इतिहास की पूरी धारा में ओशो की अपनी एक अलग वैचारिक पहचान है. ओशो के रुप में मानवता ने एक बड़ा विचारक और चिंतक पाया है, जिनका प्रभाव और प्रसांगिकता समय के साथ बढ़ और चमक रहा है. एक बार एक महाशय ने ओशो को बोला कि आप तो एक बड़े मिशन में लगे हुए हैं, तो उनका जबाव था – मैं किसी मिशन में नहीं लगा हूं, मैं तो मस्त हूं अपनी मस्ती में, और इसमें अगर कुछ बड़ा हो जाए तो अच्छा. ओशो मानवता की एक नई आवाज हैं, क्रांति की एक नई भाषा हैं. ओशो का शाब्दिक अर्थ है, वह व्यक्ति जिसपर भगवान फूलों की वर्षा कर रहे हैं . ओशो भगवान रजनीश के नाम से भी जाने जाते हैं. अपने भगवान होने की घोषणा उन्होंने स्वयं की थी. ओशो के स्वरूप को निर्धारित करना बहुत कठिन है. कभी उन्हें दार्शनिक समझा जाता है तो कभी एक अनोखा धर्मगुरु. लेकिन ओशो ने खुद को ऐसे किसी घेरे में बांधने से इन्कार कर दिया. विचारों की एक ऊंची श्रृंखला और आध्यात्मिक आंदोलन की आंधी का दूसरा नाम है ओशो.
ओशो ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रुप में की. जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए और अपने व्याख्यानों से चर्चा में आने लगे. ओशो की अदभुत तार्किक क्षमता ने लोगों को आकर्षित किया. उनमें किसी भी मानीवय पक्षों की एक गहरी समझ थी, जिसे बड़े ही सहज शब्दों में वह लोगों को समझाते थे. एक असीम और अलौकिक शक्ति में उनका विश्वास और समर्पण था जिसने इस पूरे जीवन-संसार की रचना की है. ओशो ने एक क्रांतिकारी की तरह बड़े बदलाव की बात की. लेकिन उनका परिवर्तन व्यक्ति से शुरु होता, व्यवस्था से नहीं. उनका मानना था कि हर व्यक्ति में असीम संभावना है जिसे जगाने की जरुरत है.
ओशो का मूल नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले कुचवाडा ग्राम में हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जो कि तेरापंथी जैन थे, ने उन्हें अपने ननिहाल में ७ वर्ष की उम्र तक रखा था। ओशो के स्वयं के अनुसार उनके विकास में इसका प्रमुख योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी ने उन्हें संपूर्ण स्वतंत्रता, उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा। जब वे ७ वर्ष के थे तब उनके नाना का निधन हो गया और वे "गाडरवाडा" अपने माता पिता के साथ रहने चले गए. ओशो रजनीश (११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से या 'ओशो भगवान श्री रजनीश' नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये।
ओशो कहते हैं कि -"धार्मिक व्यक्ति की पुरानी धारणा यह रही है कि वह जीवन विरोधी है। वह इस जीवन की निंदा करता है, इस साधारण जीवन की - वह इसे क्षुद्र, तुच्छ, माया कहता है। वह इसका तिरस्कार करता है। मैं यहाँ हूँ, जीवन के प्रति तुम्हारी संवेदना व प्रेम को जगाने के लिये।"
वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्मं पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे काम के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में "सेक्स गुरु" के नाम से भी संबोधित किया गया। १९७० में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होने अपने शिष्यों को "नव संन्यास" में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। अपनी देशनाओं में उन्होने सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया। १९७४ में "पूना " आने के बाद उन्होनें अपने "आश्रम" की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी। १९८० में ओशो "अमेरिका" चले गए और वहां सन्यासियों ने "रजनीशपुरम" की स्थापना की।
ओशो अपने सेक्स के विचारों के कारण विवादों में घिर गए. लोगों को संभोग से समाधि का रास्ता दिखाया. सेक्स को दबाने की प्रवृति को मानवीय जीवन की विकृत मानसिकता का मूल कारण बताया. उन्होंने घोषणा की कि संभोग के क्षण में ईश्वर की झलक है. ओशो ने स्पष्ट कहा कि शादी जैसी कृत्रिम संस्था में मेरा विश्वास नहीं है और बिना शर्त प्रेम की हिमायत की. वह दुनिया को एक इंटरनेशनल कम्युन बनाना चाहते थे.
