Monday, 10 November 2014

आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू


आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने के साथ भारत के नव निर्माण, लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले बच्चों के चाचा नेहरू और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अद्भुक्त वक्ता, उत्कृष्ट लेखक, इतिहासकार, स्वप्नद्रष्टा और आधुनिक भारत के निर्माता थे। आर्थिक और विदेश नीति के निर्धारण में मौलिक योगदान के साथ-साथ नेहरू ने जहां हमारे देश में प्रजातंत्र की जडें मजबूत कीं और उससे भी यादा महत्वपूर्ण यह है कि नेहरू ने भारत को पूरी ताकत लगाकर एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया। चूँकि हमने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया उसके परिणामस्वरूप हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़े गहरी होती गईं। जहां नव-आजाद देशों में से अनेक  में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है और तानाशाही कायम हो गई है वहीं भारत में प्रजातंत्र का कोई बाल बांका नहीं कर सका। इस तरह कहा जा सकता है कि जहां सरदार पटेल भारत को भौगोलिक दृष्टि से एक राष्ट्र बनाया वहीं नेहरू ने ऐसा राजनीतिक-आर्थिक एवं सामाजिक आधार बनाया जिससे भारत की एकता को कोई डिगा नहीं पाया। इस तरह आधुनिक भारत के निर्माण में पटेल और नेहरू दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है। आर्थिक और विदेश नीति के निर्धारण में मौलिक योगदान के साथ-साथ नेहरू ने जहां हमारे देश में प्रजातंत्र की जडें मजबूत कीं और उससे भी यादा महत्वपूर्ण यह है कि नेहरू ने भारत को पूरी ताकत लगाकर एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया। चूँकि हमने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया उसके परिणामस्वरूप हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़े गहरी होती गईं। जहां नव-आजाद देशों में से अनेक में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है और तानाशाही कायम हो गई है वहीं भारत में प्रजातंत्र का कोई बाल बांका नहीं कर सका।

