अल्लाह का फरमान है “ किसी ऐसी चीज की पैरवी ना करो {यानि उसके पीछे न चलो , उसकी इत्तेबा ना करो } जिसका तुम्हें इल्म ना हो , यकीनन तुम्हारे कान, आँख, दिमाग {की कुव्वत जो अल्लाह ने तुमको अता की है }इसके बारे में तुमसे पूछताछ की जाएगी”
{सूरह बनी इस्राईल 17, आयत 36}
और नबी सल्ल० ने फ़रमाया “इल्म सीखना हर मुसलमान मर्द-औरत पर फ़र्ज़ है”
{इब्ने माजा हदीस न० 224 }
यानि इतना इल्म जरुर हो कि क्या चीज शरियत में हलाल है क्या हराम और क्या अल्लाह को पसंद है क्या नापसंद , कौन से काम करना है और कौन से काम मना है और कौन से ऐसे काम है जिनको करने पर माफ़ी नहीं मिल सकती द्य
अब लोगों का क्या हाल है एक तरफ तो अपने आपको मुसलमान भी कहते है दूसरी तरफ काम इस्लाम के खिलाफ़ करते है और जब कोई उनको रोके तो उसको कहते है कि ये काम तो हम बाप दादा के ज़माने से कर रहे है , यही वो बात है जिसको अल्लाह ने कुरआन में भी बता दिया सूरह बकरा की आयत 170 में “और जब कहा जाये उनसे की पैरवी करो उसकी जो अल्लाह ने बताया है तो जवाब में कहते है कि हम तो चलेंगे उसी राह जिस पर हमारे बाप दादा चले , अगर उनके बाप दादा बेअक्ल हो और बेराह हो तब भी {यानि दीन की समझ बूझ ना हो तब भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे ? }
हक़ीकत खुराफ़ात में खो गई
जी हाँ मुहर्रम की भी हकीकत खुराफ़ात में खो गई उलमाओं के फतवे और अहले हक़ लोगों के बयान मौजूद है फिर भी मुहर्रम की खुराफ़ात पर लोग यही दलील देते है कि यह काम हम बाप दादों के ज़माने से करते आ रहे है ? बेशक करते होंगे लेकिन कौन से इल्म की रौशनी में ? जाहिर है वो इल्म नहीं बेईल्मी होगी क्योंकि इल्म तो इस काम को मना कर रहा है। इस्लाम धर्म के त्योहारों के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि यह त्योहार चंद्र कैलेंडर एवं हिजरी पर आधारित होते हैं, न कि ग्रेगेरियन कैलेंडर पर। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला माह होता है। इस महीने को इस्लाम धर्म के चार पवित्र महीनों में शामिल किया जाता है। खुदा के दूत हजरत मुहम्मद ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। इस माह मनाया जाने वाला मोर्हरम का त्योहार माह के पहले दिन से शुरू होकर दसवें दिन तक चलता है।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम हिजरी संवत का प्रथम मास है। पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। मुहर्रम एक महीना है जिसमें दस दिन इमाम हुसैन के शोक में मनाए जाते हैं। इसी महीने में मुसलमानों के आदरणीय पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब, मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था। दुनिया के विभिन्न धर्मों के बहुत से त्योहार खुशियों का इजहार करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी त्योहार हैं जो हमें सच्चाई और मानवता के लिए दी गई शहादत की याद दिलाते हैं। ऐसा ही त्योहार है मुहर्रम, जो पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है। यह हिजरी संवत का प्रथम महीना है। मुहर्रम एक महीना है, जिसमें दस दिन इमाम हुसैन का शोक मनाया जाता है। इसी महीने में पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था।
कहा जाता है कि पैगंबर-ए-इस्लाम के बाद चार खलीफा (राष्ट्राध्यक्ष) उस दौर की अरबी कबीलाई संस्कृति के अनुसार प्रमुख लोगों द्वारा मनोनीत किए गए। लोग आपस में तय करके किसी योग्य व्यक्ति को प्रशासन, सुरक्षा इत्यादि के लिए प्रमुख चुन लेते थे। उस चुनाव में परिवार, पहुंच और धनबल का इस्तेमाल नहीं होता था। अगर होता तो पैगंबर साहब के बाद उनके दामाद और चचेरे भाई निकटतम व्यक्ति हजरत अली ही पहले खलीफा होते। जिन लोगों ने अपनी भावना से हजरत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और खलीफा चुना, वो लोग शियाने अली यानी शिया कहलाते हैं। शिया यानी हजरत अली के समर्थक। इसके विपरीत सुन्नी वे लोग हैं, जो चारों खलीफाओं के चुनाव को सही मानते हैं। रसूल मोहम्मद साहब की वफात के लगभग 50 वर्ष बाद इस्लामी दुनिया में ऐसा घोर अत्याचार का समय आया। मक्का से दूर सीरिया के गवर्नर यजीद ने अपनी खिलाफत का एलान कर दिया। यजीद की कार्यपद्धति बादशाहों जैसी थी। याद रहे इस्लाम में श्बादशाहश् और शहंशाह दिखने लगे, जो इस्लामी मान्यता के बिल्कुल उलट है। इस्लाम में बादशाहत की इंसानी कल्पना नहीं है। जमीन-आसमान का एक ही श्बादशाह अल्लाह यानी ईश्वर होगा। यजीद की खिलाफत के एलान के समय इमाम हुसैन मक्का में थे।
एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं। इस्लामी यानी हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है। हिजरी सन् का आगाज इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। इत्तिफाक की बात है कि आज मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है और इस माह में अल्लाह की इबादत करनी चाहीये जबकि पैगंबरे-इस्लाम (सल्ल.) ने इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित किया। इस बारे में कई प्रामाणिक हदीसें मौजूद हैं।
मुहर्रम महीने के १०वें दिन को श्आशुराश् कहते है। आशुरा के दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन को और उनके बेटे घरवाले और उनके सथियों (परिवार वालो) को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था। मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। इस माह की बहुत विशेषता और महत्व है। सन् 680 में इसी माह में कर्बला नामक स्थान मे एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मुहम्म्द स० के नाती तथा यजीद (पुत्र माविया पुत्र अबुसुफियान पुत्र उमेय्या) के बीच हुआ। इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हजरत इमाम हुसैन अ० की हुई। पर जाहिरी तौर पर यजीद के कमांडर ने हजरत इमाम हुसैन अ० और उनके सभी 72 साथियो (परिवार वालो) को शहीद कर दिया था। जिसमें उनके छः महीने की उम्र के पुत्र हजरत अली असगर भी शामिल थे। और तभी से तमाम दुनिया के ना सिर्फ़ मुसलमान बल्कि दूसरी कौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाकर उनकी याद करते हैं। आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था।
कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है। बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का तरीका अपनाना चाहिए। जबकि आज आमजन को दीन की जानकारी न के बराबर है। अल्लाह के रसूल वाले तरीकों से लोग वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में जरूरत है हजरत मुहम्मद (सल्ल.) की बताई बातों पर गौर करने और उन पर सही ढंग से अमल करने की जरुरत है। इमाम और उनकी शहादत के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन, जो कि बीमारी के कारण युद्ध मे भाग न ले सके थे बचे द्य दुनिया मे अपने बच्चों का नाम हजरत हुसैन और उनके शहीद साथियों के नाम पर रखने वाले अरबो मुसलमान हैं। इमाम हुसेन की औलादे जो सादात कहलाती हैं दुनियाभर में फैली हुयी हैं।
क्या मुहर्रम के महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखना सुन्नत है ? और क्या इस महीने को इसके अलावा अन्य महीनों पर कोई फज़ीलत प्राप्त है ? मुहर्रम का महीना अरबी महीनों का प्रथम महीना है, तथा वह अल्लाह के चार हुर्मत व अदब वाले महीनों में से एक है। अल्लाह तआला का फरमान हैरू
ष्अल्लाह के निकट महीनों की संख्या अल्लाह की किताब में 12 --बारह- है उसी दिन से जब से उसने आकाशों और धरती को पैदा किया है, उन में से चार हुर्मत व अदब -सम्मान- वाले हैं। यही शुद्ध धर्म है, अतः तुम इन महीनों में अपनी जानों पर अत्याचार न करो।ष् (सूरतुत-तौबाः 36)
बुखारी (हदीस संख्यारू 3167) और मुस्लिम (हदीस संख्यारू1679) ने अबू बक्ररह रज़ियल्लाहु अन्हु के माध्यम से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमायारू ज़माना घूमकर फिर उसी स्थिति पर आ गया है जिस तरह कि वह उस दिन था जिस दिन अल्लाह तआला ने आकाशों और धरती को पैदा किया। साल बारह महीनों का होता है जिनमें चार हुर्मत व अदब वाले हैं, तीन महीने लगातार हैं रू ज़ुल क़ादा, ज़ुलहिज्जा, मुहर्रम, तथा मुज़र क़बीले से संबंधित रजब का महीना जो जुमादा और शाबान के बीच में पड़ता है।ष् तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि रमज़ान के बाद सबसे अफज़ल (सर्वश्रेष्ठ) रोज़ा मुहर्रम के महीने का रोज़ा है। चुनाँचि अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया रू ष्रमज़ान के महीने के बाद सबसे श्रेष्ठ रोज़े अल्लाह के महीना मुहर्रम के हैं, और फर्ज़ नमाज़ के बाद सर्वश्रेष्ठ नमाज़ रात की नमाज़ है।ष् इसे मुस्लिम (हदीस संख्यारू 1163) ने रिवायत किया है।
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान रू ष्अल्लाह का महीनाष् में महीना को अल्लाह से सम्मान के तौर पर संबंधित किया गया है। मुल्ला अली क़ारी कहते हैं रू प्रत्यक्ष यही होता कि है इस से अभिप्राय संपूर्ण मुहर्रम का महीना है। किंतु यह बात प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमज़ान के अलावा कभी भी किसी महीने का मुकम्मल रोज़ा नहीं रखा। अतः इस हदीस को मुहर्रम के महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखने की रूचि दिलाने पर महमूल किया जायेगा, न कि पूरे महीने का रोज़ा रखने पर।
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