ओशो में एक दार्शनिक उंचाई थी और उन्होंने खुल कर धार्मिक पाखंडवाद पर प्रहार किया. इस मामले में वे कबीर को एक आग और क्रांति मानते थे. ओशो कहते थे बुद्ध बनो, बौद्ध नहीं. जीसस, बुद्ध, पैगम्बर मुहम्मद नानक, कबीर, कृष्ण, सुक्रात ये ओशो के विचारों में तैरते थे.
अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए उन्होंने पूना में ओशो इंटरनेशनल नाम से एक ध्यान-क्रेंद स्थापित किया और बाद में अमेरिका चले गए जहां अमेरिकी सरकार के निशाने पर आने लगे. वहां इनकी प्रसिद्धी से डरी हुई अमेरिकी सरकार ने इन पर बहुत सारे केस चला दिए और इनको गिरफ्तार कर के विभिन्न जेलों में घुमाती रही. बाद में मोरारजी देसाई सरकार की पहल पर इन्हें भारत लाया गया. अधिकांश यूरोपीय सरकारों ने ओशो पर अपने देशों में आने पर प्रतिबंध लगा दिया. ओशो मावन-जीवन को मुक्त करना चाहते थे. अतीत और भविष्य के घेरों को तोड़ना चाहते थे. उनमें जीवन की वर्तमान व्यवस्था बदलने की चाहत थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए कभी हिंसा और शस्त्र का सहारा नहीं लिया. कभी कोई भड़काउ बाते नहीं कही. चंगेज खा, हिटलर और माओ के बदलाव के हिंसक प्रयासों की अलोचना की और सनकी व्यक्तियों व विचारों से दुनिया को सावधान किया.
ओशो ने जीवन से मुक्ति के तीन मार्ग बताए- प्रेम, ज्ञान और समाधि. ओशो का मानना था कि मौत है ही नहीं, वह तो जिंदगी का ही रुपांतरण है. यह जीवन और जगत उस इश्वर की कृति है, इसलिए जितना ईश्वर सच है उतना ही यह जगत भी सच है, इस तरह उन्होंने संसार के माया और भ्रम होने की बात को नकार दिया. उन्होंने आध्यात्मिकता और भौतिकता को मिलाने की बात कही और बड़े ही जोड़ देकर कहा कि दोनों में कोई विरोध नहीं है. जीवन से भागना नहीं, जीवन को समझना है. समझ ही मुक्ति है. एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से जुड़ाव प्यार है, वहीं एक व्यक्ति का प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ाव समाधि है. इस तरह प्रेम का ही विस्तृत रुप समाधि है.
ओशो ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रुप में की. जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए और अपने व्याख्यानों से चर्चा में आने लगे. ओशो की अदभुत तार्किक क्षमता ने लोगों को आकर्षित किया. उनमें किसी भी मानीवय पक्षों की एक गहरी समझ थी, जिसे बड़े ही सहज शब्दों में वह लोगों को समझाते थे. एक असीम और अलौकिक शक्ति में उनका विश्वास और समर्पण था जिसने इस पूरे जीवन-संसार की रचना की है. ओशो ने एक क्रांतिकारी की तरह बड़े बदलाव की बात की. लेकिन उनका परिवर्तन व्यक्ति से शुरु होता, व्यवस्था से नहीं. उनका मानना था कि हर व्यक्ति में असीम संभावना है जिसे जगाने की जरुरत है.
