Tuesday, 4 November 2014

डॉ. मनमोहन सिंह ने रचा इतिहास


भारत-जापान संबंधों में अहम योगदान के लिए डॉ मनमोहन सिंह को जापान के टॉप नेशनल अवॉर्ड के लिए चुना गया है। डॉ मनमोहन सिंह को द ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द पाउलोनिया फ्लावर्स से सम्मानित किया जाएगा। इस अवॉर्ड से नवाजे जाने वाले वे पहले भारतीय होंगे। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का मन जापान को बहुत भाया है। जापान ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान देने के लिए चुना गया है।  जापानी एंबेसी के मुताबिक, डॉ मनमोहन सिंह को भारत-जापान के दोस्ताना रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए यह सम्मान दिए जाने का फैसला किया गया है।
सम्मान देने की घोषणा के बाद पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह ने कहा, “जापान सरकार ने मुझ पर जो प्यार बरसाया है, उससे मैं बहुत सम्मानित और कृतज्ञ महसूस कर रहा हूं। भारत-जापान रिश्तों में और तरक्की और उन्नति देखना मेरा सपना रहा है। न सिर्फ अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में, बल्कि लोकसेवा के अपने करियर में यही मेरा मकसद भी रहा।”
डा. मनमोहन सिंह एक कुशल राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे विद्वान, अर्थशास्त्री और विचारक भी हैं। एक मंजे हुये अर्थशास्त्री के रुप में उनकी ज्यादा पहचान है। अपने कुशल और ईमानदार छवि की वजह से सभी राजनैतिक दलों में उनकी अच्छी साख है। लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है। उन्होंने 21 जून 1999 से 16 मई
1996 तक नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। वित्त मंत्री के रूप में
उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की।मनमोहन सिंह का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में २६ सितंबर 1932 को हुआ था। देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया। यहां पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक तथा स्वनातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये। जहाँ से उन्होंने पी. एच. डी. की। तत्पश्चात् उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. भी किया। उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ, (अंग्रेजी: India’s Export Trends and Prospects for Self-Sustained Growth), भारत के अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डा. सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित डेलही स्कूल आफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे UNCTAD सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में डा. मनमोहन सिंह  भारत के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरंत बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डा. सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रुप से डा. सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। 

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