प्रभु यीशु की मृत्यु के बाद उनके शरीर को कब्र में भी रखा गया था। इसलिए ऐसा समझा जाता है कि इस दिन वे शारीरिक तौर पर गिरजाघरों में उपस्थिति नहीं रहते , परंतु आत्मिक दृष्टिकोण से वे हर पल वहां मौजूद होते हैं। उनकी याद में दिन भर गिरजाघरों में प्रार्थना सभाएं होती हैं। ईसा मसीह के जन्म क्रिसमस का आनंद मनाने के कुछ ही दिन बाद ईसाई तपस्या, प्रायश्चित्त और उपवास का समय मनाते हैं। यह समय जो 'ऐश वेडनस्डे' से शुरू होकर 'गुड फ्राइडे' को खत्म होता है, 'लेंट' कहलाता है। जिस सलीब क्रॉस पर ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था उसके प्रतीक रूप में आस्थावानों की श्रद्धा स्वरूप लकड़ी का एक तख्ता गिरजाघरों में रखा जाता है। ईसा के अनुयायी एक-एक कर आकर उसे चूमते हैं।
तत्पश्चात समारोह में प्रवचन, ध्यान और प्रार्थनाएँ की जाती हैं। इस दौरान श्रद्धालु प्रभु यीशु द्वारा तीन घंटे तक क्रॉस पर भोगी गई पीड़ा को याद करते हैं। रात के समय कहीं-कहीं काले वस्त्र पहनकर श्रद्धालु यीशु की छवि लेकर मातम मनाते हुए एक चल समारोह निकालते हैं और प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार भी किया जाता है। चूँकि गुड फ्राइडे प्रायश्चित्त और प्रार्थना का दिन है अतः इस दिन गिरजाघरों में घंटियां नहीं बजाई जातीं।
ईसाई धर्म का अनुसरण करने वाले इसके पहले चालीस दिनों तक संयम और व्रत का पालन करते हैं। इस अवधि को बोलचाल की भाषा में ' चालीसा ' कहते हैं। यह चालीसा काल साल में एक बार आता है। इस दौरान ईसाई धर्मावलंबी अपने आध्यात्मिक और शारीरिक शुद्धीकरण के लिए प्रयास करते हैं। यह उनके आंतरिक और बाहरी बदलाव का मार्ग प्रशस्त करता है।
त्याग , तपस्या , उपवास , परहेज तथा प्रायश्चित के इन 40 दिनों का आरंभ जिस दिन होता है , उस दिन को ' राख बुध ' कहा जाता है। इस वर्ष 9 मार्च को राख बुध मनाया गया था। इस दिन पादरी ( पुरोहित ) सभी श्रद्धालुओं के माथे पर राख मलते हुए कहते हैं , ' हे मनुष्य , तू मिट्टी है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा। ' यह जीवन की नश्वरता की याद दिलाता है , ताकि मनुष्य अपना समय अच्छे कार्य और व्यवहार में लगाए। कैथलिक चर्च ' राख बुध ' को क्षमा और प्रायश्चित के पर्व के रूप में मनाता है। चालीसा का व्रत गुड फ्राइडे को प्रभु यीशु के सूली पर चढ़ाए जाने के साथ समाप्त हो जाता है।
इन 40 दिनों को ' दुखभोग ' भी कहा जाता है , क्योंकि यीशु ने आम लोगों तक अपने उपदेशों को पहुंचाने से पहले चालीस दिनों तक रेगिस्तान में बिना कुछ खाए - पिए ईश्वर से प्रार्थना की थी। उनके इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ईसाई लोग इस दौरान अपने पापमय जीवन का परित्याग करते हुए , उपवास व परहेज के साथ ईश्वर से प्रार्थना करते हुए , पवित्र जीवन जीने की कामना करते हैं। इन दिनों में वे यीशु के जीवन पर मनन - चिंतन करते हैं और उसका आध्यात्मिक अर्थ समझने की कोशिश करते हैं। पूरे संयम के साथ दिन बिताने के बाद वे अपने गलत कार्यों और भूलों के लिए यीशु से क्षमा मांगते हैं।
बाइबिल में उल्लेख है कि एक विद्वान ने ईसा से पूछा, गुरुवर, अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना होगा? ईसा ने उससे कहा, ईश्वर को अपने हृदय, आत्मा और सारी शक्ति से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। तब उस व्यक्ति ने एक और प्रश्न किया, लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है? ईसा ने कहा, किसी भी समय वह जरूरतमंद और लाचार व्यक्ति जो तुम्हारे सामने है, वही तुम्हारा पड़ोसी है।
No comments:
Post a Comment