संघ परिवार का हमेशा यह प्रयास रहता है कि आजाद भारत के निर्माण में जवाहरलाल नेहरू की भूमिका को कम करके पेश किया जाये और यह भी कि आज यदि पूरा कश्मीर हमारे कब्जे में नहीं है, तो उसके लिये सिर्फ और सिर्फ नेहरू को जिम्मेदार ठहराया जाए। संघ परिवार इस बात को भूल जाता है कि आजाद भारत में पंड़ित नेहरू और सरदार पटेल की अपनी.अपनी भूमिकायें थीं। जहां सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से सभी राजे.रजवाड़ों का भारत में विलय करवाया और भारत को एक राष्ट्र का स्वरूप दिया वहीं नेहरू ने भारत को एक शक्तिशाली आर्थिक नींव देने के लिए आवश्यक योजनायें बनाईं और उनके क्रियान्वयन के लिये उपयुक्त वातावरण भी।  हमारे देश के कुछ संगठन, विशेषकर जो संघ परिवार से जुड़े हैं, जब भी सरदार पटेल की चर्चा करते हैं तो उस समय वे पटेल के बारे में दो बातें अवश्य कहते हैं। पहली यह कि सरदार पटेल आज के भारत के निर्माता हैं और यह कि यदि कश्मीर की समस्या सुलझाने का उत्तरदायित्व सरदार पटेल को दिया जाता तो पूरे कश्मीर पर हमारा कब्जा होता। अभी हाल में सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर उनको याद करते हुये पुन: यह बातें दुहराई गयी। संघ परिवार का हमेशा यह प्रयास रहता है कि आजाद भारत के निर्माण में जवाहर लाल नेहरू की भूमिका को कम करके पेश किया जाये और यह भी कि यदि पूरा कश्मीर हमारे कब्जे में नहीं है तो उसके लिये सिर्फ और सिर्फ जवाहर लाल नेहरू जिम्मेदार हैं। चौहान और संघ परिवार इस बात को भूल जाते हैं कि आजाद भारत में पंड़ित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की अपनी-अपनी भूमिकायें थी। जहां सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से सभी राजे- रजवाड़ों का भारत में विलय करवाया और भारत को एक  राष्ट्र का रूप दिया वहीं जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्र को एक शक्तिशाली नींव पर खड़े रहने के लिये आवश्यक योजनायें बनाई और उनके यिान्वयन के लिये वातावरण बनाया।
नेहरू जी के योगदान को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला, ऐसी शक्तिशाली संस्थाओं का निर्माण जिनसे भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था कायम हो और बाद में कायम रहे। इन संस्थाओं में जन प्रतिनिधि संस्थाओं के रूप में संसद एवं विधान सभायें, एक उत्तरदायी एवं पूर्ण स्वतंत्र न्यायपालिका शामिल हैं। दूसरा, प्रजातंत्र को जिंदा रखने के लिये निश्चित अवधि के बाद चुनाव की व्यवस्था और ऐसा संवैधानिक प्रावधान कि भारत के प्रजातंत्र का मुख्य आधार धर्मनिरपेक्षता हो। तीसरा, मिश्रित अर्थव्यवस्था और उच्च शिक्षा संस्थानों की बड़े पैमाने पर स्थापना। वैसे जवाहर लाल नेहरू समाजवादी समाज व्यवस्था के समर्थक नहीं थे। परंतु वे भारत को पँजीवादी देश भी नहीं बनाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने भारत में एक मिश्रित आर्थिक व्यवस्था की नींव रखी। मिश्रित व्यवस्था में उन्होंने जहां उद्योग में निजी पूँजी की भूमिका बनाये रखी वहीं उन्होंने अधोसंरचना उद्योगों के लिये अत्यधिक शक्तिशाली सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया। उन्होंने कुछ ऐसे उद्योग चुने जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में ही रखा गया। ये ऐसे उद्योग थे जिनके बिना निजी उद्योग पनप ही नहीं सकता था। बिजली का उत्पादन पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रखा गया। इसी तरह इस्पात, बिजली के उपकरणों के कारखाने, रक्षा उद्योग, एल्यूमिनियम एवं अणु ऊर्जा भी सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए। इसके अतिरिक्त देश में तेल की खोज की गई और पेट्रोल और एल.पी.जी. के कारखाने भी सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गये। उद्योगीकरण की सफलता के लिये तकनीकी ज्ञान में माहिर लोगों की आवश्यकता होती है। फिर इन उद्योगों के संचालन के लिये प्रशिक्षित प्रबंधको को भी तैयार करने की आवश्यकता महसूस की गई। उच्च तकनीकी शिक्षा देने के लिये आईआईटी स्थापित किये गये। इसी तरह प्रबंधन के गुर सिखाने के लिए आईआईएम खोले गए। इन उच्चकोटि के संस्थानों के साथ-साथ संपूर्ण देश के पचासों छोटे-बड़े शहरों इंजीनियरिंग कालेज व देशवासियों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिये मेडिकल कॉलेज स्थापित किये गये।  चूँकि अंग्रेजों के शासन के दौरान देश की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी इसलिये उसे पटरी पर लाने के लिये अनेक बुनियादी कदम उठाये गये। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण देश का योजनाबध्द विकास था। योजनाबध्द विकास संभव हो सके इसलिये योजना आयोग की स्थापना की गई। स्वयं नेहरू जी योजना आयोग के अध्यक्ष बने। योजना आयोग ने देश के चहुमुखी विकास के लिये पंचवर्षीय योजनाएं बनाई गई। उस समय पंचवर्षीय योजना का विचार सोवियत रूस सहित अन्य समाजवादी देशों में लागू था परंतु पंचवर्षीय योजना का ढांचा एक ऐसे देश में लागू करना था जो पूरी तरह से न तो समाजवादी था और न ही पूँजीवादी। इसलिये उसे हमारे देश में लागू करना एक कठिन काम था।


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