ओशो का मूल नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले कुचवाडा ग्राम में हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जो कि तेरापंथी जैन थे, ने उन्हें अपने ननिहाल में ७ वर्ष की उम्र तक रखा था। ओशो के स्वयं के अनुसार उनके विकास में इसका प्रमुख योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी ने उन्हें संपूर्ण स्वतंत्रता, उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा। जब वे ७ वर्ष के थे तब उनके नाना का निधन हो गया और वे "गाडरवाडा" अपने माता पिता के साथ रहने चले गए. ओशो रजनीश (११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से या 'ओशो भगवान श्री रजनीश' नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये।
ओशो कहते हैं कि -"धार्मिक व्यक्ति की पुरानी धारणा यह रही है कि वह जीवन विरोधी है। वह इस जीवन की निंदा करता है, इस साधारण जीवन की - वह इसे क्षुद्र, तुच्छ, माया कहता है। वह इसका तिरस्कार करता है। मैं यहाँ हूँ, जीवन के प्रति तुम्हारी संवेदना व प्रेम को जगाने के लिये।"
वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्मं पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे काम के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में "सेक्स गुरु" के नाम से भी संबोधित किया गया। १९७० में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होने अपने शिष्यों को "नव संन्यास" में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। अपनी देशनाओं में उन्होने सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया। १९७४ में "पूना " आने के बाद उन्होनें अपने "आश्रम" की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी। १९८० में ओशो "अमेरिका" चले गए और वहां सन्यासियों ने "रजनीशपुरम" की स्थापना की।
ओशो अपने सेक्स के विचारों के कारण विवादों में घिर गए. लोगों को संभोग से समाधि का रास्ता दिखाया. सेक्स को दबाने की प्रवृति को मानवीय जीवन की विकृत मानसिकता का मूल कारण बताया. उन्होंने घोषणा की कि संभोग के क्षण में ईश्वर की झलक है. ओशो ने स्पष्ट कहा कि शादी जैसी कृत्रिम संस्था में मेरा विश्वास नहीं है और बिना शर्त प्रेम की हिमायत की. वह दुनिया को एक इंटरनेशनल कम्युन बनाना चाहते थे.
ओशो में एक दार्शनिक उंचाई थी और उन्होंने खुल कर धार्मिक पाखंडवाद पर प्रहार किया. इस मामले में वे कबीर को एक आग और क्रांति मानते थे. ओशो कहते थे बुद्ध बनो, बौद्ध नहीं. जीसस, बुद्ध, पैगम्बर मुहम्मद नानक, कबीर, कृष्ण, सुक्रात ये ओशो के विचारों में तैरते थे.
अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए उन्होंने पूना में ओशो इंटरनेशनल नाम से एक ध्यान-क्रेंद स्थापित किया और बाद में अमेरिका चले गए जहां अमेरिकी सरकार के निशाने पर आने लगे. वहां इनकी प्रसिद्धी से डरी हुई अमेरिकी सरकार ने इन पर बहुत सारे केस चला दिए और इनको गिरफ्तार कर के विभिन्न जेलों में घुमाती रही. बाद में मोरारजी देसाई सरकार की पहल पर इन्हें भारत लाया गया. अधिकांश यूरोपीय सरकारों ने ओशो पर अपने देशों में आने पर प्रतिबंध लगा दिया. ओशो मावन-जीवन को मुक्त करना चाहते थे. अतीत और भविष्य के घेरों को तोड़ना चाहते थे. उनमें जीवन की वर्तमान व्यवस्था बदलने की चाहत थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए कभी हिंसा और शस्त्र का सहारा नहीं लिया. कभी कोई भड़काउ बाते नहीं कही. चंगेज खा, हिटलर और माओ के बदलाव के हिंसक प्रयासों की अलोचना की और सनकी व्यक्तियों व विचारों से दुनिया को सावधान किया.
ओशो ने जीवन से मुक्ति के तीन मार्ग बताए- प्रेम, ज्ञान और समाधि. ओशो का मानना था कि मौत है ही नहीं, वह तो जिंदगी का ही रुपांतरण है. यह जीवन और जगत उस इश्वर की कृति है, इसलिए जितना ईश्वर सच है उतना ही यह जगत भी सच है, इस तरह उन्होंने संसार के माया और भ्रम होने की बात को नकार दिया. उन्होंने आध्यात्मिकता और भौतिकता को मिलाने की बात कही और बड़े ही जोड़ देकर कहा कि दोनों में कोई विरोध नहीं है. जीवन से भागना नहीं, जीवन को समझना है. समझ ही मुक्ति है. एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से जुड़ाव प्यार है, वहीं एक व्यक्ति का प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ाव समाधि है. इस तरह प्रेम का ही विस्तृत रुप समाधि है.
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