Sunday, 27 July 2014

खुदा का इनाम है ईद-उल-फितर




मजान माह की इबादतों और रोजे के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार खुदा का इनाम है। इसमें खुशखबरी की महक और खुशियों का गुलदस्ता है। इसलिये जुमा अलविदा के बाद अब चांद के दीदार का इंतजार है। चकिया (चंदौली) : ईद इस्लामिक महीना शव्वाल का आगाज करता है। माहे रमजान में इस्लाम को मानने वाले 30 दिन तक रोजा रखकर अल्लाह पाक की इबादत करते हैं। रोजा पूरा होने पर बतौर ईनाम मुसलमानों को अल्लाह तआला ईद के रूप में खुशियां बरसाते हैं। 'ईद' का त्योहार इस्लामी माह शव्वाल की पहली तारीख को मनाया जाता है। इसके पहले रमजान का महीना होता है जिसे मुसलमान भाई बड़ा पवित्र महीना मानते हैं। इस पूरे माह रोजे (उपवास) रखते हैं। सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाते। सूर्यास्त पश्चात रोजा (उपवास) खोला जाता है जिसे 'रोजा-इफ्तारी' कहते हैं। दिनभर 'कुरान शरीफ' का पाठ करते हैं और नियमपूर्वक नमाज अदा करते हैं। पूरा माह पवित्र जीवन बिताते हैं, गरीबों और दुखियों की मदद करते हैं।
खुशियों का सबसे बड़ा त्योहार ईद इस्लाम में अजिमुशान मकाम रखता है। चांद का दीदार होते ही त्योहार का ऐसा नजारा बिखरता है कि लोग बाग अमीर, गरीब, छोटा व बड़ा का भेदभाव भुलाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। ईद का शाब्दिक अर्थ खुशी होता है। जो अपने अर्थ को इस दिन सार्थक करता नजर आता है। इस्लाम मजहब के जानकार इम्तियाज अहमद खां कहते हैं कि रमजान के सुकुन से पूरा होने व रोजेदारों द्वारा तिलावते कुरआन पाक व दीगर इबादत करने का बख्शीश ईद के रूप में परवर दीगार बख्शता है। ईद की नमाज के पहले फितरा अदा किया जाता है। यही कारण है कि इसे ईद-उल-फितर कहते हैं।
फितरा वह रकम होती है जिसे घर के प्रत्येक सदस्य के नाम से निकाला जाता है। यह ढाई किलो गेहूं या इतने तौल के बराबर नगदी दिया जाता है। ईद की नमाज के पहले पैदा हुए नवजात शिशु के लिए भी फितरा का निकाला जाना निहायत जरूरी होता है। रोजेदारों के पांचों वक्त की नमाज, पाक कुरान की तिलावत व तरावीह से खुश होकर अल्लाह पाक रोजेदारों को बख्शीश के तौर पर खुशियों के गुलदस्ते ईद से नवाजते हैं। ईद की रात के चांद अल्फा के दीदार के साथ ही इसकी खुशियां हर घर में बरसने लगती है। ईद की दो रेकात नमाज अता करने वाले को फरिश्ते सबाब देते हैं। कहते हैं कि फितरा ईद के दिन की इबादत में से एक अहम इबादत है इसलिए यह बेहद जरूरी है। मिस्किनों (गरीबों) को जो सख्स ईद की नमाज से पहले फितरा अदा करता है उसके लिए जकात मकबूल होती है और जो नमाज के बाद इसे अदा करता है वह आम सदकों में से एक होती है। ईद की चांद का दीदार कर घरों में इंतेखाब पर बैठी महिला अपना 10 दिन का मौन एकांतवास के साधना का समापन इसी दिन करती हैं। वहीं मस्जिदों में इंतेखाब पर बैठे पुरूष सदस्य भी दुआ कर घरों को वापस जाते। जिन्हें फूल मालाओं के साथ लोग बाग नाते व नारा लगाते हुए घरों तक पहुंचाते हैं।
जकात हर बालिग मुस्लिम का फर्ज है। ऐसे मुस्लिम जिनके पास साढ़े बावन तोले चांदी या साढ़े सात तोले सोना हो या इनकी कीमत के बराबर संपत्ति है, इस संपत्ति पर एक वर्ष गुजरा हुआ होना चाहिये, उन्हें इसका आंकलन करके ढाई फीसद के हिसाब से जकात निकालनी चाहिये। फितरा या जकात ऐसे मुस्लिमों को दें जो गरीब हों। ताकि वह भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। द को समझने के लिये पैगंबर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से इसका महत्व समझना चाहिये। वह बड़ी सादगी से ईद मनाया करते थे। जिसे फितरा दिया जाये उसे यह महसूस नहीं होने दें कि गरीब मानकर उसे यह दिया जा रहा है। ईद के दिन नमाज से पहले फितरा हर बालिग की ओर से दिया जाता है। बच्चों का फितरा पिता को अदा करना चाहिये।

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